ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 206
'ओल्ड इज़ गोल्ड' का सफ़र जारी है दोस्तों, अदा जी के पसंद के पाँच गानें आप ने सुने पिछले पाँच दिनों में। आप सभी से हमारा यह अनुरोध है कि पहेली में भाग लेने के साथ साथ प्रस्तुत होने वाले गीतों की ज़रा चर्चा भी करें तो हम सब की जानकारी में बढोतरी हो सकती है। केवल आलेखों की तारीफ़ ही न करें, बल्कि आलेख में दिए गए जानकारियों के अलावा भी उन गीतों पर टिप्पणी करें, तभी हम फ़िल्म संगीत के अपने 'नौलेज बेस' को और ज़्यादा समृद्ध कर सकते हैं। ख़ैर, अब आते हैं आज के गीत की तरफ़। हमारी फ़िल्मों में अक्सर नायक नायिका की प्रधान जोड़ी के अलावा भी एक जोड़ी देखी जा सकती है। यह जोड़ी है एक हास्य अभिनेता और एक हास्य अभिनेत्री की। धुमल, महमूद, जौनी वाकर, सपरू कुछ ऐसे ही हास्य अभिनेता रहे हैं और टुनटुन, शुभा खोटे, शशिकला इस जौनर की अभिनेत्रियाँ रहीं हैं। ऐसी कौमेडियन जोड़ियों पर समय समय पर गानें भी फ़िल्माये जाते रहे हैं। आज एक ऐसी ही गीत की बारी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में। महमूद और शुभा खोटे पर फ़िल्माया यह गीत है फ़िल्म 'ज़िद्दी' से, "मैं तेरे प्यार में क्या क्या न बना दिलबर, जाने ये मौसम, मैं घटा प्यार भरी तू है मेरा बादल, जाने ये मौसम"। मन्ना डे और गीता दत्त की आवाज़ों में यह गीत काफ़ी लोकप्रिय हुआ था अपने ज़माने में। मन्ना डे ने महमूद के लिए बहुत सारे गानें गाए हैं, वो उनके स्क्रीन वायस रहे हैं। और क्योंकि लता जी ने इस फ़िल्म की नायिका के लिए पार्श्व गायन किया था, इस नटखट गीत के लिए गीता जी की ही आवाज़ सबसे मज़बूत दावेदारों में से थी। 'ज़िद्दी' १९६४ में बनी प्रमोद चक्रवर्ती की फ़िल्म थी जिसका निर्देशन भी उन्होने ही किया। महमूद और शुभा खोटे तो कामेडियन चरित्रों में थे, लेकिन फ़िल्म के नायक नायिका थे जय मुखर्जी और आशा पारेख। सचिन देव बर्मन का संगीत था और गीतकार हसरत जयपुरी ने फ़िल्म के गानें लिखे। इस गीत में हसरत साहब मौसम को चश्मदीद गवाह बनाते हुए दो प्रेमियों के प्रेम का इज़हार बयान कर रहे हैं। युं तो हसरत जयपुरी साहब को रोमांटिक गीतों का बादशाह माना जाता है, लेकिन इस गीत में रोमांटिसिज़्म के साथ साथ थोड़ा सा गुदगुदाने वाला हास्य रस भी है। सिर्फ़ गीत को सुन कर शायद आप को इसमें हास्य रस का उतना पता न चले, लेकिन परदे पर इस गीत का कभी फ़िल्मांकन देखिएगा ज़रूर! 'रोमांटिक कॊमेडी' का एक सुंदर उदाहरण है यह गीत।
फ़िल्म 'ज़िद्दी' का सब से मशहूर गीत है लता जी का गाया हुआ "रात का समा झूमे चंद्रमा" जिसे फ़िल्म में आशा पारेख ने स्टेज पर परफोर्म किया था। इसके अलावा शराब के नशे में चूर आशा पारेख एक पार्टी में गाती हैं लता जी की ही आवाज़ में "ये मेरी ज़िंदगी एक पागल हवा"। रफ़ी साहब का गाया "तेरी सूरत से मिलती नहीं किसी की सूरत" भी एक सदाबहार नग़मा है। आज के प्रस्तुत गीत के अलावा इसी फ़िल्म में महमूद साहब पर एक और गीत फ़िल्माया गया था, मन्ना डे की ही आवाज़ में वह गीत है "प्यार की आग में तन बदन जल गया"। इस गीत को महमूद और मन्ना डे की जोड़ी का एक ख़ास गीत माना जाता है। जहाँ तक आज के गीत "जाने ये मौसम" का सवाल है, इस गीत को और भी ज़्यादा हास्यप्रद बना कर गोविंदा ने 'हीरो नंबर वन' में गाया था "मैं तेरे प्यार में क्या क्या न बना मीना, कभी बना कुत्ता कभी कमीना"। तो आइए दोस्तों, सिनेमा के उस सुवर्ण युग को याद करते हुए, और हास्य जोड़ी महमूद और शुभा खोटे के अंदाज़-ओ-अभिनय प्रतिभा को सलाम करते हुए, सुनते हैं मन्ना डे और गीता दत्त का गाया 'ज़िद्दी' फ़िल्म का यह गीत।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. ये युगल गीत एक जबरदस्त नायक और मुन्नवर सुल्ताना पर फिल्माया गया था.
