स्वरगोष्ठी – ८६ में आज
फिल्म संगीत को विविध शैलियों से सजाने वाली कोकिलकंठी गायिका
फिल्म संगीत को विविध शैलियों से सजाने वाली कोकिलकंठी गायिका
संगीत के क्षेत्र में ऐसा उदाहरण बहुत कम मिलता है, जब किसी कलाकार ने मात्र अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए लीक से अलग हट कर एक ऐसा मार्ग चुना हो, जो तत्कालीन देश, काल और परिवेश से कुछ भिन्न प्रतीत होता है। परन्तु आगे चल कर वही कार्य एक मानक के रूप में स्थापित हो जाता है। फिल्म संगीत के क्षेत्र में आशा भोसले इसकी जीती-जागती मिसाल हैं। आगामी ८सितम्बर को विश्वविख्यात पार्श्वगायिका आशा भोसले का ८०वाँ जन्मदिवस है। इस अवसर के लिए आज की ‘स्वरगोष्ठी’ में हमने उनके गाये कुछ राग आधारित गीतों का चयन किया है। ये गीत उनकी बहुआयामी गायकी को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं।
आज की चर्चित पार्श्वगायिका आशा भोसले का जन्म ८सितम्बर, १९३३ को महाराष्ट्र के सांगली में मराठी रंगमंच के सुप्रसिद्ध अभिनेता और गायक दीनानाथ मंगेशकर के घर दूसरी पुत्री के रूप में हुआ था। दीनानाथ जी की बड़ी पुत्री और आशा भोसले की बड़ी बहन विश्वविख्यात लता मंगेशकर हैं, जिनका जन्म २८सितम्बर, १९२९ को हुआ था। दोनों बहनों की प्रारम्भिक संगीत-शिक्षा अपने पिता से ही प्राप्त हुई। अभी लता की आयु मात्र १३ और आशा की ९ वर्ष थी, तभी इनके पिता का देहान्त हो गया। अब परिवार के भरण-पोषण का दायित्व इन दोनों बहनों पर आ गया। अपनी बड़ी बहन लता के साथ आशा भी फिल्मों में अभिनय और गायन करने लगीं। आशा भोसले (तब मंगेशकर) को १९४३ में मराठी फिल्म ‘माझा वाल’ में संगीतकार दत्ता डावजेकर ने गायन का अवसर दिया। इस फिल्म के एक गीत- ‘चला चला नव बाला...’ को उन्होने अकेले आशा से ही नहीं, बल्कि चारो मंगेशकर बहनों से गवाया। भारतीय फिल्म संगीत के इतिहास में यह गीत चारो मंगेशकर बहनों द्वारा गाये जाने के कारण तो दर्ज़ है ही, आशा भोसले के गाये पहले गीत के रूप में भी हमेशा याद रखा जाएगा। मात्र दस वर्ष की आयु में फिल्मों में पदार्पण तो हो गया, किन्तु आगे का मार्ग इतना सरल नहीं था।
आशा जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर हमारी यह चर्चा जारी रहेगी, इस बीच आज की आशा भोसले की गायन क्षमता का एक कम चर्चित पक्ष आपके सम्मुख रखना चाहता हूँ। विश्वविख्यात सरोद-वादक उस्ताद अली अकबर खाँ ने १९९५ में आशा जी को कैलीफोर्निया बुलवाया। खाँ साहब ने सरोद-वादन और गायन की जुगलबन्दी पर एक रिकार्ड बनाने की योजना बनाई थी। इस रिकार्ड में ११ विभिन्न रागों की बन्दिशों को शामिल किया गया था। आशा जी के लिए यह सम्मान की बात थी कि खाँ साहब ने इस कार्य के लिए उन्हें आमंत्रित किया। बाद में इस जुगलबन्दी का यह रिकार्ड सर्वत्र प्रशंसित हुआ और ग्रेमी पुरस्कार के लिए नामांकित भी हुआ। आइए, अब हम इसी रिकार्ड से उस्ताद अली अकबर खाँ के सरोद-वादन और आशा भोसले के गायन की जुगलबन्दी से सुसज्जित राग मियाँ की मल्हार का तराना सुनते हैं। यह तराना तीनताल में निबद्ध है।
राग मियाँ की मल्हार : सरोद-गायन जुगलबन्दी : उस्ताद अली अकबर खाँ और आशा भोसले
१९४८ में संगीतकार हंसराज बहल के निर्देशन में आशा भोसले को पहली बार हिन्दी फिल्म ‘चुनरिया’ का गीत ‘सावन आया आया रे...’ गाने का अवसर मिला। यह गीत उन्होने ज़ोहरा बाई और गीता राय के साथ गाया था। आशा जी से एकल गीत गवाने का श्रेय भी हंसराज बहल को ही दिया जाएगा, जिन्होने १९४९ में फिल्म ‘रात की रानी’ का गीत- ‘हैं मौज में अपने बेगाने, दो चार इधर दो चार उधर...’ गाने का अवसर दिया। १९५० के दशक में उन्हें ए.आर. कुरेशी (विख्यात तबला वादक उस्ताद अल्लारक्खा खाँ), सज्जाद हुसेन, गुलाम मोहम्मद आदि के संगीत निर्देशन में कुछ फिल्में मिली, किन्तु इनमें से अधिकतर फिल्में चली नहीं। इसी बीच आशा जी ने अपने परिवारवालों की इच्छा के विरुद्ध जाकर मात्र १६ वर्ष की आयु में अपने ३१ वर्षीय प्रेमी गणपत राव भोसले से विवाह कर लिया। यह विवाह सफल नहीं रहा और लगभग एक दशक के कलहपूर्ण वैवाहिक जीवन का १९६० में सम्बन्ध-विच्छेद हो गया। इसके साथ ही तत्कालीन पार्श्वगायिकाओं के बीच स्वयं को स्थापित करने का संघर्ष भी जारी था।
आशा जी की संघर्षपूर्ण संगीत-यात्रा को यहाँ पर थोड़ा विराम देकर आइए, सुनते है, उनकी प्रतिभा का अतुलनीय उदाहरण। १९८७ में गीतकार गुलजार, संगीतकार राहुलदेव बर्मन और गायिका आशा भोसले की प्रतिभाओं के मेल से एक अनूठा अल्बम ‘दिल पड़ोसी है’ जारी हुआ था। इस अल्बम का एक गीत ‘भीनी भीनी भोर आई...’ आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। यह रचना राग मियाँ की तोड़ी, तीनताल में बाँधी गई है।
राग मियाँ की तोड़ी : ‘भीनी भीनी भोर आई...’ : स्वर - आशा भोसले
छठे दशक के आरम्भ में पार्श्वगायन के क्षेत्र में गीता दत्त, शमशाद बेगम और लता मंगेशकर का वर्चस्व था। इन गायिकाओं के बीच अपनी पहचान बनाने के लिए आशा भोसले को हर कदम पर परीक्षा के दौर से गुजरना पड़ा। इस दौरान उन्होने १९५२ में दिलीप कुमार अभिनीत फिल्म ‘संगदिल’, १९५३ में विमल राय निर्देशित फिल्म ‘परिणीता’ और १९५४ में राज कपूर की फिल्म ‘बूट पालिश’ के गीतों को अपेक्षाकृत बेहतर गाया था, किन्तु उनकी प्रतिभा को सही पहचान तब मिली जब संगीतकार ओ.पी. नैयर ने १९५६ की फिल्म ‘सी.आई.डी.’ में उन्हें गाने का अवसर दिया। इस फिल्म का एक गीत ‘लेके पहला पहला प्यार...’ आशा भोसले ने मोहम्मद रफी और शमशाद बेगम के साथ मिल कर गाया था। उन दिनों यह गीत गली-गली में गूँजा था। इसी के बाद १९५७ में ओ.पी. नैयर के संगीत से सजी बी.आर. चोपड़ा की फिल्म ‘नया दौर’ में भी आशा भोसले को गाने अवसर मिला। इस फिल्म के प्रदर्शित होते ही आशा भोसले की पहचान प्रथम श्रेणी की गायिकाओं में होने लगी। फिल्म ‘नया दौर’ में आशा भोसले ने मोहम्मद रफी के साथ ‘उड़े जब जब जुल्फें तेरी...’, ‘साथी हाथ बढ़ाना...’, ‘माँग के साथ तुम्हारा...’ तथा शमशाद बेगम के साथ ‘रेशमी सलवार कुर्ता जाली का...’ जैसे लोकप्रिय गीत गाये थे।
आशा भोसले की संगीत-यात्रा की इस संक्षिप्त गाथा को एक बार फिर विराम देकर अब हम आपको उनका गाया एक ऐसा गीत प्रस्तुत कर रहे हैं, जिसे उनके अनुज हृदयनाथ मंगेशकर ने फिल्म ‘लेकिन’ के लिए संगीतबद्ध किया है। १९९१ में प्रदर्शित इस फिल्म के गीत गुलजार ने रचे और इस गीत को हृदयनाथ मंगेशकर ने राग विलासखानी तोड़ी के सुरों से सजाया है। गीत के आरम्भ में आलाप और अन्त में तराना गायन में सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक सत्यशील देशपाण्डे का स्वर है।
राग विलासखानी तोड़ी : फिल्म लेकिन : ‘झूठे नैना बोलें साँची बतियाँ...’ : आशा भोसले और सत्यशील देशपाण्डे
आशा भोसले के जीवन में चार फिल्मों का महत्त्व ‘मील के पत्थर’ के रूप में है। ये फिल्में हैं- नया दौर- १९५७, तीसरी मंज़िल- १९६६, उमराव जान- १९८१ और रँगीला- १९९५। इन फिल्मों के संगीतकार ओ.पी. नैयर, राहुलदेव बर्मन, ख़ैयाम और ए.आर. रहमान के संगीतबद्ध गीतों को गाकर उन्होने फिल्म संगीत के अलग-अलग युगों और शैलियों का प्रतिनिधित्व किया। राहुलदेव बर्मन से तो आगे चल कर १९८० में उन्होने दूसरा विवाह किया और उसे अन्त तक निभाया। संगीतकार रवि के अनेक गीतों को आशा भोसले ने अपना स्वर देकर कालजयी बना दिया। १९५५ की फिल्म ‘वचन’ का गीत- ‘चन्दा मामा दूर के...’ तो आज भी श्रेष्ठ बाल-गीत के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा रवि के संगीत निर्देशन में आशा जी ने घराना, दिल्ली का ठग, गृहस्थी, फूल और पत्थर, काजल आदि फिल्मों में अत्यन्त लोकप्रिय गीतों को स्वर दिया। आइए, अब हम रवि का संगीतबद्ध किया, आशा जी का गाया, फिल्म काजल का भक्ति-गीत- ‘तोरा मन दर्पण कहलाए...’ सुनते हैं। १९६५ में प्रदर्शित इस फिल्म में संगीतकार रवि ने राग दरबारी कान्हड़ा पर आधारित स्वरों में गीत को पिरोया था। तीनताल में निबद्ध इस गीत के भक्ति-रस का आप आस्वादन कीजिए और आशा जी को उनके ८०वें जन्मदिवस पर रेडियो प्लेबैक इण्डिया की ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ अर्पित करते हुए मुझे ‘स्वरगोष्ठी’ के आज के अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
राग दरबारी कान्हड़ा : फिल्म काजल : ‘तोरा मन दर्पण कहलाए...’ : आशा भोसले
आज की पहेली
आज की ‘संगीत-पहेली’ में हम आपको कण्ठ संगीत की एक रचना का अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ९०वें अंक तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला का विजेता घोषित किया जाएगा।
१_ संगीत की यह रचना किस राग में निबद्ध है?
२_ ताल की पहचान कीजिए और हमे ताल का नाम भी बताइए।
२_ ताल की पहचान कीजिए और हमे ताल का नाम भी बताइए।
आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के ८८वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। हमसे सीधे सम्पर्क के लिए swargoshthi@gmail.com पर अपना सन्देश भेज सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ के ८४वें अंक की पहेली में हमने आपको सितार-वादक उस्ताद विलायत खान को एक मंच प्रदर्शन के दौरान एक बन्दिश गाते हुए सुनवाया था और आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- सितार वादक उस्ताद विलायत खाँ और दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- राग हमीर। दोनों प्रश्नों के सही उत्तर लखनऊ के प्रकाश गोविन्द, जबलपुर की क्षिति तिवारी और मीरजापुर (उ.प्र.) के डॉ. पी.के. त्रिपाठी ने दिया है। इन्हें मिलते हैं २-२ अंक। तीनों प्रतिभागियों को रेडियो प्लेबैक इण्डिया की ओर से हार्दिक बधाई।
झरोखा अगले अंक का
मित्रों, ‘स्वरगोष्ठी’ के अगले अंक में रागदारी संगीत की विख्यात विदुषी डॉ. प्रभा अत्रे का हम जन्मदिवस मनाएँगे और उन्हीं का संगीत सुन कर अपनी शुभकामनाएँ अर्पित करेंगे। आप सब संगीत-प्रेमी इस अनुष्ठान में सादर आमंत्रित हैं। अगले रविवार को प्रातः ९-३० बजे आयोजित आपकी अपनी इस गोष्ठी में आप हमारे सहभागी बनिए। हमें आपकी प्रतीक्षा रहेगी।
कृष्णमोहन मिश्र
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