Skip to main content

चले आओ सैयां रंगीले मैं वारी रे....क्या खूब समां बाँधा था इस विवाह गीत ने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 378/2010/78

जिस तरह से ५० से लेकर ७० के दशक तक के समय को फ़िल्म संगीत का सुनहरा दौर माना जाता है, वैसे ही अगर समानांतर सिनेमा की बात करें तो इस जौनर का सुनहरा दौर ८० के दशक को माना जाना चाहिए। इस दौर में नसीरुद्दिन शाह, ओम पुरी, शबाना आज़्मी, स्मिता पाटिल, सुप्रिया पाठक, फ़ारुख़ शेख़ जैसे अभिनेताओं ने अपने जानदार अभिनय से इस जौनर को चार चांद लगाए। दोस्तों, मैं तो आज एक बात क़बूल करना चाहूँगा, हो सकता है कि यही बात आप के लिए भी लागू हो! मुझे याद है कि ८० के दशक में, जो मेरे स्कूल के दिन थे, उन दिनों दूरदर्शन पर रविवार (बाद में शनिवार) शाम को एक हिंदी फ़ीचर फ़िल्म आया करती थी, और हम पूरा हफ़्ता उसी की प्रतीक्षा किया करते थे। साप्ताहिकी कार्यक्रम में अगले दिन दिखाई जाने वाली फ़िल्म का नाम सुनने के लिए बेचैनी से टीवी के सामने बैठे रहते थे। और ऐसे में अगर फ़िल्म इस समानांतर सिनेमा के या फिर कलात्मक फ़िल्मों के जौनर से आ जाए, तो हम सब उदास हो जाया करते थे। हमें तो कमर्शियल फ़िल्मों में ही दिलचस्पी रहती थी। लेकिन जैसे जैसे हम बड़े होते गए, वैसे वैसे इन समानांतर फ़िल्मों की अहमियत से रु-ब-रु होते गए। और आज इन फ़िल्मों को बार बार देखने का मन होता है, पर अफ़सोस कि किसी भी चैनल पर ये फ़िल्में दिखाई नहीं देती। आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में हमने जिस गीत को चुना है वह १९८२ की फ़िल्म 'बाज़ार' का है। युं तो इस फ़िल्म में लता जी का गाया "दिखाई दिए युं के बेख़ुद किया", लता जी और तलत अज़ीज़ का गाया "फिर छोड़ी रात बात फूलों की", जगजीत कौर का गाया "देख लो आज हमको जी भर के" और भुपेन्द्र का गाया "करोगे याद तो हर बात याद आएगी" जैसे गानें मशहूर हुए, लेकिन आज के अंक के लिए हमने इस फ़िल्म का जो गीत चुना है, वह दरअसल एक पारम्परिक रचना है, जिसे गाया है जगजीत कौर, पामेला चोपड़ा और साथियों नें। इस मिट्टी की ख़ुशबू लिए यह गीत है "चले आओ सइयां रंगीले मैं वारी रे"। दिलचस्प बात यह है कि इस गीत के जो अंतरे हैं, उनकी धुन पर बरसों बाद पामेला चोपड़ा ने ही फ़िल्म 'चांदनी' में एक गीत गाया था "मैं ससुराल नहीं जाउँगी", जिसके अंतरे भी कुछ कुछ इसी तरह के थे, सिर्फ़ रिदम में फ़र्क था।

विजय तलवार निर्मित 'बाज़ार' को निर्देशित किया था सागर सरहदी ने, और फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे फ़ारुख़ शेख़, स्मिता पाटिल, नसीरुद्दिन शाह, सुप्रिया पाठक, भरत कपूर, सुलभा देशपाण्डेय प्रमुख। यानी कि समानांतर सिनेमा के सभी मज़बूत स्तंभ इस फ़िल्म में मौजूद थे। 'बाज़ार' की कहानी आधारित थी युवतियों को अर्थाभाव के कारण अपने माँ बाप द्वारा गल्फ़ के देशों के बूढ़े अमीरों से शादी के लिए बेच देने की परम्परा पर। उस साल फ़िल्मफ़ेयर में सुप्रिया पाठक को इस फ़िल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री का पुरस्कार मिला था। फ़िल्म में संगीत था ख़ैय्याम साहब का, और उनके संगीत सफ़र का यह एक महत्वपूर्ण पड़ाव था। हैदराबाद की पृष्ठभूमि पर बने इस फ़िल्म में ख़ैय्याम साहब थोड़े से अलग रंग में नज़र आए। ख़ास कर प्रस्तुत गीत में उन्होने हैदराबादी शादी के फूल बिखेरे। आज जब भी फ़िल्म 'बाज़ार' की बात चलती है, तो इसके संगीत के ज़िक्र के बिना चर्चा पूरी नहीं होती। दोस्तों, ख़ैयाम साहब की पत्नी और गायिका जगजीत कौर ने फ़िल्मों में ज़्यादा गानें नहीं गाए। ख़ैय्याम साहब ने ख़ुद बताया था कि वो जान बूझ कर उनसे नहीं गवाते थे ताकि लोग यह न कहे कि अपनी पत्नी को मौके दे रहा है। लेकिन जब जब कुछ इस तरह के गानें बनें जो नायिका के होठों पर नहीं बल्कि किसी "दूसरे" किरदार पर फ़िल्माए गए और जिनके अंदाज़ बिल्कुल इस मिट्टी के रंग में रंगे हुए थे, तब तब ख़ैय्याम साहब ने जगजीत जी को मौका दिया। यही बात लागू होती है यश चोपड़ा और उनकी गायिका पत्नी पामेला चोपड़ा पर भी। ख़ैर, आइए इस ख़ूबसूरत शादी गीत को सुनें और इसी बहाने हैदराबाद की सैर करें।



क्या आप जानते हैं...
कि ख़ैय्याम ने ४० के दशक में जब फ़िल्म जगत में दाख़िल हुए थे तब देश में चल रहे साम्प्रदायिक तनाव के चलते अपना नाम शर्माजी रख लिया था, और शर्माजी ने नाम से उन्होने कई फ़िल्मों में संगीत दिया। १९४६ में फ़िल्म 'रोमियो ऐण्ड जुलिएट' में उन्होने अभिनय भी किया था।

चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-

1. अंतिम पंक्ति में शब्द है -"रिश्ता", पहचाने इस नज़्म को -३ अंक.
2. इसे निर्देशक की आत्मकथा भी माना जाता है, फिल्म बताएं - २ अंक.
3. इस बेहद दर्द भरी नज़्म को किस अजीम शायर ने लिखा है -२ अंक.
4. मदन मोहन के बाद इन्हें फिल्मों में गज़ल स्वरबद्ध करने के मामले सबसे ज्यादा याद किया जाता है, इस संगीतकार का नाम बताएं -२ अंक.

विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।

पिछली पहेली का परिणाम-
वाह शरद जी आपको तो मानना ही पड़ेगा, क्या खूब पहचानते हैं आप दुर्लभ गीतों को भी, इंदु जी, पदम जी आप भी सही हैं बिलकुल, अवध जी आपको भी दो जरूर देंगें, बधाई

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

कोई ये कैसे बताए कि वो तन्हा क्यूं है
वो जो अपना था वही और किसी का क्यूं है ।
anupam goel said…
फिल्म का नाम : अर्थ
indu puri said…
film arth based on mahesh bhatt's life
indu puri said…
jagjeet singh
padm singh said…
kaifi aazmi was shayar who wrote this ghazal
शोभा said…
वाह बहुत सुन्दर गीत। आनन्द आगया सुनकर।

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट