ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 53
'ओल्ड इज़ गोल्ड' में कल आपने जुदाई के दर्द में डूबा हुआ एक ख़ूबसूरत नग्मा सुना था, आज भी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल कुछ ग़मज़दा सी ही है क्युंकि आज जो गीत हम लेकर आए हैं, वह बयां करती है दास्ताँ जीवन के रास्तों के साथ साथ बहनेवाली आंसूओं के नदियों की। और ये गीत है मुकेश की आवाज़ में राज कपूर और माला सिन्हा अभिनीत फ़िल्म परवरिश में हसरत जयपुरी का ही लिखा और दत्ताराम का स्वरबद्ध किया हुआ -"आँसू भरी हैं ये जीवन की राहें, कोई उनसे कहदे हमें भूल जाएं"। संगीतकार दत्ताराम शंकर जयकिशन के सहायक हुआ करते थे। कहा जाता है कि शंकर से जयकिशन को पहली बार मिलवाने में दत्तारामजी का ही हाथ था। १९४९ से लेकर १९५७ तक इस अज़ीम संगीतकार जोड़ी के साथ काम करने के बाद सन १९५७ में दत्ताराम बने स्वतंत्र संगीतकार, फ़िल्म थी 'अब दिल्ली दूर नहीं'। पहली फ़िल्म के संगीत में ही इन्होने चौका मार दिया और इसके अगले साल १९५८ में अपनी दूसरी फ़िल्म 'परवरिश' में सीधा छक्का। ख़ासकर राग कल्याण पर आधारित मुकेश का गाया हुआ यह गाना तो सीधे लोगों के ज़ुबां पर चढ़ गया।
जैसा कि पहले भी हमने कई बार इस बात का ज़िक्र किया है कि मुकेश नाम दर्द भरी आवाज़ का पर्याय है। अनिल बिश्वास के संगीत निर्देशन में अपने पहले गाने से ही मुकेश दर्दीले गीतों के राजा बन गये थे। यह गीत था फ़िल्म 'पहली नज़र' से "दिल जलता है तो जलने दे, आँसू ना बहा फरियाद ना कर"। इस गीत को उन्होने अपने गुरु सहगल साहब के अंदाज़ में कुछ इस तरह से गाया था कि ख़ुद सहगल साहब ने टिप्पणी की थी कि "मैने यह गीत कब गाया था?" उस समय फ़िल्मी दुनिया में नये नये क़दम रखनेवाले मुकेश के लिए सहगल साहब के ये चंद शब्द किसी अनमोल पुरस्कार से कम नहीं थे। फ़िल्म परवरिश के प्रस्तुत गीत में भी मुकेश के उसी अन्दाज़-ए-बयां को महसूस किया जा सकता है। एक अंतरे में हसरत साहब कहते हैं - "बरबादियों की अजब दास्ताँ हूँ, शबनम भी रोये मैं वह आसमां हूँ, तुम्हे घर मुबारक़ हमें अपनी आहें, कोई उनसे कहदे हमें भूल जायें", कितने सीधे सरल लेकिन असरदार शब्दों में किसी के दिल के दर्द का बयान किया गया है इस गीत में! उस पर दताराम के संगीत संयोजन ने बोलों को और भी ज़्यादा पुर-असर बना दिया है। केवल शहनाई,सारंगी, सितार और तबले के ख़ूबसूरत प्रयोग से गाना बेहद सुरीला बन पड़ा है।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. ओपी नय्यर और आशा की सदाबहार टीम.
२. मजरूह साहब के बोल.
