ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 496/2010/196
When there is nothing to lose, there is nothing to fear. डर मन-मस्तिष्क का एक ऐसा भाव है जो उत्पन्न होता है अज्ञानता से या फिर किसी दुष्चिंता से। 'ओल्ड इस गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! 'रस माधुरी' शृंखला की छठी कड़ी में आज बातें भयानक रस की। भयानक रस का अर्थ है डर या बुरे की आशंका। ज़ाहिर है कि हमें जितना हो सके इस रस से दूर ही रहना चाहिए। भयानक रस से बचने के लिए ज़रूरी है कि हम अपने आप को सशक्त करें, सच्चाई की तलाश करें और सब से प्यार सौहार्द का रिश्ता रखें। अक्सर देखा गया है कि डर का कारण होता है अज्ञानता। जिसके बारे में हम नहीं जानते, उससे हमें डर लगता है। भूत प्रेत से हमें डर क्यों लगता है? क्योंकि हमने भूत प्रेत को देखा नहीं है। जिसे किसी ने नहीं देखा, उसकी हम भयानक कल्पना कर लेते हैं और उससे डर लगने लगता है। भय या डर हमारे दिमाग़ की उपज है जो किसी अनजाने अनदेखे चीज़ के बारे में ज़रूरत से ज़्यादा ही बुरी कल्पना कर बैठता है, जिसका ना तो कोई अंत होता है और ना ही कोई वैज्ञानिक युक्ति। वैसे कुछ ऐसे भय भी होते हैं जो हमारे लिए अच्छा है, जैसे कि भगवान से डर। भगवान से अगर डर ना हो तो आदमी बुराई के मार्ग पर चल निकलने के लिए प्रोत्साहित हो जाएगा जो समाज के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है। भय से बचने के लिए हमें चाहिए कि अच्छे मित्र बनाएँ, आत्मीय जनों से प्रेम का रिश्ता रखें ताकि ज़रूरत के वक़्त वे हमारे साथ खड़े हों। और आख़िर में बस यही कहेंगे कि भय से कुछ हासिल नहीं होता, सिवाय ब्लड प्रेशर बढ़ाने के। भविष्य में जो होना है वह तो होकर रहेगा, इसलिए आज ही ख़ामख़ा डर कैसा! वह उस गीत में कहा गया है न कि "सोचना क्या जो भी होगा देखा जाएगा, कल के लिए तू आज को ना खोना, आज ये ना कल आएगा"। बस यही बात है।
भयानक रस पर आधारित फ़िल्मी गीतों की बात करें तो इस तरह के गानें भी हमारी फ़िल्मों में ख़ूब चले हैं। अलग अलग तरह से भय को गीतों में उतारा है हमारे गीतकारों नें। फ़िल्म 'एक पल' में लता जी का गाया एक गाना था "जाने क्या है जी डरता है, रो देने को जी करता है, अपने आप से डर लगता है, डर लगता है क्या होगा"। बादलों के गरजने से भी जो डर लगता है उसका वर्णन भरत व्यास जी के गीत "डर लागे गरजे बदरिया कारी" में मिलता है। किसी को ब्लैकमेल करते हुए "मेरा नाम है शबनम.... लेकिन डरो नहीं, राज़ राज़ ही रहेगी" में भी भय का आभास है। लेकिन इस रस का सब से अच्छा इस्तेमाल भूत प्रेत या सस्पेन्स थ्रिलर वाली फ़िल्मों के गीतों में सब से अच्छा हुआ है। 