Skip to main content

विदुषी प्रभा अत्रे : ८१वें जन्मदिवस पर स्वराभिनन्दन



स्वरगोष्ठी – ८७ में आज

'जागूँ मैं सारी रैना बलमा...'

पिछले छह दशक की अवधि में भारतीय संगीत जगत की किसी ऐसी कलासाधिका का नाम लेना हो, जिन्होने संगीत-चिन्तन, मंच-प्रस्तुतीकरण, शिक्षण, पुस्तक-लेखन, शोध आदि सभी क्षेत्रों में पूरी दक्षता के साथ संगीत के शिखर को स्पर्श किया है, तो वह एक नाम विदुषी (डॉ.) प्रभा अत्रे का ही है। आश्चर्य होता है कि उनके व्यक्तित्व के साथ इतने सारे उच्चकोटि के गुणों का समावेश कैसे हो जाता है। आज की ‘स्वरगोष्ठी’ में हम विदुषी प्रभा अत्रे को उनके ८१वें जन्मदिवस के अवसर पर उन्हें शत-शत बधाई और शुभकामनाएँ देते हैं। इसके साथ ही आज के अंक में हम आपको उनके स्वर में कुछ मनमोहक रचनाएँ भी सुनवाएँगे।

र्तमान में प्रभा जी अकेली महिला कलासाधिका हैं, जो किराना घराने की गायकी का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। उनके शैक्षिक पृष्ठभूमि में विज्ञान, विधि और संगीत शास्त्र की त्रिवेणी प्रवाहमान है। प्रभा जी का जन्म महाराष्ट्र के पुणे शहर में १३सितम्बर, १९३२ को हुआ था। उनकी माँ इन्दिराबाई और पिता आबासाहेब बालिकाओं को उच्च शिक्षा दिलाने के पक्षधर थे। पारिवारिक संस्कारों के कारण ही आगे चल कर प्रभा अत्रे ने पुणे विश्वविद्यालय से विज्ञान विषयों के साथ स्नातक और यहीं से कानून में स्नातक की पढ़ाई की। इसके अलावा गन्धर्व महाविद्यालय से संगीत अलंकार (स्नातकोत्तर) और फिर सरगम विषय पर शोध कर ‘डॉक्टर’ की उपाधि से अलंकृत हुईं। यही नहीं उन्होने लन्दन के ट्रिनिटी कालेज ऑफ म्युजिक से पाश्चात्य संगीत का अध्ययन किया। कुछ समय तक उन्होने कथक नृत्य की प्रारम्भिक शिक्षा भी ग्रहण की। प्रभा जी के लिए ज्ञानार्जन के इन सभी स्रोतों से बढ़ कर थी, प्राचीन गुरु-शिष्य परम्परा के अन्तर्गत ग्रहण की गई व्यावहारिक शिक्षा।

आज के अंक में विदुषी प्रभा अत्रे के ८१वें जन्मदिवस के उपलक्ष्य में सबसे पहले हम उनका एक अत्यन्त प्रिय राग ‘मारूबिहाग’ प्रस्तुत कर रहे हैं। इस राग में प्रभा जी दो खयाल प्रस्तुत कर रही हैं। विलम्बित एकताल की रचना के बोल हैं- ‘कल नाहीं आए...’ और द्रुत तीनताल की बन्दिश है- ‘जागूँ मैं सारी रतियाँ बलमा...’। 
राग मारूबिहाग : ‘कल नाहीं आए...’ और ‘जागूँ मैं सारी रतियाँ बलमा...’ : डॉ. प्रभा अत्रे
 

गुरु-शिष्य परम्परा के अन्तर्गत प्रभा जी को किराना घराने के विद्वान सुरेशबाबू माने और विदुषी (पद्मभूषण) हीराबाई बरोडकर से संगीत-शिक्षा मिली। कठिन साधना के बल पर उन्होने खयाल, तराना, ठुमरी, दादरा, गजल, भजन आदि शैलियों के गायन में दक्षता प्राप्त की। अपने अर्जित संगीत-ज्ञान को उन्होने कई दिशाओं में बाँटा। मंच-प्रदर्शन के क्षेत्र में अपार सफलता मिली ही, संगीत विषयक पुस्तकों के लेखन से भी उन्हें खूब यश प्राप्त हुआ। उनकी प्रथम प्रकाशित पुस्तक का शीर्षक था ‘स्वरमयी’। इससे पूर्व उनके शोधकार्य का विषय ‘सरगम’ था। डॉ. प्रभा अत्रे ने कई प्रतिष्ठित पदों पर कार्य किया। आकाशवाणी में प्रोड्यूसर, मुम्बई के एस.एन.डी.टी. विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और संगीत-विभागाध्यक्ष, रिकार्डिंग कम्पनी ‘स्वरश्री’ की निदेशक आदि प्रतिष्ठित पदों को उन्होने सुशोभित किया। संगीत के प्रदर्शन, शिक्षण-प्रशिक्षण और संगीत संस्थाओं के मार्गदर्शन में आज भी संलग्न हैं। आइए, प्रभा जी के स्वर में उनकी एक और रचना सुनते हैं। यह राग कलावती की एक मोहक रचना है, जो द्रुत एकताल में निबद्ध है।

