ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 380/2010/80
'१० गीत समानांतर सिनेमा के' शृंखला में ये सुमधुर गानें इन दिनों आप सुन रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर। आज इस शृंखला की अंतिम कड़ी में प्रस्तुत है एक प्रार्थना गीत। १९८६ में एक फ़िल्म आई थी 'अंकुष' और इस फ़िल्म के लिए एक ऐसा प्रार्थना गीत रचा गया कि जिसे सुन कर लगता है कि किसी स्कूल का ऐंथेम है। "इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमज़ोर हो ना, हम चले नेक रस्ते पे हमसे भूल कर भी कोई भूल हो ना"। फ़िल्म 'गुड्डी' में "हम को मन की शक्ति देना" गीत की तरह इस गीत ने भी अपना अमिट छाप छोड़ा है। फ़िल्म तो थी ही असाधारण, लेकिन आज इसफ़िल्म के ज़िक्र से सब से पहले इस गीत की ही याद आती है। सुष्मा श्रेष्ठ और पुष्पा पगधरे की आवाज़ों में यह गीत है जिसे लिखा है अभिलाश ने और स्वरबद्ध किया है कुलदीप सिंह ने। जी हाँ, कल और आज मिलाकर हमने लगातार दो गीत सुनवाए कुलदीप सिंह के संगीत में। कल के गीत की तरह आज का यह गीत भी कुलदीप सिंह के गिने चुने फ़िल्मी गीतों में एक बेहद ख़ास मुकाम रखता है। 'अंकुष' का निर्माण एन. चन्द्रा ने किया था और उन्होने ही फ़िल्म को निर्देशित भी किया था। फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे नाना पाटेकर, रबिया अमीन, अर्जुन चक्रबर्ती, मदन जैन, और निशा पालसीकर प्रमुख। यह एक ऒफ़बीट फ़िल्म थी और जिसकी कहानी कुछ युवाओं की कहानी थी जो बेमक़सद दिन भर गलियों, सड़कों पर घूमा करते हैं, एक दूसरे से मार पीट करते हैं, लोगों को तंग करते हैं। उनकी ज़िदगी में दो औरतों का पदर्पण होता है , एक वृद्ध महिला हैं और उनकी युवती बेटी अनीता जो एक स्कूल टीचर है। अनीता को उन गुंडे लड़कों का चाल चलन बिल्कुल पसंद नहीं, लेकिन बाद वह धीरे धीरे महसूस करती है कि ये युवक दरसल इस करप्ट समाज के सताए हुए हैं और सही दिशा मिले तो ये ज़िंदगी के सही मार्ग पर चल सकते हैं। बहुए ही अच्छी फ़िल्म है और सभी को यह फ़िल्म देखनी चाहिए। और इस पूरी कहानी का निचोड़ मौजूद है इस प्रार्थना गीत में। क्या ख़ूब कहा गया है इसमें कि "हम ना सोचें हमे क्या मिला है, हम यह सोचें किया क्या है अर्पण, फूल ख़ुशियों की बाटें सभी को, सब का जीवन ही बन जाए मधुवन"। वैसे इस गीत के दो वर्ज़न है, पुरुष वर्ज़न को अशोक खोसला, मुरलीधर, घनश्याम वास्वानी, शेखर शंकर और उनके साथियों ने गाया था। लेकिन आज हम आपको इसका फ़ीमेल वर्ज़न सुनवा रहे हैं।
हम शुक्रगुज़ार हैं विविध भारती के कि जिसने अपने समय के चर्चित और कमचर्चित कलाकारों को आमंत्रित किया, उनसे मुलाक़तें की, और एक ऐसे धरोहर का निर्माण किया कि जिससे हम सभी लाभांवित हो रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे। संगीतकार कुलदीप सिंह को विविध भारती ने आमंत्रित किया था। २९ जून २००५ को 'इनसे मिलिए' कार्यक्रम में प्रसारित इस मुलाक़ात में कुलदीप जी ने बताया कि वो फ़िल्म जगत में कैसे आए, और आज के इस गीत का भी उल्लेख किया था। आइए जानें उन्ही के शब्दों में। "मैं थिएटर प्लेज़ के म्युज़िक कॊम्पोज़ किया करता था, वहाँ रमण कुमार साहब मुझे सब से बड़ा म्युज़िक डिरेक्टर मानते थे। तो उन्होने जब अपनी फ़िल्म 'साथ साथ' प्लैन की तो बिना किसी दोराय के उन्होने मुझे चुन लिया और इस तरह से मैं फ़िल्म लाइन में आ गया।" और अब फ़िल्म 'अंकुष' के बारे में कुलदीप जी बताते हैं - "चन्द्रा साहब आए मेरे पास और कहने लगे कि हम सब एक टीम बना कर काम कर रहे हैं, सारे नए लोग हैं, लो बजट की एक फ़िल्म बना रहे हैं, आप साथ देंगे क्या? मेरे लिए ख़ुशकिस्मती थी और मैं राज़ी हो गया।" और दोस्तों, इस तरह से इतना ख़ूबसूरत गीत हम सब की नज़र किया कुलदीप सिंह ने। इस गीत को एक बार सुन कर दिल नहीं भरता। एक अजीब सी शांति मिलती है इस गीत को सुनते हुए। आज की तनाव भरी ज़िंदगी में, दफ़्तर से घर लौटने के बाद अगर इस गीत को सुनें तो यक़ीनन पूरे दिन भर की थकान दूर हो जाती है। दिन भर अगर हमारा मन यहाँ वहाँ की बातों में भटक जाता है तो यह गीत फिर से एक बार हमें जीवन का सही मार्ग दिखा जाता है। बड़ी शक्ति है इस गीत में। '१० गीत समानांतर सिनेमा के' शृंखला की अंतिम कड़ी में यह गीत सुन कर आपको भी ज़रूर अच्छा लग रहा होगा। अब यह शृंखला समाप्त करने की हमें दीजिए इजाज़त, 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के बारे में अपनी राय, सुझाव और फ़रमाइशें हमें लिख भेजिए oig@hindyugm.com के ई-मेल पते पर। धन्यवाद!
क्या आप जानते हैं...
कि गायिका पुष्पा पगधरे ने ओ. पी. नय्यर के संगीत में फ़िल्म 'बिन माँ के बच्चे' में गीत गाया था- "अपनी भी एक दिन ऐसी मोटर कार होगी" और "जो रात को जल्दी सोये और सुबह को जल्दी जागे"।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. रफ़ी साहब की मधुर आवाज़ में है ये गीत, गीत बताएं-३ अंक.
2. जन्म रावलपिण्डी में २१ जुलाई १९३० को जन्मे गीतकार को समर्पित है ये श्रृखला, कौन हैं ये गीतकार- २ अंक.
3. एक प्रेम कहानी है इस गीत में बयां, कौन हैं सगीतकार -२ अंक.
4. शशि कपूर नायक हैं फिल्म के, नायिका बताएं -२ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
एक बार फिर सभी को बहुत बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'१० गीत समानांतर सिनेमा के' शृंखला में ये सुमधुर गानें इन दिनों आप सुन रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर। आज इस शृंखला की अंतिम कड़ी में प्रस्तुत है एक प्रार्थना गीत। १९८६ में एक फ़िल्म आई थी 'अंकुष' और इस फ़िल्म के लिए एक ऐसा प्रार्थना गीत रचा गया कि जिसे सुन कर लगता है कि किसी स्कूल का ऐंथेम है। "इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमज़ोर हो ना, हम चले नेक रस्ते पे हमसे भूल कर भी कोई भूल हो ना"। फ़िल्म 'गुड्डी' में "हम को मन की शक्ति देना" गीत की तरह इस गीत ने भी अपना अमिट छाप छोड़ा है। फ़िल्म तो थी ही असाधारण, लेकिन आज इसफ़िल्म के ज़िक्र से सब से पहले इस गीत की ही याद आती है। सुष्मा श्रेष्ठ और पुष्पा पगधरे की आवाज़ों में यह गीत है जिसे लिखा है अभिलाश ने और स्वरबद्ध किया है कुलदीप सिंह ने। जी हाँ, कल और आज मिलाकर हमने लगातार दो गीत सुनवाए कुलदीप सिंह के संगीत में। कल के गीत की तरह आज का यह गीत भी कुलदीप सिंह के गिने चुने फ़िल्मी गीतों में एक बेहद ख़ास मुकाम रखता है। 'अंकुष' का निर्माण एन. चन्द्रा ने किया था और उन्होने ही फ़िल्म को निर्देशित भी किया था। फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे नाना पाटेकर, रबिया अमीन, अर्जुन चक्रबर्ती, मदन जैन, और निशा पालसीकर प्रमुख। यह एक ऒफ़बीट फ़िल्म थी और जिसकी कहानी कुछ युवाओं की कहानी थी जो बेमक़सद दिन भर गलियों, सड़कों पर घूमा करते हैं, एक दूसरे से मार पीट करते हैं, लोगों को तंग करते हैं। उनकी ज़िदगी में दो औरतों का पदर्पण होता है , एक वृद्ध महिला हैं और उनकी युवती बेटी अनीता जो एक स्कूल टीचर है। अनीता को उन गुंडे लड़कों का चाल चलन बिल्कुल पसंद नहीं, लेकिन बाद वह धीरे धीरे महसूस करती है कि ये युवक दरसल इस करप्ट समाज के सताए हुए हैं और सही दिशा मिले तो ये ज़िंदगी के सही मार्ग पर चल सकते हैं। बहुए ही अच्छी फ़िल्म है और सभी को यह फ़िल्म देखनी चाहिए। और इस पूरी कहानी का निचोड़ मौजूद है इस प्रार्थना गीत में। क्या ख़ूब कहा गया है इसमें कि "हम ना सोचें हमे क्या मिला है, हम यह सोचें किया क्या है अर्पण, फूल ख़ुशियों की बाटें सभी को, सब का जीवन ही बन जाए मधुवन"। वैसे इस गीत के दो वर्ज़न है, पुरुष वर्ज़न को अशोक खोसला, मुरलीधर, घनश्याम वास्वानी, शेखर शंकर और उनके साथियों ने गाया था। लेकिन आज हम आपको इसका फ़ीमेल वर्ज़न सुनवा रहे हैं।