'महल', 'बीस साल बाद', 'वो कौन थी', 'सन्नाटा', 'जनम जनम' आदि फ़िल्मों में एक गीत ऐसा ज़रूर था जिसमें सस्पेन्स वाली बात थी। लेकिन इन गीतों में सस्पेन्स को उजागर किया गया उसके फ़िल्मांकन के ज़रिए और संगीत संयोजन के ज़रिए, जब कि बोलों में जुदाई या विरह की ही प्रचूरता थी। शब्दों में भय का इतना रोल नहीं था। लेकिन एक फ़िल्म आई थी 'गुमनाम' जिसके शीर्षक गीत में वह सारी बातें थीं जो एक भयानक रस के गीत में होनी चाहिए। फ़िल्मांकन हो या संगीत संयोजन, गायक़ी हो या गाने के बोल, हर पक्ष में भय का प्रकोप था। "गुमनाम है कोई, बदनाम है कोई, किसको ख़बर, कौन है वो, अंजान है कोई"। हसरत जयपुरी का लिखा गीत और संगीत शंकर जयकिशन का। १९६५ की इस सुपरहिट सस्पेन्स थ्रिलर को निर्देशित किया था राजा नवाथे ने और फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे मनोज कुमार, नंदा, हेलेन, प्राण, महमूद प्रमुख। जहाँ तक इस गीत की धुन का सवाल है, तो शंकर जयकिशन को इसकी प्रेरणा हेनरी मैनसिनि के 'शैरेड' (Charade) फ़िल्म के थीम से मिली थी। तो आइए सुना जाए यह गीत, हम इस गीत के बोल लिखना चाहेंगे ताक़ि आप महसूस कर सकें कि किस तरह से इस गीत की हर पंक्ति से भय टपक रहा है।
गुमनाम है कोई, बदनाम है कोई,
किसको ख़बर कौन है वो, अंजान है कोई।
किसको समझें हम अपना, कल का नाम है एक सपना,
आज अगर तुम ज़िंदा हो तो कल के लिए माला जपना।
पल दो पल की मस्ती है, बस दो दिन की बस्ती है,
चैन यहाँ पर महँगा है और मौत यहाँ पर सस्ती है।
कौन बला तूफ़ानी है, मौत तो ख़ुद हैरानी है,
आये सदा वीरानों से जो पैदा हुआ वो फ़ानी है।
दोस्तों, जब मैं यह आलेख लिख रहा हूँ, इस वक़्त रात के डेढ़ बज रहे हैं, एक डरावना माहौल सा पैदा हो गया है मेरी आसपास और शायद मेरे अंदर, इसलिए यह आलेख अब यहीं पे ख़त्म करता हूँ, फिर मिलेगे गर ख़ुदा लाया तो। नमस्कार!
क्या आप जानते हैं...
कि फ़िल्म 'गुमनाम' के लिए महमूद और हेलेन, दोनों को ही उस साल के फ़िल्मफ़ेयर के सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेता के पुरस्कार के लिए नमोनीत किया गया था, लेकिन ये पुरस्कार दोनों में से किसी को भी नहीं मिल पाया।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. वीर रस पर आधारित तमाम देशभक्ति गीतों में एक ख़ास मुकाम रखता है यह गीत जिसे तीन मुख्य गायकों ने गाया है। एक हैं मुकेश, आपको बताने हैं बाक़ी दो गायकों के नाम। ३ अंक।
२. एक बेहद मशहूर स्वाधीनता सेनानी के जीवन पर बनी थी यह फ़िल्म। उस सेनानी का नाम बताएँ। २ अंक।
३. फ़िल्म में गीत और संगीत एक ही शख़्स ने दिया है। उनका नाम बताएँ। ४ अंक।
४. इसी फ़िल्म के एक अन्य गीत का मुखड़ा शुरु होता है "जोगी" शब्द से। कल बजने वाले गीत के बोल बताएँ। १ अंक।
पिछली पहेली का परिणाम -
पवन जी एक बार फिर जल्दबाजी कर गए, मगर शरद जी ने संयम से काम लिया. लगता है प्रतिभा जी के मन में भी कोई भय समां गया था जवाब देते समय :)खैर श्याम कान्त जी शायद नए जुड़े है, जवाब सही है जनाब. सभी को बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
