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न जाने क्यों होता है ये जिंदगी के साथ...कि कुछ गीत कभी दिलो-जेहन से उतरते ही नहीं

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 372/2010/72

लीग से हट के फ़िल्मों की बात करें तो ऐसी फ़िल्मों में बासु चटर्जी का योगदान उल्लेखनीय रहा है। मध्यम वर्गीय परिवारों की छोटी छोटी ख़ुशियों, तक़लीफ़ों और उनकी ज़िंदगियों को असरदार तरीके से प्रस्तुत करने में बासु चटर्जी और ऋषिकेश मुखर्जी का अच्छा ख़ासा नाम रहा है। आज हम '१० गीत समानांतर सिनेमा के' शृंखला में जिस फ़िल्म क गीत सुनेंगे, उसे बी. आर. चोपड़ा ने बनायी थी और बासु दा का निर्देशन था। यह फ़िल्म थी १९७५ की 'छोटी सी बात'। याद है ना आपको अमोल पालेकर की वो भोली अदाएँ, और साथ में विद्या सिंहा और अशोक कुमार। क्या कहा, याद नहीं? चलिए हम आपको इस फ़िल्म की थोड़ी भूमिका बता देते हैं। अरुण (अमोल पालेकर) एक शर्मीला क़िस्म का लड़का, जो बम्बई में अकाउंटैण्ट का काम करता है, प्रभा (विद्या सिंहा) नाम की लड़की से इश्क़ लड़ाने के सपने देखा करता है। लेकिन वह कभी प्रभा से अपनी दिल की बात नहीं कह पाता। उधर नागेश (असरानी) अरुण को उकसाता है कि वह 'रोमांस स्पेशियलिस्ट' जुलियस नागेन्द्रनाथ (अशोक कुमार) से प्रेम शास्त्र की तालीम ले प्रभा को हासिल करने के लिए। इस तरह से हास्यप्रद मोड़ों से गुज़रती हुई कहानी आगे बढ़ती है। इस तरह के भोले भाले हास्य किरदर अमोल पालेकर बख़ूबी निभाते थे। 'गोलमाल' एक और ऐसी फ़िल्म थी। ख़ैर, आज तो 'छोटी सी बात' की बारी है। तो आइए आज इस फ़िल्म से सुना जाए लता मंगेशकर की आवाज़ में फ़िल्म का शीर्षक गीत, "न जाने क्यो होता है यह ज़िंदगी के साथ, अचानक यह मन किसी के जाने के बाद, करे फिर उसकी याद छोटी छोटी सी बात"। हमें उम्मीद ही नहीं, पूरा यक़ीन है कि आपको भी यह गीत उतना ही पसंद होगा जितना कि मुझे और सजीव जी को है। सलिल चौधरी का संगीत और योगेश की गीत रचना। दोस्तों, फ़िल्म 'आनंद' का गीत सुनवाते हुए हमने यह ज़िक्र किया था कि योगेश ऐसे गीतकार रहे हैं जिन्होने अपने गीतों में शुद्ध हिंदी भाषा का बहुत ही सुंदरता से प्रयोग किया, जो सुनने में अत्यंत कर्णप्रिय बन पड़े। और आज का गीत भी उन्ही में से एक है। युं तो योगेश जी ने कई संगीतकारों के साथ काम किया पर सब से ज़्यादा काम उन्होने संगीतकार सलिल चौधरी के साथ किया, और ऐसा किया कि हर गीत अमर हो गया।

