ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 375/2010/75
समानांतर सिनेमा की बात चल रही हो तो ऐसे में फ़िल्मकार मुज़फ़्फ़र अली का ज़िक्र करना बहुत ज़रूरी हो जाता है। मुज़फ़्फ़र अली, जिन्होने 'गमन', 'उमरावजान', 'अंजुमन' जैसी फ़िल्मों का निर्माण व निर्देशन किया, पटकथा और संवाद में भी मह्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके अलावा समानांतर सिनेमा के दो और प्रमुख स्तंभ जिनके नाम मुझे इस वक़्त याद आ रहे हैं, वो हैं गोविंद निहलानी और श्याम बेनेगल। वैसे आज हम ज़िक्र मुज़फ़्फ़र अली साहब का ही कर रहे हैं, क्योंकि आज जिस गीत को हमने चुना है वह है फ़िल्म 'गमन' का। १९७८ की इस फ़िल्म को लोगों ने ख़ूब सराहा था। अपनी ज़िंदगी को सुधारने संवारने के लिए लखनऊ निवासी ग़ुलाम हुसैन (फ़ारुख़ शेख़) बम्बई आकर काम करने का निश्चय कर लेता है, अपनी बीमार माँ और पत्नी (स्मिता पाटिल) को पीछे लखनऊ में ही छोड़ कर। बम्बई आने के बाद उसका करीबी दोस्त लल्लुलाल तिवारी (जलाल आग़ा) उसके टैक्सी धोने के काम पर लगा देता है। काफ़ी जद्दोजहद करने के बाद भी ग़ुलाम इतने पैसे नहीं जमा कर पाता जिससे कि वह लखनऊ एक बार वापस जा सके। उधर लल्लुलाल भी अपनी परेशानियों से परेशान है। कई सालों से बम्बई में रहने के बावजूद वह अपनी प्रेमिका यशोधरा (गीता सिद्धार्थ) के लिए कोई ढंग का मकान किराए पे लेने में असमर्थ है, और वह एक ऐसी चाली में रहता है जिसे बम्बई नगर निगम तोड़ने वाली है। क्या होता है ग़ुलाम और लल्लुलाल के साथ, यही है 'गमन' की कहानी। महानगर की ज़िंदगी को बहुत ही सच्चाई के साथ चित्रित किया गया है इस फ़िल्म में और इसी फ़िल्म का तो एक गीत ही यही कहता है कि "सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यों है, इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यों है?" ख़ैर, आज हम इस ग़ज़ल को तो नहीं सुनने जा रहे, लेकिन ऐसा ही एक ख़ूबसूरत गीत जिसे गाया है छाया गांगुली ने। ग़ुलाम हुसैन बम्बई आ जाने के बाद उसकी पत्नी स्मिता पाटिल रात की तन्हाई में उदास बैठी हुई है, और पार्श्व में यह गीत गूंज उठता है। गीत को इतने असरदार तरीक़े से गाया गया है कि सुन कर जैसे लगता है कि वाक़ई किसी की याद में दिल रो रहा हो! मख़दूम मोहिउद्दिन के बोल है और जयदेव का संगीत।
फ़िल्म 'गमन' के इस गीत के लिए गायिका छाया गांगुली को सर्वश्रेष्ठ गायिका का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था। इसी से जुड़ी यादें बता रही हैं छाया जी विविध भारती के एक कार्यक्रम में - "इससे पहले मुझे ग़ज़ल गाने का कोई तजुर्बा नहीं था। इस अवार्ड से मुझे प्रोत्साहन मिला और अच्छे से अच्छा गाने का। यह उन्ही (जयदेव) की मेहनत और कोशिश का परिणाम है। उसी साल १९७९ को 'गमन' के लिए 'बेस्ट म्युज़िक डिरेक्टर' का अवार्ड भी मिला उनको। मैंने कभी सोचा नहीं था कि एक दिन फ़िल्म में गाउँगी क्योंकि उस तरह से कभी सोचा नहीं था। जयदेव जी बहुत ही उदार और मृदुभाषी थे। नए कलाकारों का हौसला बढ़ाते थे। उन्हे साहित्य, संगीत और कविता से बहुत लगाव था। गीत की एक पंक्ति को लेकर सिंगर से अलग अलग तरह से उसे गवाते थे। उनके पास जाने से ऐसा लगता है कि नर्वस हो जाउँगी। उनका घर मेरे ऒफ़िस के नज़दीक ही था। मैं ऒल इंडिया रेडियो में काम करती थी। तो उनका जब बुलावा आया तो पहले दिन तो मैं गई भी नहीं। फिर दूसरे दिन उनके सहायक प्यारेलाल जी बुलाने आए थे। तब मैं गई। वो सामनेवाले से इस तरह से बात करते थे 'that he will make you feel very much at ease'. उनके संगीत में भारतीय संगीत की मेलडी भी है, साथ ही मांड की लोक शैली भी झलकती है। कहीं ना कहीं उनके गीतों में भक्ति रस भी मिल जाता है। मेरा एक ऐल्बम निकला था 'भक्ति सुधा' के नाम से, जिसमें उनके भजन थे। उच्चारण सीखने के लिए वो मुझे पंडित नरेन्द्र शर्मा के पास ले गए। उन्हे साहित्य का ज्ञान था, पर फिर भी वो मुझे पंडित जी के पास ले गए ताकि मुझे उनसे कुछ सीखने का मौका मिले। उनसे बहुत कुछ सीखने का मौका मिला।" तो चलिए दोस्तों, इस ख़ूबसूरत गीत को सुना जाए!
क्या आप जानते हैं...
कि गीतकार अंजान का असली नाम लालजी पान्डेय था और उनका जन्म बनारस में २८ अक्तुबर १९३० को हुआ था।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. मुखड़े में शब्द है -"हिलोर", गीत पहचानें-३ अंक.
2. किस महान साहित्यकार की कृति पर आधारित है ये फिल्म- २ अंक.
3. जिस गीतकार ने इसे रचा है उनके पुत्र भी इंडस्ट्री के नामी गीतकारों में हैं, मूल गीतकार का नाम बताएं-२ अंक.
4. फिल्म के संगीतकार भारतीय शास्त्रीय संगीत के शिरोमणी है, कौन हैं -२ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
शरद जी स्वागत है फिर आपका, इंदु जी, संगीता जी और पदम जी को बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
समानांतर सिनेमा की बात चल रही हो तो ऐसे में फ़िल्मकार मुज़फ़्फ़र अली का ज़िक्र करना बहुत ज़रूरी हो जाता है। मुज़फ़्फ़र अली, जिन्होने 'गमन', 'उमरावजान', 'अंजुमन' जैसी फ़िल्मों का निर्माण व निर्देशन किया, पटकथा और संवाद में भी मह्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके अलावा समानांतर सिनेमा के दो और प्रमुख स्तंभ जिनके नाम मुझे इस वक़्त याद आ रहे हैं, वो हैं गोविंद निहलानी और श्याम बेनेगल। वैसे आज हम ज़िक्र मुज़फ़्फ़र अली साहब का ही कर रहे हैं, क्योंकि आज जिस गीत को हमने चुना है वह है फ़िल्म 'गमन' का। १९७८ की इस फ़िल्म को लोगों ने ख़ूब सराहा था। अपनी ज़िंदगी को सुधारने संवारने के लिए लखनऊ निवासी ग़ुलाम हुसैन (फ़ारुख़ शेख़) बम्बई आकर काम करने का निश्चय कर लेता है, अपनी बीमार माँ और पत्नी (स्मिता पाटिल) को पीछे लखनऊ में ही छोड़ कर। बम्बई आने के बाद उसका करीबी दोस्त लल्लुलाल तिवारी (जलाल आग़ा) उसके टैक्सी धोने के काम पर लगा देता है। काफ़ी जद्दोजहद करने के बाद भी ग़ुलाम इतने पैसे नहीं जमा कर पाता जिससे कि वह लखनऊ एक बार वापस जा सके। उधर लल्लुलाल भी अपनी परेशानियों से परेशान है। कई सालों से बम्बई में रहने के बावजूद वह अपनी प्रेमिका यशोधरा (गीता सिद्धार्थ) के लिए कोई ढंग का मकान किराए पे लेने में असमर्थ है, और वह एक ऐसी चाली में रहता है जिसे बम्बई नगर निगम तोड़ने वाली है। क्या होता है ग़ुलाम और लल्लुलाल के साथ, यही है 'गमन' की कहानी। महानगर की ज़िंदगी को बहुत ही सच्चाई के साथ चित्रित किया गया है इस फ़िल्म में और इसी फ़िल्म का तो एक गीत ही यही कहता है कि "सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यों है, इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यों है?" ख़ैर, आज हम इस ग़ज़ल को तो नहीं सुनने जा रहे, लेकिन ऐसा ही एक ख़ूबसूरत गीत जिसे गाया है छाया गांगुली ने। ग़ुलाम हुसैन बम्बई आ जाने के बाद उसकी पत्नी स्मिता पाटिल रात की तन्हाई में उदास बैठी हुई है, और पार्श्व में यह गीत गूंज उठता है। गीत को इतने असरदार तरीक़े से गाया गया है कि सुन कर जैसे लगता है कि वाक़ई किसी की याद में दिल रो रहा हो! मख़दूम मोहिउद्दिन के बोल है और जयदेव का संगीत।
फ़िल्म 'गमन' के इस गीत के लिए गायिका छाया गांगुली को सर्वश्रेष्ठ गायिका का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था। इसी से जुड़ी यादें बता रही हैं छाया जी विविध भारती के एक कार्यक्रम में - "इससे पहले मुझे ग़ज़ल गाने का कोई तजुर्बा नहीं था। इस अवार्ड से मुझे प्रोत्साहन मिला और अच्छे से अच्छा गाने का। यह उन्ही (जयदेव) की मेहनत और कोशिश का परिणाम है। उसी साल १९७९ को 'गमन' के लिए 'बेस्ट म्युज़िक डिरेक्टर' का अवार्ड भी मिला उनको। मैंने कभी सोचा नहीं था कि एक दिन फ़िल्म में गाउँगी क्योंकि उस तरह से कभी सोचा नहीं था। जयदेव जी बहुत ही उदार और मृदुभाषी थे। नए कलाकारों का हौसला बढ़ाते थे। उन्हे साहित्य, संगीत और कविता से बहुत लगाव था। गीत की एक पंक्ति को लेकर सिंगर से अलग अलग तरह से उसे गवाते थे। उनके पास जाने से ऐसा लगता है कि नर्वस हो जाउँगी। उनका घर मेरे ऒफ़िस के नज़दीक ही था। मैं ऒल इंडिया रेडियो में काम करती थी। तो उनका जब बुलावा आया तो पहले दिन तो मैं गई भी नहीं। फिर दूसरे दिन उनके सहायक प्यारेलाल जी बुलाने आए थे। तब मैं गई। वो सामनेवाले से इस तरह से बात करते थे 'that he will make you feel very much at ease'. उनके संगीत में भारतीय संगीत की मेलडी भी है, साथ ही मांड की लोक शैली भी झलकती है। कहीं ना कहीं उनके गीतों में भक्ति रस भी मिल जाता है। मेरा एक ऐल्बम निकला था 'भक्ति सुधा' के नाम से, जिसमें उनके भजन थे। उच्चारण सीखने के लिए वो मुझे पंडित नरेन्द्र शर्मा के पास ले गए। उन्हे साहित्य का ज्ञान था, पर फिर भी वो मुझे पंडित जी के पास ले गए ताकि मुझे उनसे कुछ सीखने का मौका मिले। उनसे बहुत कुछ सीखने का मौका मिला।" तो चलिए दोस्तों, इस ख़ूबसूरत गीत को सुना जाए!
क्या आप जानते हैं...
कि गीतकार अंजान का असली नाम लालजी पान्डेय था और उनका जन्म बनारस में २८ अक्तुबर १९३० को हुआ था।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. मुखड़े में शब्द है -"हिलोर", गीत पहचानें-३ अंक.
2. किस महान साहित्यकार की कृति पर आधारित है ये फिल्म- २ अंक.
3. जिस गीतकार ने इसे रचा है उनके पुत्र भी इंडस्ट्री के नामी गीतकारों में हैं, मूल गीतकार का नाम बताएं-२ अंक.
4. फिल्म के संगीतकार भारतीय शास्त्रीय संगीत के शिरोमणी है, कौन हैं -२ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
शरद जी स्वागत है फिर आपका, इंदु जी, संगीता जी और पदम जी को बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
क्या तो गज़ब असर है इसका .
अब तो लगता है
जैसे ये ग़ज़ल /धुन सिर्फ
और सिर्फ छाया गांगुली
की आवाज़ के लिए ही बनी थी ....
अवध लाल
अवध लाल
sachin da kaha karte the 'jaidev hamesa geeton ke saral dhun ko tedha bana dete hain jise gayak -gayika ko khasa muskilon ka samna karana padata tha'
aapke madhyam se ham jaidev ko sun sake iske liye bahut bahut dhanwad.
agala jawab pt. ravishankar hai. waie jaydev sahab bhi maehar -seniya gharane se sangeet ki talim li thi (ustad aliakbar khan se sarod ).isi gharene se pt.ravishankar ,sachin da , pancham da aadi kayi nami sangeetkaron ne sangeet ki talim li hai.