संगीत समीक्षा - हीरोईन
और अंत में आपकी बात- अमित तिवारी के साथ
संवेदनशील विषयों को अपनी समग्रता के साथ परदे पर उतारने के लिए जाने जाते हैं निर्देशक मधुर भंडारकर. तब्बू से लेकर रवीना, प्रियंका तक जितनी भी हेरोईनों ने उनके साथ काम किया है अपने करियर की बेहतरीन प्रस्तुति दी है, ऐसे में जब फिल्म का नाम ही हेरोईन हो, तो दर्शकों को उम्मीद रहेगी कि उनकी फिल्म, माया नगरी में एक अभिनेत्री के सफर को बहुत करीब से उजागर करेगी. जहाँ तक उनकी फिल्मों के संगीत का सवाल है वो कभी भी फिल्म के कथा विषय के ऊपर हावी नहीं पड़ा है. चलिए देखते हैं फिल्म “हेरोईन” के संगीत का हाल –
मधुर की फिल्म “फैशन” में जबरदस्त संगीत देने वाले सलीम सुलेमान को ही एक बार फिर से आजमाया गया है “हेरोईन” के लिए. गीतकार हैं निरंजन आयंगर. आईटम गीतों के प्रति हमारे फिल्मकारों की दीवानगी इस हद तक बढ़ गयी है कि और कुछ हो न हो एक आईटम गीत फिल्म में लाजमी है, ऐसे ही एक आईटम गीत से अल्बम की शुरुआत होती है- हलकट जवानी. मुन्नी और शीला की तर्ज पर एक और थिरकती धुन, मगर हलकट जवानी पूरी तरह से एक बनावटी गीत लगता है. चंद दिनों बाद कोई शायद ही इस गीत को सुनना पसंद करेगा. पर न इसमें गलती सलीम सुलेमान जैसे काबिल संगीतकार जोड़ी की है न सुनिधि के गायन की. कमी उस रवायत की है जो आनन् फानन में कोई भी तीखा अनोखा शब्द युग्म लेकर आईटम गीतों को रचने की जबरदस्ती से पैदा हो चली है. अच्छे संगीत संयोजन के बावजूद गीत में आत्मा नहीं है. अल्बम की एक निराशाजनक शुरुआत है ये गीत.
हालाँकि इस गीत सुनने के बाद अल्बम को लेकर बहुत सी उम्मीदें नहीं जगती मगर फिर भी अगला गीत “साईयाँ” जो कि राहत फ़तेह अली खान की आवाज़ में है उस खोयी हुई उम्मीद में एक चमक जरूर भर देता है. वोयिलन का सुन्दर इस्तेमाल, शब्दों का अच्छा प्रयोग और सलीम सुलेमान की खासियत से भरा संयोजन इस गीत में दर्द और मासूमियत भरता है. राहत की आवाज़ में वही चिर परिचित सोज़ है, जो इस गीत को और भी असरकारक बना देता है.
अदिति सिंह शर्मा की रोबीली आवाज़ में “मैं हेरोईन हूँ” शायद एल्बम का सबसे शानदार गीत है. इस गीत में नयापन भी है, ताजगी भी. रिदम और आवाज़ का तालमेल भी जबरदस्त है. निरंजन के शब्द भी असरदायक हैं. गीत में जो किरदार दर्शाना चाह रहा है वो अदिति की आवाज़ में जम कर सामने आता है. लंबे समय तक याद रखे जाने वाला गीत है ये.
“मैं हेरोईन हूँ” को सुनने के तुरंत बाद जब आप श्रेया की हलकी हस्की टोन वाली आवाज़ में “ख्वाहिशें’ सुनते हैं तो एक बार फिर सलीम सुलेमान की तारीफ किये बिना नहीं रह पायेंगें. हर शुक्रवार को बदलते समीकरणों में एक हेरोईन के संघर्ष, उसकी पीड़ा को दर्शाया था कभी गुलज़ार साहब ने भी फिल्म “सितारा” में, (वो गीत कौन सा था ये हमारे श्रोता हमें सुझाएँ). यहाँ ख्वाह्शों के इसी सफर को बखूबी पेश किया है श्रेया ने अपनी आवाज़ में. शब्द अच्छे जरूर है पर थोड़ी सी मेहनत और हुई होती तो शायद ये गीत एक मील का पत्थर साबित होता, बहरहाल इस रूप में भी ये बेहद कारगर है यक़ीनन.
आखिरी गीत “तुझपे फ़िदा” बेनी दयाल और श्रद्धा पंडित के स्वरों में है, यहाँ फिर वही बनावटीपन है गीत में. एक बेअसरदार गीत. कुल मिलाकर “मैं हेरोईन हूँ”, “ख्वाहिशें” और “साईयाँ” एल्बम के बेहतर गीत हैं, सलीम सुलेमान की इस कोशिश को रेडियो प्लेबैक २.८ की रेटिंग दे रहा है ५ में से. आपकी राय क्या है, हमें अवगत कराएँ.
मधुर की फिल्म “फैशन” में जबरदस्त संगीत देने वाले सलीम सुलेमान को ही एक बार फिर से आजमाया गया है “हेरोईन” के लिए. गीतकार हैं निरंजन आयंगर. आईटम गीतों के प्रति हमारे फिल्मकारों की दीवानगी इस हद तक बढ़ गयी है कि और कुछ हो न हो एक आईटम गीत फिल्म में लाजमी है, ऐसे ही एक आईटम गीत से अल्बम की शुरुआत होती है- हलकट जवानी. मुन्नी और शीला की तर्ज पर एक और थिरकती धुन, मगर हलकट जवानी पूरी तरह से एक बनावटी गीत लगता है. चंद दिनों बाद कोई शायद ही इस गीत को सुनना पसंद करेगा. पर न इसमें गलती सलीम सुलेमान जैसे काबिल संगीतकार जोड़ी की है न सुनिधि के गायन की. कमी उस रवायत की है जो आनन् फानन में कोई भी तीखा अनोखा शब्द युग्म लेकर आईटम गीतों को रचने की जबरदस्ती से पैदा हो चली है. अच्छे संगीत संयोजन के बावजूद गीत में आत्मा नहीं है. अल्बम की एक निराशाजनक शुरुआत है ये गीत.
हालाँकि इस गीत सुनने के बाद अल्बम को लेकर बहुत सी उम्मीदें नहीं जगती मगर फिर भी अगला गीत “साईयाँ” जो कि राहत फ़तेह अली खान की आवाज़ में है उस खोयी हुई उम्मीद में एक चमक जरूर भर देता है. वोयिलन का सुन्दर इस्तेमाल, शब्दों का अच्छा प्रयोग और सलीम सुलेमान की खासियत से भरा संयोजन इस गीत में दर्द और मासूमियत भरता है. राहत की आवाज़ में वही चिर परिचित सोज़ है, जो इस गीत को और भी असरकारक बना देता है.
अदिति सिंह शर्मा की रोबीली आवाज़ में “मैं हेरोईन हूँ” शायद एल्बम का सबसे शानदार गीत है. इस गीत में नयापन भी है, ताजगी भी. रिदम और आवाज़ का तालमेल भी जबरदस्त है. निरंजन के शब्द भी असरदायक हैं. गीत में जो किरदार दर्शाना चाह रहा है वो अदिति की आवाज़ में जम कर सामने आता है. लंबे समय तक याद रखे जाने वाला गीत है ये.
“मैं हेरोईन हूँ” को सुनने के तुरंत बाद जब आप श्रेया की हलकी हस्की टोन वाली आवाज़ में “ख्वाहिशें’ सुनते हैं तो एक बार फिर सलीम सुलेमान की तारीफ किये बिना नहीं रह पायेंगें. हर शुक्रवार को बदलते समीकरणों में एक हेरोईन के संघर्ष, उसकी पीड़ा को दर्शाया था कभी गुलज़ार साहब ने भी फिल्म “सितारा” में, (वो गीत कौन सा था ये हमारे श्रोता हमें सुझाएँ). यहाँ ख्वाह्शों के इसी सफर को बखूबी पेश किया है श्रेया ने अपनी आवाज़ में. शब्द अच्छे जरूर है पर थोड़ी सी मेहनत और हुई होती तो शायद ये गीत एक मील का पत्थर साबित होता, बहरहाल इस रूप में भी ये बेहद कारगर है यक़ीनन.
आखिरी गीत “तुझपे फ़िदा” बेनी दयाल और श्रद्धा पंडित के स्वरों में है, यहाँ फिर वही बनावटीपन है गीत में. एक बेअसरदार गीत. कुल मिलाकर “मैं हेरोईन हूँ”, “ख्वाहिशें” और “साईयाँ” एल्बम के बेहतर गीत हैं, सलीम सुलेमान की इस कोशिश को रेडियो प्लेबैक २.८ की रेटिंग दे रहा है ५ में से. आपकी राय क्या है, हमें अवगत कराएँ.
Comments