संगीत समीक्षा - राज -३
दोस्तों आजकल सफल फ़िल्में एक ब्रैड की तरफ काम कर रहीं हैं. २००२ में विक्रम भट्ट की फिल्म राज़ अप्रत्याक्षित रूप से सफल रही थी, तभी से रूहानी ताकतों की कहानियाँ दुहराने के लिए भट्ट कैम्प ने इस फिल्म के नाम को एक ब्रैंड का तरफ इस्तेमाल किया, राज़ २ के बाद तृतीय संस्करण भी दर्शकों के सामने आने को है.
राज़ के पहले दो संस्करणों की सफलता का एक बड़ा श्रेय नदीम श्रवण और राजू सिंह के मधुर संगीत का भी था, वहीँ राज़ ३ में भट्ट कैम्प में पहली बार शामिल हो रहे हैं जीत गांगुली, जी हाँ ये वही जीत गांगुली हैं जिनकी जोड़ी थी कभी आज के सफलतम संगीतकार प्रीतम के साथ.
हिंदी फिल्मों में प्रीतम की जो अहमियत है वही अहमियत जीत बंगला फिल्मों में रखते हैं, और निश्चित ही बेहद प्रतिभाशाली संगीतकारों में से एक हैं. आईये देखें कैसा है उनका संगीत राज़ ३ में.
अल्बम का पहला ही गीत आपकी रूह को छू जाता है, जावेद अली की आवाज़ जैसे इसी तरह के सोफ्ट रोमांटिक गीतों के लिए ही बनी है. पर हम आपको बताते चलें कि ये गीत जीत गांगुली ने नहीं बल्कि अतिथि संगीतकार रशीद खान ने स्वरबद्ध किया है. बहुत अधिक नयेपन के अभाव में भी ये सरल और सुहाना सा गीत आपको अच्छा लगेगा, गीत खतम होते होते वोईलन का सुन्दर इस्तेमाल गीत की खूबसूरती को और अधिक बढ़ा देता है.
पैशन से भरे रोमांटिक गीत भट्ट कैम्प की खासियत रहे हैं, इस तरह के गीत आप जहाँ भी जिस मूड में सुन सकते हैं और एन्जॉय कर सकते हैं. गीत गाँगुली का रचा “जिंदगी से” इसी तरह का लाउंज गीत है. शफकत अमानत अली की दमदार आवाज़ में है ये गीत, जिसे बहुत खूब शब्द दिए हैं संजय मासूम ने. “होंठों से मैं तुझको सुनूं, आँखों से तू कुछ सुना, तू अक्स है मैं आईना, फिर क्या है सोचना, एक दूसरे में खोके, एक दूसरे को है पाना”...गीत गांगुली ने रशीद अली के रचे टोन को बरकरार रखा है बखूबी, बखुदा...
भट्ट कैम्प की अल्बम हो और के के की आवाज़ न हो ये जरा मुश्किल है. अगला गीत है “रफ्ता रफ्ता” जो के के की रोकिंग आवाज़ में है, नयेपन के अभाव में भी ये गीत प्रभावित करता है, के के की आवाज़ और सुन्दर ताल संयोजन गीत को सुनने लायक बना देते है. चुटकी की आवाज़ और बांसुरी का प्रयोग बेहद नया लगता है. शब्दों में और थोड़ी सी रचनात्मकता संभव थी.
राज़ के द्रितीय संस्करण का सबसे सफल गीत था, राजू सिंह का स्वरबद्ध “सोनिये” जो सोनू निगम की आवाज़ में था, हो सकता है वही जादू फिर से जगाने का प्रयास किया गया हो, अगले गीत “ओ माई लव” में, पर यहाँ वो बात नहीं बन पायी है.
श्रेया घोषाल की तूफानी आवाज़ में है अंतिम दो गीत. “क्या राज़ है” में उनके साथ हैं जुबिन तो अंतिम गीत “ख्यालों में” उनका सोलो है. दोनों ही गीत सामान्य हैं और कुछ नया नहीं पेश करते. राज़ ३ का संगीत भट्ट कैम्प के अन्य अलबमों की तरह ही मेलोडियस है. मगर अभाव है नयेपन का. रेडियो प्लेबैक इस अल्बम को दे रहा है २.९ की रेटिंग ५ में से.
