ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 382/2010/82
मैं शायर तो नहीं'। गीतकार आनंद बक्शी पर केन्द्रित इस लगु शृंखला की दूसरी कड़ी में आपका स्वागत है। कल हमने आनंद बक्शी साहब के जीवन के शुरुआती दिनों का हाल आपको बताया था, और हम आ पहुँचे थे सन् १९६५ पर जिस साल उनकी पहली कामयाब फ़िल्म 'जब जब फूल खिले' प्रदर्शित हुई थी। दोस्तों, कल हमने यह कहा था कि 'जब जब फूल खिले' की अपार कामयाबी के बाद आनंद बक्शी को फिर कभी पीछे मुड़ कर देखने की ज़रूरत नहीं पड़ी। यह बात 'ब्रॊड सेन्स' में शायद सही थी, लेकिन हक़ीक़त कुछ युं थी कि इस फ़िल्म के बाद परदेसी बने आनंद बक्शी की तरफ़ किसी ने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। और जैसे 'जब जब...' फ़िल्म का गीत "यहाँ मैं अजनबी हूँ" उन्ही पर लागू हो गया। उनके तरफ़ इस उदासीन व्यवहार का कारण था उस समय हर संगीतकार का अपना गीतकार हुआ करता था, जैसे शंकर जयकिशन के लिए लिखते थे शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी, नौशाद के लिए शक़ील, कल्याणजी-आनंदजी के लिए इंदीवर वगेरह। यहाँ तक कि सचिन देव बर्मन ने भी उन्हे नया समझ कर उनकी ओर ध्यान नहीं दिया। पर तक़दीर को भी अपना रंग दिखाना था, आनंद बक्शी के सूखे जीवन में भी सावन की सुरीली फुहार आनी ही थी, और वह आकर रही। आप हमारा इशारा समझ गए होंगे। जी हाँ, सन् १९६७ में, यानी कि 'जब जब फूल खिले' के दो साल बाद, जब फ़िल्मकार एल. वी. प्रसाद ने फ़िल्म 'मिलन' की योजना बनाई तो संगीतकार के रूप में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को और बतौर गीतकार आनंद बक्शी को चुना गया। सुनिल दत्त, नूतन और जमुना अभिनीत इस फ़िल्म के सुमधुर संगीत के लिए लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार दिया गया। नूतन को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री और जमुना को सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री के पुरस्कार मिले।
'मिलन' का सब से मक़बूल गीत था "सावन का महीना पवन करे सोर", जिसके लिए आनंद बक्शी साहब को नॊमिनेट किया गया था फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार के लिए। हालाँकि उन्हे यह पुरस्कार नहीं मिल पाया, लेकिन इस गीत ने वह असर छोड़ा कि आज भी यह गीत बक्शी साहब के लिए बेहतरीन गीतों में गिना जाता है। लोक शैली में लिखे हुए इस गीत को बारिश या सावन पर बनने वाले गीतों की श्रेणी में बहुत उपर के स्थान दिया जाता रहा है। आज प्रस्तुत है यही गीत 'मैं शायर तो नहीं' शृंखला के तहत। लता मंगेशकर और मुकेश की युगल आवाज़ें हैं इस गीत में। यहाँ एक बात कहना ज़रूरी है कि जब भी लता जी और मुकेश जी एक साथ स्टेज शोज़ पर गए हैं, इस गीत को ज़रूर ज़रूर गाए हैं। गीत की शुरुआत में जो नोक झोंक है "शोर" और "सोर" को लेकर, उसका जनता तालियों की गड़गड़ाहट के साथ स्वागत करती आई है हर शो में। सन् १९७६ में आनंद बक्शी साहब तशरीफ़ लाए थे विविध भारती के स्टुडियो में 'विशेष जयमाला' कार्यक्रम प्रस्तुत करने हेतु। उसमें इस गीत को बजाते हुए उन्होने कहा था - "'मिलन' फ़िल्म के एक गीत का मुखड़ा लिख कर मैं बीमार पड़ गया। डॊक्टर ने बाहर जाने से रोक लगा दी। तो मैंने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को अपने घर पर बुला लिया। देखने लायक नज़ारा था। एक तरफ़ मैं लेटा हूँ, एक तरफ़ लक्ष्मी-प्यारे मुझे अंतरे का मीटर समझा रहे हैं, डॊकटर मेरी नस पकड़े खड़े हैं, और मैं गीत के बोल सोच रहा हूँ। जब यह गीत बना तो सावन के बादलों की ही तरह इस गीत ने काफ़ी शोर मचाया।" आनंद बक्शी के गीतों की खासियत थी मोहब्बत के मुख्तलिफ रंग जो उनके चाहनेवालों के लिए सावन की बौछार की तरह थी। तो आइए दोस्तों, आज का यह गीत सुनें, और सावन के नज़ारों के साथ साथ बक्शी साहब के घर के उस नज़ारे को भी महसूस करें जिसका वर्णन अभी बक्शी साहब ने दिया।
क्या आप जानते हैं...
