Skip to main content

प्लेबैक इंडिया वाणी (१४) जलपरी - द डेजर्ट मरमेड, और आपकी बात

संगीत समीक्षा - जलपरी - द डेजर्ट मरमेड




इस सप्ताह प्रदर्शित होने वाली फिल्मों में एक बाल फिल्म है 'जलपरी: The Desert Mermaid".हिंदी फिल्मों में ऐसा कम ही होता है जब बच्चों के लिए बनी किसी फिल्म को बच्चों के साथ साथ व्यस्क दर्शकों का प्यार भी मिले. इसकी एक वजह ये भी है कि बच्चों के लिए बनी फिल्मों को ज़रूरत से ज़्यादा नाटकीय रूप से प्रस्तुत किया जाता है.पिछले कुछ समय से इसमें परिवर्तन आया है और बच्चों की फिल्मों के स्वरुप को बदला है. इसी कड़ी में एक और कड़ी जोड़ती है 'जलपरी'.

जलपरी का निर्देशन करा है 'आई एम कलाम' के निर्देशक नीला माधब पांडा ने.फिल्म कन्या भ्रूण हत्या पर आधारित है जो आज भी भारत के कई राज्यों में की जाती है.फिल्म की कहानी लिखी है दीपक वेंकटेशन ने. इसका संगीत दिया है आशीष चौहान त और MIDIval Punditz के नाम से मशहूर दिल्ली बेस्ड  Indian fusion group ने. इस  fusion group के कलाकार हैं गोरव राणा और तपन राज. इस फिल्म का कांस फिल्म समारोह में प्रदर्शन हो चुका है.


इस फिल्म का पहला गाना है 'बरगद'. इसे गया है गुलाल फिल्म से चर्चा में आये पियूष मिश्रा ने. इस एल्बम का ये सबसे बढ़िया गाना है. इसे बात आप जितनी बार सुनेंगे हर बार कहीं खो जायेंगे. इस गाने को लिखा भी पियूष मिश्रा ने ही है और संगीतबद्ध भी करा है. ये गाना मंत्रमुग्ध कर देता है. इस गाने को सुनकर आपको गुलाल फिल्म का 'ये दुनिया अगर मिल भी जाए' याद आ सकता है.


इस एल्बम का दूसरा गाना हाथ में थारी साजे चूड़ा गाया है  रिंकू ने. इस गाने में मंजीरे और घड़े का खूब इस्तेमाल हुआ है. यह गाना राजस्थानी लोक संगीत पर आधारित है. ठेठ गवनई अंदाज में इस गाने को गाया गया  है.

इस एल्बम में कुल मिलाकर तीन गाने हैं. तीसरा गाना नीली नीली खिली सी दुनिया गाने को बोल दिए हैं शुभा मुद्गल ने. इस गाने के बोल लिखे हैं प्रोतीक मजूमदार ने और संगीत दिया है MIDIval Punditz ने.

इस एल्बम में संगीत और बोल दोनों मिलाकर बेहतरीन हैं. इस एल्बम को रेडिओ प्लेबैक इंडिया देता है ४.८ की रेटिंग ५ में से.




और अंत में आपकी बात- अमित तिवारी के साथ

Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...