गायिका वर्षा भोसले को श्रद्धांजलि
"ये गाँव प्यारा-प्यारा, ये लवली-लवली गाँव, ये हरियाली पीपल की घनी छाँव, राजा बेटा धरती का प्यारा-प्यारा गाँव...", बरसों बरस पहले जब वर्षा भोसले इस गीत को गाते हुए जिस प्यारे से इस गाँव की कल्पना की होगी, तब शायद ही उन्हें इस बात का इल्म हुआ होगा कि वो कभी अपने सपनों का गाँव नहीं बसा पाएँगी। आज जब वर्षा हमारे बीच नहीं रहीं तो उनका गाया हुआ यही गीत बार-बार मन-मस्तिष्क पर हावी हो रहा है। कल जब तक वो इस दुनिया में थीं तब शायद ही हम में से कोई उन्हें दैनन्दिन जीवन में याद किया होगा, पर उनके जाने के बाद दिल यह सोचने पर ज़रूर मजबूर कर रहा है कि उन्होंने यह भयानक क़दम क्यों उठाया होगा? क्यों मानसिक अवसाद ने उन्हें घेर लिया होगा? होश संभालने से पहले ही पिता से दूर हो जाने का दु:ख उनके कोमल मन को कुरेदा होगा? विश्व की श्रेष्ठ गायिकाओं में से एक आशा भोसले की बेटी होकर भी जीवन में कुछ ख़ास न कर पाने का ग़म सताया होगा? अपनी वैवाहिक जीवन की असफलता ने उनकी बची-खुची आशाओं पर भी पानी फेर दिया होगा? सम्पत्ति को लेकर पारिवारिक अशान्ति से वो तंग आ गई होंगी? अगर इन तमाम सवालों को ज़रा करीब से जानने की कोशिश करें तो शायद हम वर्षा के उस मानसिक दर्द के हमदर्द हो पायेंगे। कल वर्षा भोसले की अत्महत्या की ख़बर सुन कर जैसे दिल दहल गया। 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' की तरफ़ से वर्षा भोसले को भावभीनी श्रद्धांजलि और आशा जी व समस्त मंगेशकर परिवार के सदस्यों के लिए कामना कि ईश्वर उन्हें इस दर्दनाक स्थिति से गुज़रने में शक्ति प्रदान करें।
वर्षा भोसले का जन्म सन् 1956 में हुआ था। बतौर गायिका उन्होंने कुछ हिन्दी फ़िल्मों तथा भोजपुरी व मराठी फ़िल्मों में गीत गाए। वो कहते हैं न कि विशाल वटवृक्ष के नीचे अन्य पेड़ों का उगना मुश्किल होता है, वैसे ही वर्षा के लिए आशा भोसले की बेटी होना वरदान से ज़्यादा अभिषाप सिद्ध हुई। वो जो भी गातीं, उसकी तुलना आशा जी से होतीं। आलम कुछ ऐसा हुआ कि वर्षा ने तंग आकर गाना ही छोड़ दिया। विविध भारती के 'विशेष जयमाला' कार्यक्रम में अपने संगीतकार बेटे हेमन्त और गायिका बेटी वर्षा का ज़िक्र आशा भोसले ने कुछ इस तरह से किया था -- "कोई कोई क्षण ज़िंदगी के ऐसे होते हैं जो भुलाये नहीं जा सकते, बड़े मज़ेदार होते हैं। मेरा लड़का हेमन्त, आप समझते होंगे माँ के लिए बेटा क्या चीज़ होता है, एक दिन वो म्युज़िक डिरेक्टर बन गया और मेरे पास आकर कहने लगा कि ये मेरा गाना है, तुम गाओ। कैसा लगता है न? जो कल तक इतना सा था, आज वो मुझसे कह रहा है कि मेरा गाना गाओ। फिर उसने अपनी बहन, मेरी बेटी वर्षा से कहने लगा कि तुम्हे भी गाना पड़ेगा। वर्षा बहुत शर्मीली है, उसने कहा कि बड़ी मासी इतना अच्छा गाती है, माँ इतना अच्छा गाती है, मैं नहीं गाऊँगी। लेकिन हेमन्त ने बहुत समझाया और उसका पहला गाना रेकॉर्ड हुआ। मैं स्टुडियो पहुँची तो देखा कि लड़की माइक के सामने खड़ी है और उसका भाई वन-टू बोल रहा है। ये क्षण मैं कभी नहीं भूल सकती। ये गाना सुनिये फ़िल्म 'जादू-टोना' का"।
