ताज़ा सुर ताल १२/२०१०
सजीव - 'ताज़ा सुर ताल' में आज हम एक ऐसी फ़िल्म के संगीत की चर्चा करने जा रहे हैं, जिसके शीर्षक को सुन कर शायद आप लोगों के दिल में इस फ़िल्म के बारे में ग़लत धारणा पैदा हो जाए। अगर फ़िल्म के शीर्षक से आप यह समझ बैठे कि यह एक सी-ग्रेड अश्लील फ़िल्म है, तो आपकी धारणा ग़लत होगी। जिस फ़िल्म की हम आज बात कर रहे हैं, वह है 'लव, सेक्स और धोखा', जिसे 'एल.एस.डी' भी कहा जा रहा है।
सुजॊय - सजीव, मुझे याद है जब मैं स्कूल में पढ़ता था, उस वक़्त भी एक फ़िल्म आई थी 'एल.एस.डी', जिसका पूरा नाम था 'लव, सेक्स ऐण्ड ड्रग्स', लेकिन वह एक सी-ग्रेड फ़िल्म ही थी। लेकिन क्योंकि 'लव, सेक्स ऐण्ड धोखा' उस निर्देशक की फ़िल्म है जिन्होने 'खोसला का घोंसला' और 'ओए लकी लकी ओए' जैसी अवार्ड विनिंग् फ़िल्में बनाई हैं, तो ज़ाहिर सी बात है कि हमें इस फ़िल्म से बहुत कुछ उम्मीदें लगानी ही चाहिए।
सजीव - सच कहा, दिबाकर बनर्जी हैं इस फ़िल्म के निर्देशक। क्योंकि मुख्य धारा से हट कर यह एक ऒफ़बीट फ़िल्म है, तो फ़िल्म के कलाकार भी ऒफ़बीट हैं, जैसे कि अंशुमन झा, श्रुती, राज कुमार यादव, नेहा चौहान, आर्य देवदत्ता, हेरी टेंग्री और अमित सियाल। फ़िल्म में संगीत दिया है स्नेहा खनवलकर ने।
सुजॊय - सजीव, इसका मतलब महिला संगीतकरों में एक और नाम जुड़ गया है इस फ़िल्म से, जो एक बहुत ही अच्छी बात है। तो चलिए, शुरु करते हैं गीतों का सिलसिला, पहला गीत कैलाश खेर की आवाज़ में। जिस तरह से पिछले साल में "ईमोसनल अत्याचार" गीत आया था, क्या पता हो सकता है कि यह गीत इस साल वही कमाल कर दिखाए।
सजीव - यह तो वक़्त ही बताएगा, लेकिन हम इतना ज़रूर कह सकते हैं कि यह आम गीतों से अलग है। भले ही इस तरह के गीत हम गुनगुना नहीं सकते, लेकिन गीत के बोलों में सच्चाई है। इसे लिखा भी दिबाकर बनर्जी ने ही है। गीत की शुरुआत एक लड़की के चीख़ने से होती है, फिर गोलियों की आवाज़ें, और फिर गीत शुरु होता है तेज़ झंकार बीट्स के साथ। लड़की की पहले जान बचाना और फिर उसकी तसवीर उतार कर उन्हे बेचने का अपराध इस गीत के बोलों में ज़ाहिर होता है। "तस्वीर उतारूँगा, मेले में दिखाउँगा, जो देखेगा उसकी अखियाँ नचवाउँगा, हवस की तरकारी दाला गरम भुणक का छोंका..."।
सुजॉय- कुछ ऐसा जो कभी सुना नहीं आज तक हिंदी फ़िल्मी गीतों में, सुनिए
गीत: लव सेक्स और धोखा
सुजॊय - सजीव, अभी गीत से पहले आप बता रहे थे लड़की की तस्वीर उतार कर उसे बेचने की बात। तो जहाँ तक इस फ़िल्म की कहानी की बात है, यह फ़िल्म में दरअसल तीन कहानियाँ हैं। और तीनों कहानियों में जो कॊमॊन चीज़ें हैं, वो हैं लव, सेक्स और धोखा। एक और चीज़ जो इनमें कॊमॊन है, वह है कैमरा। जी हाँ, तीनों कहानियों मे किसी ना किसी तरीके से तस्वीर उतारने की घटना है। दूसरा गाना सुनने से पहले मैं इनमें से एक कहानी का पार्श्व बताना चाहूँगा। प्रभात एक जर्नलिस्ट है जो अपने करीयर को एक नई ऊँचाई तक ले जाना चाहता है। और इसके लिए वह एक स्टिंग् ऒपरेशन के ज़रिए सनसनी पैदा करने की सोचता है। वह पॊप स्टार लोकी लोकल पर स्टिंग् ऒपरेशन करता है जो उभरते मॊडेल्स को अपने विडियोज़ में काम देने के बदले उनसे शारीरिक संबंध स्थापित करता है। लेकिन इस स्टिंग् ऒपरेशन के दौरान प्रभात एक मुसीबत में फँस जाता है।
सजीव - अब है दूसरे गीत की बारी। इसे भी कैलाश खेर ने ही गाया है। यह गीत वार करता है आज के दौर में चलने वाले रीयल्टी टीवी शोज़ पर। जिस तरह से टी.आर.पी बढ़ाने के लिए अपने अपने रीयल्टी शोज़ में टीवी चैनल सनसनी के सामान जुटाने में लगे हैं, उसी तरफ़ इशारा है इस गीत का।
सुजॊय - सजीव, किसी को मैंने एक बार कहते हुए सुना था कि 'Reality TV Shows are more scripted than any other show', हो सकता है इसमें सच्चाई हो। ख़ैर, यह गीत "तैनु टीवी पे वेखिया" पंजाबी संगीत पर आधारित है, और कैलाश खेर ने "दुनिया ऊट पटांगा" और "ओए लकी लकी ओए" गीतों की तरह इसे भी लोकप्रिय रंग देने की पूरी कोशिश की है।
गीत: तैनु टीवी पे वेखिया
सजीव - सुजॊय, तुमने तीन में से पहली कहानी का ज़िक्र किया था। दूसरी कहानी जो है, उसमें एक जवान लड़का आदर्श जो जल्दी जल्दी पैसे कमा कर अमीर बनना चाहता है, चाहे इसके लिए उसे कोई भी राह इख़्तियार करनी पड़े। ऐसे में वह क्या करता है कि एक सेल्स गर्ल रश्मी के साथ एक झूठा प्रेम संबंध बनाता है। आदर्श का प्लान यह है कि वह रश्मी को बहकागा और एक कैमरे के ज़रिए दोनों के शारीरिक संबंध वाले दृश्यों को कैद कर उसे बाज़ार में बेच कर पैसे बनाएगा।
सुजॊय - यानी कि लव, सेक्स और धोखा?
सजीव - बिल्कुल! है तो आम कहानी, लेकिन देखना यह है कि दिबाकर इस आम कहानी को किस तरह से ख़ास बनाते हैं! ख़ैर, आगे बढ़ते हैं और अब सुनते हैं स्नेहा खनवलकर की ही आवाज़ में एक हिंग्लिश गीत "आइ काण्ट होल्ड इट एनी लॊंगर"। एक बेहद नए क़िस्म का गीत है जिसमें राजस्थानी लोक संगीत को अंग्रेज़ी शब्दों के साथ मिलाया गया है। चिड़ियों की अलग अलग ध्वनियों का भी ख़ूबसूरत इस्तेमाल सुनाई देता है इस गीत में। मानना पड़ेगा कि स्नेहा ने गायन और संगीत, दोनों ही में इस गीत में कमाल कर दिखाया है।
सुजॉय - सच है सजीव, इस तरह के प्रयोग के लिए संगीतकारा निश्चित ही बधाई की हक़दार हैं. मुझे ओए लकी का "तू राजा की राजदुलारी" गीत याद आ रहा है जिसको स्नेह ने बेहद मेहनत से संवारा था, और जो आज भी एक कल्ट सोंग की तरह सुना जाता है.
गीत: आइ काण्ट होल्ड इट एनी लॊंगर
सुजॊय - और अब तीसरी कहानी की बारी। राहुल एक फ़िल्म विद्यार्थी है जिसकी डिप्लोमा फ़िल्म एक तरह से गुरु दक्षिणा है उसके प्रेरना स्त्रोत आदित्य चोपड़ा की फ़िल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे' को। राहुल को उसके फ़िल्म की नायिका श्रुति से प्यार हो जाता है। उनकी प्रेम कहानी भी उसी तरह से आगे बढ़ती है ठीक जिस तरह से डी.डी.एल.जे की कहानी आगे बढ़ी थी। फ़िल्मी अंदाज़ में राहुल और श्रुति मंदिर में जाकर शादी कर लेते हैं। श्रुति को यह विश्वास था कि एक बार शादी हो जाए तो उसके घरवाले उन्हे अपना लेंगे। लेकिन उसे क्या पता था कि एक उसके लिए एक भयानक धोखा इंतज़ार कर रहा है!
सजीव - इसी कहानी से संबंधित जो गीत है, वह है "मोहब्बत बॊलीवुड स्टाइल"। निहिरा जोशी और अमेय दाले की आवाज़ों में यह गीत है जिसमें वही चोपड़ा परिवार के फ़िल्म के संगीत की कुछ झलक मिलती है। यश राज फ़िल्म्स की सालों से चली आ रही रोमांस के सक्सेस फ़ॊर्मुला की तरफ़ गुदगुदाने वाले अंदाज़ से तीर फेंका गया है। यहाँ तक कि चरित्र का नाम भी राहुल रहा गया है जैसे कि अक्सर यश चोपड़ा की फ़िल्मों में हुआ करता है। कुल मिलाकर ठीक ठाक गीत है, वैसे कुछ बहुत ज़्यादा ख़ास बात भी नहीं है। कम से कम पिछले गीत वाली बात नहीं है, और ना ही यश चोपड़ा के फ़िल्मों के रोमांटिक गीतों के साथ इसकी कोई तुलना हो सकती है।
सुजॉय - हाँ पर मुझे जो बीच बीच में संवाद बोले गए हैं वो बहुत बढ़िया लगे, सुनते हैं...
गीत: मोहब्बत बॊलीवुड स्टाइल.
सुजॊय - तो सजीव, कुल मिलाकर इस फ़िल्म के बारे में जो राय बनती है, वह यही है कि यह फ़िल्म आज के युवा समाज की कुछ सच्चाइयों की तरफ़ हमारा ध्यान आकर्षित करवाना चाहती है, ख़ास कर मुंबई जैसे बड़े शहरों में जो हो रहा है। जल्दी जल्दी पैसे और शोहरत कमाने की होड़ में आज की युवा पीढ़ी अपराध की राह अख़तियार कर रहे हैं। यह फ़िल्म शायद फ़ैमिली ऒडिएन्स को थिएटरों में आकर्षित ना करें, लेकिन युवाओं को यह फ़िल्म पसंद आएगी, ऐसी उम्मीद की जा रही है।
सजीव - चलिए अब सुना जाए आज का अंतिम गीत। कैलाश खेर की आवाज़ में एक और गीत "तू गंदी अच्छी लगती है"। गीत शब्दों से जितना बोल्ड है, उतना ही बोल्ड है कैलाश खेर की गायकी। फ़िल्म के सिचुएशन की वजह से शायद इस गीत में थोड़ी अश्लीलता की ज़रूरत थी। दोस्तों, हम नहीं कह रहे कि इस तरह के गानें हमें पसंद आने चाहिए या इनका स्वागत करना चाहिए, यह तो अपनी अपनी राय है, हमारा उद्देश्य यही है कि जिस तरह का संगीत आज बन रहा है, जिस तरह की फ़िल्में आ रही हैं, उनका ज़िक्र हम यहाँ पर करते हैं, आगे इन्हे ग्रहण करना है या एक बार सुन कर भुला देना है, यह आप पर निर्भर करता है।
सुजॊय - व्यक्तिगत पसंद की अगर बात करें तो मुझे स्नेहा की आवाज़ में "आइ काण्ट होल्ड इट" ही अच्छी लगी है, बाकी सारे सो-सो लगे। तो चलिए चलते चलते यह अंतिम गीत भी सुन लेते हैं।
सजीव - एक बात और दिबाकर ने इस फिल्म से बतौर गीतकार एक ताजगी भरे चलन की शुरूआत की है, बानगी देखिये "मैं सात जनम उपवासा हूँ और सात समुन्दर प्यासा हूँ, जी भर के तुझको पी लूँगा...." और "जो कहते हैं ये कुफ्र खता, काफ़िर है क्या उनको क्या पता..."....सुनकर देखिये..
गीत: तू गंदी अच्छी लगती है
"एल एस डी" के संगीत को आवाज़ रेटिंग ****
जहाँ सदियाँ के संगीत में सब कुछ घिसा पिटा था, एल एस डी उसके ठीक विपरीत एक दम तारो ताज़ा संगीत श्रोताओं को पेश करता है. इंडस्ट्री की इकलौती महिला संगीतकारा स्नेह के लिए जम कर तालियाँ बजनी चाहिए, चूँकि फिल्म की विषय वस्तु काफी बोल्ड है, संगीत भी इससे अछूता नहीं रह सकता था. पारंपरिक श्रोताओं को ये सब काफी अब्सर्ड लग सकता है, पर फिर कैलाश खेर की उन्दा गायिकी और दिबाकर के बोल्ड शब्दों के नाम एक एक तारा और स्नेह के लिए २ तारों को मिलकर ४ तारों की रेटिंग है आवाज़ के टीम की एल एस डी के संगीत एल्बम को. वैसे अल्बम में आपको कैलाश के दो बोनस गीत भी सुनने को मिलेंगें....
और अब आज के ३ सवाल
TST ट्रिविया # ३४- "कित गए हो खेवनहार", "दोस्त बन के आए हो दोस्त बन के ही रहना" तथा 'एल.एस.डी' के गीत "आइ काण्ट होल्ड इट" में क्या समानता है?
TST ट्रिविया # ३५- दिबाकर बनर्जी ने १९९८ के एक टीवी शो में बतौर 'शो पैकेजर' काम किया था। बताइए उस शो का नाम।
TST ट्रिविया # ३६- ऊपर हमने "तू राजा की" गीत का जिक्र किया था, कौन हैं इस गीत के गायक
TST ट्रिविया में अब तक -
अरे भाई कोई तो सीमा जी की चुनौती स्वीकार करें, खैर सीमा जी को एक बार फिर से बधाई
सजीव - 'ताज़ा सुर ताल' में आज हम एक ऐसी फ़िल्म के संगीत की चर्चा करने जा रहे हैं, जिसके शीर्षक को सुन कर शायद आप लोगों के दिल में इस फ़िल्म के बारे में ग़लत धारणा पैदा हो जाए। अगर फ़िल्म के शीर्षक से आप यह समझ बैठे कि यह एक सी-ग्रेड अश्लील फ़िल्म है, तो आपकी धारणा ग़लत होगी। जिस फ़िल्म की हम आज बात कर रहे हैं, वह है 'लव, सेक्स और धोखा', जिसे 'एल.एस.डी' भी कहा जा रहा है।
सुजॊय - सजीव, मुझे याद है जब मैं स्कूल में पढ़ता था, उस वक़्त भी एक फ़िल्म आई थी 'एल.एस.डी', जिसका पूरा नाम था 'लव, सेक्स ऐण्ड ड्रग्स', लेकिन वह एक सी-ग्रेड फ़िल्म ही थी। लेकिन क्योंकि 'लव, सेक्स ऐण्ड धोखा' उस निर्देशक की फ़िल्म है जिन्होने 'खोसला का घोंसला' और 'ओए लकी लकी ओए' जैसी अवार्ड विनिंग् फ़िल्में बनाई हैं, तो ज़ाहिर सी बात है कि हमें इस फ़िल्म से बहुत कुछ उम्मीदें लगानी ही चाहिए।
सजीव - सच कहा, दिबाकर बनर्जी हैं इस फ़िल्म के निर्देशक। क्योंकि मुख्य धारा से हट कर यह एक ऒफ़बीट फ़िल्म है, तो फ़िल्म के कलाकार भी ऒफ़बीट हैं, जैसे कि अंशुमन झा, श्रुती, राज कुमार यादव, नेहा चौहान, आर्य देवदत्ता, हेरी टेंग्री और अमित सियाल। फ़िल्म में संगीत दिया है स्नेहा खनवलकर ने।
सुजॊय - सजीव, इसका मतलब महिला संगीतकरों में एक और नाम जुड़ गया है इस फ़िल्म से, जो एक बहुत ही अच्छी बात है। तो चलिए, शुरु करते हैं गीतों का सिलसिला, पहला गीत कैलाश खेर की आवाज़ में। जिस तरह से पिछले साल में "ईमोसनल अत्याचार" गीत आया था, क्या पता हो सकता है कि यह गीत इस साल वही कमाल कर दिखाए।
सजीव - यह तो वक़्त ही बताएगा, लेकिन हम इतना ज़रूर कह सकते हैं कि यह आम गीतों से अलग है। भले ही इस तरह के गीत हम गुनगुना नहीं सकते, लेकिन गीत के बोलों में सच्चाई है। इसे लिखा भी दिबाकर बनर्जी ने ही है। गीत की शुरुआत एक लड़की के चीख़ने से होती है, फिर गोलियों की आवाज़ें, और फिर गीत शुरु होता है तेज़ झंकार बीट्स के साथ। लड़की की पहले जान बचाना और फिर उसकी तसवीर उतार कर उन्हे बेचने का अपराध इस गीत के बोलों में ज़ाहिर होता है। "तस्वीर उतारूँगा, मेले में दिखाउँगा, जो देखेगा उसकी अखियाँ नचवाउँगा, हवस की तरकारी दाला गरम भुणक का छोंका..."।
सुजॉय- कुछ ऐसा जो कभी सुना नहीं आज तक हिंदी फ़िल्मी गीतों में, सुनिए
गीत: लव सेक्स और धोखा
सुजॊय - सजीव, अभी गीत से पहले आप बता रहे थे लड़की की तस्वीर उतार कर उसे बेचने की बात। तो जहाँ तक इस फ़िल्म की कहानी की बात है, यह फ़िल्म में दरअसल तीन कहानियाँ हैं। और तीनों कहानियों में जो कॊमॊन चीज़ें हैं, वो हैं लव, सेक्स और धोखा। एक और चीज़ जो इनमें कॊमॊन है, वह है कैमरा। जी हाँ, तीनों कहानियों मे किसी ना किसी तरीके से तस्वीर उतारने की घटना है। दूसरा गाना सुनने से पहले मैं इनमें से एक कहानी का पार्श्व बताना चाहूँगा। प्रभात एक जर्नलिस्ट है जो अपने करीयर