और अंत में आपकी बात- अमित तिवारी के साथ
दोस्तों आजकल सफल फ़िल्में एक ब्रैड की तरफ काम कर रहीं हैं. २००२ में विक्रम भट्ट की फिल्म राज़ अप्रत्याक्षित रूप से सफल रही थी, तभी से रूहानी ताकतों की कहानियाँ दुहराने के लिए भट्ट कैम्प ने इस फिल्म के नाम को एक ब्रैंड का तरफ इस्तेमाल किया, राज़ २ के बाद तृतीय संस्करण भी दर्शकों के सामने आने को है.
राज़ के पहले दो संस्करणों की सफलता का एक बड़ा श्रेय नदीम श्रवण और राजू सिंह के मधुर संगीत का भी था, वहीँ राज़ ३ में भट्ट कैम्प में पहली बार शामिल हो रहे हैं जीत गांगुली, जी हाँ ये वही जीत गांगुली हैं जिनकी जोड़ी थी कभी आज के सफलतम संगीतकार प्रीतम के साथ.
हिंदी फिल्मों में प्रीतम की जो अहमियत है वही अहमियत जीत बंगला फिल्मों में रखते हैं, और निश्चित ही बेहद प्रतिभाशाली संगीतकारों में से एक हैं. आईये देखें कैसा है उनका संगीत राज़ ३ में.
अल्बम का पहला ही गीत आपकी रूह को छू जाता है, जावेद अली की आवाज़ जैसे इसी तरह के सोफ्ट रोमांटिक गीतों के लिए ही बनी है. पर हम आपको बताते चलें कि ये गीत जीत गांगुली ने नहीं बल्कि अतिथि संगीतकार रशीद खान ने स्वरबद्ध किया है. बहुत अधिक नयेपन के अभाव में भी ये सरल और सुहाना सा गीत आपको अच्छा लगेगा, गीत खतम होते होते वोईलन का सुन्दर इस्तेमाल गीत की खूबसूरती को और अधिक बढ़ा देता है.
पैशन से भरे रोमांटिक गीत भट्ट कैम्प की खासियत रहे हैं, इस तरह के गीत आप जहाँ भी जिस मूड में सुन सकते हैं और एन्जॉय कर सकते हैं. गीत गाँगुली का रचा “जिंदगी से” इसी तरह का लाउंज गीत है. शफकत अमानत अली की दमदार आवाज़ में है ये गीत, जिसे बहुत खूब शब्द दिए हैं संजय मासूम ने. “होंठों से मैं तुझको सुनूं, आँखों से तू कुछ सुना, तू अक्स है मैं आईना, फिर क्या है सोचना, एक दूसरे में खोके, एक दूसरे को है पाना”...गीत गांगुली ने रशीद अली के रचे टोन को बरकरार रखा है बखूबी, बखुदा...
भट्ट कैम्प की अल्बम हो और के के की आवाज़ न हो ये जरा मुश्किल है. अगला गीत है “रफ्ता रफ्ता” जो के के की रोकिंग आवाज़ में है, नयेपन के अभाव में भी ये गीत प्रभावित करता है, के के की आवाज़ और सुन्दर ताल संयोजन गीत को सुनने लायक बना देते है. चुटकी की आवाज़ और बांसुरी का प्रयोग बेहद नया लगता है. शब्दों में और थोड़ी सी रचनात्मकता संभव थी.
राज़ के द्रितीय संस्करण का सबसे सफल गीत था, राजू सिंह का स्वरबद्ध “सोनिये” जो सोनू निगम की आवाज़ में था, हो सकता है वही जादू फिर से जगाने का प्रयास किया गया हो, अगले गीत “ओ माई लव” में, पर यहाँ वो बात नहीं बन पायी है.
श्रेया घोषाल की तूफानी आवाज़ में है अंतिम दो गीत. “क्या राज़ है” में उनके साथ हैं जुबिन तो अंतिम गीत “ख्यालों में” उनका सोलो है. दोनों ही गीत सामान्य हैं और कुछ नया नहीं पेश करते. राज़ ३ का संगीत भट्ट कैम्प के अन्य अलबमों की तरह ही मेलोडियस है. मगर अभाव है नयेपन का. रेडियो प्लेबैक इस अल्बम को दे रहा है २.९ की रेटिंग ५ में से.
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