ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 384/2010/84
६०के दशक के अंतिम साल, यानी कि १९६९ में एक फ़िल्म आई थी 'ज्योति'। फ़िल्म कब आई कब गई किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। लेकिन इस फ़िल्म में कम से कम एक गीत ऐसा था जो आज तक हमें इसे याद करने पर मजबूर कर देता है। आनंद बक्शी का लिखा, सचिन देव बर्मन का संगीतबद्ध किया, और लता मंगेशकर व मन्ना डे का गाया वह गीत है "सोच के ये गगन झूमे, अभी चांद निकल आएगा, झिलमिल चमकेंगे तारे"। जहाँ एक तरफ़ लता जी के गाए इन बोलों में एक आशावादी भाव सुनाई देता है, वहीं अगले ही लाइन में मन्ना डे साहब गाते हैं कि "चांद जब निकल आएगा, देखेगा ना कोई गगन को, चांद को ही देखेंगे सारे", जिसमें थोड़ा सा अफ़सोस ज़ाहिर होता है। चांद और गगन के द्वारा अन्योक्ति अलंकार का प्रयोग हुआ है। अगर कहानी मालूम ना हो तो इसका अलग अलग अर्थ निकाला जा सकता है। फ़िल्म 'ज्योति' की कहानी का निचोड़ भी शायद इन्ही शब्दों से व्यक्त किया जा सकता हो। ख़ैर, बस यही कहेंगे कि यह एक बेहद उम्दा गीत है बक्शी साहब का लिखा हुआ। फ़िल्म के ना चलने से इस गीत की गूंज बहुत ज़्यादा सुनाई नहीं दी, लेकिन अच्छे गीतों के क़द्रदान आज भी इस गीत को भूले नही हैं। आनंद बक्शी पर केन्द्रित 'मैं शायर तो नहीं' शृंखला की तीसरी कड़ी में आज इसी गीत की बारी। चन्द्रा मित्र निर्मित इस फ़िल्म को निर्देशित किया था दुलाल गुहा ने और फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे अभि भट्टाचार्य, तरुन बोस, संजीव कुमार, निवेदिता, अरुणा ईरानी व सारिका प्रमुख। प्रस्तुत गीत संजीव कुमार और निवेदिता पर फ़िल्माया गया है।
आनंद बक्शी साहब पर केन्द्रित इस शृंखला में हम हर रोज़ उनसे जुड़ी कुछ बातें आप तक पहुँचा रहे हैं, इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए आज हम लेकर आए हैं विविध भरती के 'जयमाला' कार्यक्रम का एक अंश। क्योंकि शुरुआती दिनों में बक्शी साहब का फ़ौज से गहरा नाता रहा है, तो जब वे 'जयमाला' कार्यक्रम में फ़ौजी भाइयों से मुख़ातिब हुए, तो उन्होने अपने दिल के जज़्बात फ़ौजी भाइयों के लिए कुछ इस तरह से व्यक्त किया था - "मेरे प्यारे फ़ौजी भाइयों, हम बहुत पुराने साथी हैं। आज ज़िंदगी ने मुझे बहुत दूर ला फेंका है, पर मैं आप को भूला नहीं हूँ। उम्मीद है कि आप भी मुझे याद करते होंगे। और अगर आप भूल गए हों तो आपको याद दिला दूँ कि मैं चार साल 'सिग्नल्स' में 'टेलीफ़ोन ऒपरेटर' रहा हूँ, और इतना ही अरसा 'ई.एम.ई कोर' में ईलेक्ट्रिशियन रहा हूँ। वहाँ भी मैं आप लोगों के दिल बहलाता था। मुझे वो दिन याद हैं जब सर्द रातों को पहाड़ों के नीचे बैठ कर लाउड स्पीकर में गानें सुना करता था और सोचा करता था कि क्या ऐसा भी दिन आएगा कि जब लाउड स्पीकर के नीचे बैठ कर लोग मेरे गीत सुनेंगे! बेशक़ वह दिन आया, लेकिन एक बात कहूँ आप से? वहाँ आप के साथ चैन और सुकून था, और यहाँ? ख़ैर छोड़िए!" बक्शी साहब की बातें जारी रहेंगी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर आगे भी, फ़िल्हाल सुनते हैं "सोच के ये गगन झूमे"। इस गीत की धुन को सुन कर शायद आपको एक और गीत की धुन याद आ जाए। राजेश रोशन द्वारा संगीतबद्ध 'आख़िर क्यों' फ़िल्म के गीत "एक अंधेरा लाख सितारे" की धुन काफ़ी मिलती जुलती है इस गीत से जिस जगह लता जी गाती हैं "झिलमिल चमकेंगे तारे"। कहिए, ठीक कहा ना मैंने!