When there is nothing to lose, there is nothing to fear. डर मन-मस्तिष्क का एक ऐसा भाव है जो उत्पन्न होता है अज्ञानता से या फिर किसी दुष्चिंता से। 'ओल्ड इस गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! 'रस माधुरी' शृंखला की छठी कड़ी में आज बातें भयानक रस की। भयानक रस का अर्थ है डर या बुरे की आशंका। ज़ाहिर है कि हमें जितना हो सके इस रस से दूर ही रहना चाहिए। भयानक रस से बचने के लिए ज़रूरी है कि हम अपने आप को सशक्त करें, सच्चाई की तलाश करें और सब से प्यार सौहार्द का रिश्ता रखें। अक्सर देखा गया है कि डर का कारण होता है अज्ञानता। जिसके बारे में हम नहीं जानते, उससे हमें डर लगता है। भूत प्रेत से हमें डर क्यों लगता है? क्योंकि हमने भूत प्रेत को देखा नहीं है। जिसे किसी ने नहीं देखा, उसकी हम भयानक कल्पना कर लेते हैं और उससे डर लगने लगता है। भय या डर हमारे दिमाग़ की उपज है जो किसी अनजाने अनदेखे चीज़ के बारे में ज़रूरत से ज़्यादा ही बुरी कल्पना कर बैठता है, जिसका ना तो कोई अंत होता है और ना ही कोई वैज्ञानिक युक्ति। वैसे कुछ ऐसे भय भी होते हैं जो हमारे लिए अच्छा है, जैसे कि भगवान से डर। भगवान से अगर डर ना हो तो आदमी बुराई के मार्ग पर चल निकलने के लिए प्रोत्साहित हो जाएगा जो समाज के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है। भय से बचने के लिए हमें चाहिए कि अच्छे मित्र बनाएँ, आत्मीय जनों से प्रेम का रिश्ता रखें ताकि ज़रूरत के वक़्त वे हमारे साथ खड़े हों। और आख़िर में बस यही कहेंगे कि भय से कुछ हासिल नहीं होता, सिवाय ब्लड प्रेशर बढ़ाने के। भविष्य में जो होना है वह तो होकर रहेगा, इसलिए आज ही ख़ामख़ा डर कैसा! वह उस गीत में कहा गया है न कि "सोचना क्या जो भी होगा देखा जाएगा, कल के लिए तू आज को ना खोना, आज ये ना कल आएगा"। बस यही बात है।
भयानक रस पर आधारित फ़िल्मी गीतों की बात करें तो इस तरह के गानें भी हमारी फ़िल्मों में ख़ूब चले हैं। अलग अलग तरह से भय को गीतों में उतारा है हमारे गीतकारों नें। फ़िल्म 'एक पल' में लता जी का गाया एक गाना था "जाने क्या है जी डरता है, रो देने को जी करता है, अपने आप से डर लगता है, डर लगता है क्या होगा"। बादलों के गरजने से भी जो डर लगता है उसका वर्णन भरत व्यास जी के गीत "डर लागे गरजे बदरिया कारी" में मिलता है। किसी को ब्लैकमेल करते हुए "मेरा नाम है शबनम.... लेकिन डरो नहीं, राज़ राज़ ही रहेगी" में भी भय का आभास है। लेकिन इस रस का सब से अच्छा इस्तेमाल भूत प्रेत या सस्पेन्स थ्रिलर वाली फ़िल्मों के गीतों में सब से अच्छा हुआ है। 