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शब्दों के चाक पर - 17

"तुम कहाँ हो" और "मेरे सपनों का ताजमहल"

दीप की लौ अभी ऊँची, अभी नीची
पवन की घन वेदना, रुक आँख मीची
अन्धकार अवंध, हो हल्का कि गहरा
मुक्त कारागार में हूं, तुम कहाँ हो
मैं मगन मझधार में हूं, तुम कहाँ हो !


दोस्तों, आज की कड़ी में हमारे दो विषय हैं - "तुम कहाँ हो" और "मेरे सपनों का ताजमहल" है। जीवन के इन दो अलग-अलग पहलुओंकी कहानियाँ पिरोकर लाये हैं आज हमारे विशिष्ट कवि मित्र। पॉडकास्ट को स्वर दिया है अभिषेक ओझा ओर शैफाली गुप्ता ने, स्क्रिप्ट रची है विश्व दीपक ने, सम्पादन व संचालन है अनुराग शर्मा का, व सहयोग है वन्दना गुप्ता का। आइये सुनिए सुनाईये ओर छा जाईये ...

(नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें)


या फिर यहाँ से डाउनलोड करें
"शब्दों के चाक पर" हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते होती है एक नयी चुनौती, रचनात्मकता को संवारने  के लिए मौजूद होती है नयी संभावनाएँ और खुद को परखने और साबित करने के लिए तैयार मिलता है एक और रण का मैदान. यहाँ श्रोताओं के लिए भी हैं कवि मन की कोमल भावनाओं उमड़ता घुमड़ता मेघ समूह जो जब आवाज़ में ढलकर बरसता है तो ह्रदय की सूक्ष्म इन्द्रियों को ठडक से भर जाता है. तो दोस्तों, इससे पहले कि  हम पिछले हफ्ते की कविताओं को आत्मसात करें, आईये जान लें इस दिलचस्प खेल के नियम - 


1. इस साप्ताहिक कार्यक्रम में शब्दों का एक दिलचस्प खेल खेला जायेगा. इसमें कवियों को कोई एक थीम शब्द या चित्र दिया जायेगा जिस पर उन्हें कविता रचनी होगी...ये सिलसिला सोमवार सुबह से शुरू होगा और गुरूवार शाम तक चलेगा, जो भी कवि इसमें हिस्सा लेना चाहें वो रश्मि जी के फेसबुक ग्रुप में यहाँ जुड़ सकते है.

2. सोमवार से गुरूवार तक आई कविताओं को संकलित कर हमारे पोडकास्ट टीम के प्रमुख पिट्सबर्ग से अनुराग शर्मा जी अपने साथी पोडकास्टरों के साथ इन कविताओं में अपनी आवाज़ भरेंगें. और अपने दिलचस्प अंदाज़ में इसे पेश करेगें.

3. हमारी टीम अपने विवेक से सभी प्रतिभागी कवियों में से किसी एक कवि को उनकी किसी खास कविता के लिए सरताज कवि चुनेगी. आपने अपनी टिप्पणियों के माध्यम से यह बताना है कि क्या आपको हमारा निर्णय सटीक लगा, अगर नहीं तो वो कौन सी कविता जिसके कवि को आप सरताज कवि चुनते. 

4. अधिक जानकारी के लिए आप हमारे संचालक विश्व दीपक जी से इस पते पर संपर्क कर सकते हैं-   vdeepaksingh@gmail.com 

Comments

vandana gupta said…
अकेले हैं चले आओ जहाँ हो ………ये गाना कितना फ़िट बैठा है " तुम कहाँ हो " शीर्षक पर ……आप की पूरी टीम बधाई की पात्र है जो इतनी मेहनत करती है ………दो शीर्षकों का संगम सच मे संगम ही बन गया …………बहुत पसन्द आया ये अन्दाज़ भी। मुझे सम्मानित करने के लिये हार्दिक आभार्।
Sajeev said…
bahut badhiya episode
Rajesh Kumari said…
हर बार की तरह ये एपिसोड भी बहुत रोमांचित आह्लादित कर गया कर्णप्रिय आवाज़े बेहतरीन लिपि उत्कृष्ट सम्पादन कुल मिलकर लाजबाब प्रस्तुति मधुर संगीत के साथ इस प्रोग्राम से जुड़े सभी सदस्यों को सभी लेखकों को हार्दिक बधाई वंदना जी को एक प्रभावशाली सरताज रचना के किये विशेष बधाई |
Anju said…
लाजवाब .....!!!!!!!!!!!!!!! ....कविता ....स्क्रिप्ट ....संयोजन ...और आवाज़ का जादू ....अच्छा लगा ...
अंदाज़े -बयाँ बहुत अच्छा लगा ....रेडियो से जुडी हूं , इस के जादू को जानती हूं ..../ सुन कर वो दौर फिर से याद आ गए ..../स्क्रिप्ट ..गीत ....बेहतरीन कुछ करने के प्रयास ......
बधाई ..आपकी पूरी टीम को ....ओर रचनाकारों को ...
Smart Indian said…
सभी कवियों और श्रोताओं का धन्यवाद!

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