राग कलावती : ‘तन मन धन तो पे वारूँ...’ : डॉ. प्रभा अत्रे


डॉ. अत्रे को प्रत्यक्ष सुनना एक दिव्य अनुभूति देता है। उनकी गायकी में राग और रचना के साहित्य की स्पष्ट भवाभिव्यक्ति उपस्थित होती है। स्पष्ट शब्दोच्चार और संगीत के विविध अलंकारों से सुसज्जित रचना उनके कण्ठ पर आते ही हर वर्ग के श्रोताओं मुग्ध कर देती है। देश-विदेश की अनेक संस्थाएँ उन्हें पुरस्कृत और सम्मानित कर चुकी हैं, जिनमे १९९० में भारत सरकार की ओर से ‘पद्मश्री’ सम्मान और १९९१ में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार उल्लेखनीय है। आगामी १३सितम्बर को उनका ८१वाँ जन्मदिवस है। इस अवसर पर ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से अनेकानेक बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित है। अब आज के इस अंक को विराम देने से पहले हम प्रभा जी के स्वर में भैरवी का दादरा प्रस्तुत कर रहे हैं। आप इस रचना का आनन्द लीजिए और अपने साथी कृष्णमोहन मिश्र को आज यहीं विराम लेने की अनुमति दीजिए।


राग भैरवी : ‘बैरन रतियाँ नींद चुराए...’ : डॉ. प्रभा अत्रे
आज की पहेली

‘स्वरगोष्ठी’ की आज की संगीत-पहेली में हम आपको वाद्य संगीत प्रस्तुति का एक अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछेंगे। ९०वें अंक तक सर्वाधिक अंक अर्जित करने वाले प्रतिभागी श्रृंखला के विजेता होंगे।

१- संगीत के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि यह रचना किस राग में निबद्ध है?

२- इस रचना को सुन का वाद्य को पहचानिए और हमें लिख भेजिए उस वाद्य का नाम।

आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के ८९वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अथवा radioplaybackindia@live.com पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता

‘स्वरगोष्ठी’ के ८५वें अंक में हमने आपको सुप्रसिद्ध पार्श्वगायिका आशा भोसले और उस्ताद अली अकबर खाँ की गायन और सरोद वादन की जुगलबंदी का एक अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग मियाँ की मल्हार और दूसरे का सही उत्तर है- गायिका आशा भोसले। दोनों प्रश्नों के सही उत्तर जबलपुर की क्षिति तिवारी, लखनऊ के प्रकाश गोविन्द, पटना की अर्चना टण्डन और मीरजापुर (उ.प्र.) के डॉ. पी.के. त्रिपाठी ने दिया है। चारो विजेताओं को रेडियो प्लेबैक इण्डिया की ओर से हार्दिक बधाई।

झरोखा अगले अंक का

मित्रों, ‘स्वरगोष्ठी’ से जुड़े संगीत जगत के कई कलासाधकों को हमने आपके इस मंच पर आमंत्रित किया था। हमें अत्यन्त प्रसन्नता है कि हमारे इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए इसराज और मयूर वीणा के जाने-माने वादक पण्डित श्रीकुमार मिश्र ने हमसे गज-तंत्र वाद्यों पर चर्चा करने की सहमति दी। अगले अंक में इस विषय पर श्री मिश्र जी से की गई बातचीत का पहला भाग हम आपके लिए प्रस्तुत करेंगे। अगले रविवार को प्रातः ९-३० पर आयोजित अपनी इस गोष्ठी में आप अवश्य पधारिए। हमें आपकी प्रतीक्षा रहेगी।

कृष्णमोहन मिश्र 

Comments

Unknown said…
Kabhi vidushi sulochana brihaspati ji ko sunvayein to bada upkaar hoga
Unknown said…
Kabhi vidushi sulochana brihaspati ji ko sunvayein to bada upkaar hoga
Unknown said…
Kabhi vidushi sulochana brihaspati ji ko sunvayein to bada upkaar hoga
Unknown said…
Kabhi vidushi sulochana brihaspati ji ko sunvayein to bada upkaar hoga

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट