भोर भये पनघट पे, मोहे नटखट श्याम सताए...ताल सुनिए इस गीत की जिसका ओर्केस्ट्रशन आज के किसी भी गीत को टक्कर दे सकता है
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 501/2010/201
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार और बहुत बहुत स्वागत है आप सभी का फिर एक बार इस सुरीले सफ़र में। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के ५०० अंक के पूर्ति पर आपने हमारी ख़ास प्रस्तुति का आनंद लिया होगा, और आज से हम फिर एक बार अपने सुरीले कारवाँ को आगे बढ़ाने के लिए कमर कस कर मैदान में उतर चुके हैं। गुज़रे ज़माने के इन सुरीले मीठे गानों से हमारा दिल कभी नहीं भरेगा, इसलिए यह कारवाँ भी चलता ही रहेगा जब तक उपरवाले को मंज़ूर होगा और जब तक आपका युंही हमें साथ मिलता रहेगा। सरगमी यादों के इस सुहाने सफ़र में आज से हम जो लघु शृंखला शुरु करने जा रहे हैं, वह केन्द्रित है एक संगीतकार जोड़ी पर। यह वो संगीतकार जोड़ी है दोस्तों जिनके गानें कोई रेडियो चैनल, कोई टीवी चैनल, कोई कैसेट - सीडी की दुकान नहीं होगी जहाँ इस जोड़ी के सैंकड़ों गीत मौजूद ना हों। इनके रचे सुरीले गानें गली गली ना केवल उस ज़माने में गूँजा करते थे, बल्कि आज भी हर रोज़ सुनाई देते हैं कहीं ना कहीं से। वक़्त के ग्रामोफ़ोन पर यह सुरीला एल.पी बरसों बरस घूम रहा है और हमारे तन मन के तारों को झंकारित कर रहा है। जी हाँ, जिस सुरीले एल.पी की हम बात कर रहे हैं वह और कोई नहीं बल्कि एल.पी ही हैं, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के असंख्य लोकप्रिय गीतों में से १० गीतों को छाँटना कितना मुश्किल काम है यह तो आप भी ज़रूर मानेंगे। फिर भी हमने कोशिश की है कि एल.पी के इस सुरीले अथाह समुंदर से दस मोतियों को चुनने की। तो लीजिए प्रस्तुत है लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के धुनों से सजी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की नई लघु शृंखला 'एक प्यार का नग़मा है'।
दोस्तों, आज से हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सफ़र में निकल पड़े हैं अपनी १०००-वे पड़ाव की ओर। भले ही 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की यह महफ़िल शाम के वक़्त सजती है भारत में, लेकिन एक तरह से यह एक सुबह ही तो है। यह वह सुबह है कि जब हम अपने इस सुरी्ले कारवाँ को लेकर फिर एक बार चल पड़े हैं इन सुरीली राहों पर। इसीलिए हम इस शृंखला की शुरुआत भी भोर के एक गीत से कर रहे हैं। राज कपूर की फ़िल्म 'सत्यम शिवम सुंदरम' का एक बड़ा ही ख़ूबसूरत गीत जो कि आधारित है राज साहब के पसंदीदा राग भैरवी पर। लता जी के दैवीय आवाज़ में "भोर भये पनघट पे मोहे नटखट श्याम सताये" जो फ़िल्माया गया है ज़ीनत अमान पर। 'सत्यम शिवम सुंदरम' में तीन गीतकारों ने गीत लिखे हैं - पंडित नरेन्द्र शर्मा, विट्ठल भाई पटेल और आनंद बक्शी। बक्शी जी ने इस गीत को जितनी ख़ूबसूरती से लिखा है, उतना ही आकर्षक और सुमधुर संगीत से सजाया है लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने। यहाँ तक कि इस गीत का जो रीदम है, जो ताल है, वह इतना संक्रामक है कि सुननेवालों को अपनी ओर खींचे रखता है। दोस्तों, क्योंकि यह शृंखला है एल.पी के गीतों की है तो ज़ाहिर है कि हम उन्ही से जुड़ी ज़्यादा बातें इसमें करेंगे। कुछ वर्ष पहले विविध भारती ने प्यारेलाल जी को आमंत्रित कर एक लंबा इंटरव्यू रेकॊर्ड किया था, उस लम्बे इंटरव्यू को जिन लोगों ने सुना होगा, उन्हें एल.पी के तमाम पहलुओं के बारे में जानकारी हासिल हुई होगी। इस शृंखला में हम उसी इंटरव्यू की तरफ़ बार बार रुख़ करेंगे। तो ये रहा आज का अंश...
कमल शर्मा: अच्छा प्यारे जी, अगर हम आप के म्युज़िक की बात करें, हर एक के म्युज़िक की ख़ास पहचान होती है, इन्स्ट्रुमेण्ट्स-वाइज़ होती है, रागों के हिसाब से, या कुछ अलग एक स्टाइल होता है। आप अपने म्युज़िक की पहचान क्या कहेंगे? किस तरह से उसको पहचाना जाए कि यह एल.पी का म्युज़िक है? उसकी सब से क्या ख़ास बात है?
प्यारेलाल: मैं बताऊँ आपको, बहुत ईज़ी है, मैं बहुत डायरेक्टली बोल रहा हूँ, हमारी ख़ास बात यह है कि आपको रीदम पैटर्ण से मालूम पड़ेगा कि यह एल.पी है। लेकिन हर एक गाना, हर एक पिक्चर का म्युज़िक आपको अलग मिलेगा। मनोज कुमार हों, सुभाष घई हों, राज कपूर साहब हों, आप समझे ना, कोई भी साउथ के हों, कोई भी एक पिक्चर का म्युज़िक आपको दूसरे पिक्चर में नहीं मिलेगा। अगर 'पारसमणि' की तो मतलब ख़तम कर दिया हमने। फिर जे. ओमप्रकाश जी के लिए काम किया, 'आया सावन झूम के', फिर राज खोसला जी हैं, आप देखिए, तो ज़्यादा कोशिश हम यह करते हैं कि भई जिसका म्युज़िक करें, वो लगे ऐसे कि जैसे आपने शायद ग़ौर किया कि नहीं, हमने एक पिक्चर की थी शक्ति सामंत जी की, 'अनुरोध', "आपके अनुरोध पे मैं यह गीत सुनाता हूँ", बिल्कुल अलग तरह का गाना था यह।
तो दोस्तों, इस इंटरव्यु के चुनिंदे अंश हम आगे भी आप तक पहुँचाते रहेंगे, लीजिए अब सुनिए लता जी की आवाज़ में "भोर भये पनघट पे"।
क्या आप जानते हैं...
कि 'सत्यम शिवम सुंदरम' से पहले इस फ़िल्म के लिए राज कपूर ने 'सूरत और सीरत' का शीर्षक चुना था, लेकिन बाद में उन्हें 'सत्यम शिवम सुंदरम' ही बेहतर लगा।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, जी हाँ अब गूगल बाबा आपकी मदद को नहीं आ पायेंगें, अब तो बस आप को खुद ही खोलने पड़ेंगें इस पहेली के उलझे तार, हमें यकीं है कि पहेली का ये नया रूप आपके जेहन की खासी कसरत करवाएगा, और आप इसका भरपूर मज़ा भी ले पायेंगें... ठीक, तो आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. इस बार आपकी मंजिल ५०० अंकों की होगी, और जितनी बार चाहें आप इस आंकडे को छू सकते हैं हमारे १००० वें एपिसोड तक. और हाँ इस बार पुरस्कार नकद राशि होंगीं....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली ०१
ये धुन उस गीत के पहले इंटरल्यूड की है, सुनिए -
अतिरिक्त सूत्र - अभी हाल ही में लता जी ने ट्विट्टर पर लिखा कि ये इस गीत के गायक का गाया उनका सबसे पसंदीदा गीत है-
सवाल १ - गीतकार बताएं - १ अंक
सवाल २ - गायक बताएं - २ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार और बहुत बहुत स्वागत है आप सभी का फिर एक बार इस सुरीले सफ़र में। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के ५०० अंक के पूर्ति पर आपने हमारी ख़ास प्रस्तुति का आनंद लिया होगा, और आज से हम फिर एक बार अपने सुरीले कारवाँ को आगे बढ़ाने के लिए कमर कस कर मैदान में उतर चुके हैं। गुज़रे ज़माने के इन सुरीले मीठे गानों से हमारा दिल कभी नहीं भरेगा, इसलिए यह कारवाँ भी चलता ही रहेगा जब तक उपरवाले को मंज़ूर होगा और जब तक आपका युंही हमें साथ मिलता रहेगा। सरगमी यादों के इस सुहाने सफ़र में आज से हम जो लघु शृंखला शुरु करने जा रहे हैं, वह केन्द्रित है एक संगीतकार जोड़ी पर। यह वो संगीतकार जोड़ी है दोस्तों जिनके गानें कोई रेडियो चैनल, कोई टीवी चैनल, कोई कैसेट - सीडी की दुकान नहीं होगी जहाँ इस जोड़ी के सैंकड़ों गीत मौजूद ना हों। इनके रचे सुरीले गानें गली गली ना केवल उस ज़माने में गूँजा करते थे, बल्कि आज भी हर रोज़ सुनाई देते हैं कहीं ना कहीं से। वक़्त के ग्रामोफ़ोन पर यह सुरीला एल.पी बरसों बरस घूम रहा है और हमारे तन मन के तारों को झंकारित कर रहा है। जी हाँ, जिस सुरीले एल.पी की हम बात कर रहे हैं वह और कोई नहीं बल्कि एल.पी ही हैं, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के असंख्य लोकप्रिय गीतों में से १० गीतों को छाँटना कितना मुश्किल काम है यह तो आप भी ज़रूर मानेंगे। फिर भी हमने कोशिश की है कि एल.पी के इस सुरीले अथाह समुंदर से दस मोतियों को चुनने की। तो लीजिए प्रस्तुत है लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के धुनों से सजी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की नई लघु शृंखला 'एक प्यार का नग़मा है'।
दोस्तों, आज से हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सफ़र में निकल पड़े हैं अपनी १०००-वे पड़ाव की ओर। भले ही 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की यह महफ़िल शाम के वक़्त सजती है भारत में, लेकिन एक तरह से यह एक सुबह ही तो है। यह वह सुबह है कि जब हम अपने इस सुरी्ले कारवाँ को लेकर फिर एक बार चल पड़े हैं इन सुरीली राहों पर। इसीलिए हम इस शृंखला की शुरुआत भी भोर के एक गीत से कर रहे हैं। राज कपूर की फ़िल्म 'सत्यम शिवम सुंदरम' का एक बड़ा ही ख़ूबसूरत गीत जो कि आधारित है राज साहब के पसंदीदा राग भैरवी पर। लता जी के दैवीय आवाज़ में "भोर भये पनघट पे मोहे नटखट श्याम सताये" जो फ़िल्माया गया है ज़ीनत अमान पर। 'सत्यम शिवम सुंदरम' में तीन गीतकारों ने गीत लिखे हैं - पंडित नरेन्द्र शर्मा, विट्ठल भाई पटेल और आनंद बक्शी। बक्शी जी ने इस गीत को जितनी ख़ूबसूरती से लिखा है, उतना ही आकर्षक और सुमधुर संगीत से सजाया है लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने। यहाँ तक कि इस गीत का जो रीदम है, जो ताल है, वह इतना संक्रामक है कि सुननेवालों को अपनी ओर खींचे रखता है। दोस्तों, क्योंकि यह शृंखला है एल.पी के गीतों की है तो ज़ाहिर है कि हम उन्ही से जुड़ी ज़्यादा बातें इसमें करेंगे। कुछ वर्ष पहले विविध भारती ने प्यारेलाल जी को आमंत्रित कर एक लंबा इंटरव्यू रेकॊर्ड किया था, उस लम्बे इंटरव्यू को जिन लोगों ने सुना होगा, उन्हें एल.पी के तमाम पहलुओं के बारे में जानकारी हासिल हुई होगी। इस शृंखला में हम उसी इंटरव्यू की तरफ़ बार बार रुख़ करेंगे। तो ये रहा आज का अंश...
कमल शर्मा: अच्छा प्यारे जी, अगर हम आप के म्युज़िक की बात करें, हर एक के म्युज़िक की ख़ास पहचान होती है, इन्स्ट्रुमेण्ट्स-वाइज़ होती है, रागों के हिसाब से, या कुछ अलग एक स्टाइल होता है। आप अपने म्युज़िक की पहचान क्या कहेंगे? किस तरह से उसको पहचाना जाए कि यह एल.पी का म्युज़िक है? उसकी सब से क्या ख़ास बात है?
