Skip to main content

संगीत समीक्षा : गुजारिश - संगीत निर्देशन में भी अव्वल साबित हुए संजय लीला भंसाली...तुराज़ के शब्दों ने रचा एक अनूठा संसार

दोस्तों आज टी एस टी मैं आप मुझे देखकर हैरान हो रहे होंगें, दरअसल सुजॉय छुट्टी पर हैं, और मैंने वी डी को पटा कर ये मौका ढूंढ लिया कि मैं आपको उस अल्बम के संगीत के बारे में बता सकूँ जिसने मेरे दिलो जेहन पर इन दिनों जादू सा कर दिया है.

जब बात संगीत की चलती है, और जब कोई मुझसे पूछता है कि मुझे किस तरह का संगीत पसंद है तो मैं बड़ी उलझन में फंस जाता हूँ, क्योंकि मुझे लगभग हर तरह का संगीत पसंद आता है, पुराने, नए, शास्त्रीय, हिप होप, ग़ज़ल सभी कुछ तो सुनता हूँ मैं, फिर किसे कहूँ कि ये मुझे नापसंद नहीं....खैर पसंद भी कई तरह की होती है, कुछ गीतों के शब्द हमें भा जाते हैं (मसलन गुलाल) तो कुछ उसके खालिस संगीत संयोजन की वजह से मन को लुभा जाते (जैसे रोबोट और अजब प्रेम की गजब कहानी) हैं....हाँ पर ऐसी अल्बम्स तो मैं उँगलियों पे गिन सकता हूँ जिसने मुझे संगीत की सम्पूर्ण संतुष्ठी दी है. ऐसा संगीत जिसे सुन तन मन और आत्मा भी संतुष्ट हो जाए.....संजय लीला बंसाली एक ऐसे निर्देशक हैं, जिनकी फ़िल्में रुपहले पर्दे पर कविता लिखती है, वो शुद्ध भारतीय सोच के निर्देशक हैं जो बिना गीत संगीत के फिल्मों की कल्पना नहीं करते (ब्लैक एक अपवाद है). मुझे उनकी फिल्मों का बेसब्री से इंतज़ार रहता है क्योंकि उनकी दो फिल्मों का संगीत (हम दिल दे चुके सनम और देवदास) मेरे “सम्पूर्ण संतुष्ठी अल्बम” की श्रेणी में निश्चित ही आता है. दोनों ही फिल्मों में इस्माईल दरबार का संगीत था, देवदास के बाद कुछ मतभेदों के चलते निर्देशक-संगीतकार की ये जोड़ी अलग हो गयी, जो अगर साथ रहती तो शायद हमें और भी बहुत से मास्टर पीस अल्बम्स सुनने को मिल सकते थे. ब्लैक बिना गीत संगीत के बनी भारतीय फिल्म थी, जो कामियाब भी रही, पर संजय लौट आये अपने नैसर्गिक फॉर्म में “संवरिया” के साथ. मोंटी का था संगीत इसमें जिन्होंने देवदास का शीर्षक संगीत भी रचा था. संगीत के हिसाब से अल्बम बुरी तो नहीं थी, पर संजय के अन्य फिल्मों के टक्कर की भी नहीं थी. इसी फिल्म में हमें संजय का एक नया रूप दिखा जब एक गीत को उन्होंने खुद संगीतबद्ध किया “थोड़े बदमाश हो तुम”. एक लंबे अंतराल के बाद संजय लौटे हैं उसी जेनर की फिल्म लेकर जिसमें उन्हें महारथ हासिल है. ख़ामोशी, देवदास, ब्लैक आदि सभी फ़िल्में व्यक्तिगत अक्षमताओं (शारीरिक और मानसिक) से झूझते और उनपर विजय पाते किरदारों पर है. “गुज़ारिश” भी उसी श्रेणी में आती है, और बतौर संगीतकार संजय लीला बंसाली ने इस बार पूरी तरह से कमान संभाली है....ऐसे में कुछ शंकाएं संभव है, मगर उनकी फिल्मों से अपेक्षाएं हमेशा ही बढ़ चढ कर रहती है, वो कुछ भी कम स्तरीय करेंगें ऐसी इस जीनियस से उम्मीद नहीं की जा सकती.....चलिए इस लंबी भूमिका के बाद अब जरा “गुज़ारिश" के संगीत की चर्चा की जाए.

