Skip to main content

पैप्पी और कदम थिरकाता 'अजब गजब लव'


प्लेबैक वाणी - संगीत समीक्षा - अजब गजब लव 

निर्माता वाशु भगनानी के बेटे जैकी भगनानी नए जोश खरोश के साथ लौटे रहे हैं तेलुगु हिट फिल्म के रिमेक के साथ. फिल्म का नाम है अजब गजब लव, अलबम में संगीत है साजिद वाजिद का, और गीतकारों में हैं प्रिया पांचाल, कौसर मुनीर, और सुखजीत थांडी. आईये नज़र डालें अल्बम में संकलित ४ गीतों पर.
अल्बम की शुरुआत बहुत ही धमाकेदार तरीके से होती है. जबरदस्त रिदम के साथ उठता है गीतबूम बूम बूम. मिका सिंह की दमदार आवाज़ खूब जमती है गीत पर. बीट्स थिरकने पर मजबूर करने वाले हैं. प्रिया के शब्द गीत के अनुरूप ही हैं. निश्चित ही एक चार्ट बस्टर साबित होगा ये गीत.

पहले गीत में ही बढ़िया माहौल बनाने के बाद साजिद वाजिद अपने चिर परिचित रोमांटिक टोन में लौटते हैं गीत तू के साथ. मोहित चौहान की आवाज़ का पीछा करती  वोइलेन की स्वर लहरियाँ बहुत सुहाती है, धुन और आवाज़ की मधुरता के मुकाबले में शब्दों का चुनाव और बेहतर हो सकता था.

गिटार के सुरीले सुरों के खुलता है गीत सुन सोणिये, जिसे इरफ़ान और अंतरा मित्रा ने बहुत खूबसूरती से निभाया है. रियलिटी शो से निकली अंतरा को अब कुछ अच्छे गीत मिलने लगे हैं. कौसर मुनीर के शब्द अच्छे हैं. ऐसे गीत आप लंबी ड्राईव पर चलते हुए अपनी गाडी में आराम से सुन सकते हैं. बहुत बढ़िया साजिद वाजिद.

दविंदर सिंह की आवाज़ में नाच्दे पंजाबी एक सामान्य ढोल बीट का गाना है. अल्बम का शायद सबसे कमजोर गीत. कुल मिलाकर अजब गजब लव में कम गीत हैं मगर दिलचस्प हैं...रेडियो प्लेबैक दे रहा है अल्बम को ३.४ की रेटिंग.

एक सवाल  जैकी बगनानी अब तक कितनी फिल्मों में दिख चुके हैं, बताएँ अपनी टिप्पणियों में हमें....

Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट