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रोज शाम आती थी, मगर ऐसी न थी.....जब शाम के रंग में हो एल पी के मधुर धुनों की मिठास, तो क्यों न बने हर शाम खास

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 508/2010/208

क्ष्मीकांत-प्यारेलाल के धुनों से सजी लघु शंखला 'एक प्यार का नग़मा है' में आज एक और आकर्षक गीत की बारी। लेकिन इस गीत का ज़िक्र करने से पहले आइए आज आपको एल.पी के बतौर स्वतंत्र संगीतकार शुरु शुरु के फ़िल्मों के बारे में बताया जाए। स्वतंत्र रूप से पहली बार 'तुमसे प्यार हो गया', 'पिया लोग क्या कहेंगे', और 'छैला बाबू' में संगीत देने का उन्हें मौका मिला था। 'तुमसे प्यार हो गया' और 'छैला बाबू' दोनों के लिए चार-चार गाने भी रेकॊर्ड हो गये पर 'तुमसे प्यार हो गया' के निर्माता ही भाग निकले और 'छैला बाबू' रुक गई, जो कुछ वर्षों बाद जाकर पूरी हुई। 'सिंदबाद' के लिए भी रेकॊर्डिंग् हुई पर फ़िल्म पूरी न हो सकी। 'तुमसे प्यार हो गया' के लिए उनकी पहली रेकॊर्डिंग् "कल रात एक सपना देखा" (लता, सुबीर सेन) तो आज तक विलुप्त ही है, पर 'पिया लोग क्या कहेंगे' के इसी मुखड़े के लता के गाये शीर्षक गीत की धुन उन्होंने आगे जाकर 'दोस्ती' के "चाहूँगा मैं तुझे साँझ सवेरे" में इस्तेमाल कर लिया। इसी बीच बाबूभाई मिस्त्री की 'पारसमणि' जैसी सी-ग्रेड फ़ैंटसी फ़िल्म मिली। युं तो 'पारसमणि' एक फ़ैण्टसी फ़िल्म थी और बैनर भी बड़ा बड़ा नहीं था, पर इस सी-ग्रेड फ़िल्म का भी हर गाना सुपरहिट करा कर लक्ष्मी-प्यारे ने उन तमाम संगीतकारों को सीधी चुनौती दे दी जो अपनी असफलता का कारण बड़े बैनर और बड़े स्टार्स की फ़िल्म में अवसर न मिलना बताते थे। 'पारसमणि' के बाद एल.पी ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक ऐसा सुरीला तूफ़ान उठाया फ़िल्म संगीत जगत में, जो आज तक नहीं रुक पाया है। आइए अब वापस आते हैं आज के गाने पर। आज आपको सुनवा रहे हैं मजरूह सुल्तानपुरी का लिखा और लता मंगेशकर का गाया फ़िल्म 'इम्तिहान' का गीत "रोज़ शाम आती थी मगर ऐसी ना थी, रोज़ रोज़ घटा छाती थी मगर ऐसी ना थी, ये आज मेरी ज़िंदगी में कौन आ गया"।

'इम्तिहान' साल १९७४ की फ़िल्म थी जिसे आज याद किया जाता है "रुक जाना नहीं तू कहीं हार के" गीत की वजह से। फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे विनोद खन्ना और तनुजा, और इसकी कहानी भी और दूसरी फ़िल्मों से अलग हट कर थी। आज तो विविध विषयों पर फ़िल्मे बन रही हैं और लोग उन्हें सफल भी बना रहे हैं, लेकिन उस ज़माने मे इन "अलग हट के" फ़िल्मों का अंजाम बहुत ज़्यादा सुखद नहीं होता था व्यावसायिक रूप से। विनोद खन्ना शायद पहली बार इसमें नायक की भूमिका में नज़र आये थे। इससे पहले वो ज़्यादा खलनायक के चरित्रों मे ही नज़र आये थे। ख़ैर, इस फ़िल्म में लता जी का गाया "रोज़ शाम आती थी" गीत एक नया प्रयोग था। दोस्तों, ये सच है कि लक्ष्मी-प्यारे ने सब से ज़्यादा गीत लता जी से गवाये, लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि इतने सारे गानें होने के बावजूद भी हर गाना दूसरे से अलग कम्पोज़ किया। आप लता - एल.पी कम्बिनेशन के कोई भी दो गीत ले लीजिए, आपको कभी कोई समानता नज़र नहीं आयेगी। आज के प्रस्तुत गीत को एल.पी ने लता से बेहद ऊँची पट्टी पर गवाया और एक नई बेहद आकर्षक आधुनिक शैली में कम्पोज़ किया। ऒर्केस्ट्रा की बात करें तो फ़्रेंच हॊर्ण और ईरानियन संतूर का किस ख़ूबसूरती से ब्लेण्डिंग् की गयी है लता जी के उस ऊँची पट्टी वाले जगहों पर। फ़िल्मांकन की बात करें तो क्योंकि शाम का गीत है, इसलिए एक गुलाबी और नारंगी रंग के फ़िल्टर के इस्तेमाल से सूर्यास्त का रंग लाया गया है। उन दिनों इसी तरह से अलग रंगों के फ़िल्टर के माध्यम से शाम, रात और सुबह के रंग लाये जाते थे। और आख़िर में मजरूह साहब के लेखन की बात करें तो मुझे तो गीत का दूसरा अंतरा बहुत ही अच्छा लगता है कि "अरमानों का रंग है जहाँ पलकें उठाती हूँ मैं, हँस हँस के हैं देखती जो भी मूरत बनाती हूँ मैं"। हमें पूरी उम्मीद है कि यह गीत आपका भी फ़ेवरीट होगा, तो आप अपनी पसंद के साथ साथ मेरी पसंद भी शामिल कर लीजिए, क्योंकि यह गीत मेरा भी पसंदीदा गीत रहा है। आइए सुनते हैं...



क्या आप जानते हैं...
कि 'झूम बराबर झूम' फ़िल्म के गीत "बोल ना हल्के हल्के" के लिए पहले लता मंगेशकर को चुना गया था। लेकिन ऊँची पट्टी पर ना गा पाने की वजह से लता जी ने ही यह गीत गाने से मना कर दिया।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली ०७ /शृंखला ०१
ये धुन उस गीत के लंबे प्रिल्यूड की है, सुनिए -


अतिरिक्त सूत्र - एक अंतरे में शब्द है -"बसंती"

सवाल १ - गीतकार बताएं - १ अंक
सवाल २ - इस फिल्म का शीर्षक बिमल रॉय की एक मशहूर फिल्म के गीत की पहली पंक्ति से लिया गया है नाम बताएं - १ अंक
सवाल ३ - फिल्म के निर्देशक बताएं - २ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
श्याम कान्त जी अब १० अंकों पर आ चुके हैं, बहुत बधाई. अमित जी और बिट्टू जी भी सही जवाब लेकर हाज़िर हुए. पहली बार शंकर लाल जी ने सही जवाब दिया मगर जरा देर से, अंक तो नहीं मिलेंगें, पर हमारी शाबाशी जरूर मिलेगी आपको. अवध जी सही जानकारी दी आपने. रोमेंद्र जी आप शाम ६.३० भारतीय समयानुसार अगर आवाज़ पर आते है तो आप भी पहले जवाब दे पायेंगें, मेल का इन्तेज़ार मत करते रहा कीजिये. अरे वाह इंदु जी, चलिए अब एक और प्रतिभागी हमारा तैयार हो गया...अब शरद जी और श्याम जी के लिए मुकाबला तगड़ा होगा. हमारी कनाडा टीम इन दिनों नदारद है, कोई खबर तो दीजिए

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

ShyamKant said…
Sawaal 3-- Dulal Guha
bittu said…
1. Majrooh Sultanpuri
chintoo said…
2: Dharti Kahe Pukaar ke.
Shankar Laal ;-) said…
Mujhe gaana pata tha par "Google Chrome" ne mera saath nahi diya.
Baar-baar hang ho jaata hai.
Vaise gaana hai - Khushi kee woh raat aa gayi.
Maine ye film paanch baar dekhi hai.
Aur line hai "Phool hun main pawan Basanti."
AVADH said…
काफी सफल फिल्म थी यह फिल्म टिकट खिडकी पर. संजीव कुमार और निवेदिता मुख्य नायक और नायिका थे.मैंने भी शंकर लाल जी की तरह कई बार देखी थी यह फिल्म.
अवध लाल
RAJ SINH said…
और अवध जी निवेदिता कितनी सुन्दर थी .आपको नहीं लगी ?
फिर आ न पाई .

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