बरसते पानी की आवाज़ और पार्श्व से आ रहे कुछ संवादों से अल्बम की शुरूआत होती है. ये है फिल्म का शीर्षक गीत, के के की डूबी और डुबो देने वाली आवाज़ में “इसमें तेरी बाहों में मर जाऊं...” सुनकर वाकई मर जाने का जी करता है....सचमुच किसी गीत में इतनी मासूम गुज़ारिश, शब्द जैसे भेद जाते हैं गहरे तक...और के के .....मेरे ख्याल से वो इस कालजयी गीत के लिए एक अदद राष्ट्रीय सम्मान का हक तो रखते ही हैं. वोइलिन के स्वरों में इतना दर्द बहुत अरसे बाद सुनाई दिया है.....ऐ एम् तुराज़ की बतौर गीतकार ये शायद पहली फिल्म होगी, मगर उनका आगाज़ बहुत ही शानदार है. इस पहले गीत से ही संजय अपने साथ सुनने वालों को जोड़ लेते हैं.

गीत - गुज़ारिश


“सौ ग्राम जिंदगी” जब शुरू होता है तो “यादें” (सुभाष घई कृत) का शीर्षक गीत याद आता है जो हरिहरन ने गाया था...नगमें हैं किस्से हैं....पर अंतरे तक आते आते कुणाल गांजावाला इस गीत को अपने नायाब गायन से एक अलग ही मुकाम पर ले जाते हैं....शब्द सुनिए – देर तक उबाली है, प्याली में डाली है, कड़वी है नसीब सी, ये कॉफी गाढ़ी काली है...चमच्च भर चीनी हो बस इतनी सी मर्जी है.....वाह....यहाँ गीतकार हैं विभु पूरी, एक और नयी खोज जो निश्चित ही बधाई के हकदार हैं. संगीत संयोजन यहाँ भी जबरदस्त है. कम से कम वाध्य हैं पर जो हैं उनको संजय ने बहुत ही “संभाल के खर्चा” है. LIFE IS GOOD....सुनिए...

गीत - सौ ग्राम ज़िंदगी


तीसरा गीत “तेरा जिक्र” तो जैसे पूरी तरह से एक कविता (गीतकार तरुज़) है, जिसमें हल्का सा सूफी अंदाज़ भी पिरोया गया है, शैल के साथ राकेश पंडित ने दिया है सूफी स्टाईल में. “तेरा जिक्र है या इत्र है, जब जब करता हूँ महकता हूँ....”. अलग अंदाज़ का गीत है और एक दो बार सुनते ही नशे की तरह सर चढ जाता है. चौथा गीत “सायबा” गोवा के किसी क्लब में ले चलेगा आपको, वैभवी जोशी ने गहरे भाव से इसे गाया है, संगीत संयोजन और शब्द यहाँ भी उत्कृष्ट है (तारुज़). फ्रांसिस कास्तिलेनो और शैल ने कोरस की भूमिका निभायी है यहाँ, जो गीत को और रंग भरा बनाता है. अल्बम के अधिकतर गीतों की तरह ये गीत भी एक अंतरे का है, संजय ने इस तरह के छोटे छोटे गीतों का प्रयोग ख़ामोशी, HDDCS, और देवदास में भी किये हैं.

गीत - तेरा ज़िक्र


गीत - सायबा


“जागती आँखों में भी अब कोई सोता है....जब कोई नहीं होता, तब कोई होता है...” के के की आवाज़ में इतनी गहराई है कि ऑंखें बंद करके सुनो तो मन उड़ने लगता है, ये भी एक छोटा सा मगर सुंदर सा गीत है. छटा गीत “उडी” एक अलग ही कलेवर का है, और अल्बम के बहतरीन गीतों में से एक है, सुनिधि चौहान की मदमस्त आवाज़ और गोवा के लोक रंग का तडका, यक़ीनन “उडी” आपको लंबे समय तक याद रहेगा...

गीत - जाने किसके ख्वाब


गीत - उड़ी


“कह न सकूँ मैं इतना प्यार” में शैल एक बार फिर सुनाई देते हैं. पियानो की स्वरलहरियों में प्रेम की बेबसी कहीं कहीं देवदास के “वो चाँद जैसी लड़की” की याद दिला जाती है. अच्छा गाया है. दिल से गाया है मन को छूता है. अगला गीत हर्षदीप कौर की आवाज़ में हैं, रियल्टी शोस से निकली इस लड़की की आवाज़ में गहराई है, यहाँ भी शब्द बहुत खूबसूरत है, कहीं कहीं गुलज़ार साहब याद आ जाते हैं – चाँद की कटोरी है, रात ये चटोरी है....वाह...”रिश्ते झीने मलमल के”, “मोहब्बत का स्वटर”, “हाथ का छाता” जैसे शब्द युग्म वाकई सिहरन सी उठा जाते है. गीतकार विभु पूरी को बधाई. सेक्सोफोन का एक पीस है इंटरल्यूड में, सुनिए क्या खूब है. एक और शानदार गीत.

गीत - कह न सकूँ


गीत - चाँद की कटोरी


“दायें बाएं” में एक बार फिर के के को सुनकर सकून मिलता है, यहाँ गीटार है पार्श्व में, मधुर रोमांस की तरंगें, जहाँ दर्द भी सोया सोया है, उभरता है मगर जैसे चाहत उसे फिर सुला देती हो....प्यार के सुरीले अहसास को मधुरता से सहलाता है ये गीत. “धुंधुली धुंधली शाम” अंतिम गीत है....पंछियों के स्वर, झील का किनारा....डूबती शाम, एक पूरा चित्र आँखों के सामने उभर आता है.....”तुम्हारे बाद हमारा हाल कुछ ऐसा है..कि जैसे साज़ के सारे तार टूट जाते हैं....” मुझे न जाने क्यों रबिन्द्र नाथ टैगोर याद आ गए. शंकर महादेवन ने संभाला है यहाँ माईक.....बहरहाल...

गीत - दाएँ बाएँ


गीत - धुंधली धुंधली


"गुज़ारिश" मेरी राय में इस वर्ष की सबसे बढ़िया अल्बम है....शायद “ओमकारा” के बाद ये पहली अल्बम है जिसने मुझे वो “सम्पूर्ण संतुष्टी” दी है. (“मैं” शब्द इसलिए इस्तेमाल कर रहा हूँ क्योंकि मैं नहीं जानता कि आप मेरी इस राय से सहमत होंगे या नहीं) वैसे तो टी एस टी के वाहक तन्हा जी और सुजॉय जी ने रेटिंग बंद करवा दी है है पर फिर भी मैं इस अल्बम को ५/५ की रेटिंग देना चाहूँगा.....आप सब भी सुनिए और बताईये कि आपको कैसे लगे “गुज़ारिश” के गीत.

Comments

सजीव बेटा
आशीर्वाद
नए गीत पुराने गीतों से बहुत निराले है
आज के युवा पीड़ी पसंद बहुत करेगी
धन्यवाद
मुझे तो यह एलबम बिलकुल पसंद नहीं आया. सारे के सारे गीत एक खास मूड के उदासी भरे लगते हैं, और एकरसता से भरे हुए हैं. किसी भी गीत को दोबारा सुनने की इच्छा ही नहीं हुई. ये किसी खास एलबम के लिए तो ठीक हो सकते हैं, मगर किसी हिन्दी फ़िल्म के लिहाज से ठीक नहीं जहाँ एक एलबम में 1-2 सेड सांग, 3-4 मस्ती और धूमधड़ाके वाले सांग, और 1-2 आइटम सांग जरूरी हैं. ये सारे गाने गुजारिश फ़िल्म के थीम के लिहाज से लिखे गए हैं, इसलिए, ये गाने अलग से चल पाएंगे इसमें संदेह है. सिनेमा के गीत-संगीत को पॉपुलर भी होना चाहिए. विशिष्ट बोल अथवा संगीत के बल पर सिनेमाई संगीत नहीं चलता. - पर मेरा ये व्यक्तिगत आकलन है जो पूरा फेल भी हो सकता है!
रवि जी सही है ये गीत आपको एक बार में कभी अच्छे नहीं लगेंगें, पर थोडा समय दीजिए, एक बार ये आपके दिल में बस गए तो फिर कभी नहीं निकलेंगें, ये मेरा दावा है.
अरे इन सबको बाद में सुनूंगी.सुजॉय! तुम्हारे चरण कहाँ है? नही...नही..बता ही दो. बड़ी भारी भूल हो गई बाबु! माफ कर दो.कान पकड़ रखे हैं मैंने.देख लो सच्ची.एक हाथ से टाइप कर रही हूँ. १५ अक्टूबर को तुम्हारा जन्मदिन था. पाबला भैया के ब्लॉग पर जस्ट देखा है.सो.....माफ कर दो और देर से ही सही मेरी ओर से जन्मदिन की शुभकामनाये स्वीकार कर लो प्लीज़.यूँ भी पांच दिन का बच्चा ज्यादा चुन चुन नही कर सकता तो आओ तुम्हे गले लगा कर प्यार करू एक प्यारी सी पप्पी तुम्हारे माथे पर.
लम्बी उम्र हो और जीवन में खूब उन्नति करो.अच्छे बेटे बनो,पति भी ,पिता भी और संगीत प्रेमी तो हो ही इस अलख को जगाये रखना.
प्यार
ऐसिच है तुम्हारी इंदु दी ...सॉरी सॉरी....सॉरी
Anonymous said…
Thanks for the wonderful music review. Liked all the songs in the album a lot !
- Kuhoo

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट