Skip to main content

प्लेबैक इंडिया वाणी (२०) आइय्या , और आपकी बात-- बोल्ड थीम के अनुरूप ही बोल्ड है "आइय्या" का संगीत


संगीत समीक्षा -  आइय्या

दोस्तों पिछले सप्ताह हमने बात की थी अमित त्रिवेदी के “इंग्लिश विन्गलिश” की और हमने अमित को आज का पंचम कहा था. अमित दरअसल वो कर सकते हैं जो एक श्रोता के लिहाज से शायद हम उनसे उम्मीद भी न करें. उन्होंने हमें कई बार चौंकाया है. लीजिए तैयार हो जाईये एक बार फिर हैरान होने के लिए.

जी हाँ आज हम चर्चा कर रहे उनकी एक और नयी फिल्म “आइय्या” का, जिसमें वो लौटे हैं अपने प्रिय गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य के साथ. मुझे लगता है कि अमिताभ भी अमित के साथ जब मिलते हैं तो अपने श्रेष्ठ दे पाते हैं. आईये जानें की क्या है आइय्या के संगीत में आपके लिए.

हाँ वैधानिक चेतावनी एक जरूरी है. दोस्तों ये संगीत ऐसा नहीं है कि आप पूरे परिवार के साथ बैठ कर सुन सकें. हाँ मगर अकेले में आप इसका भरपूर आनंद ले सकते हैं. वैसे बताना हमारा फ़र्ज़ था बाकी आप बेहतर जानते हैं.

खैर बढते हैं अल्बम के पहले गीत की तरफ. ८० के डिस्को साउंड के साथ शुरू होता है “ड्रीमम वेकपम” गीत, जो जल्दी ही दक्षिण के रिदम में ढल जाता है. पारंपरिक नागास्वरम और मृदंग मिलकर एक पूरा माहौल ही रच डालते हैं. ये गीत आपको हँसता भी है गुदगुदाता भी है और कुछ श्रोता ऐसे भी होंगें जो इसे सुनकर सर पीट लेंगें. पर हमारी राय में तो ये गीत बहुत सुनियोजित तरीके से रचा गया है जिसका उद्देश्य सिर्फ मनोरंजन है. शब्दों में जम कर जम्पिन्गम- पम्पिन्गम किया है अमिताभ ने. गायिका सौम्या राव की आवाज़ और अदायगी जबरदस्त है. यकीनन तारीफ के लायक. शरारती शब्द, जबरदस्ती गायकी और उत्कृष्ट संगीत संयोजन इस गीत को तमाम अटकलों के बावजूद एक खास पहचान देते हैं.

अगला गीत सवा डॉलर कुछ हद तक शालीन है, इसे आप अपने बच्चों के साथ बैठकर भी सुन सकते हैं...पर देखा जाए तो ये अल्बम का सबसे “आम” गीत लगता है, सरल लावनी धुन पर थिरकती सुनिधि की आवाज़. “ड्रीमम वेक्पम” के अनूठे अंदाज़ के बाद ये अच्छा और साफ़ सुथरा गीत कुछ कमजोर सा लगता है.

अगले ही गीत से अमित – अमिताभ की ये जोड़ी पूरे जोश खरोश के साथ अपने शरारतों में लौट आते हैं. ये फिल्म का शीर्षक गीत है. फिर एक बार चेता दें बच्चों से दूर रखें इस गीत को....मगर दोस्तों क्या जबरदस्त संयोजन है अमित त्रिवेदी का. एक एक पीस सुनने लायक है. “अगा बाई” गीत में न सिर्फ अमिताभ के शब्द चौंकते हैं, श्यामली खोलगडे और मोनाली ठाकुर की आवाजों में गजब की ऊर्जा और उत्तेजना है जो अश्लील नहीं लगती कहीं भी. निश्चित ही ये गायिकाएं श्रेया और सुनिधि को जबरदस्त टकर देने वाली हैं. अगा बाई एक मस्त मस्त गीत है...एकदम लाजवाब.

अगला गीत “महक भी” में अमित लाये शहनाई के स्वर. गीत शुरू होने से पहले ही अपने सुन्दर वाध्य संरचना से आपको खुद से बाँध लेते हैं. श्रेया की मखमली आवाज़ और पार्श्व में बजती शहनाई...वाह एक बेहद खूबसूरत गीत, मधुर और सुरीला.

 अब देखिये, फिर एक बार सुरीली फुहार के बाद लौटते हैं अमित और अमिताभ अपने शरारत भरी एक और रचना लेकर. यक़ीनन इसे सुनकर आप हँसते हँसते पेट पकड़ लेंगें. इस गीत में कुछ अश्लील सी कोमेडी है, स्नेह कंवलकर और खुद अमिताभ भट्टाचार्य ने बेहद चुटीले अंदाज़ में निभाया है इस गीत को. अब आप को लिज्जत पापड़ के विज्ञापन को देखकर हँसी आये तो इल्जाम दीजियेगा इस गीत को. और क्या कहें.... 

“वाकडा” अलबम का अंतिम गीत है जो दक्षिण के दुल्हे और महाराष्ट्रीयन दुल्हन के मेल के आंकड़े का वाकडा समझा रहा है. गीत सामान्य है मगर शब्द सुनने को प्रेरित करते हैं अमिताभ के. कुल मिलकर “आइय्या” का संगीत बेहद अलग किस्म का है. या तो आप इसे बेहद पसदं करेंगें या बिल्कुल नहीं.

रेडियो प्लेबैक इंडिया इसे इसके नयेपन के लिए दे रहा है ४.३ की रेटिंग.


एक सवाल - गीत "व्हाट टू डू" की थीम पर कुछ वर्षों पहले एक और गीत आया था, वो भी काफी हिलेरियस था, रितेश देखमुख पर फिल्माया वो गीत कौन सा था याद है आपको ? बताईये हमें अपनी टिप्पणियों में 

और अंत में आपकी बात- अमित तिवारी के साथ

Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट