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फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – ३

स्वरगोष्ठी – ९२ में आज 
मन्ना डे ने गाया उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ का दादरा
‘बनाओ बतियाँ चलो काहे को झूठी...’ 


‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी लघु श्रृंखला ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ के एक नए अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला में हम कुछ ऐसी ठुमरियों पर चर्चा कर रहे हैं, जिन्हें स्वयं मूल गायक-गायिका ने अथवा किसी फिल्मी पार्श्वगायक-गायिका ने फिल्म में भी गाया है। पिछले दो अंकों में हमने आपसे क्रमशः उस्ताद अब्दुल करीम खाँ और बेगम अख्तर की गायी ठुमरियों के फिल्मी प्रयोग पर चर्चा की थी। आज के अंक में हम ‘आफ़ताब-ए-मौसिकी’ के खिताब से नवाज़े गए उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ के व्यक्तित्व पर चर्चा करेंगे। साथ ही उनके गाये एक दादरा- “बनाओ बतियाँ चलो काहे को झूठी...” और उसके फिल्मी प्रयोग का भी उल्लेख करेंगे।

न्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम दशक से लेकर पिछली शताब्दी के मध्यकाल तक के जिन संगीतज्ञों की गणना हम शिखर-पुरुष के रूप में करते हैं, उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ उन्ही में से एक थे। ध्रुवपद-धमार, खयाल-तराना, ठुमरी-दादरा, सभी शैलियों की गायकी पर उन्हें सिद्धि प्राप्त थी। प्रकृति ने उन्हें घन, मन्द्र और गम्भीर कण्ठ का उपहार तो दिया ही था, उनके शहद से मधुर स्वर श्रोताओं पर रस-वर्षा कर देते थे। फ़ैयाज़ खाँ का जन्म ‘आगरा घराना’ के ध्रुवपद गायकों के परिवार में हुआ था। दुर्भाग्य से फ़ैयाज़ खाँ के जन्म से लगभग तीन मास पूर्व ही उनके पिता सफदर हुसैन खाँ का इन्तकाल हो गया। जन्म से ही पितृ-विहीन बालक को उनके नाना ग़ुलाम अब्बास खाँ ने अपना दत्तक पुत्र बनाया और पालन-पोषण के साथ-साथ संगीत-शिक्षा की व्यवस्था भी की। यही बालक आगे चल कर आगरा घराने का प्रतिनिधि बना और भारतीय संगीत के अर्श पर आफताब बन कर चमका। फ़ैयाज़ खाँ की विधिवत संगीत शिक्षा उस्ताद ग़ुलाम अब्बास खाँ से आरम्भ हुई, जो फ़ैयाज़ खाँ के गुरु और नाना तो थे ही, गोद लेने के कारण पिता के पद पर भी प्रतिष्ठित हो चुके थे। फ़ैयाज़ खाँ के पिता का घराना ध्रुपदियों का था, अतः ध्रुवपद अंग की गायकी इन्हें संस्कारगत प्राप्त हुई।

आगे चल कर फ़ैयाज़ खाँ ध्रुवपद के ‘नोम-तोम’ के आलाप में इतने दक्ष हो गए थे कि संगीत समारोहों में उनके समृद्ध आलाप की फरमाइश हुआ करती थी। उनकी ख्याति के कारण बड़ौदा राज-दरबार में संगीतज्ञ के रूप में उनकी नियुक्ति हुई। १९३८ में उन्हे मैसूर दरबार से “आफताब-ए-मौसिकी” (संगीत के सूर्य) की उपाधि से नवाजा गया। ध्रुवपद और खयाल गायकी में दक्ष होने के साथ-साथ ठुमरी-दादरा गायन में भी वे अत्यन्त कुशल थे। फ़ैयाज़ खाँ ने कलकत्ता (अब कोलकाता) में भैया गनपत राव और मौजुद्दीन खाँ से ठुमरी-दादरा सुना था और संगीत की इस विधा से अत्यन्त प्रभावित हुए थे। ठुमरी के दोनों दिग्गजों से प्रेरणा पाकर उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ ने इस विधा में भी दक्षता प्राप्त की। खाँ साहब ठुमरी और दादरा के बीच उर्दू के शे’र जोड़ कर चार-चाँद लगा देते थे। इसके साथ ही टप्पे की तानों को भी वे ठुमरी गाते समय जोड़ लिया करते थे। आज हम आपको उनका गाया भैरवी का बेहद लोकप्रिय दादरा- ‘बनाओ बतियाँ चलो काहे को झूठी...’ सुनवाते हैं।

भैरवी दादरा : ‘बनाओ बतियाँ चलो काहे को झूठी...’ : उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ



उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ के स्वर में प्रस्तुत भैरवी का यह दादरा श्रृंगार-रस प्रधान है। नायिका नायक से सौतन के घर न जाने की मान-मनुहार करती है, और यही इस दादरा का प्रमुख भाव है। यह दादरा १९६० में प्रदर्शित, देव आनन्द, नूतन और महमूद अभिनीत फिल्म ‘मंज़िल’ में संगीतकार सचिनदेव बर्मन ने प्रयोग किया था। यूँतो इस फिल्म के प्रायः सभी गीत लोकप्रिय हुए थे, किन्तु पार्श्वगायक मन्ना डे के स्वर में प्रस्तुत यह दादरा सदाबहार गीतों की श्रेणी में शामिल हो गया था। फिल्म में यह दादरा हास्य अभिनेता महमूद के लिए मन्ना डे ने पार्श्वगायन किया था। गीत चूँकि महमूद पर फिल्माना था इसलिए बर्मन दादा और मन्ना डे ने इस श्रृंगार प्रधान गीत को अपने कौशल से हास्य गीत के रूप में ढाल दिया। मूल दादरा की पहचान को बनाए रखते हुए गीत को फिल्म में शामिल किया गया था। हाँ, स्थायी के शब्दों में ‘चलो’ के स्थान पर ‘हटो’ अवश्य जोड़ा गया और गीत के अन्तिम भाग में तीनताल का प्रयोग किया गया। लीजिए अब आप इस दादरा का फिल्मी संस्करण सुनिए-

फिल्म – मंज़िल : ‘बनाओ बतियाँ हटो काहे को झूठी...’ : मन्ना डे



इस पारम्परिक दादरा को अन्य गायक-गायिकाओं ने भी स्वर दिया है। एक ही दादरा अलग-अलग स्वरों में अलग-अलग रंग की अनुभूति कराता है। अब हम आपको यही दादरा पाकिस्तान की गायिका ताहिरा सईद की आवाज़ में सुनवाते हैं। ताहिरा सईद अपने समय की सुप्रसिद्ध गायिका मलिका पुखराज की बेटी हैं। इस दादरा को उन्होने अपने नर्म स्वरों में गाया है। उनकी इस प्रस्तुति में आपको गजल गायकी का रंग भी परिलक्षित होगा। आप उनकी आवाज़ में यह दादरा सुनिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।

भैरवी दादरा : ‘बनाओ बतियाँ चलो काहे को झूठी...’ : ताहिरा सईद

आज की पहेली

आज की संगीत पहेली में हम आपको एक पूरब अंग की सुविख्यात गायिका के स्वर में ठुमरी का एक अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। पहेली के सौवें अंक तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला का विजेता घोषित किया जाएगा।



१_ यह ठुमरी किस राग में निबद्ध है?

२_ इस ठुमरी का प्रयोग एक श्वेत-श्याम हिन्दी फिल्म में किया गया था। आप हमें उस फिल्म के संगीतकार का नाम बताइए।


आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के ९४वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। हमसे सीधे सम्पर्क के लिए swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर अपना सन्देश भेज सकते हैं।

पिछली पहेली के विजेता

‘स्वरगोष्ठी’ के ९०वें अंक की पहेली में हमने एक ठुमरी का अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग ‘पीलू’ और दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- गायिका बेगम अख्तर। दोनों प्रश्नों के सही उत्तर एकमात्र प्रतिभागी पटना की अर्चना टण्डन ने दिया है। लखनऊ के प्रकाश गोविन्द ने गायिका को तो ठीक-ठीक पहचाना, किन्तु राग पहचानने में भूल की। इनके अलावा मीरजापुर, उत्तरप्रदेश के डॉ. पी.के. त्रिपाठी ने सूचित किया है कि उनका स्थानान्तरण मीरजापुर से जौनपुर के लिए हो गया है, इसलिए वे दो सप्ताह तक प्रतियोगिता में भाग नहीं ले पाएँगे। अर्चना जी और प्रकाश जी को रेडियो प्लेबैक इण्डिया की ओर से हार्दिक बधाई।