दोस्तों, बात जब योगेश साहब की छिड़ ही चुकी है तो क्यों ना उन्ही के बारे में कुछ और बातें की जाए। विविध भारती के एक मुलाक़ात में योगेश जी ने अपने जीवन का हाल सुनाया था, तो चलिए उन्ही की ज़ुबानी जान लें उनके शुरुआती दिनों का हाल। "मेरे पिताजी की मृत्यु के बाद मुझे लखनऊ छोड़ना पड़ा। हमारे एक आत्मीय संबम्धी बम्बई में फ़िल्म लाइन में थे, सोचा कि कहीं ना कहीं लगा देंगे, पर ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ। बल्कि मेरा एक दोस्त जो मेरे साथ क्लास-५ से साथ में है, वह मेरे साथ बम्बई आ गया। उसी ने मुझसे कहा कि तुम्हे फ़िल्म-लाइन में ही जाना है। यहाँ आकर पहले ३ सालों तक तो भटकते रहे। ३ सालों तक कई संगीतकारों से 'कल आइए परसों आइए' ही सुनता रहा। ऐसे करते करते एक दिन रोबिन बनर्जी ने मुझे बुलाया और कहा कि एक लो बजट फ़िल्म है, जिसके लिए मैं गानें बना रहा हूँ। एक साल तक हम गानें बनाते रहे और गानें स्टॊक होते गए। तो जब 'सखी रॊबिन' फ़िल्म के लिए निर्माता ने गानें मँगवाए, एक ही दिन में ६ गानें उन्हे पसंद आ गए क्योंकि गानें हमारे पास स्टॊक में ही थे, और हर गाने के लिए २५ रुपय मिले।" तो इस तरह से शुरु हुई थी योगेश जी की फ़िल्मी यात्रा। आज के प्रस्तुत गीत के संगीत के बारे में यही कह सकते हैं कि सलिल दा ने इस तरह का वेस्टर्ण रीदम कई गीतों में इस्तेमाल किया है, एक तरफ़ गीत के बोल भारतीय शास्त्रीय संगीत के आधार पर खड़े हैं, लेकिन जो रीदम है, या ऒर्केस्ट्रेशन है उसमें लाइट वेस्टर्ण म्युज़िक सुनाई देता है। भारतीय और पाश्चात्य शास्त्रीय संगीत, दोनों में ही माहिर थे सलिल दा। तो दोस्तों, आइए अब गीत का आनंद उठाया जाए योगेश जी कहे इन शब्दों के साथ कि "मेरे गीत गाते रहना, मेरे गीत गुनगुनाते रहना, मैं अगर भूल भी जाऊँ गीतों का सफ़र, तुम मुझे याद दिलाते रहना"!



क्या आप जानते हैं...
कि श्याम सागर के संगीत निर्देशन में मन्ना डे के ग़ैर फ़िल्मी ऐल्बम 'मयूरपंखी सपने' में योगेश ने दो गीत लिखे थे। श्याम सागर द्वारा स्वरबद्ध सुमन कल्याणपुर की ग़ैर फ़िल्मी ऐल्बम 'स्वर बहार' के लिए योगेश ने ३ गीत लिखे थे।

चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-

1. मुखडा शुरू होता है इस शब्द से -"तुम्हें", गीत पहचानें -३ अंक.
2. गुलज़ार साहब का ही लिखा हुआ है ये गीत भी, गायिका का नाम बताएं- २ अंक.
3. संगीतकार कौन हैं -२ अंक.
4. जरीना वहाब पर फिल्माए इस गीत की फिल्म का नाम बताएं -२ अंक.

विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।

पिछली पहेली का परिणाम-
शरद जी ३ अंक मिले आपको, इंदु जी और अवध जी जवाब लेकर आये, चौथा जवाब सुबह ९.३० तक नहीं मिला मुझे क्यों ?
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

indu puri said…
तुम्हे हो न हो मुझ को तो इतना यकीन है
मुझे प्यार तुमसे नही है नही है




गाना तो यही है ,अब प्यार' उनसे' नही है तो इसमें इतनी चीखने चिल्लाने की क्या बात है ?
वो भी बस में ,सड़क पर मदारी के सामने
छी इतनी अमोल घड़ियों को प्यार से तो ना जिए
पालकर रखा है शिकायतों को पगली !
अपुन तो कुछ नही कहते भाई किसी को भी
,अपना घर औंधा पड़ा है ,काम कर लूं ?
PADMSINGH said…
थोड़ा सा पिछड़ गया इंदु जी से ,,, एक अंक का नुक्सान हो गया पर... कोई बात नहीं बड़ों को भी मौका देना चाहिए कभी कभी ...
गीत की गाइका हैं "रुना लैला जी" जिनकी मखमली और दिलकश आवाज़ में है ये गीत.
और कुछ बताऊँ ?? ... छोडिये नहीं बताता

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