ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 363/2010/63
रंग रंगीले गीतों पर आधारित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की यह लघु शृंखला 'गीत रंगीले' जारी है 'आवाज़' पर। "आजा रंग दूँ तेरी चुनरिया प्यार के रंग में", दोस्तों, अक्सर ये शब्द प्रेमी अपनी प्रेमिका को कहता है। लेकिन कभी कभी हालात ऐसे भी आन पड़ते हैं कि नायिका ख़ुद अपनी कोरी चुनरिया को रंग देने का अनुरोध कर बैठती है। कुछ साल पहले इस तरह का एक गीत फ़िल्म 'तक्षक' में ए. आर. रहमान ने स्वरब्द्ध किया था जिसे आशा भोसले और साथियों ने गाया था, "मुझे रंग दे, मुझे रंग दे, मुझे अपने प्रीत विच रंग दे"। लेकिन प्यार के रंग में रंगने की नायिका की यह फ़रमाइश हिंदी फ़िल्मों में काफ़ी पुराना है। ५० के दशक के आख़िर में, यानी कि १९५९ में एक फ़िल्म आई थी 'चार दिल चार राहें', जिसमें एक बेहद लोकप्रिय गीत था मीना कपूर की आवाज़ में, "कच्ची है उमरिया, कोरी है चुनरिया, मोहे भी रंग देता जा मोरे सजना, मोहे भी रंग देता जा"। जब रंगीले गीतों की बात चल रही हो, तो हमने सोचा कि क्यों ना इस अनूठे गीत को भी इसी शृंखला में शामिल कर लिया जाए! अनूठा हमने इसलिए कहा क्योंकि इस गीत का जो संगीत है, जो इसका संगीत संयोजन है, वह वाक़ई कमाल का है और विविधताओं से भरा हुआ है, और यह कमाल कर दिखाया था फ़िल्म संगीत के वरिष्ठ संगीतकार अनिल बिस्वास जी ने, और गीतकार साहिर लुधियानवी ने भी अलग अलग प्रांतीय संगीत के समावेश में बेहद असरदार शब्द इस गीत में पिरोये थे। १९९७ में विविध भारती में तशरीफ़ लाए थे अनिल बिस्वास जी और उनकी गायिका पत्नी मीना कपूर जी, और उन दोनों के साथ बातचीत की थी उस ज़माने के युवा संगीतकार तुषार भाटिया ने, और इस बातचीत को गीतों में बुन कर 'रसिकेशु' शृंखला के शीर्षक से 'संगीत सरिता' कार्यक्रम में कुल २६ अंकों के ज़रिए प्रसारित किया गया था। उस शृंखला में आज के इस प्रस्तुत गीत की विस्तृत चर्चा हुई थी, जिसे आज हम यहाँ आप के लिए पेश कर रहे हैं:
तुषार भाटिया: दादा, आप का जन्म बंगाल में हुआ है, ज़ाहिर है कि बंगला संगीत तो आप के ख़ून में बसा हुआ है। लेकिन आप के संगीत में देश के हर प्रांत का रंग नज़र आता है। एक पंजाबी रंग में ढला हुआ गाना मुझे याद आ रहा है, दीदी, आप ही का गाया हुआ, "कच्ची है उमरिया"।
मीना कपूर: मुझे याद है कि यह गीत मैंने अपनी चहेती हीरोइन मीना जी के लिए गाया था, मीना कुमारी जी के लिए।
अनिल बिस्वास: अच्छा इसमें ख़ास बात यह थी कि "कच्ची है उमरिया" पंजाब से शुरु होके बंगाल में जाके ख़त्म होता है।
मीना: ओ हाँ, शुरु होते ही "राधा संग खेले होली गोविंदा", यह तो मराठा अंग हुआ। उसके बाद "गोविंदा" में वैष्णव स्टाइल हो गया।
अनिल: हाँ, अब जैसे "गोपाल गोपाल" गाया था ना पारुल जी ने, वैसे इसमें "गोविंदा गोविंदा" है। मगर इसकी बिगिनिंग् का जो सुर है, जहाँ से मैंने लिया है, वह तुम सुनोगे तो...