को एक नई ऊँचाई तक ले जाना चाहता है। और इसके लिए वह एक स्टिंग् ऒपरेशन के ज़रिए सनसनी पैदा करने की सोचता है। वह पॊप स्टार लोकी लोकल पर स्टिंग् ऒपरेशन करता है जो उभरते मॊडेल्स को अपने विडियोज़ में काम देने के बदले उनसे शारीरिक संबंध स्थापित करता है। लेकिन इस स्टिंग् ऒपरेशन के दौरान प्रभात एक मुसीबत में फँस जाता है।
सजीव - अब है दूसरे गीत की बारी। इसे भी कैलाश खेर ने ही गाया है। यह गीत वार करता है आज के दौर में चलने वाले रीयल्टी टीवी शोज़ पर। जिस तरह से टी.आर.पी बढ़ाने के लिए अपने अपने रीयल्टी शोज़ में टीवी चैनल सनसनी के सामान जुटाने में लगे हैं, उसी तरफ़ इशारा है इस गीत का।
सुजॊय - सजीव, किसी को मैंने एक बार कहते हुए सुना था कि 'Reality TV Shows are more scripted than any other show', हो सकता है इसमें सच्चाई हो। ख़ैर, यह गीत "तैनु टीवी पे वेखिया" पंजाबी संगीत पर आधारित है, और कैलाश खेर ने "दुनिया ऊट पटांगा" और "ओए लकी लकी ओए" गीतों की तरह इसे भी लोकप्रिय रंग देने की पूरी कोशिश की है।
गीत: तैनु टीवी पे वेखिया
सजीव - सुजॊय, तुमने तीन में से पहली कहानी का ज़िक्र किया था। दूसरी कहानी जो है, उसमें एक जवान लड़का आदर्श जो जल्दी जल्दी पैसे कमा कर अमीर बनना चाहता है, चाहे इसके लिए उसे कोई भी राह इख़्तियार करनी पड़े। ऐसे में वह क्या करता है कि एक सेल्स गर्ल रश्मी के साथ एक झूठा प्रेम संबंध बनाता है। आदर्श का प्लान यह है कि वह रश्मी को बहकागा और एक कैमरे के ज़रिए दोनों के शारीरिक संबंध वाले दृश्यों को कैद कर उसे बाज़ार में बेच कर पैसे बनाएगा।
सुजॊय - यानी कि लव, सेक्स और धोखा?
सजीव - बिल्कुल! है तो आम कहानी, लेकिन देखना यह है कि दिबाकर इस आम कहानी को किस तरह से ख़ास बनाते हैं! ख़ैर, आगे बढ़ते हैं और अब सुनते हैं स्नेहा खनवलकर की ही आवाज़ में एक हिंग्लिश गीत "आइ काण्ट होल्ड इट एनी लॊंगर"। एक बेहद नए क़िस्म का गीत है जिसमें राजस्थानी लोक संगीत को अंग्रेज़ी शब्दों के साथ मिलाया गया है। चिड़ियों की अलग अलग ध्वनियों का भी ख़ूबसूरत इस्तेमाल सुनाई देता है इस गीत में। मानना पड़ेगा कि स्नेहा ने गायन और संगीत, दोनों ही में इस गीत में कमाल कर दिखाया है।
सुजॉय - सच है सजीव, इस तरह के प्रयोग के लिए संगीतकारा निश्चित ही बधाई की हक़दार हैं. मुझे ओए लकी का "तू राजा की राजदुलारी" गीत याद आ रहा है जिसको स्नेह ने बेहद मेहनत से संवारा था, और जो आज भी एक कल्ट सोंग की तरह सुना जाता है.