'महल', 'बीस साल बाद', 'वो कौन थी', 'सन्नाटा', 'जनम जनम' आदि फ़िल्मों में एक गीत ऐसा ज़रूर था जिसमें सस्पेन्स वाली बात थी। लेकिन इन गीतों में सस्पेन्स को उजागर किया गया उसके फ़िल्मांकन के ज़रिए और संगीत संयोजन के ज़रिए, जब कि बोलों में जुदाई या विरह की ही प्रचूरता थी। शब्दों में भय का इतना रोल नहीं था। लेकिन एक फ़िल्म आई थी 'गुमनाम' जिसके शीर्षक गीत में वह सारी बातें थीं जो एक भयानक रस के गीत में होनी चाहिए। फ़िल्मांकन हो या संगीत संयोजन, गायक़ी हो या गाने के बोल, हर पक्ष में भय का प्रकोप था। "गुमनाम है कोई, बदनाम है कोई, किसको ख़बर, कौन है वो, अंजान है कोई"। हसरत जयपुरी का लिखा गीत और संगीत शंकर जयकिशन का। १९६५ की इस सुपरहिट सस्पेन्स थ्रिलर को निर्देशित किया था राजा नवाथे ने और फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे मनोज कुमार, नंदा, हेलेन, प्राण, महमूद प्रमुख। जहाँ तक इस गीत की धुन का सवाल है, तो शंकर जयकिशन को इसकी प्रेरणा हेनरी मैनसिनि के 'शैरेड' (Charade) फ़िल्म के थीम से मिली थी। तो आइए सुना जाए यह गीत, हम इस गीत के बोल लिखना चाहेंगे ताक़ि आप महसूस कर सकें कि किस तरह से इस गीत की हर पंक्ति से भय टपक रहा है।
गुमनाम है कोई, बदनाम है कोई,
किसको ख़बर कौन है वो, अंजान है कोई।
किसको समझें हम अपना, कल का नाम है एक सपना,
आज अगर तुम ज़िंदा हो तो कल के लिए माला जपना।
पल दो पल की मस्ती है, बस दो दिन की बस्ती है,
चैन यहाँ पर महँगा है और मौत यहाँ पर सस्ती है।
कौन बला तूफ़ानी है, मौत तो ख़ुद हैरानी है,
आये सदा वीरानों से जो पैदा हुआ वो फ़ानी है।
दोस्तों, जब मैं यह आलेख लिख रहा हूँ, इस वक़्त रात के डेढ़ बज रहे हैं, एक डरावना माहौल सा पैदा हो गया है मेरी आसपास और शायद मेरे अंदर, इसलिए यह आलेख अब यहीं पे ख़त्म करता हूँ, फिर मिलेगे गर ख़ुदा लाया तो। नमस्कार!
क्या आप जानते हैं...
कि फ़िल्म 'गुमनाम' के लिए महमूद और हेलेन, दोनों को ही उस साल के फ़िल्मफ़ेयर के सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेता के पुरस्कार के लिए नमोनीत किया गया था, लेकिन ये पुरस्कार दोनों में से किसी को भी नहीं मिल पाया।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. वीर रस पर आधारित तमाम देशभक्ति गीतों में एक ख़ास मुकाम रखता है यह गीत जिसे तीन मुख्य गायकों ने गाया है। एक हैं मुकेश, आपको बताने हैं बाक़ी दो गायकों के नाम। ३ अंक।
२. एक बेहद मशहूर स्वाधीनता सेनानी के जीवन पर बनी थी यह फ़िल्म। उस सेनानी का नाम बताएँ। २ अंक।
३. फ़िल्म में गीत और संगीत एक ही शख़्स ने दिया है। उनका नाम बताएँ। ४ अंक।
४. इसी फ़िल्म के एक अन्य गीत का मुखड़ा शुरु होता है "जोगी" शब्द से। कल बजने वाले गीत के बोल बताएँ। १ अंक।
पिछली पहेली का परिणाम -
पवन जी एक बार फिर जल्दबाजी कर गए, मगर शरद जी ने संयम से काम लिया. लगता है प्रतिभा जी के मन में भी कोई भय समां गया था जवाब देते समय :)खैर श्याम कान्त जी शायद नए जुड़े है, जवाब सही है जनाब. सभी को बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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PAWAN KUMAR
JOGI TERE PYAAR MEIN (LATA MANGESHKAR)
Bhagat Singh
अवध लाल
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