३. गीत शुरू होता है इस शब्द से -"बेईमान"
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
'ओल्ड इज़ गोल्ड' में कल आपने जुदाई के दर्द में डूबा हुआ एक ख़ूबसूरत नग्मा सुना था, आज भी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल कुछ ग़मज़दा सी ही है क्युंकि आज जो गीत हम लेकर आए हैं, वह बयां करती है दास्ताँ जीवन के रास्तों के साथ साथ बहनेवाली आंसूओं के नदियों की। और ये गीत है मुकेश की आवाज़ में राज कपूर और माला सिन्हा अभिनीत फ़िल्म परवरिश में हसरत जयपुरी का ही लिखा और दत्ताराम का स्वरबद्ध किया हुआ -"आँसू भरी हैं ये जीवन की राहें, कोई उनसे कहदे हमें भूल जाएं"। संगीतकार दत्ताराम शंकर जयकिशन के सहायक हुआ करते थे। कहा जाता है कि शंकर से जयकिशन को पहली बार मिलवाने में दत्तारामजी का ही हाथ था। १९४९ से लेकर १९५७ तक इस अज़ीम संगीतकार जोड़ी के साथ काम करने के बाद सन १९५७ में दत्ताराम बने स्वतंत्र संगीतकार, फ़िल्म थी 'अब दिल्ली दूर नहीं'। पहली फ़िल्म के संगीत में ही इन्होने चौका मार दिया और इसके अगले साल १९५८ में अपनी दूसरी फ़िल्म 'परवरिश' में सीधा छक्का। ख़ासकर राग कल्याण पर आधारित मुकेश का गाया हुआ यह गाना तो सीधे लोगों के ज़ुबां पर चढ़ गया।
जैसा कि पहले भी हमने कई बार इस बात का ज़िक्र किया है कि मुकेश नाम दर्द भरी आवाज़ का पर्याय है। अनिल बिश्वास के संगीत निर्देशन में अपने पहले गाने से ही मुकेश दर्दीले गीतों के राजा बन गये थे। यह गीत था फ़िल्म 'पहली नज़र' से "दिल जलता है तो जलने दे, आँसू ना बहा फरियाद ना कर"। इस गीत को उन्होने अपने गुरु सहगल साहब के अंदाज़ में कुछ इस तरह से गाया था कि ख़ुद सहगल साहब ने टिप्पणी की थी कि "मैने यह गीत कब गाया था?" उस समय फ़िल्मी दुनिया में नये नये क़दम रखनेवाले मुकेश के लिए सहगल साहब के ये चंद शब्द किसी अनमोल पुरस्कार से कम नहीं थे। फ़िल्म परवरिश के प्रस्तुत गीत में भी मुकेश के उसी अन्दाज़-ए-बयां को महसूस किया जा सकता है। एक अंतरे में हसरत साहब कहते हैं - "बरबादियों की अजब दास्ताँ हूँ, शबनम भी रोये मैं वह आसमां हूँ, तुम्हे घर मुबारक़ हमें अपनी आहें, कोई उनसे कहदे हमें भूल जायें", कितने सीधे सरल लेकिन असरदार शब्दों में किसी के दिल के दर्द का बयान किया गया है इस गीत में! उस पर दताराम के संगीत संयोजन ने बोलों को और भी ज़्यादा पुर-असर बना दिया है। केवल शहनाई,सारंगी, सितार और तबले के ख़ूबसूरत प्रयोग से गाना बेहद सुरीला बन पड़ा है।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. ओपी नय्यर और आशा की सदाबहार टीम.
२. मजरूह साहब के बोल.
३. गीत शुरू होता है इस शब्द से -"बेईमान"
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
सुन दर्द मेरा बेदर्द सनम...
दामन न छुडा तुझे मेरी कसम,
दिल ले के टालना ना,
बेईमान बालमा
बहुत शुक्रिया बहुत मेहरबानी कि मुझे आपने यह गाना सुनाया.....
साफ़ साफ़ कहिये के किचन में काम करने का दिल नहीं करता
मानीटरी झाड़ने की आदत पड़ गई है
सही जवाब नीरज जी का,
अब तो ऐसी आदत पड़ गई है के अपना दिमाग ही नहीं लगाते ....हम ...
इस समय मुझे बेतहाशा हंसी आ रही है और ही,ही, ही,ही के अलावा और कुछ नहीं सूझ रहा है. आपका काम मुझे करना पड़ रहा है.
Regards,
Pankaj Dwivedi
www.SingerMukesh.com