२. इस गीत की गायिका की आवाज़ को नय्यर साहब ने "टेम्पल बेल" का खिताब दिया था.
३. एक अंतरे की पहली पंक्ति इस शब्द पर रूकती है -"असर".
पिछली पहेली का परिणाम -
गीता जी की आवाज़ की महक उठी और पराग जी हाज़िर हो गए सही जवाब के साथ. 26 अंक हुए आपके, भाई कोई श्रोता पाबला जी के सवाल के जवाब दें, दिलीप जी आप शायद सही बता पायें...शरद जी गीत के बोल हिंदी में लिखिए, और पूर्वी जी, क्या आप वाकई नाराज़ हो गयी हैं, आपका नाम गलती से छोटा होगा, माफ़ी चाहेंगें ...पर महफिल में यूं आना तो मत छोडिये ....:) कल आप की बहुत कमी खली.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
'ओल्ड इज़ गोल्ड' का सफ़र जारी है दोस्तों, अदा जी के पसंद के पाँच गानें आप ने सुने पिछले पाँच दिनों में। आप सभी से हमारा यह अनुरोध है कि पहेली में भाग लेने के साथ साथ प्रस्तुत होने वाले गीतों की ज़रा चर्चा भी करें तो हम सब की जानकारी में बढोतरी हो सकती है। केवल आलेखों की तारीफ़ ही न करें, बल्कि आलेख में दिए गए जानकारियों के अलावा भी उन गीतों पर टिप्पणी करें, तभी हम फ़िल्म संगीत के अपने 'नौलेज बेस' को और ज़्यादा समृद्ध कर सकते हैं। ख़ैर, अब आते हैं आज के गीत की तरफ़। हमारी फ़िल्मों में अक्सर नायक नायिका की प्रधान जोड़ी के अलावा भी एक जोड़ी देखी जा सकती है। यह जोड़ी है एक हास्य अभिनेता और एक हास्य अभिनेत्री की। धुमल, महमूद, जौनी वाकर, सपरू कुछ ऐसे ही हास्य अभिनेता रहे हैं और टुनटुन, शुभा खोटे, शशिकला इस जौनर की अभिनेत्रियाँ रहीं हैं। ऐसी कौमेडियन जोड़ियों पर समय समय पर गानें भी फ़िल्माये जाते रहे हैं। आज एक ऐसी ही गीत की बारी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में। महमूद और शुभा खोटे पर फ़िल्माया यह गीत है फ़िल्म 'ज़िद्दी' से, "मैं तेरे प्यार में क्या क्या न बना दिलबर, जाने ये मौसम, मैं घटा प्यार भरी तू है मेरा बादल, जाने ये मौसम"। मन्ना डे और गीता दत्त की आवाज़ों में यह गीत काफ़ी लोकप्रिय हुआ था अपने ज़माने में। मन्ना डे ने महमूद के लिए बहुत सारे गानें गाए हैं, वो उनके स्क्रीन वायस रहे हैं। और क्योंकि लता जी ने इस फ़िल्म की नायिका के लिए पार्श्व गायन किया था, इस नटखट गीत के लिए गीता जी की ही आवाज़ सबसे मज़बूत दावेदारों में से थी। 'ज़िद्दी' १९६४ में बनी प्रमोद चक्रवर्ती की फ़िल्म थी जिसका निर्देशन भी उन्होने ही किया। महमूद और शुभा खोटे तो कामेडियन चरित्रों में थे, लेकिन फ़िल्म के नायक नायिका थे जय मुखर्जी और आशा पारेख। सचिन देव बर्मन का संगीत था और गीतकार हसरत जयपुरी ने फ़िल्म के गानें लिखे। इस गीत में हसरत साहब मौसम को चश्मदीद गवाह बनाते हुए दो प्रेमियों के प्रेम का इज़हार बयान कर रहे हैं। युं तो हसरत जयपुरी साहब को रोमांटिक गीतों का बादशाह माना जाता है, लेकिन इस गीत में रोमांटिसिज़्म के साथ साथ थोड़ा सा गुदगुदाने वाला हास्य रस भी है। सिर्फ़ गीत को सुन कर शायद आप को इसमें हास्य रस का उतना पता न चले, लेकिन परदे पर इस गीत का कभी फ़िल्मांकन देखिएगा ज़रूर! 'रोमांटिक कॊमेडी' का एक सुंदर उदाहरण है यह गीत।
फ़िल्म 'ज़िद्दी' का सब से मशहूर गीत है लता जी का गाया हुआ "रात का समा झूमे चंद्रमा" जिसे फ़िल्म में आशा पारेख ने स्टेज पर परफोर्म किया था। इसके अलावा शराब के नशे में चूर आशा पारेख एक पार्टी में गाती हैं लता जी की ही आवाज़ में "ये मेरी ज़िंदगी एक पागल हवा"। रफ़ी साहब का गाया "तेरी सूरत से मिलती नहीं किसी की सूरत" भी एक सदाबहार नग़मा है। आज के प्रस्तुत गीत के अलावा इसी फ़िल्म में महमूद साहब पर एक और गीत फ़िल्माया गया था, मन्ना डे की ही आवाज़ में वह गीत है "प्यार की आग में तन बदन जल गया"। इस गीत को महमूद और मन्ना डे की जोड़ी का एक ख़ास गीत माना जाता है। जहाँ तक आज के गीत "जाने ये मौसम" का सवाल है, इस गीत को और भी ज़्यादा हास्यप्रद बना कर गोविंदा ने 'हीरो नंबर वन' में गाया था "मैं तेरे प्यार में क्या क्या न बना मीना, कभी बना कुत्ता कभी कमीना"। तो आइए दोस्तों, सिनेमा के उस सुवर्ण युग को याद करते हुए, और हास्य जोड़ी महमूद और शुभा खोटे के अंदाज़-ओ-अभिनय प्रतिभा को सलाम करते हुए, सुनते हैं मन्ना डे और गीता दत्त का गाया 'ज़िद्दी' फ़िल्म का यह गीत।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. ये युगल गीत एक जबरदस्त नायक और मुन्नवर सुल्ताना पर फिल्माया गया था.
२. इस गीत की गायिका की आवाज़ को नय्यर साहब ने "टेम्पल बेल" का खिताब दिया था.
३. एक अंतरे की पहली पंक्ति इस शब्द पर रूकती है -"असर".
पिछली पहेली का परिणाम -
गीता जी की आवाज़ की महक उठी और पराग जी हाज़िर हो गए सही जवाब के साथ. 26 अंक हुए आपके, भाई कोई श्रोता पाबला जी के सवाल के जवाब दें, दिलीप जी आप शायद सही बता पायें...शरद जी गीत के बोल हिंदी में लिखिए, और पूर्वी जी, क्या आप वाकई नाराज़ हो गयी हैं, आपका नाम गलती से छोटा होगा, माफ़ी चाहेंगें ...पर महफिल में यूं आना तो मत छोडिये ....:) कल आप की बहुत कमी खली.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
Afsaana mera ban gaya afasaana kisi ka
अंतरे की पंक्ति है:
पूछो ना मुहब्बत का असर
हाए ना पूंछो..
बहुतही सुरीला और सुन्दर गीत है
पराग
मिलते ही आँखे दिल हुआ दीवाना किसी का
अफ़साना मेरा बन गया अफ़साना किसी का ।
पूछो न मुहब्बत का असर
हाय न पूछो - हाय न पूछो
दम भर में कोई हो गया परवाना किसी का ।
हँसते ही न आ जाएं कहीं
आँखों में आंसू - आँखों में आंसू
भरते ही छलक जाए न पैमाना किसी का ।
नाराज़ होने का तो बस दिखावा था,(शायद फ़िल्मी गानों का असर है :) ), पर कल हुआ यह कि बाहर गये थे तो रिटर्न बहुत देर से हुए, इस लिए अपनी हाजिरी नहीं लगवा पाए, आप माफ़ी मांग कर हमें शर्मिंदा ना करें. देखिये ना, आज भी आने में देर हो गयी और पराग जी ने बाजी मार ली :) बधाई पराग जी.