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सुनो कहानीः शिक्षक दिवस के अवसर पर प्रेमचंद की कहानी 'प्रेरणा'

सुनो कहानीः शिक्षक दिवस के अवसर पर प्रेमचंद की कहानी 'प्रेरणा' का पॉडकास्ट

गुरु गोबिंद दोउ खड़े काके लागूँ पाऊँ,
बलिहारी गुरु आपने गोबिंद दियो बताय

संत कबीर के उपरोक्त शब्दों से भारतीय संस्कृति में गुरु के उच्च स्थान की झलक मिलती है। प्राचीन काल से ही भारतीय बच्चे "आचार्य देवो भवः" का बोध-वाक्य सुन-सुन कर ही बड़े होते हैं। माता पिता के नाम के कुल की व्यवस्था तो सारे विश्व के मातृ या पितृ सत्तात्मक समाजों में चलती है परन्तु गुरुकुल का विधान भारतीय संस्कृति की अनूठी विशेषता है।

आइये इस शिक्षक दिवस पर अपने पथ-प्रदर्शक शिक्षकों, अध्यापकों, आचार्यों और गुरुओं को याद करके उनको नमन करें। शिक्षक दिवस के इस शुभ अवसर पर उन शिक्षकों को हिंद-युग्म का शत शत प्रणाम जिनकी प्रेरणा और प्रयत्नों की वजह से आज हम इस योग्य हुए कि मनुष्य बनने का प्रयास कर सकें।

आवाज़ की ओर से आपकी सेवा में प्रस्तुत है एक शिक्षक और एक छात्र के जटिल सम्बन्ध के विषय में मुंशी प्रेमचंद की मार्मिक कहानी "प्रेरणा"। इस कहानी को स्वर दिया है शोभा महेन्द्रू, शिवानी सिंह एवं अनुराग शर्मा ने।

सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।

नीचे के प्लेयर से सुनें।(प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लिक करें।)(Broadband कनैक्शन वालों के लिए)




(Dial-Up कनैक्शन वालों के लिए)





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आज भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं, तो यहाँ देखें।

#Third Story, Prerana: Munsi Premchand/Hindi Audio Book/2008/4. Voice: Shobha Mahendru, Shivani Singh, Anuraag Sharma

Comments

mamta said…
कहानी बहुत पसंद आई।

शुक्रिया इसे सुनवाने के लिए।
पढ़ी हुई कहानियाँ भी अब सुनने में अच्छी लग रही हैं, अनुराग, शिवानी और शोभा जी तीनों को बधाई, इस प्रस्तुति के लिए
अनुराग जी,

इस बार की आपकी प्रस्तुति विशेष पसंद आई। शोभा जी और शिवानी जी के स्वरों का समायोजन बढ़िया रहा। यह प्रयास भी उम्दा रहा। आगे से आप तीनों स्त्री-पुरूष संवादों को अलग आवाज़ में रिकॉर्ड करके तथा वाचक की आवाज़ अलग आवाज़ में भी रिकॉर्ड करके देखें, शायद सफलता में चार चाँद लग जायें।
शोभा said…
शिक्षक दिवस पर प्रेमचन्द जी की यह कहानी बहुत ही प्रासंगिक लगी। प्रेमचन्द जी ने मानव मन का बहुत सूक्ष्म विश्लेषण किया है। एक-एक शब्द मोती जैसा जड़ा है। जितनी बार सुनो या उतनी बार दिल द्रवित हो जाता है।
अनुराग जी और शिवानी जी ने बहुत सुन्दर पढ़ी है। हिन्द- युग्म को इस प्रयास के लिए बधाई।
अरे वाह, यह तो सुनने में सचमुच बहुत अच्छी लग रही है, सुनने वालों का धन्यवाद तो देना ही पड़ेगा, शोभा जी और शिवानी जी भी धन्यवाद के पात्र है!

बहुत खूब.
shivani said…
शिक्षक दिवस के अवसर पर यह कहानी प्रेरणा बहुत ही उपयुक्त रही !प्रेमचंद जी की ये कहानी बहुत ही शिक्षाप्रद और मार्मिक है !वक़्त और परिस्थितियाँ इंसान को बदलने में देर नहीं लगाती !किस प्रकार एक बालक मोहन सूर्यप्रकाश की प्रेरणा बन गया पढ़ कर बहुत ही अच्छा लगा !शोभा जी और अनुराग जी ने अपनी आवाज़ से कहानी में जान डाल दी है !मेरी ओर से शोभा जी और अनुराग जी को बहुत बहुत शुभकामनायें !
शोभा जी,शिवानी जी,एवं अनुराग जी को बहुत बहुत बधाई.कहानी वाकई बहुत अच्छी और भावपूर्ण लग रही है.
बेहद सुँदर और सार्थक प्रयास
- शुभम्`
- लावण्या
Manju Gupta said…
बहुत सुंदर कहानी और प्रस्तुति ,तीनों वाचकों को बधाई .
Shamikh Faraz said…
मुझे इस पेज पर लिंक नहीं दिखाई दे रहा ही जिससे कहानी सुनी जा सके या डाउनलोड की जा सके. कृपया सुझाव दे कैसे कहानी तक पहुंचू. धन्यवाद.

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