गीत: आइ काण्ट होल्ड इट एनी लॊंगर
सुजॊय - और अब तीसरी कहानी की बारी। राहुल एक फ़िल्म विद्यार्थी है जिसकी डिप्लोमा फ़िल्म एक तरह से गुरु दक्षिणा है उसके प्रेरना स्त्रोत आदित्य चोपड़ा की फ़िल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे' को। राहुल को उसके फ़िल्म की नायिका श्रुति से प्यार हो जाता है। उनकी प्रेम कहानी भी उसी तरह से आगे बढ़ती है ठीक जिस तरह से डी.डी.एल.जे की कहानी आगे बढ़ी थी। फ़िल्मी अंदाज़ में राहुल और श्रुति मंदिर में जाकर शादी कर लेते हैं। श्रुति को यह विश्वास था कि एक बार शादी हो जाए तो उसके घरवाले उन्हे अपना लेंगे। लेकिन उसे क्या पता था कि एक उसके लिए एक भयानक धोखा इंतज़ार कर रहा है!
सजीव - इसी कहानी से संबंधित जो गीत है, वह है "मोहब्बत बॊलीवुड स्टाइल"। निहिरा जोशी और अमेय दाले की आवाज़ों में यह गीत है जिसमें वही चोपड़ा परिवार के फ़िल्म के संगीत की कुछ झलक मिलती है। यश राज फ़िल्म्स की सालों से चली आ रही रोमांस के सक्सेस फ़ॊर्मुला की तरफ़ गुदगुदाने वाले अंदाज़ से तीर फेंका गया है। यहाँ तक कि चरित्र का नाम भी राहुल रहा गया है जैसे कि अक्सर यश चोपड़ा की फ़िल्मों में हुआ करता है। कुल मिलाकर ठीक ठाक गीत है, वैसे कुछ बहुत ज़्यादा ख़ास बात भी नहीं है। कम से कम पिछले गीत वाली बात नहीं है, और ना ही यश चोपड़ा के फ़िल्मों के रोमांटिक गीतों के साथ इसकी कोई तुलना हो सकती है।
सुजॉय - हाँ पर मुझे जो बीच बीच में संवाद बोले गए हैं वो बहुत बढ़िया लगे, सुनते हैं...
गीत: मोहब्बत बॊलीवुड स्टाइल.
सुजॊय - तो सजीव, कुल मिलाकर इस फ़िल्म के बारे में जो राय बनती है, वह यही है कि यह फ़िल्म आज के युवा समाज की कुछ सच्चाइयों की तरफ़ हमारा ध्यान आकर्षित करवाना चाहती है, ख़ास कर मुंबई जैसे बड़े शहरों में जो हो रहा है। जल्दी जल्दी पैसे और शोहरत कमाने की होड़ में आज की युवा पीढ़ी अपराध की राह अख़तियार कर रहे हैं। यह फ़िल्म शायद फ़ैमिली ऒडिएन्स को थिएटरों में आकर्षित ना करें, लेकिन युवाओं को यह फ़िल्म पसंद आएगी, ऐसी उम्मीद की जा रही है।
सजीव - चलिए अब सुना जाए आज का अंतिम गीत। कैलाश खेर की आवाज़ में एक और गीत "तू गंदी अच्छी लगती है"। गीत शब्दों से जितना बोल्ड है, उतना ही बोल्ड है कैलाश खेर की गायकी। फ़िल्म के सिचुएशन की वजह से शायद इस गीत में थोड़ी अश्लीलता की ज़रूरत थी। दोस्तों, हम नहीं कह रहे कि इस तरह के गानें हमें पसंद आने चाहिए या इनका स्वागत करना चाहिए, यह तो अपनी अपनी राय है, हमारा उद्देश्य यही है कि जिस तरह का संगीत आज बन रहा है, जिस तरह की फ़िल्में आ रही हैं, उनका ज़िक्र हम यहाँ पर करते हैं, आगे इन्हे ग्रहण करना है या एक बार सुन कर भुला देना है, यह आप पर निर्भर करता है।
सुजॊय - व्यक्तिगत पसंद की अगर बात करें तो मुझे स्नेहा की आवाज़ में "आइ काण्ट होल्ड इट" ही अच्छी लगी है, बाकी सारे सो-सो लगे। तो चलिए चलते चलते यह अंतिम गीत भी सुन लेते हैं।
सजीव - एक बात और दिबाकर ने इस फिल्म से बतौर गीतकार एक ताजगी भरे चलन की शुरूआत की है, बानगी देखिये "मैं सात जनम उपवासा हूँ और सात समुन्दर प्यासा हूँ, जी भर के तुझको पी लूँगा...." और "जो कहते हैं ये कुफ्र खता, काफ़िर है क्या उनको क्या पता..."....सुनकर देखिये..
गीत: तू गंदी अच्छी लगती है
"एल एस डी" के संगीत को आवाज़ रेटिंग ****
जहाँ सदियाँ के संगीत में सब कुछ घिसा पिटा था, एल एस डी उसके ठीक विपरीत एक दम तारो ताज़ा संगीत श्रोताओं को पेश करता है. इंडस्ट्री की इकलौती महिला संगीतकारा स्नेह के लिए जम कर तालियाँ बजनी चाहिए, चूँकि फिल्म की विषय वस्तु काफी बोल्ड है, संगीत भी इससे अछूता नहीं रह सकता था. पारंपरिक श्रोताओं को ये सब काफी अब्सर्ड लग सकता है, पर फिर कैलाश खेर की उन्दा गायिकी और दिबाकर के बोल्ड शब्दों के नाम एक एक तारा और स्नेह के लिए २ तारों को मिलकर ४ तारों की रेटिंग है आवाज़ के टीम की एल एस डी के संगीत एल्बम को. वैसे अल्बम में आपको कैलाश के दो बोनस गीत भी सुनने को मिलेंगें....
और अब आज के ३ सवाल
TST ट्रिविया # ३४- "कित गए हो खेवनहार", "दोस्त बन के आए हो दोस्त बन के ही रहना" तथा 'एल.एस.डी' के गीत "आइ काण्ट होल्ड इट" में क्या समानता है?
TST ट्रिविया # ३५- दिबाकर बनर्जी ने १९९८ के एक टीवी शो में बतौर 'शो पैकेजर' काम किया था। बताइए उस शो का नाम।
TST ट्रिविया # ३६- ऊपर हमने "तू राजा की" गीत का जिक्र किया था, कौन हैं इस गीत के गायक
TST ट्रिविया में अब तक -
अरे भाई कोई तो सीमा जी की चुनौती स्वीकार करें, खैर सीमा जी को एक बार फिर से बधाई
Comments
aap kisi cheej ko seriously jaroor lenge agar uske peeche "Dibakar banerjee" , "Kailash Kher" aur "Sneha" ho...... Lagta hai aapne ye article padha nahi...aur bas apna matavya de diyaa...... Songs mein lyrics kamaale ke hain, music badhiyaa hai aur singing ke kyaa kehne.... Isliye main to in songs ko seriously loonga.
Aur ek baat.... jis tarah hum haasya kavitaon ka aanad lete hain (seriously lein ya nahi lein) us tarah humaara adhikaar banta hai ki in tarah ke gaano ka bhi anand lein..
Dhanyawaad,
Vishwa Deepak
regards
aapne shaayad "main saat janm upwaasa hoo.main saat samunder pyaasa hoo" yaa phir "जो कहते हैं ये कुफ्र खता, काफ़िर है क्या उनको क्या पता..." nahi sunaa... suniye aur phir kahiye ki aise lines aapne kahaa sune the..... aur Kailash kher itne murkh nahi ki koi bhi gaana gaa dein..... Gaano mein kuchh to hai ki unhone gaana sweekar kiyaa.
Khair aapki marzi..... Kisi bhi cheez ko jabardasti kisi pe thopa nahi jaa sakta....isliye aapko haq hai ki aap gaano ko pasand na karein....
Dhanyawaad,
Vishwa Deepak