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मेरा रंग दे बसंती चोला....जब गीतकार-संगीतकार प्रेम धवन मिले अमर शहीद भगत सिंह की माँ से तब जन्मा ये कालजयी गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 497/2010/197

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के अंतर्गत इन दिनों आप सुन और पढ़ रहे हैं नव रसों पर आधारित फ़िल्मी गीतों की लघु शृंखला 'रस माधुरी'। आज बारी है वीर रस की। वीर रस, यानी कि वीरता और आत्मविश्वास का भाव जो हर इंसान में होना अत्यधिक आवश्यक है। प्राचीन काल में राजा महाराजाओं, सेनापतियों और सैनिकों को वीर की उपाधि दी जाती थी जो युद्ध भी अगर लड़ते थे तो पूरे नियमों को ध्यान में रखते हुए। पीठ पीछे वार करने में कोई वीरता नहीं है, बल्कि उसे कायर कहते हैं। वीरता के रस अपने में उत्पन्न करने के लिए इंसान को धैर्य और प्रशिक्षण की ज़रूरत है। आत्मविश्वास को बढ़ाना होगा अपने अंदर। वीर रस का एक महत्वपूर्ण पक्ष है प्रतियोगिता का, जो बहुत ज़रूरी है अपने काबिलियत को बढ़ाने के लिए। लेकिन हार या जीत को अगर हम बहुत ज़्यादा व्यक्तिगत रूप से लेंगे तो फिर मुश्किल ही होगी। वीर रस की वजह से इंसान स्वाधीन होना चाहेगा, उसे किसी का डर नहीं होगा, और वह बढ़ निकलेगा अपने आप को बंधनों से आज़ाद कराने के लिए। भारत ने हमेशा अमन और सदभाव का राह चुना है। हमने कभी किसी को नहीं ललकारा। हज़ारों सालों का हमारा इतिहास गवाह है कि हमने किसी पर कभी पहले वार नहीं किया। जंग लड़ना हमारी फ़ितरत नहीं। ख़ून बहाना हमारा धर्म नहीं और ना ही हम इसे वीरता समझते हैं। वीरता होती है अपने साथ साथ दूसरों की रक्षा करने में। लेकिन जब जब दुश्मनों ने हमारी इस धरती को अपवित्र करने की कोशिश की है, हम पर ज़ुल्म करने की कोशिश की है, तो हमने भी अपनी मर्यादा और सम्मान की रक्षा की है। ना चाहते हुए भी बंसी के बदले बंदूक थामे हैं हम प्रेम पुजारियों ने।

"मातृभूमि के लिए जो करता अपने रक्त का दान, उसका जीवन देवतूल्य है उसका जन्म महान।" स्वर्ग से महान अपनी इस मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणो की आहुति देने वाले शहीदों को समर्पित है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का आज का यह एपिसोड। वीर रस पर आधारित जिस गीत को हमने इस कड़ी के लिए चुना है वह गीत हमें याद दिलाता है तीन ऐसे शहीदों की जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जो योगदान दिया, उनके नाम इस देश के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जा चुका है। ये तीन अमर शहीद हैं सरदार भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव। २३ मार्च १९३१ के दिन ये फाँसी पर चढ़ कर शहीद हो गए और इस देश के स्वाधीनता के लिए अमर बलिदान दे गए। १९६५ में मनोज कुमार ने जब शहीद-ए-आज़म भगत सिंह और उनके साथियों के बलिदान पर अपनी कालजयी फ़िल्म 'शहीद' बनाई तो भगत सिंह के किरदार में ख़ुद मोर्चा सम्भाला, राजगुरु बनें आनंद कुमार और सुखदेव की भूमिका में थे प्रेम चोपड़ा। चन्द्रशेखर आज़ाद की भूमिका अदा की मनमोहन ने। भगत सिंह की माँ का रोल निभाया कामिनी कौशल ने। दोस्तों, जब यह फ़िल्म बन रही थी, तब भगत सिंह की माँ जीवित थीं। इसलिए मनोज कुमार अपनी पूरी टीम के साथ भगत सिंह के गाँव जा पहुँचे, उस बूढ़ी माँ से मिले और भगत सिंह के जीवन से जुड़ी बहुत सी बातें मालूम की जिन्हें वापस आकर उन्होंने इस फ़िल्म में उतारा। भगत सिंह की माँ से मुलाक़ात करने वाले इस टीम का एक सदस्य इस फ़िल्म के गीतकार-संगीतकार प्रेम धवन भी थे, जिन्होंने इस संस्मरण का उल्लेख अपने 'विशेष जयमाला' कार्यक्रम में किया था। पेश है वही अंश। "यह मेरी ख़ुशनसीबी है कि शहीद भगत सिंह की माँ से मिलने का इत्तेफ़ाक़ हुआ। हम उस गाँव में गए थे जहाँ भगत सिंह की माँ रहती थीं। उनसे हम लोग मिले और भगत सिंह के जीवन से जुड़ी कई बातें उन्होंने हमे बताईं। उनकी एक बात जो मेरे दिल को छू गई, वह यह था कि फाँसी से एक दिन पहले वो अपने बेटे से मिलने जब जेल गईं तो उनकी आँखों में आँसू आ गए। तब भगत सिंह ने उनसे कहा कि 'माँ, मत रो, अगर तुम रोयोगी तो कोई भी माँ अपने बेटे को क़ुर्बानी की राह पर नहीं भेज पाएगी'। इसी बात से प्रेरित होकर मैंने इस फ़िल्म में यह गीत लिखा "तू ना रोना के तू है भगत सिंह की माँ, मर के भी तेरा लाल मरेगा नहीं, घोड़ी चढ़के तो लाते हैं दुल्हन सभी, हंसकर हर कोई फाँसी चढ़ेगा नहीं"। इसी फ़िल्म का मेरा लिखा एक और गीत है जो बहुत मशहूर हुआ था "मेरा रंग दे बसंती चोला"। बसंती रंग क़ुर्बानी का रंग होता है। ऐ माँ, तू मेरा चोला बसंती रंग में रंग दे, मुझे क़ुर्बान होने जाना है इस देश की ख़ातिर, बस यही एक अरमान है मेरा, तू रंग दे बसंती चोला" तो लीजिए दोस्तों, मुकेश, महेन्द्र कपूर और राजेन्द्र मेहता की आवाज़ों में प्रेम धवन का लिखा व स्वरबद्ध किया १९६५ की फ़िल्म 'शहीद' का यह देश भक्ति गीत सुनिए और सलाम कीजिए उन सभी शहीदों को जिनकी क़ुर्बानियों की वजह से हम आज़ाद हिंदुस्तान में जनम ले सके हैं। अभी कुछ दिनों पहले ही भगत सिंह को उनकी जयंती पर कृतज्ञ राष्ट्र ने श्रद्धाजन्ली दी थी, वहीं पिछले हफ्ते ही गायक मेहन्द्र कपूर की दूसरी पुनातिथि भी थी. आईये इस गीत में बहाने हम उन्हें भी आज याद करें.



क्या आप जानते हैं...
कि "मेरा रंग दे बसंती चोला" गीत राग भैरवी पर आधारित है जब कि इसी फ़िल्म का एक और देश-भक्ति गीत "सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है" को प्रेम धवन ने राग दरबारी काबड़ में स्वरबद्ध किया था।

पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)

१. युं तो यह गीत रौद्र रस पर आधारित है लेकिन जिस वस्तु के माध्यम से ग़ुस्सा प्रकट किया जा रहा है, वह एक बहुत ही नाज़ुक सी चीज़ है। इस युगल गीत के गायक का नाम बताएँ। ४ अंक।
२. इस फ़िल्म में ७० के दशक की एक सुपरहिट नायक-नायिका की जोड़ी है और ठीक वैसे ही एक सफल गीतकार-संगीतकार की जोड़ी भी। फ़िल्म का नाम बताएँ। १ अंक।
३. पहले अंतरे में "ख़ूबसूरत शिकायत" शब्द आते हैं। मुखड़ा पहचानिए। २ अंक।
४. फ़िल्म के निर्देशक बताएँ। ३ अंक।

पिछली पहेली का परिणाम -
इस बार नए प्रतिभागी ने सबको पीछे छोड़ा, वैसे इस गीत को पहचानना मुश्किल भी नहीं था, आज का गीत पहचाने तो मानें :)

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

psingh said…
Q-4 raj khosla
ShyamKant said…
१. युं तो यह गीत रौद्र रस पर आधारित है लेकिन जिस वस्तु के माध्यम से ग़ुस्सा प्रकट किया जा रहा है, वह एक बहुत ही नाज़ुक सी चीज़ है। इस युगल गीत के गायक का नाम बताएँ----------

MUKESH
singhSDM said…
Q-3 phul ahista fenko
chintoo said…
Q 2--- PREM KAHANI
manu said…
achchhaa hai ye raudra ras...

sab NET ki maayaa hai.....
RAJ SINH said…
मेरा रंग दे बसन्ती चोला .......आज भी खून गर्म कर देता है .
काश यह चोला आज के नौजवानों को प्रेरित करे .
“मेरा रंग दे बसंती चोला” गीत के बारे में इतनी विस्तृत जानकारी देने के लिए शुक्रिया. ये गीत अपनी हुब्बल वतनी के जज्बे के लिए तो जाना ही जाता है मगर इसका गीत और संगीत भी इतना उम्दा है कि खुद ब खुद लाफानी हो गया है. पुराने नगमों के बारे में इतनी मालूमाती बातें आप ना जाने कहाँ कहाँ से जुटाते होंगें? आप की कोशिश वाकई काबिले तारीफ है. मैंने ये फिल्म कई बार देखी है और इसके गीत तो ना जाने कितनी मर्तबा सुने या गुनगुनाये होंगें. मेरी पुरानी और भूली बिसरी यादों को ताजा करने के लिए आपका बेहद शुक्रिया. हिन्दयुग्म डॉट कॉम को इस सारी कवायद के लिए जितनी भी शाबाशी दी जाये, यकीनन कम होगी. मेरी नेक ख्वाहिशात आप सब के लिए! अश्विनी कुमार रॉय

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