कि आनंद बक्शी ने करीब २५० फ़िल्मों में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ काम किया, और फ़िल्म 'दोस्ती' को छोड़कर उन सभी फ़िल्मों में गीत लिखे जिनके लिए लक्ष्मी-प्यारे को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिले।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. एक अंतरे की पहली पंक्ति में शब्द है "रीत", गीत बताएं -३ अंक.
2. विभुति भुशण बंदोपाध्याय की उपन्यास पर आधारित थी ये फिल्म नाम बताएं- २ अंक.
3. इसी कहानी पर अरबिंदो मुखर्जी ने १९७० में जो बांगला फिल्म बनायीं थी उसका रिमेक थी ये क्लास्सिक, कौन थे मुख्या अभिनेता और अभिनेत्री -२ अंक.
4. आनंद बख्शी साहब को इस फिल्म के एक अन्य गीत के लिए नामांकन मिला था, पर किस गीतकार ने उनसे बाज़ी मार ली बताएं -३ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
बहुत खूब शरद जी आपके निर्णय का हम भी स्वागत करते हैं, पर अवध जी सही जवाब लाये और पदम जी और इंदु जी भी...सभी को बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
मैं शायर तो नहीं'। गीतकार आनंद बक्शी पर केन्द्रित इस लगु शृंखला की दूसरी कड़ी में आपका स्वागत है। कल हमने आनंद बक्शी साहब के जीवन के शुरुआती दिनों का हाल आपको बताया था, और हम आ पहुँचे थे सन् १९६५ पर जिस साल उनकी पहली कामयाब फ़िल्म 'जब जब फूल खिले' प्रदर्शित हुई थी। दोस्तों, कल हमने यह कहा था कि 'जब जब फूल खिले' की अपार कामयाबी के बाद आनंद बक्शी को फिर कभी पीछे मुड़ कर देखने की ज़रूरत नहीं पड़ी। यह बात 'ब्रॊड सेन्स' में शायद सही थी, लेकिन हक़ीक़त कुछ युं थी कि इस फ़िल्म के बाद परदेसी बने आनंद बक्शी की तरफ़ किसी ने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। और जैसे 'जब जब...' फ़िल्म का गीत "यहाँ मैं अजनबी हूँ" उन्ही पर लागू हो गया। उनके तरफ़ इस उदासीन व्यवहार का कारण था उस समय हर संगीतकार का अपना गीतकार हुआ करता था, जैसे शंकर जयकिशन के लिए लिखते थे शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी, नौशाद के लिए शक़ील, कल्याणजी-आनंदजी के लिए इंदीवर वगेरह। यहाँ तक कि सचिन देव बर्मन ने भी उन्हे नया समझ कर उनकी ओर ध्यान नहीं दिया। पर तक़दीर को भी अपना रंग दिखाना था, आनंद बक्शी के सूखे जीवन में भी सावन की सुरीली फुहार आनी ही थी, और वह आकर रही। आप हमारा इशारा समझ गए होंगे। जी हाँ, सन् १९६७ में, यानी कि 'जब जब फूल खिले' के दो साल बाद, जब फ़िल्मकार एल. वी. प्रसाद ने फ़िल्म 'मिलन' की योजना बनाई तो संगीतकार के रूप में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को और बतौर गीतकार आनंद बक्शी को चुना गया। सुनिल दत्त, नूतन और जमुना अभिनीत इस फ़िल्म के सुमधुर संगीत के लिए लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार दिया गया। नूतन को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री और जमुना को सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री के पुरस्कार मिले।
'मिलन' का सब से मक़बूल गीत था "सावन का महीना पवन करे सोर", जिसके लिए आनंद बक्शी साहब को नॊमिनेट किया गया था फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार के लिए। हालाँकि उन्हे यह पुरस्कार नहीं मिल पाया, लेकिन इस गीत ने वह असर छोड़ा कि आज भी यह गीत बक्शी साहब के लिए बेहतरीन गीतों में गिना जाता है। लोक शैली में लिखे हुए इस गीत को बारिश या सावन पर बनने वाले गीतों की श्रेणी में बहुत उपर के स्थान दिया जाता रहा है। आज प्रस्तुत है यही गीत 'मैं शायर तो नहीं' शृंखला के तहत। लता मंगेशकर और मुकेश की युगल आवाज़ें हैं इस गीत में। यहाँ एक बात कहना ज़रूरी है कि जब भी लता जी और मुकेश जी एक साथ स्टेज शोज़ पर गए हैं, इस गीत को ज़रूर ज़रूर गाए हैं। गीत की शुरुआत में जो नोक झोंक है "शोर" और "सोर" को लेकर, उसका जनता तालियों की गड़गड़ाहट के साथ स्वागत करती आई है हर शो में। सन् १९७६ में आनंद बक्शी साहब तशरीफ़ लाए थे विविध भारती के स्टुडियो में 'विशेष जयमाला' कार्यक्रम प्रस्तुत करने हेतु। उसमें इस गीत को बजाते हुए उन्होने कहा था - "'मिलन' फ़िल्म के एक गीत का मुखड़ा लिख कर मैं बीमार पड़ गया। डॊक्टर ने बाहर जाने से रोक लगा दी। तो मैंने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को अपने घर पर बुला लिया। देखने लायक नज़ारा था। एक तरफ़ मैं लेटा हूँ, एक तरफ़ लक्ष्मी-प्यारे मुझे अंतरे का मीटर समझा रहे हैं, डॊकटर मेरी नस पकड़े खड़े हैं, और मैं गीत के बोल सोच रहा हूँ। जब यह गीत बना तो सावन के बादलों की ही तरह इस गीत ने काफ़ी शोर मचाया।" आनंद बक्शी के गीतों की खासियत थी मोहब्बत के मुख्तलिफ रंग जो उनके चाहनेवालों के लिए सावन की बौछार की तरह थी। तो आइए दोस्तों, आज का यह गीत सुनें, और सावन के नज़ारों के साथ साथ बक्शी साहब के घर के उस नज़ारे को भी महसूस करें जिसका वर्णन अभी बक्शी साहब ने दिया।
क्या आप जानते हैं...
कि आनंद बक्शी ने करीब २५० फ़िल्मों में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ काम किया, और फ़िल्म 'दोस्ती' को छोड़कर उन सभी फ़िल्मों में गीत लिखे जिनके लिए लक्ष्मी-प्यारे को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिले।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. एक अंतरे की पहली पंक्ति में शब्द है "रीत", गीत बताएं -३ अंक.
2. विभुति भुशण बंदोपाध्याय की उपन्यास पर आधारित थी ये फिल्म नाम बताएं- २ अंक.
3. इसी कहानी पर अरबिंदो मुखर्जी ने १९७० में जो बांगला फिल्म बनायीं थी उसका रिमेक थी ये क्लास्सिक, कौन थे मुख्या अभिनेता और अभिनेत्री -२ अंक.
4. आनंद बख्शी साहब को इस फिल्म के एक अन्य गीत के लिए नामांकन मिला था, पर किस गीतकार ने उनसे बाज़ी मार ली बताएं -३ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
बहुत खूब शरद जी आपके निर्णय का हम भी स्वागत करते हैं, पर अवध जी सही जवाब लाये और पदम जी और इंदु जी भी...सभी को बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
chhodo, bekaar kee baato mein , kahee beet naa jaaye rainaa
kuchh reet jagat kee ayesee hai
har yek subah kee shaam huyee
jbki aanand bakshi ji ko amar prem ke gane chingari koi bhdke ke liye namankit kiya gaya tha
ha ha ha
वैसे क्या यह विडम्बना नहीं है कि 'जय बोलो बेईमान ...' को चुना गया था 'चिंगारी कोई भड़के...' की तुलना में.
मेरा मकसद वर्मा मलिक जी को कमतर करने का नहीं है केवल दोनों गानों के बोलों की उत्कृष्टता की बात कर रहा हूँ.
अवध लाल
आज तो मज्जा हीच आ गया ,
मौजा ही मौजा
बल्ले बल्ले
वैसे सजीवजी सुजॉय जी आप लोग दिमाग को हिला देने वाला काम कर रहे है.
कसरत ,कसरत करवाते हैं सच्ची .
कृपया बुजुर्गों के लिए एक किलो बादाम हर महीने इनाम में रखे .भाई मैं शरदजी अवध् जी ,पदमजी,पाबला जी कि बात कर रही हूँ फिलहाल मुझे ३०-३५ साल बाद तो इनकी लाईन में आना ही है,अभी तो मैं.......
हा हा अपुन की बात का बुरा माननाईच नही.बुरा माना तो पार्टी देनी पडेगी. अपुन तो बुरा मानने वाले को यही सजा देते हैं .
लोsss सजीव जी बुरा मान गए.
हे भगवान !अब? चलो शाम को आ रहे हैं हम सब इनके घर हा हा हा हा