क्या आप जानते हैं...
कि 'काग़ज़ के फूल' फ़िल्म के लिए सचिन देव बर्मन ने पहले आनंद बक्शी का नाम प्रोपोज़ किया था। पर गुरु दत्त साहब को एक बड़े नाम की तलाश थी। इसलिए उन्होने बक्शी साहब का नाम गवारा नहीं किया।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. गीत में नायक नायिका "राजा- रानी" कहकर संबोधित कर रहे हैं एक दूजे को, गीत बताएं-३ अंक.
2. लता जी के साथ जिस गायक ने अपनी आवाज़ मिलाई है इस गीत में वो इस फिल्म में पहली बार बतौर गायक दुनिया को सुनाई दिए थे, किसकी बात कर रहे हैं हम - २ अंक.
3. तनूजा और रतन चोपड़ा अभिनीत इस फिल्म के निर्देशक कौन है -२ अंक.
4. कौन हैं संगीतकार जोड़ी -२ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
शुक्रिया इंदु जी, इस गीत ने आपको इतने करीब से स्पर्श किया ये जानकार बेहद खुशी हुई. शरद जी, पदम जी और रोमेंद्र जी आप सब को भी बधाई. इंदु जी आपका विशेष शुक्रिया, आपने भूल सुधार की हमारी, पदम् जी आपको ३ अंक जरूर मिलेंगें
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
६०के दशक के अंतिम साल, यानी कि १९६९ में एक फ़िल्म आई थी 'ज्योति'। फ़िल्म कब आई कब गई किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। लेकिन इस फ़िल्म में कम से कम एक गीत ऐसा था जो आज तक हमें इसे याद करने पर मजबूर कर देता है। आनंद बक्शी का लिखा, सचिन देव बर्मन का संगीतबद्ध किया, और लता मंगेशकर व मन्ना डे का गाया वह गीत है "सोच के ये गगन झूमे, अभी चांद निकल आएगा, झिलमिल चमकेंगे तारे"। जहाँ एक तरफ़ लता जी के गाए इन बोलों में एक आशावादी भाव सुनाई देता है, वहीं अगले ही लाइन में मन्ना डे साहब गाते हैं कि "चांद जब निकल आएगा, देखेगा ना कोई गगन को, चांद को ही देखेंगे सारे", जिसमें थोड़ा सा अफ़सोस ज़ाहिर होता है। चांद और गगन के द्वारा अन्योक्ति अलंकार का प्रयोग हुआ है। अगर कहानी मालूम ना हो तो इसका अलग अलग अर्थ निकाला जा सकता है। फ़िल्म 'ज्योति' की कहानी का निचोड़ भी शायद इन्ही शब्दों से व्यक्त किया जा सकता हो। ख़ैर, बस यही कहेंगे कि यह एक बेहद उम्दा गीत है बक्शी साहब का लिखा हुआ। फ़िल्म के ना चलने से इस गीत की गूंज बहुत ज़्यादा सुनाई नहीं दी, लेकिन अच्छे गीतों के क़द्रदान आज भी इस गीत को भूले नही हैं। आनंद बक्शी पर केन्द्रित 'मैं शायर तो नहीं' शृंखला की तीसरी कड़ी में आज इसी गीत की बारी। चन्द्रा मित्र निर्मित इस फ़िल्म को निर्देशित किया था दुलाल गुहा ने और फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे अभि भट्टाचार्य, तरुन बोस, संजीव कुमार, निवेदिता, अरुणा ईरानी व सारिका प्रमुख। प्रस्तुत गीत संजीव कुमार और निवेदिता पर फ़िल्माया गया है।
आनंद बक्शी साहब पर केन्द्रित इस शृंखला में हम हर रोज़ उनसे जुड़ी कुछ बातें आप तक पहुँचा रहे हैं, इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए आज हम लेकर आए हैं विविध भरती के 'जयमाला' कार्यक्रम का एक अंश। क्योंकि शुरुआती दिनों में बक्शी साहब का फ़ौज से गहरा नाता रहा है, तो जब वे 'जयमाला' कार्यक्रम में फ़ौजी भाइयों से मुख़ातिब हुए, तो उन्होने अपने दिल के जज़्बात फ़ौजी भाइयों के लिए कुछ इस तरह से व्यक्त किया था - "मेरे प्यारे फ़ौजी भाइयों, हम बहुत पुराने साथी हैं। आज ज़िंदगी ने मुझे बहुत दूर ला फेंका है, पर मैं आप को भूला नहीं हूँ। उम्मीद है कि आप भी मुझे याद करते होंगे। और अगर आप भूल गए हों तो आपको याद दिला दूँ कि मैं चार साल 'सिग्नल्स' में 'टेलीफ़ोन ऒपरेटर' रहा हूँ, और इतना ही अरसा 'ई.