मैंने देखी पहली फिल्म
भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों के झरोखे से’ में आप सभी सिनेमा प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। आज माह का दूसरा गुरुवार है और आज बारी है- ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ की। इस द्विसाप्ताहिक स्तम्भ के पिछले अंक में आप श्री शिशिर कृष्ण शर्मा की देखी पहली फिल्म ‘बीस साल बाद’ के संस्मरण के साझीदार रहे। आज मनीष कुमार अपने परिवार वालों से अलग अपनी देखी पहली फिल्म ‘परिन्दा’ का संस्मरण प्रस्तुत कर रहे हैं। यह प्रतियोगी वर्ग की प्रविष्टि है।
दोस्तों के साथ ‘ब्ल्यू लैगून’ देखने का साहस नहीं हुआ : मनीष कुमार
सिनेमा देखना मेरे
लिए कभी लत नहीं बना। शायद ही कभी ऍसा हुआ है कि मैंने कोई फिल्म शो के पहले ही दिन जा कर धक्का-मुक्की करते हुए देख ली हो। पर इसका मतलब ये भी नहीं कि हॉल में जाकर फिल्म देखना अच्छा
नहीं लगता था। बस दिक्कत मेरे साथ यही है कि मन लायक फिल्म नहीं रहने पर मुझे
तीन घण्टे पिक्चर झेल पाना असह्य कार्य लगता है। इसीलिए आजकल काफी तहकीकात करके ही फिल्म देखने जाता हूँ।
पर बचपन की बात दूसरी थी। दरअसल हमारे पिताजी पढ़ाई-लिखाई के साथ परिवार के मनोरंजन का भी खासा ख्याल रखते थे। सो उनकी वजह से हर हफ्ते या फिर दो हफ्तों में एक बार, दो रिक्शों में सवार होकर हमारा पाँच सदस्यों का कुनबा पटना के विभिन्न सिनेमाहॉल- मोना, एलिफिस्टन, अशोक, अप्सरा और वैशाली आदि का चक्कर लगा लेता था। ये सिलसिला तब तक चला, जब तक पापा का तबादला पटना से बाहर नहीं हो गया। १९८३ में रिलीज हुई राजेश खन्ना की ‘अवतार’ सारे परिवार के साथ देखी गई मेरी आखिरी फिल्म थी।
एक बार दसवीं में लड़कों ने स्कूल में फ्री पीरियड का फायदा उठाकर फिल्म देखने की सोची। योजना ये थी कि फ्री पीरियड्स के समय फिल्म देख ली जाए और फिल्म की समाप्ति तक घर पर हाजिरी भी दे दी जाए। अब फिल्म भी कौन सी... ब्रुक शील्ड की ‘ब्ल्यू लैगून’। मन ही मन डर रहे थे कि सही नहीं कर रहे हैं। पर साथियों के जोश दिलाने पर स्कूल से बाहर निकल आए, पर ऐन वक़्त पर मुख्य शहर की ओर जाने वाली बस के पॉयदान पर पैर रखकर वापस खींच लिया। दोस्त बस से पुकारते रहे पर मैं अनमने मन से वापस लौट आया।
उसके बाद फिल्म देखना एक तरह से बन्द ही हो गया। ८९ में इंजीनियरिंग में दाखिला हुआ तो पहली बार घर से निकले। पहले सेमस्टर की शुरुआत में कॉलेज कैंपस से बाहर जाना तो दूर, रैगिंग के डर से हम हॉस्टल के बाहर निकलना भी खतरे से खाली नहीं समझते थे। जाते भी तो कैसे, प्रायः ऐसी कहानियाँ सुनने को मिलती की लोग गए थे फिल्म देखने पर सीनियर्स ने फिरायालाल चौक पर जबरदस्ती का ट्राफिक इंस्पेक्टर बना दिया। यानि खुद का मनोरंजन करने के बजाए दूसरों की हँसी का पात्र बन गए।
खैर, एक महिने के बाद जब रैगिंग का दौर कम हो गया तो हम दोस्तों ने मिलकर एक फिल्म देखने का कार्यक्रम बनाया। पहली बार अकेले किसी फिल्म देखने के आलावा ये मौका छः साल के अन्तराल के बाद सिनेमा हॉल में जाने का था। सीनियर्स से बचने के लिए स्टूडेंट बस की जगह स्टॉफ बस ली और चल दिए, राँची के रतन टॉकीज की ओर। वो फिल्म थी- विधु विनोद चोपड़ा की ‘परिन्दा’। इतने सालों बाद बड़े पर्दे पर फिल्म देखना बड़ा रोमांचक अनुभव रहा। नाना पाटेकर का कसा हुआ अभिनय और माधुरी दीक्षित की मासूमियत भरी खूबसूरती बहुत दिनों तक स्मृति पटल पर अंकित रही। और साथ में छाया रहा इस फिल्म में आशा भोसले और सुरेश वाडकर के स्वरों में गाया हुआ ये युगल गीत- ‘प्यार के मोड़ पे छोड़ोगे जो बाहें मेरी, तुमको ढूँढेगी ज़माने में निगाहें मेरी...’।
गाने की जान आशा ताई का गाया ये मुखड़ा ही था जिसके बोल और धुन सहज ही मन को आकर्षित कर लेती थी।ये वो समय था जब फिल्म जगत ने ही आर.डी. बर्मन को एक चुका हुआ संगीतकार मान लिया गया था। कॉलेज की बस में वापस लौटते वक़्त ये गीत जुबान पर यूँ चिपक गया की क्या कहें..।
और अब हम आपको मनीष कुमार की देखी फिल्म ‘परिन्दा’ का उनका सबसे पसन्दीदा गीत- ‘प्यार के मोड़ पे छोड़ोगे जो बाहें मेरी, तुमको ढूँढेगी ज़माने में निगाहें मेरी...’ सुनवाते हैं। इसके संगीतकार राहुलदेव बर्मन हैं और गीत को स्वर दिया है, आशा भोसले और सुरेश वाडकर ने।
आपको मनीष
जी की अकेले देखी पहली फिल्म का संस्मरण कैसा लगा? हमें अवश्य लिखिएगा।
आप अपनी प्रतिक्रिया radioplaybackindia@live.com
पर
भेज सकते हैं। आप भी हमारे इस आयोजन- ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ में भाग ले सकते हैं। आपका संस्मरण हम रेडियो प्लेबैक इण्डिया के इस
अनुष्ठान में सम्मिलित तो करेंगे ही, यदि हमारे निर्णायकों
को पसन्द आया तो हम आपको पुरस्कृत भी करेंगे। आज ही अपना आलेख और एक चित्र हमे radioplaybackindia@live.com पर मेल करें। जिन्होने
आलेख पहले भेजा है, उन प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपना एक
चित्र भी भेज दें।
प्रस्तुति
: कृष्णमोहन मिश्र
Comments