चौथे सेगमेंट के विजेता और उनके प्राप्तांक

चौथे सेगमेंट अर्थात ९०वें अंक की समाप्ति पर प्रतिभागियों के प्राप्तांकों का योग इस प्रकार रहा-

१- क्षिति तिवारी, जबलपुर – १६

२- डॉ. पी.के. त्रिपाठी, मीरजापुर – १५

३- प्रकाश गोविन्द, लखनऊ – १२

४- अर्चना टण्डन, पटना – ४

५- कश्यप दवे, अहमदाबाद – २

इस प्रकार चौथे सेगमेंट की समाप्ति पर प्रथम तीन स्थानों पर क्रमशः क्षिति तिवारी, डॉ. पी.के. त्रिपाठी और प्रकाश गोविन्द रहे। सभी विजेताओं को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से बधाई।

झरोखा अगले अंक का

मित्रों, ‘स्वरगोष्ठी’ के अगले अंक में हम आपको पूरब अंग की दो विख्यात ठुमरी गायिकाओं के व्यक्तित्व पर और उनकी गायी एक बेहद चर्चित ठुमरी पर चर्चा करेंगे। जिस प्रकार आज के अंक में प्रस्तुत किया गया दादरा फिल्म में हास्य अभिनेता पर फिल्माया गया था, उसी प्रकार अगले अंक में प्रस्तुत की जाने वाली ठुमरी भी एक हास्य अभिनेता पर फिल्माया गया है। अगले रविवार को प्रातः ९-३० पर आयोजित आपकी अपनी इस गोष्ठी में आप हमारे सहभागी बनिए। हमें आपकी प्रतीक्षा रहेगी।

कृष्णमोहन मिश्र 

 
'मैंने देखी पहली फिल्म' : आपके लिए एक रोचक प्रतियोगिता
दोस्तों, भारतीय सिनेमा अपने उदगम के 100 वर्ष पूरा करने जा रहा है। फ़िल्में हमारे जीवन में बेहद खास महत्त्व रखती हैं, शायद ही हम में से कोई अपनी पहली देखी हुई फिल्म को भूल सकता है। वो पहली बार थियेटर जाना, वो संगी-साथी, वो सुरीले लम्हें। आपकी इन्हीं सब यादों को हम समेटेगें एक प्रतियोगिता के माध्यम से। 100 से 500 शब्दों में लिख भेजिए अपनी पहली देखी फिल्म का अनुभव radioplaybackindia@live.com पर। मेल के शीर्षक में लिखियेगा ‘मैंने देखी पहली फिल्म’। सर्वश्रेष्ठ तीन आलेखों को 500 रूपए मूल्य की पुस्तकें पुरस्कारस्वरुप प्रदान की जायेगीं। तो देर किस बात की, यादों की खिड़कियों को खोलिए, कीबोर्ड पर उँगलियाँ जमाइए और लिख डालिए अपनी देखी हुई पहली फिल्म का दिलचस्प अनुभव। प्रतियोगिता में आलेख भेजने की अन्तिम तिथि 31अक्टूबर, 2012 है।


 

Comments

faiyaz sahb,manna da aur taahira ji teenon ki aawaz me ise suna.......bda mushkil hai yh kahanaa ki kaun si jyada behatar hai.............thumri me dholak ki thap ek alg special andaz me sunai deti hai. classical sangeet ka gyan nhi mujhe pr..... ab sunkr pahchanne lgi thoda thoda. kitni mehnat krte hain aap log. aap jaise sangeet premiyon ke karan yh zinda hai---rhega aur pidhi dr pidhi aage hastaantarit hota rhega. aap nhi smjhenge ki is anmol dhrohar ko surkshit rkhne me aap kya kr rhe hain! wow ishwr aap sbhi sda khush rkhe.

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