"क्रूक" में कुमार के साथ तो "आक्रोश" में इरशाद कामिल के साथ मेलोडी किंग प्रीतम की जोड़ी के क्या कहने!!
ताज़ा सुर ताल ३८/२०१०
सुजॊय - दोस्तों, नमस्कार, स्वागत है आप सभी का इस हफ़्ते के 'ताज़ा सुर ताल' में। विश्व दीपक जी, इस बार के लिए मैंने दो फ़िल्में चुनी हैं, और ये फ़िल्में हैं 'क्रूक' और 'आक्रोश'।
विश्व दीपक - सुजॊय जी, क्या कोई कारण है इन दोनों को इकट्ठे चुनने के पीछे?
सुजॊय - जी हाँ, मैं बस उसी पे आ रहा था। एक नहीं बल्कि दो दो समानताएँ हैं इन दोनों फ़िल्मों में। एक तो यह कि दोनों के संगीतकार हैं प्रीतम। और उससे भी बड़ी समानता यह है कि इन दोनों की कहानी दो ज्वलंत सामयिक विषयों पर केन्द्रित है। जहाँ एक तरफ़ 'क्रूक' की कहानी आधारित है हाल में ऒस्ट्रेलिया में हुए भारतीयों पर हमले पर, वहीं दूसरी तरफ़ 'आक्रोश' केन्द्रित है हरियाणा में आये दिन हो रहे ऒनर किलिंग्स की घटनाओं पर।
विश्व दीपक - वाक़ई ये दो आज के दौर की दो गम्भीर समस्यायें हैं। तो शुरु किया जाए 'क्रूक' के साथ। मुकेश भट्ट निर्मित और मोहित सूरी निर्देशित 'क्रूक' के मुख्य कलाकार हैं इमरान हाश्मी, अर्जुन बजवा और नेहा शर्मा। प्रीतम का संगीत और कुमार के गीत। पहला गीत सुनते हैं "छल्ला इण्डिया तों आया"। पूरी तरह से पंजाबी फ़्लेवर का गाना है जिसे गाया है बब्बु मान और सुज़ेन डी'मेलो ने। पंजाबी भंगड़ा के साथ वेस्टर्ण फ़्युज़न में प्रीतम को महारथ हासिल है। "मौजा ही मौजा", "नगाड़ा", "दिल बोले हड़िप्पा" के बाद अब "छल्ला"।
सुजॊय - तो आइए इस थिरकन भरे गीत से आज के इस प्रस्तुति की शुरुआत की जाये।
गीत - छल्ला
सुजॊय - 'क्रूक' का दूसरा गीत है "मेरे बिना" जिसे गाया है निखिल डी'सूज़ा ने। अब तक निखिल की आवाज़ कई गायकों वाले गीतों में ही ली गयी थी जिसकी वजह से उनकी आवाज़ को अलग से पहचानने का मौका अब तक हमें नहीं मिल सका था। लेकिन इस गीत में केवल उन्ही की आवाज़ है। जिस तरह से जावेद अली और कार्तिक आजकल कामयाबी के पायदान चढ़ते जा रहे हैं, लगता है निखिल के भी अच्छे दिन उन्हें बाहें पसार कर बुला रहे हैं।
विश्व दीपक - गीत की बात करें तो इस गीत में रॊक इन्फ़्लुएन्स है और एक सॊफ़्ट रोमांटिक नंबर है यह। शुरु शुरु में इस गीत को सुनते हुए कोई ख़ास बात नज़र नहीं आती, लेकिन गीत के ख़तम होते होते थोड़ी सी हमदर्दी होने लगती है इस गीत के साथ। निखिल ने अच्छा गाया है और क्योंकि उनका यह पहला एकल गाना है, तो उन्हें हमें मुबारक़बाद देनी ही चाहिए। वेल डन निखिल!
सुजॊय - वैसे निखिल ने हाल ही में 'अंजाना अंजानी' का शीर्षक गीत भी गाया है। 'उड़ान' और 'आयेशा' में भी गीत गाये हैं। लेकिन यह उनका पहला सोलो ट्रैक है। आइए अब सुनते हैं इस गीत को।
गीत - मेरे बिना
विश्व दीपक - 'क्रूक' भट्ट कैम्प की फ़िल्म है और नायक हैं इमरान हाश्मी। तो ज़ाहिर है कि इसके गानें उसी स्टाइल के होंगे। वही यूथ अपील वाले इमरान टाइप के गानें। पिछले कुछ फ़िल्मों में इमरान ने ऒनस्क्रीन किस करना बंद कर दिया था और वो फ़िल्में कुछ ख़ास नहीं चली (वन्स अपॉन ए टाईम इन मुंबई को छोड़कर) शायद इसलिए वो इस बार 'क्रूक' में अपने उसी सिरियल किसर वाले अवतार में नज़र आयेंगे। ख़ैर, अगले गीत की बात की जाये। इस बार के.के की आवाज़। इमरान हाश्मी के फ़िल्मों में एक गीत के.के की आवाज़ में ज़रूर होता है क्योंकि के.के की आवाज़ में इमरान टाइप के गानें ख़ूब जँचते हैं।
सुजॊय - यह गीत है "तुझी में"। यह भी रॊक शैली में कम्पोज़ किया गाना है, लेकिन निखिल के मुक़ाबले के.के की दमदार आवाज़ को ध्यान में रखते हुए हार्डकोर रॊक का इस्तेमाल किया गया है। ड्रम्स और पियानो का ख़ूबसूरत संगम सुनने को मिलता है इस गीत में। लेकिन जो मुख्य साज़ है वह है १२ स्ट्रिंग वाला गिटार जो पूरे गीत में प्रधानता रखता है।
विश्व दीपक - यह सच है कि इस तरह के गानें प्रीतम पहले भी बना चुके हैं, लेकिन शायद अब तक हम इस अंदाज़ से उबे नहीं हैं, इसलिए अब भी इस तरह के गानें अच्छे लगते हैं। आइए सुनते हैं।
गीत - तुझी में
सुजॊय - और अब एक और गीत 'क्रूक' का हम सुनेंगे, फिर 'आक्रोश' की तरफ़ बढ़ेंगे। यह गीत है मोहित चौहान की आवाज़ में, "तुझको जो पाया"। इस गीत में अकोस्टिक गीटार मुख्य साज़ है, कोई रीदम नहीं है गाने में। मोहित चौहान की दिलकश आवाज़ से गीत में जान आयी है। दरसल यह गीत निखिल के गाये "मेरे बिना" गीत का ही एक दूसरा वर्ज़न है।
विश्व दीपक - इन दोनों की अगर तुलना करें तो मोहित चौहान की आवाज़ में जो गीत है वह ज़्यादा अच्छा सुनाई दे रहा है। मोहित चौहान का ताल्लुख़ हिमाचल की पहाड़ियों से है। और अजीब बात है कि उनकी आवाज़ में भी जैसे पहाड़ों जैसी शांति है, सुकून है। कम से कम साज़ों के इस्तेमाल वाले गीतों में मोहित की शुद्ध आवाज़ को सुन कर वाक़ई दिल को सुकून मिलता है। इस पीढ़ी के पार्श्व गायकों का प्रतिनिधित्व करने वालों में मोहित चौहान का नाम एक आवश्यक नाम है। लीजिए सुनिए इस गीत को।
गीत - तुझको जो पाया
सुजॊय - आइए अब बढ़ा जाये 'आक्रोश' की ओर। क्योंकि इस फ़िल्म की कहानी हरियाणा के ऒनर किलिंग्स पर है (लेकिन मेरे हिसाब से फिल्म यूपी, बिहार के किसी गाँव को ध्यान में रखकर फिल्माई गई है), शायद इसलिए इसका संगीत भी उसी अंदाज़ का है। प्रीतम के स्वरबद्ध इन गीतों को लिखा है इरशाद कामिल ने। अजय देवगन, अक्षय खन्ना और बिपाशा बासु अभिनीत इस फ़िल्म का एक आइटम नंबर आजकल टीवी चैनलों में ख़ूब सुनाई व दिखाई दे रहा है - "तेरे इसक से मीठा कुछ भी नहीं"।
विश्व दीपक - "मुन्नी बदनाम" के बाद अब "इसक से मीठा"। और इस बार ठुमके लगा रही हैं समीरा रेड्डी। लेकिन हाल के आइटम नंबर की बात करें तो अब भी गुलज़ार साहब के "बीड़ी जलइ ले" से मीठा कुछ भी नहीं। ख़ैर, आइए हम ख़ुद ही सुन कर यह निर्णय लें, इस गीत को गाया है कल्पना पटोवारी और अजय झिंग्रन ने। कल्पना यूँ तो असम से संबंध रखती है, लेकिन इन्हें प्रसिद्धि मिली भोजपुरी गानों से। "जा तार परदेश बलमुआ" और "ए गो नेमुआ" जैसे सुपरहिट भोजपुरी गानों को गाने वाली यह गायिका हाल में हीं सिंगिंग के एक रियालटी शो में असम का प्रतिनिधित्व करती नज़र आईं थी। जहाँ तक इस गाने की बात है तो यह पूर्णत: एक कमर्शियल आइटम नंबर है और फ़िल्म की कहानी के लिए इसकी ज़रूरत थी भी। तो आइए इस गीत को सुन ही लिया जाये।
गीत - तेरे इसक से मीठा कुछ भी नहीं
सुजॊय - अगला गीत ज़रा हट कर है। प्रीतम ने एक इंटरव्यु में कहा है कि उन्हें वो गानें कम्पोज़ करने में ज़्यादा अच्छे लगते है जिनमें मेलडी होता है। तो साहब इस बार उन्हें मेलडियस कम्पोज़िशन का मौका मिल ही गया। इस गीत में, जिसका शीर्षक है "सौदे बाज़ी", नवोदित गायक अनुपम आमोद ने अपनी आवाज़ दी है। प्रीतम की नये नये गायकों की खोज जारी है और इस बार वे अनुपम को ढूंढ़ लाये हैं। लगता है यह गीत अनुपम को दूर तक लेके जाएगा।
विश्व दीपक - वैसे इसी गीत का एक और वर्ज़न है जिसे जावेद अली से गवाया गया है। लेकिन आज हम अनुपम का स्वागत करते हुए उन्ही का गाया गीत सुनेंगे। पता नहीं इस गीत की धुन को सुनते हुए ऐसा लग रहा है कि जैसे इसी तरह की धुन का कोई और गाना पहले बन चुका है। शायद बाद में याद आ जाए!
सुजॊय - इस गीत की ख़ासियत है इसकी सादगी। भारतीय साज़ों की ध्वनियाँ सुनने को मिलती हैं भले ही सिन्थेसाइज़र पर तय्यार किया गया हो। सुनते हैं अनुपम आमोद की आवाज़।
गीत - सौदे बाज़ी
विश्व दीपक - आज के दौर के एक और गायक जो सूफ़ी गीतों में ख़ूब अपना नाम कमा रहे हैं, वो हैं अपने राहत फ़तेह अली ख़ान साहब। कैलाश खेर ने जो मुक़ाम हासिल किया था, आज वही मुकाम राहत साहब का है। इस फ़िल्म में भी उनका उन्ही के टाइप का एक गाना है "मन की मत पे मत चलियो ये जीते जी मरवा देगा"।
सुजॊय - सचमुच आज हर फ़िल्म में राहत साहब का एक गीत जैसे अनिवार्य हो गया है। क्योंकि आजकल वो 'छोटे उस्ताद' में नज़र आ रहे हैं, मैंने एक बात उनकी नोटिस की है कि वो बहुत ही विनम्र स्वभाव के हैं और बहुत ज़्यादा इमोशनल भी हैं। बात बात पे उनकी आँखों में आँसू आ जाते हैं। और बार बार वो लेजेन्डरी गायकों का ज़िक्र करते रहते हैं। इतनी सफलता के बावजूद उनके अंदर जो विनम्रता है, वो साफ़ झलकती है।
विश्व दीपक - "मन की मत पे मत चलियो", इरशाद कामिल ने यमक अलंकार का क्या ख़ूबसूरत इस्तेमाल किया है "मत" शब्द में। दो जगह "मत" आता है लेकिन अलग अलग अर्थ के साथ।
सुजॊय - ठीक वैसे ही जैसे रवीन्द्र जैन ने लिखा था "सजना है मुझे सजना के लिए" और "जल जो ना होता तो जग जाता जल"। तो आइए सुनते हैं राहत साहब की आवाज़ में "मन की मत"।
गीत - मन की मत पे मत
विश्व दीपक - और अब आज की प्रस्तुति का अंतिम गीत एक भक्ति रचना सुखविंदर सिंह की आवाज़ में "राम कथा", जिसमें रामायण के उस अध्याय का ज़िक्र है जिसमें भगवान राम ने रावण का वध कर सीता को मुक्त करवाया था। एक पौराणिक कथा के रूप में ही इस गीत में उसकी व्याख्या की गई है।
सुजॊय - देखना है कि फ़िल्म में इसका फ़िल्मांकन कैसे किया गया है। तब कहेंगे कि क्या "पल पल है भारी विपदा है आयी" के साथ इसका कोई टक्कर है या नहीं! आइए सुन लेते हैं यह गीत।
गीत - राम कथा
सुजॊय - हाँ तो दोस्तों, कैसे लगे इन दोनों फ़िल्मों के गानें? हमने दोनों फ़िल्मों के चार चार गानें आपको सुनवाये और एक एक गानें छोड़ दिये हैं, लेकिन आपको यकीन दि्ला दें कि उससे आप किसी अच्छे गीत से वंचित नहीं हुए हैं। अगर आप मेरी पसंद की बात करें तो 'क्रूक' का "तुझको जो पाया" (मोहित चौहान) और 'आक्रोश' का "मन की मत पे मत जाना" (राहत फ़तेह अली ख़ान) मुझे सब से ज़्यादा पसंद आये। बाक़ी गानें सो-सो लगे। रेटिंग की बात है तो मेरी तरफ़ से दोनों ऐल्बमों को ३ - ३ अंक।
विश्व दीपक - सुजॉय जी, मैं आपकी टिप्पणियों को सर-आँखों पर रखते हुए मैं आपके द्वारा दिए गए रेटिग्स को बरकरार रखता हूँ। जहाँ तक प्रीतम के संगीत की बात है तो वो हर बार हर फिल्म में ऐसे कुछ गाने जरूर देते हैं, जिन्हें श्रोताओं
का भरपूर प्यार नसीब होता है। दोनों फिल्मों में ऐसे एक्-दो गाने जरूर हैं। संगीत और इन्स्ट्रुमेन्ट्स के बारे में आपने तो लगभग सब कुछ हीं कह दिया है, इसलिए मैं थोड़ा "बोलों" का जिक्र करूँगा। "कुमार" और "इरशाद कामिल" दोनों हीं अलग तरह के गाने लिखने के लिए जाने जाते हैं। फिर भी अगर मुझसे पूछा जाए कि किसके गाने "अन-कन्वेशनल" होते हैं और दिल को ज्यादा छूते हैं तो मैं इरशाद भाई का नाम लूँगा। इरशाद भाई ने जहाँ एक तरफ "तू जाने ना" लिखकर एकतरफा प्यार करने वालों को एक एंथम दिया है, वहीं "न शहद, न शीरा, न शक्कर" लिखकर "नौटंकी" वाले गानों को कुछ नए शब्द मुहैया कराए हैं। मैं उनके शब्द-सामर्थ्य और शब्द-चयन का कायल हूँ। आने वाली फिल्मों में भी मैं उनसे ऐसे हीं नए शब्दों और बोलों की उम्मीद रखता हूँ। चलिए तो इन्हीं बातों के साथ आज की समीक्षा पर विराम लगाते हैं। उससे पहले सभी श्रोताओं के लिए एक सवाल/एक आग्रह/एक अपील: मैं चाहता हूँ कि हम समीक्षा में रेटिंग न दें, बल्कि बस इतना हीं लिख दिया करें कि कौन-सा गाना बहुत अच्छा है और कौन-सा थोड़ा कम। मैंने यह बात सुजॉय जी से भी कही है और उनके जवाब का इंतज़ार कर रहा हूँ। उनके जवाब के साथ-साथ मैं आप सबों की राय भी जानना चाहूँगा।
आवाज़ रेटिंग्स: क्रूक: ***, आक्रोश: ***
पाठको की रूचि में कमी होती देख आज से सवालों का सिलसिला(ट्रिविया) समाप्त किया जाता है.. सीमा जी, हमें मुआफ़ कीजिएगा, लेकिन आपके अलावा कहीं और से जवाब नहीं आता और आप भी पिछली कुछ कड़ियों में नदारद थीं, इसलिए सीने पर पत्थर रखकर हमें यह निर्णय लेना पड़ा :)
TST ट्रिविया में अब तक -
पिछले हफ़्ते के सवालों के जवाब:
१. 'लम्हा'।
२. "जियो, उठो, बढ़ो, जीतो"।
३. 'तलाश'।
सुजॊय - दोस्तों, नमस्कार, स्वागत है आप सभी का इस हफ़्ते के 'ताज़ा सुर ताल' में। विश्व दीपक जी, इस बार के लिए मैंने दो फ़िल्में चुनी हैं, और ये फ़िल्में हैं 'क्रूक' और 'आक्रोश'।
विश्व दीपक - सुजॊय जी, क्या कोई कारण है इन दोनों को इकट्ठे चुनने के पीछे?
सुजॊय - जी हाँ, मैं बस उसी पे आ रहा था। एक नहीं बल्कि दो दो समानताएँ हैं इन दोनों फ़िल्मों में। एक तो यह कि दोनों के संगीतकार हैं प्रीतम। और उससे भी बड़ी समानता यह है कि इन दोनों की कहानी दो ज्वलंत सामयिक विषयों पर केन्द्रित है। जहाँ एक तरफ़ 'क्रूक' की कहानी आधारित है हाल में ऒस्ट्रेलिया में हुए भारतीयों पर हमले पर, वहीं दूसरी तरफ़ 'आक्रोश' केन्द्रित है हरियाणा में आये दिन हो रहे ऒनर किलिंग्स की घटनाओं पर।
विश्व दीपक - वाक़ई ये दो आज के दौर की दो गम्भीर समस्यायें हैं। तो शुरु किया जाए 'क्रूक' के साथ। मुकेश भट्ट निर्मित और मोहित सूरी निर्देशित 'क्रूक' के मुख्य कलाकार हैं इमरान हाश्मी, अर्जुन बजवा और नेहा शर्मा। प्रीतम का संगीत और कुमार के गीत। पहला गीत सुनते हैं "छल्ला इण्डिया तों आया"। पूरी तरह से पंजाबी फ़्लेवर का गाना है जिसे गाया है बब्बु मान और सुज़ेन डी'मेलो ने। पंजाबी भंगड़ा के साथ वेस्टर्ण फ़्युज़न में प्रीतम को महारथ हासिल है। "मौजा ही मौजा", "नगाड़ा", "दिल बोले हड़िप्पा" के बाद अब "छल्ला"।
सुजॊय - तो आइए इस थिरकन भरे गीत से आज के इस प्रस्तुति की शुरुआत की जाये।
गीत - छल्ला
सुजॊय - 'क्रूक' का दूसरा गीत है "मेरे बिना" जिसे गाया है निखिल डी'सूज़ा ने। अब तक निखिल की आवाज़ कई गायकों वाले गीतों में ही ली गयी थी जिसकी वजह से उनकी आवाज़ को अलग से पहचानने का मौका अब तक हमें नहीं मिल सका था। लेकिन इस गीत में केवल उन्ही की आवाज़ है। जिस तरह से जावेद अली और कार्तिक आजकल कामयाबी के पायदान चढ़ते जा रहे हैं, लगता है निखिल के भी अच्छे दिन उन्हें बाहें पसार कर बुला रहे हैं।
विश्व दीपक - गीत की बात करें तो इस गीत में रॊक इन्फ़्लुएन्स है और एक सॊफ़्ट रोमांटिक नंबर है यह। शुरु शुरु में इस गीत को सुनते हुए कोई ख़ास बात नज़र नहीं आती, लेकिन गीत के ख़तम होते होते थोड़ी सी हमदर्दी होने लगती है इस गीत के साथ। निखिल ने अच्छा गाया है और क्योंकि उनका यह पहला एकल गाना है, तो उन्हें हमें मुबारक़बाद देनी ही चाहिए। वेल डन निखिल!
सुजॊय - वैसे निखिल ने हाल ही में 'अंजाना अंजानी' का शीर्षक गीत भी गाया है। 'उड़ान' और 'आयेशा' में भी गीत गाये हैं। लेकिन यह उनका पहला सोलो ट्रैक है। आइए अब सुनते हैं इस गीत को।
गीत - मेरे बिना
विश्व दीपक - 'क्रूक' भट्ट कैम्प की फ़िल्म है और नायक हैं इमरान हाश्मी। तो ज़ाहिर है कि इसके गानें उसी स्टाइल के होंगे। वही यूथ अपील वाले इमरान टाइप के गानें। पिछले कुछ फ़िल्मों में इमरान ने ऒनस्क्रीन किस करना बंद कर दिया था और वो फ़िल्में कुछ ख़ास नहीं चली (वन्स अपॉन ए टाईम इन मुंबई को छोड़कर) शायद इसलिए वो इस बार 'क्रूक' में अपने उसी सिरियल किसर वाले अवतार में नज़र आयेंगे। ख़ैर, अगले गीत की बात की जाये। इस बार के.के की आवाज़। इमरान हाश्मी के फ़िल्मों में एक गीत के.के की आवाज़ में ज़रूर होता है क्योंकि के.के की आवाज़ में इमरान टाइप के गानें ख़ूब जँचते हैं।
सुजॊय - यह गीत है "तुझी में"। यह भी रॊक शैली में कम्पोज़ किया गाना है, लेकिन निखिल के मुक़ाबले के.के की दमदार आवाज़ को ध्यान में रखते हुए हार्डकोर रॊक का इस्तेमाल किया गया है। ड्रम्स और पियानो का ख़ूबसूरत संगम सुनने को मिलता है इस गीत में। लेकिन जो मुख्य साज़ है वह है १२ स्ट्रिंग वाला गिटार जो पूरे गीत में प्रधानता रखता है।
विश्व दीपक - यह सच है कि इस तरह के गानें प्रीतम पहले भी बना चुके हैं, लेकिन शायद अब तक हम इस अंदाज़ से उबे नहीं हैं, इसलिए अब भी इस तरह के गानें अच्छे लगते हैं। आइए सुनते हैं।
गीत - तुझी में
सुजॊय - और अब एक और गीत 'क्रूक' का हम सुनेंगे, फिर 'आक्रोश' की तरफ़ बढ़ेंगे। यह गीत है मोहित चौहान की आवाज़ में, "तुझको जो पाया"। इस गीत में अकोस्टिक गीटार मुख्य साज़ है, कोई रीदम नहीं है गाने में। मोहित चौहान की दिलकश आवाज़ से गीत में जान आयी है। दरसल यह गीत निखिल के गाये "मेरे बिना" गीत का ही एक दूसरा वर्ज़न है।
विश्व दीपक - इन दोनों की अगर तुलना करें तो मोहित चौहान की आवाज़ में जो गीत है वह ज़्यादा अच्छा सुनाई दे रहा है। मोहित चौहान का ताल्लुख़ हिमाचल की पहाड़ियों से है। और अजीब बात है कि उनकी आवाज़ में भी जैसे पहाड़ों जैसी शांति है, सुकून है। कम से कम साज़ों के इस्तेमाल वाले गीतों में मोहित की शुद्ध आवाज़ को सुन कर वाक़ई दिल को सुकून मिलता है। इस पीढ़ी के पार्श्व गायकों का प्रतिनिधित्व करने वालों में मोहित चौहान का नाम एक आवश्यक नाम है। लीजिए सुनिए इस गीत को।
गीत - तुझको जो पाया
सुजॊय - आइए अब बढ़ा जाये 'आक्रोश' की ओर। क्योंकि इस फ़िल्म की कहानी हरियाणा के ऒनर किलिंग्स पर है (लेकिन मेरे हिसाब से फिल्म यूपी, बिहार के किसी गाँव को ध्यान में रखकर फिल्माई गई है), शायद इसलिए इसका संगीत भी उसी अंदाज़ का है। प्रीतम के स्वरबद्ध इन गीतों को लिखा है इरशाद कामिल ने। अजय देवगन, अक्षय खन्ना और बिपाशा बासु अभिनीत इस फ़िल्म का एक आइटम नंबर आजकल टीवी चैनलों में ख़ूब सुनाई व दिखाई दे रहा है - "तेरे इसक से मीठा कुछ भी नहीं"।
विश्व दीपक - "मुन्नी बदनाम" के बाद अब "इसक से मीठा"। और इस बार ठुमके लगा रही हैं समीरा रेड्डी। लेकिन हाल के आइटम नंबर की बात करें तो अब भी गुलज़ार साहब के "बीड़ी जलइ ले" से मीठा कुछ भी नहीं। ख़ैर, आइए हम ख़ुद ही सुन कर यह निर्णय लें, इस गीत को गाया है कल्पना पटोवारी और अजय झिंग्रन ने। कल्पना यूँ तो असम से संबंध रखती है, लेकिन इन्हें प्रसिद्धि मिली भोजपुरी गानों से। "जा तार परदेश बलमुआ" और "ए गो नेमुआ" जैसे सुपरहिट भोजपुरी गानों को गाने वाली यह गायिका हाल में हीं सिंगिंग के एक रियालटी शो में असम का प्रतिनिधित्व करती नज़र आईं थी। जहाँ तक इस गाने की बात है तो यह पूर्णत: एक कमर्शियल आइटम नंबर है और फ़िल्म की कहानी के लिए इसकी ज़रूरत थी भी। तो आइए इस गीत को सुन ही लिया जाये।
गीत - तेरे इसक से मीठा कुछ भी नहीं
सुजॊय - अगला गीत ज़रा हट कर है। प्रीतम ने एक इंटरव्यु में कहा है कि उन्हें वो गानें कम्पोज़ करने में ज़्यादा अच्छे लगते है जिनमें मेलडी होता है। तो साहब इस बार उन्हें मेलडियस कम्पोज़िशन का मौका मिल ही गया। इस गीत में, जिसका शीर्षक है "सौदे बाज़ी", नवोदित गायक अनुपम आमोद ने अपनी आवाज़ दी है। प्रीतम की नये नये गायकों की खोज जारी है और इस बार वे अनुपम को ढूंढ़ लाये हैं। लगता है यह गीत अनुपम को दूर तक लेके जाएगा।
विश्व दीपक - वैसे इसी गीत का एक और वर्ज़न है जिसे जावेद अली से गवाया गया है। लेकिन आज हम अनुपम का स्वागत करते हुए उन्ही का गाया गीत सुनेंगे। पता नहीं इस गीत की धुन को सुनते हुए ऐसा लग रहा है कि जैसे इसी तरह की धुन का कोई और गाना पहले बन चुका है। शायद बाद में याद आ जाए!
सुजॊय - इस गीत की ख़ासियत है इसकी सादगी। भारतीय साज़ों की ध्वनियाँ सुनने को मिलती हैं भले ही सिन्थेसाइज़र पर तय्यार किया गया हो। सुनते हैं अनुपम आमोद की आवाज़।
गीत - सौदे बाज़ी
विश्व दीपक - आज के दौर के एक और गायक जो सूफ़ी गीतों में ख़ूब अपना नाम कमा रहे हैं, वो हैं अपने राहत फ़तेह अली ख़ान साहब। कैलाश खेर ने जो मुक़ाम हासिल किया था, आज वही मुकाम राहत साहब का है। इस फ़िल्म में भी उनका उन्ही के टाइप का एक गाना है "मन की मत पे मत चलियो ये जीते जी मरवा देगा"।
सुजॊय - सचमुच आज हर फ़िल्म में राहत साहब का एक गीत जैसे अनिवार्य हो गया है। क्योंकि आजकल वो 'छोटे उस्ताद' में नज़र आ रहे हैं, मैंने एक बात उनकी नोटिस की है कि वो बहुत ही विनम्र स्वभाव के हैं और बहुत ज़्यादा इमोशनल भी हैं। बात बात पे उनकी आँखों में आँसू आ जाते हैं। और बार बार वो लेजेन्डरी गायकों का ज़िक्र करते रहते हैं। इतनी सफलता के बावजूद उनके अंदर जो विनम्रता है, वो साफ़ झलकती है।
विश्व दीपक - "मन की मत पे मत चलियो", इरशाद कामिल ने यमक अलंकार का क्या ख़ूबसूरत इस्तेमाल किया है "मत" शब्द में। दो जगह "मत" आता है लेकिन अलग अलग अर्थ के साथ।
सुजॊय - ठीक वैसे ही जैसे रवीन्द्र जैन ने लिखा था "सजना है मुझे सजना के लिए" और "जल जो ना होता तो जग जाता जल"। तो आइए सुनते हैं राहत साहब की आवाज़ में "मन की मत"।
गीत - मन की मत पे मत
विश्व दीपक - और अब आज की प्रस्तुति का अंतिम गीत एक भक्ति रचना सुखविंदर सिंह की आवाज़ में "राम कथा", जिसमें रामायण के उस अध्याय का ज़िक्र है जिसमें भगवान राम ने रावण का वध कर सीता को मुक्त करवाया था। एक पौराणिक कथा के रूप में ही इस गीत में उसकी व्याख्या की गई है।
सुजॊय - देखना है कि फ़िल्म में इसका फ़िल्मांकन कैसे किया गया है। तब कहेंगे कि क्या "पल पल है भारी विपदा है आयी" के साथ इसका कोई टक्कर है या नहीं! आइए सुन लेते हैं यह गीत।
गीत - राम कथा
सुजॊय - हाँ तो दोस्तों, कैसे लगे इन दोनों फ़िल्मों के गानें? हमने दोनों फ़िल्मों के चार चार गानें आपको सुनवाये और एक एक गानें छोड़ दिये हैं, लेकिन आपको यकीन दि्ला दें कि उससे आप किसी अच्छे गीत से वंचित नहीं हुए हैं। अगर आप मेरी पसंद की बात करें तो 'क्रूक' का "तुझको जो पाया" (मोहित चौहान) और 'आक्रोश' का "मन की मत पे मत जाना" (राहत फ़तेह अली ख़ान) मुझे सब से ज़्यादा पसंद आये। बाक़ी गानें सो-सो लगे। रेटिंग की बात है तो मेरी तरफ़ से दोनों ऐल्बमों को ३ - ३ अंक।
विश्व दीपक - सुजॉय जी, मैं आपकी टिप्पणियों को सर-आँखों पर रखते हुए मैं आपके द्वारा दिए गए रेटिग्स को बरकरार रखता हूँ। जहाँ तक प्रीतम के संगीत की बात है तो वो हर बार हर फिल्म में ऐसे कुछ गाने जरूर देते हैं, जिन्हें श्रोताओं