हम शुक्रगुज़ार हैं विविध भारती के कि जिसने अपने समय के चर्चित और कमचर्चित कलाकारों को आमंत्रित किया, उनसे मुलाक़तें की, और एक ऐसे धरोहर का निर्माण किया कि जिससे हम सभी लाभांवित हो रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे। संगीतकार कुलदीप सिंह को विविध भारती ने आमंत्रित किया था। २९ जून २००५ को 'इनसे मिलिए' कार्यक्रम में प्रसारित इस मुलाक़ात में कुलदीप जी ने बताया कि वो फ़िल्म जगत में कैसे आए, और आज के इस गीत का भी उल्लेख किया था। आइए जानें उन्ही के शब्दों में। "मैं थिएटर प्लेज़ के म्युज़िक कॊम्पोज़ किया करता था, वहाँ रमण कुमार साहब मुझे सब से बड़ा म्युज़िक डिरेक्टर मानते थे। तो उन्होने जब अपनी फ़िल्म 'साथ साथ' प्लैन की तो बिना किसी दोराय के उन्होने मुझे चुन लिया और इस तरह से मैं फ़िल्म लाइन में आ गया।" और अब फ़िल्म 'अंकुष' के बारे में कुलदीप जी बताते हैं - "चन्द्रा साहब आए मेरे पास और कहने लगे कि हम सब एक टीम बना कर काम कर रहे हैं, सारे नए लोग हैं, लो बजट की एक फ़िल्म बना रहे हैं, आप साथ देंगे क्या? मेरे लिए ख़ुशकिस्मती थी और मैं राज़ी हो गया।" और दोस्तों, इस तरह से इतना ख़ूबसूरत गीत हम सब की नज़र किया कुलदीप सिंह ने। इस गीत को एक बार सुन कर दिल नहीं भरता। एक अजीब सी शांति मिलती है इस गीत को सुनते हुए। आज की तनाव भरी ज़िंदगी में, दफ़्तर से घर लौटने के बाद अगर इस गीत को सुनें तो यक़ीनन पूरे दिन भर की थकान दूर हो जाती है। दिन भर अगर हमारा मन यहाँ वहाँ की बातों में भटक जाता है तो यह गीत फिर से एक बार हमें जीवन का सही मार्ग दिखा जाता है। बड़ी शक्ति है इस गीत में। '१० गीत समानांतर सिनेमा के' शृंखला की अंतिम कड़ी में यह गीत सुन कर आपको भी ज़रूर अच्छा लग रहा होगा। अब यह शृंखला समाप्त करने की हमें दीजिए इजाज़त, 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के बारे में अपनी राय, सुझाव और फ़रमाइशें हमें लिख भेजिए oig@hindyugm.com के ई-मेल पते पर। धन्यवाद!
क्या आप जानते हैं...
कि गायिका पुष्पा पगधरे ने ओ. पी. नय्यर के संगीत में फ़िल्म 'बिन माँ के बच्चे' में गीत गाया था- "अपनी भी एक दिन ऐसी मोटर कार होगी" और "जो रात को जल्दी सोये और सुबह को जल्दी जागे"।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. रफ़ी साहब की मधुर आवाज़ में है ये गीत, गीत बताएं-३ अंक.
2. जन्म रावलपिण्डी में २१ जुलाई १९३० को जन्मे गीतकार को समर्पित है ये श्रृखला, कौन हैं ये गीतकार- २ अंक.
3. एक प्रेम कहानी है इस गीत में बयां, कौन हैं सगीतकार -२ अंक.
4. शशि कपूर नायक हैं फिल्म के, नायिका बताएं -२ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
एक बार फिर सभी को बहुत बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
कि............ अरे देखो पाबला भैया आ गए .
वाओ मजा आ गया ,ओए होए बल्ले बल्ले
तो इस बात पे सब भंगड़ा पाएँ ?
सजीवजी,सुजोय्जी,शरदजी,पदमजी और भी सारे जी..जी जीजी आओ जी करें स्टार्ट ?हा हा हा
आनन्द बक्शी की के वारे में नेट पर wikipedia पर उनकी जन्मतिथि २१ जुलाई १९२० ही लिखी है मैं भी संशय में था किन्तु उसी जगह आगे पढ्ने पर मालूम हुआ कि १९४७ में १७ साल की आयु में उनका परिवार पाकिस्तान से भारत आया था तथा २००१ में ७२ साल की आयु में उनका निधन हो गया । इस हिसाब से उनका जन्म वर्ष १९३० ही होता है ।