मीना: हाँ हाँ हाँ हाँ, वह पंजाब से ही है, "अड़ी रे अड़ी... मोती पे अड़ी, लागी सौंधी जड़ी, दूध पी ले बालमा, मैं तो कदध खड़ी..."
अनिल: मैंने लगा दिया इसको भी। अब इसके बीच म्युज़िक आया था ना! मद्रास में सांप खेलाने वाले ऐसे गाते हैं। वह बीच में लगा दिया क्योंकि वह इसके बहुत नज़दीक थी। मैंने कहा चलो पंजाब से शुरु करते हैं, फिर मद्रास होते हुए हम बरिसाल (बरिसाल अनिल दा का जन्मस्थान है) चले जाएँगे।
तुषार: अरे क्या बात है! इसमें बहुत भड़कती हुई रीदम और ज़ोरदार कोरस है, और दीदी ने तो...
अनिल: होली का गाना था ना!
तुषार: तो यह गाना सुना देते हैं।
अनिल: इसको ज़रूर सुनाओ।
दोस्तों, अनिल दा की बनाई इस होली गीत को सुनने से पहले हम उनके बनाए चंद और होली गीतों का ज़िक्र यहाँ पर करना चाहेंगे जिनकी तरफ़ हमारा ध्यान आकृष्ट करवाया है पंकज राग ने अपनी क़िताब "धुनों की यात्रा" के ज़रिए, जिसमें वो लिखते हैं कि "यदि स्वतंत्रता-पूर्व की 'ज्वार भाटा' के होली गीत "सा रा रा रा" लोक अभिव्यक्ति का विशुद्ध रूप था, तो स्वतंत्रता पश्चात् की 'राही' के रसिया गीत "होली खेले नंदलाला" और 'महात्मा कबीर' की होरी "सियावर रामचन्द्र" भी ग्रामीण सामूहिक संस्कृति को उतनी ही कुशलता से उभारते थे।" और आइए अब सुना जाए मीना कपूर की आवाज़ में यह थिरकता मचलता होली गीत फ़िल्म 'चार दिल चार राहें' से।
क्या आप जानते हैं...
कि ख़्वाजा अहमद अब्बास की फ़िल्म 'चार दिल चार राहें' में राज कपूर और मीना कुमारी के अलावा इस फ़िल्म में पुराने दौर के संगीतकार बद्रीप्रसाद की भी बतौर अभिनेता एक प्रमुख भूमिका थी।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. मुखड़े में शब्द है "आँचल", गीत बताएं -३ अंक.
2. प्रसाद फिल्म्स के बैनर पर बनी इस फिल्म के नाम में तीन शब्द हैं और बीच का शब्द है "और", नाम बताएं-२ अंक.
3. बसन्त की बात करता हुआ गीत अंतिम अंतरे में देशभक्ति रंग में ढल जाता है, गीतकार बताएं - २ अंक.
4. कौन हैं इस मचलते गीत के संगीतकार -सही जवाब के मिलेंगें २ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
चलिए आज स्कोर बताये देते हैं, शरद जी लीड कर रहे हैं ३६ अंकों के साथ, इंदु जी आपके परसों के अंक हमने हिसाब में ले लिए हैं और अब आप हैं २२ अंकों पर तो अवध जी हैं १८ अंकों पर. मुकाबला रोचक है :)
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
रंग रंगीले गीतों पर आधारित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की यह लघु शृंखला 'गीत रंगीले' जारी है 'आवाज़' पर। "आजा रंग दूँ तेरी चुनरिया प्यार के रंग में", दोस्तों, अक्सर ये शब्द प्रेमी अपनी प्रेमिका को कहता है। लेकिन कभी कभी हालात ऐसे भी आन पड़ते हैं कि नायिका ख़ुद अपनी कोरी चुनरिया को रंग देने का अनुरोध कर बैठती है। कुछ साल पहले इस तरह का एक गीत फ़िल्म 'तक्षक' में ए. आर. रहमान ने स्वरब्द्ध किया था जिसे आशा भोसले और साथियों ने गाया था, "मुझे रंग दे, मुझे रंग दे, मुझे अपने प्रीत विच रंग दे"। लेकिन प्यार के रंग में रंगने की नायिका की यह फ़रमाइश हिंदी फ़िल्मों में काफ़ी पुराना है। ५० के दशक के आख़िर में, यानी कि १९५९ में एक फ़िल्म आई थी 'चार दिल चार राहें', जिसमें एक बेहद लोकप्रिय गीत था मीना कपूर की आवाज़ में, "कच्ची है उमरिया, कोरी है चुनरिया, मोहे भी रंग देता जा मोरे सजना, मोहे भी रंग देता जा"। जब रंगीले गीतों की बात चल रही हो, तो हमने सोचा कि क्यों ना इस अनूठे गीत को भी इसी शृंखला में शामिल कर लिया जाए! अनूठा हमने इसलिए कहा क्योंकि इस गीत का जो संगीत है, जो इसका संगीत संयोजन है, वह वाक़ई कमाल का है और विविधताओं से भरा हुआ है, और यह कमाल कर दिखाया था फ़िल्म संगीत के वरिष्ठ संगीतकार अनिल बिस्वास जी ने, और गीतकार साहिर लुधियानवी ने भी अलग अलग प्रांतीय संगीत के समावेश में बेहद असरदार शब्द इस गीत में पिरोये थे। १९९७ में विविध भारती में तशरीफ़ लाए थे अनिल बिस्वास जी और उनकी गायिका पत्नी मीना कपूर जी, और उन दोनों के साथ बातचीत की थी उस ज़माने के युवा संगीतकार तुषार भाटिया ने, और इस बातचीत को गीतों में बुन कर 'रसिकेशु' शृंखला के शीर्षक से 'संगीत सरिता' कार्यक्रम में कुल २६ अंकों के ज़रिए प्रसारित किया गया था। उस शृंखला में आज के इस प्रस्तुत गीत की विस्तृत चर्चा हुई थी, जिसे आज हम यहाँ आप के लिए पेश कर रहे हैं:
तुषार भाटिया: दादा, आप का जन्म बंगाल में हुआ है, ज़ाहिर है कि बंगला संगीत तो आप के ख़ून में बसा हुआ है। लेकिन आप के संगीत में देश के हर प्रांत का रंग नज़र आता है। एक पंजाबी रंग में ढला हुआ गाना मुझे याद आ रहा है, दीदी, आप ही का गाया हुआ, "कच्ची है उमरिया"।
मीना कपूर: मुझे याद है कि यह गीत मैंने अपनी चहेती हीरोइन मीना जी के लिए गाया था, मीना कुमारी जी के लिए।
अनिल बिस्वास: अच्छा इसमें ख़ास बात यह थी कि "कच्ची है उमरिया" पंजाब से शुरु होके बंगाल में जाके ख़त्म होता है।
मीना: ओ हाँ, शुरु होते ही "राधा संग खेले होली गोविंदा", यह तो मराठा अंग हुआ। उसके बाद "गोविंदा" में वैष्णव स्टाइल हो गया।
अनिल: हाँ, अब जैसे "गोपाल गोपाल" गाया था ना पारुल जी ने, वैसे इसमें "गोविंदा गोविंदा" है। मगर इसकी बिगिनिंग् का जो सुर है, जहाँ से मैंने लिया है, वह तुम सुनोगे तो...
मीना: हाँ हाँ हाँ हाँ, वह पंजाब से ही है, "अड़ी रे अड़ी... मोती पे अड़ी, लागी सौंधी जड़ी, दूध पी ले बालमा, मैं तो कदध खड़ी..."
अनिल: मैंने लगा दिया इसको भी। अब इसके बीच म्युज़िक आया था ना! मद्रास में सांप खेलाने वाले ऐसे गाते हैं। वह बीच में लगा दिया क्योंकि वह इसके बहुत नज़दीक थी। मैंने कहा चलो पंजाब से शुरु करते हैं, फिर मद्रास होते हुए हम बरिसाल (बरिसाल अनिल दा का जन्मस्थान है) चले जाएँगे।
तुषार: अरे क्या बात है! इसमें बहुत भड़कती हुई रीदम और ज़ोरदार कोरस है, और दीदी ने तो...
अनिल: होली का गाना था ना!
तुषार: तो यह गाना सुना देते हैं।
अनिल: इसको ज़रूर सुनाओ।
दोस्तों, अनिल दा की बनाई इस होली गीत को सुनने से पहले हम उनके बनाए चंद और होली गीतों का ज़िक्र यहाँ पर करना चाहेंगे जिनकी तरफ़ हमारा ध्यान आकृष्ट करवाया है पंकज राग ने अपनी क़िताब "धुनों की यात्रा" के ज़रिए, जिसमें वो लिखते हैं कि "यदि स्वतंत्रता-पूर्व की 'ज्वार भाटा' के होली गीत "सा रा रा रा" लोक अभिव्यक्ति का विशुद्ध रूप था, तो स्वतंत्रता पश्चात् की 'राही' के रसिया गीत "होली खेले नंदलाला" और 'महात्मा कबीर' की होरी "सियावर रामचन्द्र" भी ग्रामीण सामूहिक संस्कृति को उतनी ही कुशलता से उभारते थे।" और आइए अब सुना जाए मीना कपूर की आवाज़ में यह थिरकता मचलता होली गीत फ़िल्म 'चार दिल चार राहें' से।
क्या आप जानते हैं...
कि ख़्वाजा अहमद अब्बास की फ़िल्म 'चार दिल चार राहें' में राज कपूर और मीना कुमारी के अलावा इस फ़िल्म में पुराने दौर के संगीतकार बद्रीप्रसाद की भी बतौर अभिनेता एक प्रमुख भूमिका थी।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. मुखड़े में शब्द है "आँचल", गीत बताएं -३ अंक.
2. प्रसाद फिल्म्स के बैनर पर बनी इस फिल्म के नाम में तीन शब्द हैं और बीच का शब्द है "और", नाम बताएं-२ अंक.
3. बसन्त की बात करता हुआ गीत अंतिम अंतरे में देशभक्ति रंग में ढल जाता है, गीतकार बताएं - २ अंक.
4. कौन हैं इस मचलते गीत के संगीतकार -सही जवाब के मिलेंगें २ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
चलिए आज स्कोर बताये देते हैं, शरद जी लीड कर रहे हैं ३६ अंकों के साथ, इंदु जी आपके परसों के अंक हमने हिसाब में ले लिए हैं और अब आप हैं २२ अंकों पर तो अवध जी हैं १८ अंकों पर. मुकाबला रोचक है :)
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
मस्ताना मौसम आ गया ।
अवध लाल
नही, कुछ वे लोग जो मेरे दिल के बेहद करीब हैं
जिनके बिना जीवन की कल्पना भी नही की जा सकती .
उनके जन्म दिन की 'सरप्राईज़ पार्टी 'रखी थी मेरी बिटिया अभिव्यक्ति और बहु प्रिटी ऩे.
आते ही 'वे' बोली -'ए बुढ़िया भाभी !आज प्रश्न का उत्तर नही देंगी आप ?'
मैं हँस दी क्योंकि वे जानती है मेरे जीवन में मैं किसी को आने ही नही देती ,
आ गया तो जाने ही नही देती .
मेरे लिए दोस्ती का मतलब भी प्यार है
रिश्तों का मतलब भी प्यार है
काम का मतलब भी प्यार
इंदु का मतलब भी प्यार है
आप सभी लोगों से भी खूब प्यार करती हूँ
जवाब दूँ ,ना दू / ना दे पाऊँ
पर 'आवाज परिवार ' अपना सा लगने लगा है
इसलिए आप सब्ब्बब को भी बहूत प्यार करती हूँ ,'मिस' करती हूँ .