का भरपूर प्यार नसीब होता है। दोनों फिल्मों में ऐसे एक्-दो गाने जरूर हैं। संगीत और इन्स्ट्रुमेन्ट्स के बारे में आपने तो लगभग सब कुछ हीं कह दिया है, इसलिए मैं थोड़ा "बोलों" का जिक्र करूँगा। "कुमार" और "इरशाद कामिल" दोनों हीं अलग तरह के गाने लिखने के लिए जाने जाते हैं। फिर भी अगर मुझसे पूछा जाए कि किसके गाने "अन-कन्वेशनल" होते हैं और दिल को ज्यादा छूते हैं तो मैं इरशाद भाई का नाम लूँगा। इरशाद भाई ने जहाँ एक तरफ "तू जाने ना" लिखकर एकतरफा प्यार करने वालों को एक एंथम दिया है, वहीं "न शहद, न शीरा, न शक्कर" लिखकर "नौटंकी" वाले गानों को कुछ नए शब्द मुहैया कराए हैं। मैं उनके शब्द-सामर्थ्य और शब्द-चयन का कायल हूँ। आने वाली फिल्मों में भी मैं उनसे ऐसे हीं नए शब्दों और बोलों की उम्मीद रखता हूँ। चलिए तो इन्हीं बातों के साथ आज की समीक्षा पर विराम लगाते हैं। उससे पहले सभी श्रोताओं के लिए एक सवाल/एक आग्रह/एक अपील: मैं चाहता हूँ कि हम समीक्षा में रेटिंग न दें, बल्कि बस इतना हीं लिख दिया करें कि कौन-सा गाना बहुत अच्छा है और कौन-सा थोड़ा कम। मैंने यह बात सुजॉय जी से भी कही है और उनके जवाब का इंतज़ार कर रहा हूँ। उनके जवाब के साथ-साथ मैं आप सबों की राय भी जानना चाहूँगा।
आवाज़ रेटिंग्स: क्रूक: ***, आक्रोश: ***
पाठको की रूचि में कमी होती देख आज से सवालों का सिलसिला(ट्रिविया) समाप्त किया जाता है.. सीमा जी, हमें मुआफ़ कीजिएगा, लेकिन आपके अलावा कहीं और से जवाब नहीं आता और आप भी पिछली कुछ कड़ियों में नदारद थीं, इसलिए सीने पर पत्थर रखकर हमें यह निर्णय लेना पड़ा :)
TST ट्रिविया में अब तक -
पिछले हफ़्ते के सवालों के जवाब:
१. 'लम्हा'।
२. "जियो, उठो, बढ़ो, जीतो"।
३. 'तलाश'।
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वह गाना बब्बु मान ने नहीं बनाया था, बल्कि "बब्बल राय" ने बनाया था... वो भी ऐं वैं हीं, अपने कमरे में बैठे हुए। और उस वीडियो को यू-ट्युब पर पोस्ट कर दिया। यू-ट्युब पर उस वीडियो को इतने हिट्स मिले कि बंदा फेमस हो गया। बाद में उसी बंदे ने यह गाना सही से रीलिज किया .. बस उससे यह गलती हो गई कि उसने रीलिज करने के लिए बब्बु मान के रिकार्ड कंपनी को चुना... और आगे क्या हुआ, यह हम सबके सामने है।
प्रीतम साहब ने इस गाने के लिए "किसी लोक-धुन" को क्रेडिट दी है और गाने के लिए बब्बु मान को चुना है.. लेकिन कैसेट पर कहीं भी बब्बल राय का नाम नहीं है, जबकि गाना पूरा का पूरा उसी से उठाया हुआ है।
यह रहा बब्बल राय द्वारा ऐं वैं बनाए गए वीडियो का लिंक:
http://www.youtube.com/watch?v=zlcYFoJIuuU
मैंने ये सारी बातें समीक्षा में नहीं डाली है क्योंकि मैं श्रोताओं को कन्फ़्युज़ नहीं करना चाहता था, लेकिन अच्छी बात है कि आपके कारण यह बात खुल हीं गई।
धन्यवाद,
विश्व दीपक