एम.ई कोर' में ईलेक्ट्रिशियन रहा हूँ। वहाँ भी मैं आप लोगों के दिल बहलाता था। मुझे वो दिन याद हैं जब सर्द रातों को पहाड़ों के नीचे बैठ कर लाउड स्पीकर में गानें सुना करता था और सोचा करता था कि क्या ऐसा भी दिन आएगा कि जब लाउड स्पीकर के नीचे बैठ कर लोग मेरे गीत सुनेंगे! बेशक़ वह दिन आया, लेकिन एक बात कहूँ आप से? वहाँ आप के साथ चैन और सुकून था, और यहाँ? ख़ैर छोड़िए!" बक्शी साहब की बातें जारी रहेंगी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर आगे भी, फ़िल्हाल सुनते हैं "सोच के ये गगन झूमे"। इस गीत की धुन को सुन कर शायद आपको एक और गीत की धुन याद आ जाए। राजेश रोशन द्वारा संगीतबद्ध 'आख़िर क्यों' फ़िल्म के गीत "एक अंधेरा लाख सितारे" की धुन काफ़ी मिलती जुलती है इस गीत से जिस जगह लता जी गाती हैं "झिलमिल चमकेंगे तारे"। कहिए, ठीक कहा ना मैंने!
क्या आप जानते हैं...
कि 'काग़ज़ के फूल' फ़िल्म के लिए सचिन देव बर्मन ने पहले आनंद बक्शी का नाम प्रोपोज़ किया था। पर गुरु दत्त साहब को एक बड़े नाम की तलाश थी। इसलिए उन्होने बक्शी साहब का नाम गवारा नहीं किया।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. गीत में नायक नायिका "राजा- रानी" कहकर संबोधित कर रहे हैं एक दूजे को, गीत बताएं-३ अंक.
2. लता जी के साथ जिस गायक ने अपनी आवाज़ मिलाई है इस गीत में वो इस फिल्म में पहली बार बतौर गायक दुनिया को सुनाई दिए थे, किसकी बात कर रहे हैं हम - २ अंक.
3. तनूजा और रतन चोपड़ा अभिनीत इस फिल्म के निर्देशक कौन है -२ अंक.
4. कौन हैं संगीतकार जोड़ी -२ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
शुक्रिया इंदु जी, इस गीत ने आपको इतने करीब से स्पर्श किया ये जानकार बेहद खुशी हुई. शरद जी, पदम जी और रोमेंद्र जी आप सब को भी बधाई. इंदु जी आपका विशेष शुक्रिया, आपने भूल सुधार की हमारी, पदम् जी आपको ३ अंक जरूर मिलेंगें
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
सपना तो सपने कि बात है प्यार में
नींद नहीं आती पिया तेरे इंतज़ार मे ,होके बेकरार धुन्धु तुझे मैं टू कहाँ खो गया ,बागों मे.....
हा हा
चलिए देर आयद दुरुस्त आयद
मेरी जानकारी/ खोज के अनुसार इस फिल्म के निर्देशक मोहन कुमार हैं (ठीक?)
hothon pe pukar aayi
aaja aaja aaja
aaja meri raani
rut bekaraar aayi
rut bekaraar aayi
doli mein sawaar aayi
aaja aaja aaja
अरे भाई गाने के शब्द सुधर लूं नही तो ये अपने शेर है न,नम्बर काट लेंगे. खतरनाक है सच्ची ये अपने सजीव.
हा हा हा
बुरा माननी नही रखी है इस गेम मे हमने
अपनी तो यूँही छेड़खानी ,मजाक करने की आदत है भाई ,खाना नही पचता न इसलिए करनी पडती है .वरना मैं और मजाक........????? बिलकुल सच नही बोल रही मैं .
hothon pe pukar aayi
aaja aaja aaja
aaja meri raani
rut bekaraar aayi
rut bekaraar aayi
doli mein sawaar aayi
aaja aaja aaja
अरे भाई गाने के शब्द सुधर लूं नही तो ये अपने शेर है न,नम्बर काट लेंगे. खतरनाक है सच्ची ये अपने सजीव.
हा हा हा
बुरा माननी नही रखी है इस गेम मे हमने
अपनी तो यूँही छेड़खानी ,मजाक करने की आदत है भाई ,खाना नही पचता न इसलिए करनी पडती है .वरना मैं और मजाक........????? बिलकुल सच नही बोल रही मैं .