प्यारेलाल: मैं बताऊँ आपको, बहुत ईज़ी है, मैं बहुत डायरेक्टली बोल रहा हूँ, हमारी ख़ास बात यह है कि आपको रीदम पैटर्ण से मालूम पड़ेगा कि यह एल.पी है। लेकिन हर एक गाना, हर एक पिक्चर का म्युज़िक आपको अलग मिलेगा। मनोज कुमार हों, सुभाष घई हों, राज कपूर साहब हों, आप समझे ना, कोई भी साउथ के हों, कोई भी एक पिक्चर का म्युज़िक आपको दूसरे पिक्चर में नहीं मिलेगा। अगर 'पारसमणि' की तो मतलब ख़तम कर दिया हमने। फिर जे. ओमप्रकाश जी के लिए काम किया, 'आया सावन झूम के', फिर राज खोसला जी हैं, आप देखिए, तो ज़्यादा कोशिश हम यह करते हैं कि भई जिसका म्युज़िक करें, वो लगे ऐसे कि जैसे आपने शायद ग़ौर किया कि नहीं, हमने एक पिक्चर की थी शक्ति सामंत जी की, 'अनुरोध', "आपके अनुरोध पे मैं यह गीत सुनाता हूँ", बिल्कुल अलग तरह का गाना था यह।
तो दोस्तों, इस इंटरव्यु के चुनिंदे अंश हम आगे भी आप तक पहुँचाते रहेंगे, लीजिए अब सुनिए लता जी की आवाज़ में "भोर भये पनघट पे"।
क्या आप जानते हैं...
कि 'सत्यम शिवम सुंदरम' से पहले इस फ़िल्म के लिए राज कपूर ने 'सूरत और सीरत' का शीर्षक चुना था, लेकिन बाद में उन्हें 'सत्यम शिवम सुंदरम' ही बेहतर लगा।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, जी हाँ अब गूगल बाबा आपकी मदद को नहीं आ पायेंगें, अब तो बस आप को खुद ही खोलने पड़ेंगें इस पहेली के उलझे तार, हमें यकीं है कि पहेली का ये नया रूप आपके जेहन की खासी कसरत करवाएगा, और आप इसका भरपूर मज़ा भी ले पायेंगें... ठीक, तो आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. इस बार आपकी मंजिल ५०० अंकों की होगी, और जितनी बार चाहें आप इस आंकडे को छू सकते हैं हमारे १००० वें एपिसोड तक. और हाँ इस बार पुरस्कार नकद राशि होंगीं....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली ०१
ये धुन उस गीत के पहले इंटरल्यूड की है, सुनिए -
अतिरिक्त सूत्र - अभी हाल ही में लता जी ने ट्विट्टर पर लिखा कि ये इस गीत के गायक का गाया उनका सबसे पसंदीदा गीत है-
सवाल १ - गीतकार बताएं - १ अंक
सवाल २ - गायक बताएं - २ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
अब तक सही नही करवाया ना न्य ही किसी ने ला कर दिया.मैं तो अटक गई न? चलिए सबको शुभकामनाएं.जीतिए अपना क्या है आर्टिकल पढ़ ही लिया है अब कमेंट्स पढ़ कर मन को खुश कर लेंगे.हा हा हा
मुस्कराने का बहाना ढूंढ ही लेती हूँ.क्या करूं?
ऐसिच हूँ मैं तो
shaayad shankar jaykishan...
naa unkaa tabassum tere waaste hai...
:(
और अगर कोई हर पहेली में अगर ४ अंक वाला आंसर भी दे तो १००वे एपिसोड तक ४०० ही अंक हुए.
और अगर कोई हर पहेली में अगर ४ अंक वाला आंसर भी दे तो १००वे एपिसोड तक ४०० ही अंक हुए, तो हम माफ़ी चाहेंगें कि ये लिखने में हुई भूल थी, जिससे आप शंकित हो गए, दरअसल पहेली अब ५०१ वें से १००० वें एपिसोड तक खुली है और इसमें जितनी मर्जी बार चाहें आप ५०० का आंकड़ा छू सकते हैं. भूल सुधार ली गयी है. और कोई श्रोता यदि इस विषय में अपनी राय देना चाहें तो जरूर दें.
१-इतनी लम्बी पहेली का कोई औचित्य नहीं बनता
इससे लोगों को बोरियत महसूस होती है |भले ही आप
पुरुस्कार में नकद राशी न रख कर एक पेन रख दें |
पर परिणाम महीने बार ही आना चाहिए |
२- आप की पहेली कब आयेगी किस दिन नहीं
आयेगी ये जानकारी आपको ब्लॉग पर देनी चाहिए
धन्यवाद
aur haan aapke dusare sawaal ka javaab - old is gold har shaam ravivaar se guruvaar tak prakashit hota hai. har 10 ankon kii ek shrinkhla hoti hai, yaani har do hafte ke darmiyan ek shrinkhla hoti hai, 5-5 epeisode each weak.....any more doubt ?