फ़िल्म 'जादू-टोना' में पहली बार गाने के बाद वर्षा भोसले ने कुछ और हिन्दी फ़िल्मों में भी गीत गाये। संगीतकार सोनिक-ओमी के संगीत में फ़िल्म 'भारत के संतान' में दिलराज कौर के साथ "दे दे तू दस पैसे दान", राम लक्ष्मण के संगीत में फ़िल्म 'तराना' में उषा मंगेशकर के साथ "मेरी आँख फ़ड़कती है" और संगीतकार श्यामजी घनश्याम जी के लिए फ़िल्म 'तीन चेहरे' में "हम हैं इस तरह जनाब के लिए जिस तरह जाम है" जैसे गीत गाये जिनमें कोई ख़ास बात न होने की वजह से लोगों ने अनसुने कर दिए। पर दो गीत उन्होंने और ऐसे भी गाये जिनके बोलों पर आज ग़ौर फ़रमाते हैं तो उनकी ज़िंदगी के साथ इनके विरोधाभास का अहसास होता है। एक गीत है किशोर कुमार के साथ फ़िल्म 'लूटमार' का "हँस तू हरदम, ख़ुशियाँ या ग़म, किसी से डरना नहीं, डर डर के जीना नहीं", और दूसरा गीत है अमित कुमार के साथ फ़िल्म 'आख़िरी इंसाफ़' का "यारों कल किसने देखा है, कल को गोली मारो"। और उन्होंने अपने आप को ही गोली मार ली। इन दोनों गीतों में ज़िन्दगी के प्रति आशावादी होने का संदेश है, जबकि वर्षा ने अपनी ज़िंदगी को निराशाओं से घेर लिया।
एक गायिका होने के अलावा वर्षा भोसले एक लेखिका भी थीं। वो लोकप्रिय वेब-पोर्टल 'रेडिफ़' के लिए 1997 से 2003 तक, 'दि संडे ऑबज़र्वर' के लिए 1994 से 1998 तक, और 'जेन्टलमैन' पत्रिका के लिए 1993 में लिखती रहीं। 'दि टाइम्स ऑफ़ इण्डिया' और 'रक्षक' पत्रिका के लिए भी कुछ समय तक लिखीं। उन्होंने एक खेल-लेखक हेमन्त केंकड़े से विवाह किया, पर दुर्भाग्यवश 1998 में उनका तलाक हो गया। 9 सितंबर 2008 (आशा भोसले के जन्मदिन के अगले दिन) वर्षा ने ख़ुदकुशी करने की कोशिश की थी, पर उन्हें बचा लिया गया था। पर इस बार काल के क्रूर हाथों ने उन्हें इस धरती से छीन लिया। आज उनकी मृत्यु की ख़बर "आशा भोसले की बेटी ने आत्महत्या की" के रूप में प्रकाशित हो रहा है। जिस निजी पहचान को न बना पाने की वजह से वो अवसाद से गुज़र रही थीं, वह पहचान उनके जाने के बाद भी दुनिया नहीं दे पा रही हैं। अब भी वो पहले आशा भोसले की बेटी हैं, बाद में वर्षा भोसले। आख़िर क्यों???
वर्षा भोसले को यह सुरीली श्रद्धांजलि हम समाप्त करते हैं उनकी और आशा जी की गाई फ़िल्म 'जुनून' के वनराज भाटिया के संगीत में "सावन की आई बहार रे" गीत को सुनते हुए....
खोज और आलेख: सुजॉय चटर्जी
Comments
बहुत ही दुखद घटना !
वर्षा भोसले जी को विनम्र श्रद्धांजलि !!
ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे !