ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 513/2010/213
'गीत गड़बड़ी वाले', दोस्तों, 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों आप सुन रहे हैं यह शृंखला, जिसके अंतर्गत वो गानें शामिल हो रहे हैं जिनमें कोई कोई न कोई गड़बड़ी हुई है। अब तक हमने दो युगल गीत सुनें हैं जिनमें एक गायक ने ग़लती से दूसरे गायक की लाइन पर गा उठे हैं। सहगल साहब और आशा जी की ग़लतियों के बाद आज बारी स्वर कोकिला लता मंगेशकर की। जी नहीं, लता जी के किसी अन्य गायक की लाइन पर नहीं गाया, बल्कि उन्होंने एक शब्द का ग़लत उच्चारण किया है। छोटी "इ" के स्थान पर बड़ी "ई" गा बैठीं हैं लाता जी इस गीत में। यह है फ़िल्म 'हलाकू' का गीत "बोल मेरे मालिक तेरा क्या यही है इंसाफ़, जो करते हैं लाख सितम उनको तू करता माफ़"। इस गीत में लता ने यूंही "मालिक" की जगह "मलीक" गाया है। इस गीत को ध्यान से सुनने पर इस ग़लती को आप पकड़ सकते हैं। लेकिन यह गीत इतना सुंदर है, इतना कर्णप्रिय है कि इस ग़लती को नज़रंदाज़ करने को जी चाहता है। हसरत जयपुरी का लिखा गीत है और संगीत है शंकर जयकिशन का। क्योंकि यह ईरान की कहानी पर बनी फ़िल्म है, इसलिए संगीत संयोजन भी उसी शैली का किया है एस. जे ने और इस गीत में कोरस का भी क्या ख़ूब प्रयोग हुआ है प्रील्युड और इंटरल्युड्स में। डी. डी, कश्यप निर्देशित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे अजीत, मीना कुमारी, प्राण, राज मेहरा, हेलेन, मिनू मुमताज़, सुंदर, वीणा और निरंजन शर्मा। लता मंगेशकर के अलावा मोहम्मद रफ़ी और आशा भोसले ने फ़िल्म में गीत गाए।
'हलाकू' एक पीरियड फ़िल्म थी, इसलिए आइए आपको इसकी कहानी से थोड़ा सा अवगत करवाया जाए। हलाकू (प्राण) ईरान का राजा है जो पूरे देश का शासन कर रहा है और पूरी सख़्ती के साथ। ऐसे ही एक बार उनकी मुलाक़ात होती है निलोफ़र (मीना कुमारी) से और उन पर फ़िदा होते हैं और उनसे शादी करने की सोचते हैं। लेकिन उधर उनकी पत्नी भी है (मिनू मुमताज़), जो उनके इस द्वितीय विवाह के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाती है। उधर निलोफ़र हलाकू से प्यार ही नहीं करती, बल्कि वो तो परवेज़ (अजीत) से प्यार करती है। निलोफ़र हलाकू के मनसूबे को पूरा नहीं होने दे सकती। क्या निलोफ़र और परवेज़ अत्याचारी हलाकू से बच कर अपनी प्यार की दुनिया बसा पाएँगे? यही है हलाकू की कहानी। आज का जो प्रस्तुत गीत है उसके बोलों से यह साफ़ ज़ाहिर है कि निलोफ़र हलाकू के अत्याचार से तंग आकर उपरवाले से यह शिकायत कर रही है कि "बोल मेरे मालिक तेरा क्या यही है इंसाफ़, जो करते हैं लाख सितम उनको तू करता माफ़"। 'हलाकू' फ़िल्म को आज तक लोगों ने याद रखा है इसके गीतों की वजह से। प्रस्तुत गीत के अलावा दो और मशहूर गीत हैं रफ़ी साहब और लता जी के गाये - "आजा के इंतज़ार में जाने को है बहार भी, तेरे बग़ैर ज़िंदगी दर्द बन के रह गई", तथा "दिल का करना ऐतबार कोई, भूले से भी ना करना ऐतबार कोई"। इस फ़िल्म के सभी गानें अरब-मंगोल शैली के थे, संयोजन की दृष्टि से भी और गायकी की दृष्टि से भी। ये गानें आगे चलकर आप 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर ज़रूर सुन पाएँगे, फिलहाल सुना जाए "बोल मेरे मालिक"।
क्या आप जानते हैं...
कि साल १९५६ शंकर जयकिशन के लिए एक बेहद सफल साल था। 'हलाकू' के अलावा इस साल इस जोड़ी ने जिन फ़िल्मों में संगीत दिया, वो हैं 'बसंत बहार', 'चोरी चोरी', 'क़िस्मत का खेल', 'नई दिल्ली', 'पटरानी', और 'राज हठ'। लेकिन इनमें से कोई भी आर. के. बैनर के नहीं थे।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली ०३ /शृंखला ०२
ये धुन है गीत के पहले इंटर ल्यूड की -
अतिरिक्त सूत्र - ये एक युगल गीत है जिसमें पुरुष आवाज़ रफ़ी साहब की है
सवाल १ - राज खोसला निर्देशित इस फिल्म के संगीतकार बताएं - १ अंक
सवाल २ - फिल्म का नाम बताएं, जिसके सभी गीत दमदार थे - १ अंक
सवाल ३ - गीतकार कौन हैं - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
एक बार फिर श्याम कान्त जी ने २ अंकों के सवाल का सही जवाब देकर अधिकतम अंक लूट लिए, पर कल का दिन रहा दो ऐसे प्रतिभागियों के नाम जिनका कल खाता खुला. शंकर लाल जी बहुत दिनों से कोशिश में थे और देखिये क्या खूब शुरूआत की है, अवध जी तो कहने को पुराने खिलाडी हैं पर इस नयी प्रतियोगिता में पहली बार खाता खोल पाए हैं, बढिए स्वीकार करें.
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'गीत गड़बड़ी वाले', दोस्तों, 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों आप सुन रहे हैं यह शृंखला, जिसके अंतर्गत वो गानें शामिल हो रहे हैं जिनमें कोई कोई न कोई गड़बड़ी हुई है। अब तक हमने दो युगल गीत सुनें हैं जिनमें एक गायक ने ग़लती से दूसरे गायक की लाइन पर गा उठे हैं। सहगल साहब और आशा जी की ग़लतियों के बाद आज बारी स्वर कोकिला लता मंगेशकर की। जी नहीं, लता जी के किसी अन्य गायक की लाइन पर नहीं गाया, बल्कि उन्होंने एक शब्द का ग़लत उच्चारण किया है। छोटी "इ" के स्थान पर बड़ी "ई" गा बैठीं हैं लाता जी इस गीत में। यह है फ़िल्म 'हलाकू' का गीत "बोल मेरे मालिक तेरा क्या यही है इंसाफ़, जो करते हैं लाख सितम उनको तू करता माफ़"। इस गीत में लता ने यूंही "मालिक" की जगह "मलीक" गाया है। इस गीत को ध्यान से सुनने पर इस ग़लती को आप पकड़ सकते हैं। लेकिन यह गीत इतना सुंदर है, इतना कर्णप्रिय है कि इस ग़लती को नज़रंदाज़ करने को जी चाहता है। हसरत जयपुरी का लिखा गीत है और संगीत है शंकर जयकिशन का। क्योंकि यह ईरान की कहानी पर बनी फ़िल्म है, इसलिए संगीत संयोजन भी उसी शैली का किया है एस. जे ने और इस गीत में कोरस का भी क्या ख़ूब प्रयोग हुआ है प्रील्युड और इंटरल्युड्स में। डी. डी, कश्यप निर्देशित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे अजीत, मीना कुमारी, प्राण, राज मेहरा, हेलेन, मिनू मुमताज़, सुंदर, वीणा और निरंजन शर्मा। लता मंगेशकर के अलावा मोहम्मद रफ़ी और आशा भोसले ने फ़िल्म में गीत गाए।
'हलाकू' एक पीरियड फ़िल्म थी, इसलिए आइए आपको इसकी कहानी से थोड़ा सा अवगत करवाया जाए। हलाकू (प्राण) ईरान का राजा है जो पूरे देश का शासन कर रहा है और पूरी सख़्ती के साथ। ऐसे ही एक बार उनकी मुलाक़ात होती है निलोफ़र (मीना कुमारी) से और उन पर फ़िदा होते हैं और उनसे शादी करने की सोचते हैं। लेकिन उधर उनकी पत्नी भी है (मिनू मुमताज़), जो उनके इस द्वितीय विवाह के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाती है। उधर निलोफ़र हलाकू से प्यार ही नहीं करती, बल्कि वो तो परवेज़ (अजीत) से प्यार करती है। निलोफ़र हलाकू के मनसूबे को पूरा नहीं होने दे सकती। क्या निलोफ़र और परवेज़ अत्याचारी हलाकू से बच कर अपनी प्यार की दुनिया बसा पाएँगे? यही है हलाकू की कहानी। आज का जो प्रस्तुत गीत है उसके बोलों से यह साफ़ ज़ाहिर है कि निलोफ़र हलाकू के अत्याचार से तंग आकर उपरवाले से यह शिकायत कर रही है कि "बोल मेरे मालिक तेरा क्या यही है इंसाफ़, जो करते हैं लाख सितम उनको तू करता माफ़"। 'हलाकू' फ़िल्म को आज तक लोगों ने याद रखा है इसके गीतों की वजह से। प्रस्तुत गीत के अलावा दो और मशहूर गीत हैं रफ़ी साहब और लता जी के गाये - "आजा के इंतज़ार में जाने को है बहार भी, तेरे बग़ैर ज़िंदगी दर्द बन के रह गई", तथा "दिल का करना ऐतबार कोई, भूले से भी ना करना ऐतबार कोई"। इस फ़िल्म के सभी गानें अरब-मंगोल शैली के थे, संयोजन की दृष्टि से भी और गायकी की दृष्टि से भी। ये गानें आगे चलकर आप 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर ज़रूर सुन पाएँगे, फिलहाल सुना जाए "बोल मेरे मालिक"।
क्या आप जानते हैं...
कि साल १९५६ शंकर जयकिशन के लिए एक बेहद सफल साल था। 'हलाकू' के अलावा इस साल इस जोड़ी ने जिन फ़िल्मों में संगीत दिया, वो हैं 'बसंत बहार', 'चोरी चोरी', 'क़िस्मत का खेल', 'नई दिल्ली', 'पटरानी', और 'राज हठ'। लेकिन इनमें से कोई भी आर. के. बैनर के नहीं थे।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली ०३ /शृंखला ०२
ये धुन है गीत के पहले इंटर ल्यूड की -
अतिरिक्त सूत्र - ये एक युगल गीत है जिसमें पुरुष आवाज़ रफ़ी साहब की है
सवाल १ - राज खोसला निर्देशित इस फिल्म के संगीतकार बताएं - १ अंक
सवाल २ - फिल्म का नाम बताएं, जिसके सभी गीत दमदार थे - १ अंक
सवाल ३ - गीतकार कौन हैं - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
एक बार फिर श्याम कान्त जी ने २ अंकों के सवाल का सही जवाब देकर अधिकतम अंक लूट लिए, पर कल का दिन रहा दो ऐसे प्रतिभागियों के नाम जिनका कल खाता खुला. शंकर लाल जी बहुत दिनों से कोशिश में थे और देखिये क्या खूब शुरूआत की है, अवध जी तो कहने को पुराने खिलाडी हैं पर इस नयी प्रतियोगिता में पहली बार खाता खोल पाए हैं, बढिए स्वीकार करें.
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
मै तो यह कहता हूँ अगर अमित या मै या कोई भी जीते तो आप ID प्रूफ के बाद ही विजेता घोषित करना, अन्यथा जुर्माना घोषित कर देना .
सुजोय जी ये चर्चा करने और जाने - अनजाने में इन लोगो के साथ भी सम्बन्ध जोड़ने के लिए बहुत- बहुत धन्यवाद !
और फिर आप मेरे ब्लॉग पर आ सकते हैं .
अगर आपने मेरा कमेन्ट पढ़ लिया है तो कृपया शीघ्र इस सन्दर्भ में पूरक उत्तर भेजने कि कृपा करें
आपकी प्रतीक्षा में .
अवध लाल
क्या इस बार धीरे धीरे सब गीतकार के नाम आ जायेंगे?
अवध लाल
ke zindagii terii zulfo.n kii narm chaao.n me.n
guzarane paatii to shaadaab ho bhii sakatii thii
ye tiirgii jo merii ziist kaa muqaddar hai
terii nazar kii shuaao.n me.n kho bhii sakatii thii
magar ye ho na sakaa aur ab ye aalam hai
ke tuu nahii.n, teraa Gam, terii justajuu bhii nahii.n
guzar rahii hai kuchh is tarah zi.ndahii jaise
ise kisii ke sahaare kii aarazuu bhii nahii.n
kabhii kabhii mere dil me.n Khayaal aataa hai