प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट (१४)
रबिंद्रसंगीत एक विशिष्ट संगीत पद्धति के रूप में विकसित हुआ है। इस शैली के कलाकार पारंपरिक पद्धति में ही इन गीतों को प्रस्तुत करते हैं। बीथोवेन की संगीत रचनाओं(सिम्फनीज़) या विलायत ख़ाँ के सितार की तरह रबिंद्रसंगीत अपनी रचनाओं के गीतात्मक सौन्दर्य की सराहना के लिए एक शिक्षित, बुद्धिमान और सुसंस्कृत दर्शक वर्ग की मांग करता है। १९४१ में गुरूदेव की मृत्यु हो गई परन्तु उनका गौरव और उनके गीतों का प्रभाव अनन्त है। उन्होंने अपने गीतों में शुद्ध कविता को सृष्टिकर्त्ता, प्रकृति और प्रेम से एकीकृत किया है। मानवीय प्रेम प्रकृति के दृश्यों में मिलकर सृष्टिकर्त्ता के लिए समर्पण (भक्ति) में बदल जाता है। उनके 2000 अतुल्य गीतों का संग्रह गीतबितान(गीतों का बागीचा) के रूप में जाना जाता है। (पूरा टेक्स्ट यहाँ पढ़ें )
आईये आज के ब्रोडकास्ट में शामिल होईये संज्ञा टंडन के साथ, रविन्द्र संगीत पर इस चर्चा के पहले भाग में. स्क्रिप्ट है सुमित चक्रवर्ती की और आवाज़ है संज्ञा टंडन की
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रबिंद्रसंगीत एक विशिष्ट संगीत पद्धति के रूप में विकसित हुआ है। इस शैली के कलाकार पारंपरिक पद्धति में ही इन गीतों को प्रस्तुत करते हैं। बीथोवेन की संगीत रचनाओं(सिम्फनीज़) या विलायत ख़ाँ के सितार की तरह रबिंद्रसंगीत अपनी रचनाओं के गीतात्मक सौन्दर्य की सराहना के लिए एक शिक्षित, बुद्धिमान और सुसंस्कृत दर्शक वर्ग की मांग करता है। १९४१ में गुरूदेव की मृत्यु हो गई परन्तु उनका गौरव और उनके गीतों का प्रभाव अनन्त है। उन्होंने अपने गीतों में शुद्ध कविता को सृष्टिकर्त्ता, प्रकृति और प्रेम से एकीकृत किया है। मानवीय प्रेम प्रकृति के दृश्यों में मिलकर सृष्टिकर्त्ता के लिए समर्पण (भक्ति) में बदल जाता है। उनके 2000 अतुल्य गीतों का संग्रह गीतबितान(गीतों का बागीचा) के रूप में जाना जाता है। (पूरा टेक्स्ट यहाँ पढ़ें )
आईये आज के ब्रोडकास्ट में शामिल होईये संज्ञा टंडन के साथ, रविन्द्र संगीत पर इस चर्चा के पहले भाग में. स्क्रिप्ट है सुमित चक्रवर्ती की और आवाज़ है संज्ञा टंडन की
Comments
संज्ञा जी, एक विशेष बात, कविगुरू रवींद्र नाथ ठाकूर की सभी रचनाये उनके ही द्वारा स्वरबद्ध भी की गई और उनके उपयोग की विधी एवं परीपेक्ष भी उन्ही द्वारा निर्धारित किया गया, अब उनकी रचना को गाने/ कविता पाठ करने के लिये भी निती निर्धारित है... वो जिनके आवाज में, सूर और लय तो अवश्य हो साथ ही मिठास और गंभीर/भारी/ वजनदार (जिसे उचित समझे) हो को कविगुरू ज्यादा पसंद किया करते थे... आपकी आवाज उन्हे खूब भाती... शायद कही से सुनकर खुश हो रहे हो!