ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 364/2010/64
मानव मन पर नवचेतना और नई ताज़गी का संचार करने हर वर्ष आता है ऋतुराज बसंत। प्रकृति मानो नींद से जाग उठती है और चारों तरफ़ बहार ही बहार छा जाती है। पीले सरसों के लहलहाते खेत अपने पूरे शबाब पर होते हैं जैसे किसी ने पीले रंग की चादर चढ़ा दिया हो दूर दूर तक। तभी तो बसंत ऋतु के पहले दिन, जिसे हम बसंत पंचमी के रूप में मनाते हैं, लोग पीले कपड़े पहनते हैं और ऋतुराज का स्वागत करते हैं। सर्दियों की वजह से जो पशु, पक्षी, कीट, पतंगे हमारी नज़रों से ओझल हो गये थे, वो भी जैसे ख़ुश होकर एक साथ बाहर निकल पड़ते हैं, चारों तरफ़ कलरव, चहचहाहट की मधुर ध्वनियाँ गूंजने लगती है। और इंसान भी जैसे झूम उठते हैं, नाच उठते हैं, गा उठते हैं। आज मुझे रतलाम निवासी शिव चौहान 'शिव' की लिखी हुई कविता का ज़िक्र करने का मन हो रहा है, जिसमें उन्होने कहा है -
बसंत मदमस्त हुई, बयार खिल आए,
टेंसुओं के फूल सेमल सुधा की,
बूंदें टपकें, अमलतस के फूल लहरें,
सरसों के खेतों ने पीली चादर ओढ़ी।
महुआ ने मादकता छोड़ी,
अमुआँ गाए, बौराए,
कूक उठी कोयल भी
पिया मिलन को दिल आकुले।
इस बसंती मौसम को और भी ज़्यादा रंगीन बनाता है गीत संगीत। और आज हमने अपनी इस 'गीत रंगीले' शृंखला के लिए जिस गीत को चुना है वह है एक बेहद मस्ती भरा, छेड़ छाड़ वाला समूह गीत। इस तरह के गीत गाँव के खेतों खलिहानों में ग्रामवासी गाया करते हैं। कम से कम हमारी फ़िल्मों में ऐसा ही कुछ दिखाया जाता है। फ़िल्म 'राजा और रंक' का यह गीत है मोहम्मद रफ़ी, लता मंगेशकर और साथियों की आवाज़ों में, "संग बसंती, अंग बसंती, रंग बसंती छा गया, मस्ताना मौसम आ गया"।
'राजा और रंक' १९६८ की फ़िल्म थी, जिसका निर्माण प्रसाद प्रोडक्शन्स के बैनर तले हुआ था। के. पी. आत्मा निर्देशित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे संजीव कुमार, कुमकुम, नज़ीमा, निरुपा रॊय, अजीत प्रमुख। आनंद बक्शी के गीत और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का संगीत था इस फ़िल्म में। इस फ़िल्म के गानें बेहद मक़बूल हुए थे जिनमें शामिल हैं रफ़ी साहब का गाया "ओ फिरकी वाली तू कल फिर आना", लता जी के गाए "मेरा नाम है चमेली", "तू कितनी अच्छी है ओ माँ", तथा लता-रफ़ी का गाया आज का यह झूमता हुआ गीत। दोस्तों, इस गीत को सुनते हुए बसंत ऋतु का पूरा नज़ारा हमारी आँखों के सामने आ जाता है। शब्दों में और संगीत में वह शक्ति होती है कि किसी भी तरह के जज़्बात और वातावरण को जीवन्त किया जा सकता है, जैसा कि इस गीत ने किया है। इस गीत के कई पहलू हैं। पहला तो यही कि बसन्त के आ जाने से जो ख़ुशी की लहर पूरे गाँव में दौड़ गई है, उसका वर्णन है। अब देखिए, बात हो रही है बसन्त की, लेकिन उसी में नायक नायिका के आँचल की तुलना सावन के झूलों के साथ कर रहा है। आगे वह यह भी कहता है कि नायिका उसका दिल कुछ उसी तरह से चुरा ले गई है जिस तरह से बसन्त में सरसों के पीले फूल हमारा मन मोह लेती है। इस तरह की छेड़ छाड़ के बाद, गीत के आख़िरी अंतरे में गीत में एक देश भक्ति का रंग भी समा जाता है जब देश में हर तरफ़ ख़ुशियों की लहर दौड़ाने की बातें होती है। चलिए अब आप ख़ुद ही मज़ा लीजिए इस थिरकते हुए गीत का। ज़बरदस्त ऒर्केस्ट्रेशन है इस गीत में, जिसके लिए लक्ष्मी-प्यारे हमेशा से जाने जाते हैं, इस गीत में भी उनके उसी अंदाज़ का नज़ारा मिलता है। आइए सुनें।
क्या आप जानते हैं...
कि लता मंगेशकर ने सब से ज़्यादा गानें संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के लिए गाए हैं।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. शास्त्रीय रंग में रंगे इस गीत के पहली चार पंक्तियों में ये शब्द है -"संग" -३ अंक.
2. दो गायकों के गाये इस युगल गीत में कौन कौन हैं गायक-२ अंक.
3. शंकर जयकिशन के संगीतबद्ध इस गीत के गीतकार कौन हैं- २ अंक.
4. फिल्म के नाम में इस ऋतू का भी नाम है जिस पर ये शृंखला आधारित है, नाम बताएं-२ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
शरद जी के ३ और अवध जी के २ अंक जुड़े, इन्द्रनील जी एकदम सही कहा आपने, इंदु जी क्या बात है, आपने तो दिल जीत लिया. दिलीप जी आपने नियमों की उल्लंगना की आपको अंक नहीं दिए जा सकते :)
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
मानव मन पर नवचेतना और नई ताज़गी का संचार करने हर वर्ष आता है ऋतुराज बसंत। प्रकृति मानो नींद से जाग उठती है और चारों तरफ़ बहार ही बहार छा जाती है। पीले सरसों के लहलहाते खेत अपने पूरे शबाब पर होते हैं जैसे किसी ने पीले रंग की चादर चढ़ा दिया हो दूर दूर तक। तभी तो बसंत ऋतु के पहले दिन, जिसे हम बसंत पंचमी के रूप में मनाते हैं, लोग पीले कपड़े पहनते हैं और ऋतुराज का स्वागत करते हैं। सर्दियों की वजह से जो पशु, पक्षी, कीट, पतंगे हमारी नज़रों से ओझल हो गये थे, वो भी जैसे ख़ुश होकर एक साथ बाहर निकल पड़ते हैं, चारों तरफ़ कलरव, चहचहाहट की मधुर ध्वनियाँ गूंजने लगती है। और इंसान भी जैसे झूम उठते हैं, नाच उठते हैं, गा उठते हैं। आज मुझे रतलाम निवासी शिव चौहान 'शिव' की लिखी हुई कविता का ज़िक्र करने का मन हो रहा है, जिसमें उन्होने कहा है -
बसंत मदमस्त हुई, बयार खिल आए,
टेंसुओं के फूल सेमल सुधा की,
बूंदें टपकें, अमलतस के फूल लहरें,
सरसों के खेतों ने पीली चादर ओढ़ी।
महुआ ने मादकता छोड़ी,
अमुआँ गाए, बौराए,
कूक उठी कोयल भी
पिया मिलन को दिल आकुले।
इस बसंती मौसम को और भी ज़्यादा रंगीन बनाता है गीत संगीत। और आज हमने अपनी इस 'गीत रंगीले' शृंखला के लिए जिस गीत को चुना है वह है एक बेहद मस्ती भरा, छेड़ छाड़ वाला समूह गीत। इस तरह के गीत गाँव के खेतों खलिहानों में ग्रामवासी गाया करते हैं। कम से कम हमारी फ़िल्मों में ऐसा ही कुछ दिखाया जाता है। फ़िल्म 'राजा और रंक' का यह गीत है मोहम्मद रफ़ी, लता मंगेशकर और साथियों की आवाज़ों में, "संग बसंती, अंग बसंती, रंग बसंती छा गया, मस्ताना मौसम आ गया"।
'राजा और रंक' १९६८ की फ़िल्म थी, जिसका निर्माण प्रसाद प्रोडक्शन्स के बैनर तले हुआ था। के. पी. आत्मा निर्देशित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे संजीव कुमार, कुमकुम, नज़ीमा, निरुपा रॊय, अजीत प्रमुख। आनंद बक्शी के गीत और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का संगीत था इस फ़िल्म में। इस फ़िल्म के गानें बेहद मक़बूल हुए थे जिनमें शामिल हैं रफ़ी साहब का गाया "ओ फिरकी वाली तू कल फिर आना", लता जी के गाए "मेरा नाम है चमेली", "तू कितनी अच्छी है ओ माँ", तथा लता-रफ़ी का गाया आज का यह झूमता हुआ गीत। दोस्तों, इस गीत को सुनते हुए बसंत ऋतु का पूरा नज़ारा हमारी आँखों के सामने आ जाता है। शब्दों में और संगीत में वह शक्ति होती है कि किसी भी तरह के जज़्बात और वातावरण को जीवन्त किया जा सकता है, जैसा कि इस गीत ने किया है। इस गीत के कई पहलू हैं। पहला तो यही कि बसन्त के आ जाने से जो ख़ुशी की लहर पूरे गाँव में दौड़ गई है, उसका वर्णन है। अब देखिए, बात हो रही है बसन्त की, लेकिन उसी में नायक नायिका के आँचल की तुलना सावन के झूलों के साथ कर रहा है। आगे वह यह भी कहता है कि नायिका उसका दिल कुछ उसी तरह से चुरा ले गई है जिस तरह से बसन्त में सरसों के पीले फूल हमारा मन मोह लेती है। इस तरह की छेड़ छाड़ के बाद, गीत के आख़िरी अंतरे में गीत में एक देश भक्ति का रंग भी समा जाता है जब देश में हर तरफ़ ख़ुशियों की लहर दौड़ाने की बातें होती है। चलिए अब आप ख़ुद ही मज़ा लीजिए इस थिरकते हुए गीत का। ज़बरदस्त ऒर्केस्ट्रेशन है इस गीत में, जिसके लिए लक्ष्मी-प्यारे हमेशा से जाने जाते हैं, इस गीत में भी उनके उसी अंदाज़ का नज़ारा मिलता है। आइए सुनें।
क्या आप जानते हैं...
कि लता मंगेशकर ने सब से ज़्यादा गानें संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के लिए गाए हैं।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. शास्त्रीय रंग में रंगे इस गीत के पहली चार पंक्तियों में ये शब्द है -"संग" -३ अंक.
2. दो गायकों के गाये इस युगल गीत में कौन कौन हैं गायक-२ अंक.
3. शंकर जयकिशन के संगीतबद्ध इस गीत के गीतकार कौन हैं- २ अंक.
4. फिल्म के नाम में इस ऋतू का भी नाम है जिस पर ये शृंखला आधारित है, नाम बताएं-२ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
शरद जी के ३ और अवध जी के २ अंक जुड़े, इन्द्रनील जी एकदम सही कहा आपने, इंदु जी क्या बात है, आपने तो दिल जीत लिया. दिलीप जी आपने नियमों की उल्लंगना की आपको अंक नहीं दिए जा सकते :)
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
sautan ksautan ke sang raat beetaaeee kahe karat ab jhoothi btiya
इस गीत को भीमसेन जोशीजी और मन्ना डे जी ऩे गया था
लिखा किसने ? छोडिये भी ,किसी पर्वतराज ऩे लिखा हो हमे क्या ?
नम्बर थोड़े ही कटवाने हैं गुरुजीओं से
पोते की-बोर्ड को तबला बनाये रखते हैं ,सो फैंक मारी अपन ऩे भी
ये दोनों उस्ताद है ना अपने प्रश्नों में गडबड करते ही रहते हैं सो हमने सोचा ...........
हा हा हा
सच में आपका कोई सानी नहीं है.
हिंट देने की कितनी अच्छी शैली है आपकी.
पर अभी भी किसी और की हाजिरी नहीं लग पाई है.
अवध लाल