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कहीं शेर-ओ-नग़मा बन के....तलत साहब की आवाज़ में एक दुर्लभ गैर फ़िल्मी गज़ल

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 360/2010/60

'दस महकती ग़ज़लें और एक मख़मली आवाज़', तलत महमूद पर केन्द्रित इस ख़ास पेशकश की अंतिम कड़ी में आपका फिर एक बार हम स्वागत करते हैं। दोस्तों, किसी भी इंसान की जो जड़ें होती हैं, वो इतने मज़बूत होती हैं, कि ज़िंदगी में एक वक़्त ऐसा आता है जब वह अपने उसी जड़ों की तलाश करता है, उसी की तरफ़ फिर एक बार रुख़ करने की कोशिश करता है। तलत महमूद सहब के गायन की शुरुआत ग़ैर फ़िल्मी रचनाओं के साथ हुई थी जब उन्होने "सब दिन एक समान नहीं था" से अपना करीयर शुरु किया था। फिर उसके बाद कमल दासगुप्ता के संगीत में उनका पहला कामयाब ग़ैर फ़िल्मी गीत आया, "तसवीर तेरी दिल मेरा बहला ना सकेगी"। तलत साहब के अपने शब्दों में "१९४१ में मैंने अपना पहला गीत रिकार्ड करवाया था "तसवीर तेरी दिल मेरा..."। फ़य्याज़ हशमी ने इसे लिखा था और कमल दासगुप्ता की तर्ज़ थी। मैं अपनी तारीफ़ ख़ुद नहीं करना चाहता पर तसवीर पर इससे बेहतरीन गीत आज तक नहीं हुआ है।" तो हम बात करे थे अपने जड़ों की ओर वापस मुड़ने की। तो तलत साहब, जिन्होने ग़ैर फ़िल्मी गीत से अपने पारी की शुरुआत की थी, ५० के दशक के आते आते वो फ़िल्म जगत में अपना क़दम जमा लिया, लेकिन फिर एक समय ऐसा आया जब वो वापस ग़ैर फ़िल्मी जगत का रुख़ किया। यह दौर था ७० और ८० के दशकों का। एक से एक मशहूर शायरों की ग़ज़लों को उन्होने ना केवल गाया बल्कि उनकी धुनें भी बनाई। "मुझे भी धुनें बनाने का शौक है, फ़िल्मों के लिए नहीं, बल्कि मेरे ग़ैर फ़िल्मी गीतों के लिए। मैंने अपने कई गीतों का संगीत तैयार किया है। अब मैं आपको ऐसी एक ग़ज़ल सुनवाने जा रहा हूँ, जिसे लिखा है शक़ील बदायूनी ने और जिसकी तर्ज़ मैंने ही बनाई थी। और यक़ीन मानिए मैंने पूरी ग़ज़ल की ट्युन १५ मिनट में तैयार कर दिया था।" दोस्तो, जिस ग़ज़ल की तरफ़ तलत साहब ने इशारा किया, वह ग़ज़ल थी "तुमने यह क्या सितम किया"। आज भी हम आपको एक ग़ैर फ़िल्मी ग़ज़ल ही सुनवा रहे हैं, लेकिन यह वाली नहीं, बल्कि शायर और गीतकार ख़ुमार बाराबंकवी का लिखा "कहीं शेर-ओ-नग़मा बन के दिल आँसुओं में ढलके"। तर्ज़ तलत साहब की ही है।

दोस्तों, तलत साहब की गाई हुई ग़ज़लों की इस ख़ास शृंखला की अंतिम कड़ी में आइए आज ग़ज़लों से संबंधित कुछ बातें की जाए जो गुलज़ार साहब ने ग़ज़लों पर जारी एक विशेष सी.डी '50 Glorious Years of Popular Ghazals' की भूमिका में कहे थे! "ग़ज़ल उसने छेड़ी मुझे साज़ देना, ज़रा उम्र-ए-रफ़्ता को आवाज़ देना। उम्र-ए-रफ़्ता को आवाज़ दी तो बहुत दूर तक गूँजती चली गई। क़रीब उस इत्तदा तक जहाँ साज़ पर ग़ज़ल छेड़ी गई थी, और रिकार्ड होनी शुरु हुई थी। ग़ज़ल लिखने के बाद क़िताब में महफ़ूज़ हो चुकी थी, लेकिन साज़ पर गाए जाने के बाद पहली बार रिकार्ड पर और फिर टेप पर महफ़ूज़ हुई। ख़याल महफ़ूज़ था लेकिन आवाज़ पहली बार महफ़ूज़ होनी शुरु हुई थी। एक और सफ़र शुरु हुआ ग़ज़ल का यहाँ से। जी चाहा इस सफ़र को शुरु से दोहरा कर देखें।" दोस्तों, उस सी.डी में फिर उसके बाद एक के बाद एक कुल १०० ग़ज़लें शामिल की गयीं थी। लेकिन हमारी यह शृंखला उस सी.डी से बिल्कुल अलग रही, और इस शृंखला में शामिल कोई भी ग़ज़ल उस सी.डी का हिस्सा नहीं है। आइए अब सुना जाए आज की ग़ज़ल, जिसके तीन शेर कुछ इस तरह से हैं-

कहीं शेर-ओ-नग़मा बन के कहीं आँसुओं में ढलके,
तुम मुझे मिले थे लेकिन कई सूरतें बदल के।

ये चराग़-ए-अंजुमन तो हैं बस एक शब के महमान,
तू जला वो शम्मा ऐ दिल जो बुझे कभी ना जल के।

न तो होश से तआरूफ न जुनूं से आशनाई,
ये कहाँ पहुँच गए हम तेरी बज़्म से निकल के।



क्या आप जानते हैं...
कि तलत महमूद साहब की शख़सीयत इतनी ज़्यादा लोकप्रिय हुआ करती थी कि अमरीकी ५५५ स्टेट एक्स्प्रेस सिगरेट कंपनी ने अपने भारतीय विज्ञापनों के लिए तलत साहब को चुना था ५० के दशक में।

चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-

1. एक माह का नाम है गीत के मुखड़े में, गीत बताएं -३ अंक.
2. संगीतकार हैं एस डी बर्मन गीतकार कौन हैं बताएं - २ अंक.
3. इसी नाम की एक फिल्म पहले भी बनी थी जिसमें ओ पी नय्यर साहब का जबरदस्त संगीत था, बताएं फिल्म का नाम- २ अंक.
4. फिल्म की नायिका का नाम बताएं -सही जवाब के मिलेंगें २ अंक.

विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।

पिछली पहेली का परिणाम-
इंदु जी, ३ अंक आपके कोई नहीं रोक सकता, बधाई, शरद जी ने तो ३ अंक चुरा ही लिए, बहुत मुश्किल गज़ल पहचान कर, वैसे तीसरे सवाल का जवाब आसान था, पर किसी से कोशिश नहीं की, उम्मीद है आप सब ने बढ़िया होलि खेली होगी आज
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

यह दुर्लभ कृति सुनवाने के लिए आभार. तलत साहब मेरे भी प्रिय गायक रहे हैं.
पिया संग खेलूं होली फागुन आयो री - लता

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