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तू प्यार करे या ठुकराए हम तो हैं तेरे दीवानों में - मानते हैं आज भी मदन साहब के दीवाने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 136

'मदन मोहन विशेष' की दूसरी कड़ी में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। कल इसकी पहली कड़ी में मदन मोहन के संगीत में लताजी का गाया और राजेन्द्र कृष्ण का लिखा हुआ गीत आप ने सुना था। आज भी इसी तिकड़ी के स्वर गूँज रहे हैं इस महफ़िल में, लेकिन एक अलग ही अंदाज़ में। यूं तो आम तौर पर नायक ही नायिका के दिल को जीतने की कोशिश करता है, लेकिन हमारी फ़िल्मों में कभी कभी हालात ऐसे भी बने हैं कि यह काम नायक के बजाय नायिका के उपर आन पड़ी है। धर्मेन्द्र-मुमताज़ की फ़िल्म 'लोफ़र' में लताजी का ही एक गीत था "मैं तेरे इश्क़ में मर ना जाऊँ कहीं, तू मुझे आज़माने की कोशिश न कर", जो बहुत मक़बूल हुआ था। लेकिन आज जिस गीत की हम बात कर रहे हैं वह है १९५७ की फ़िल्म 'देख कबीरा रोया' का "तू प्यार करे या ठुकराये हम तो हैं तेरे दीवानों में, चाहे तू हमें अपना न बना लेकिन न समझ बेगानों में"। है न वही बात इस गीत में भी! वैसे यह गीत शुरु होता है एक शेर से - "न गिला होगा न शिकायत होगी, अर्ज़ है छोटी सी सुन लो तो इनायत होगी"। राजेन्द्र कृष्ण साहब ने भी एक अंतरे में क्या ख़ूब लिखा है कि "मिटते हैं मगर हौले हौले, जलते हैं मगर एक बार नहीं, हम शम्मा का सीना रखते हैं, रहते हैं मगर परवानों में"। वाह भई, इससे बेहतर अंतरा इस गीत में और क्या हो सकता था भला! वैसे शायरी के अच्छे जानकार तो मदन मोहन साहब भी थे, इस बारे में बता रहीं हैं ख़ुद लता जी - "यह मेरी आँखों देखी बात है कि कभी कभी मदन भ‍इया बस मिनटों में तर्ज़ बना देते थे। और तर्ज़ भी कैसी, वाह! शायरी पर वो बहुत ज़ोर देते थे। जब तक शब्दों में गहराई न हो, गीतकार को काग़ज़ लौटा देते थे। 'फिर कोशिश कीजिए, जब दिल से बात निकलेगी तब असर करेगी।'"

अमीय चक्रबर्ती के 'मार्स ऐंड मूवीज़' के बैनेर तले बनी इस कम बजट फ़िल्म 'देख कबीरा रोया' के मुख्य कलाकार थे अनीता गुहा, अमीता और अनूप कुमार। आज अगर यह फ़िल्म जीवित है तो सिर्फ़ और सिर्फ़ इसके गीतों की वजह से। लता जी के गाये प्रस्तुत गीत के अलावा उनका गाया "मेरी वीणा तुम बिन रोये", मन्ना डे का गाया "कौन आया मेरे मन के द्वारे पायल की झंकार लिए" तथा तलत महमूद का गाया "हम से आया न गया तुम से बुलाया न गया" आदि खासे लोकप्रिय हुए थे और आज भी बड़े चाव से सुने जाते हैं। "मदन भ‍इया ज़िंदगी की इस महफ़िल से उठ कर कब के जा चुके हैं। उनके बाद आज जब उनके अफ़साने बयान कर रही हूँ, तो वो जहाँ भी हैं, मैं उन से यही कहूँगी कि 'मदन भ‍इया, बहारें आप को क्यों ढ़ूंढे, चाहे हज़ारों मंज़िलें हों, चाहे हज़ारों कारवाँ, अपने गीतों के साथ आप हमेशा बहार बन कर छाते रहेंगे, आप के संगीत प्रेमियों की वफ़ा कम नहीं होंगी, बल्कि बढ़ती ही जा रही है।" लता जी के इन्ही अनमोल शब्दों के साथ आइये सुनते हैं आज का यह गोल्डन गीत।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा पहला "गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

1. मदन मोहन साहब के श्रेष्ठतम कामों में से एक.
2. हिंदी फिल्मों में बहुत कम नज़्म सुनने को मिलती है, ये एक बेहद मशहूर नज़्म है.
3. आखिरी पंक्ति में शब्द है -"यहाँ".

पिछली पहेली का परिणाम -
जिस दिन हमारे धुरंधर सोच में पड़ जाते हैं उस दिन हमें मज़ा आता है. स्वप्न मंजूषा जी के दोनों अंदाजे गलत निकले. पराग जी भी सोच में पड़ गए पर मान गए भाई शरद जी को. एक दम सही जवाब. ४० का आंकडा छू लिया आपने..बहुत बहुत बधाई...मनु जी आप आजकल उलझे उलझे ही मिलते हैं और मीत जी आपका भी महफिल में आने का आभार, आप तो धुरंधर संगीत प्रेमी हैं पहेली में भी हिस्सा लिया कीजिये.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

mai ye soch kar usake dar se utha tha Film : haqeekat
मुहम्मद रफी की गाई इस नज़्म में संगीतकार प्यारेलाल ने वायलिन बजाया था जैसा कि मैनें कहीं पढा़ था ।
'अदा' said…
mara computer hi baith gaya
ji haan sharad ji
yaahan tak ki usse juda ho gaya main...
'अदा' said…
badhai ho aapko, meri beti ke computer se dalna chaha jawaab lekin password enter karte karte der ho gayi
अदा जी !
कम्प्यूटर को जल्दी से खडा़ कीजिए आपकी अनुपस्थिति बहुत खलती है
manu said…
hnm...

asan sawaal
rachana said…
ये तो बहुत ही मुश्किल था
सादर
रचना
आह ! एक बार फिर मेरे पसंदीदा गानों में से एक .... शुक्रिया .....
ये नज्म मैने कई बार सुनी है, ये मेरा पसंदीदा गीत है
रफी साहब की आवाज और संगीत का जो मेल है वो गज़ब का है, एक एक शब्द जादुई है
बहुत ही खूब...

अगला गीत दर्द भरे गीतों में सर्वश्रेष्ठ गीतों में से एक...

यहांतक कि उससे जुदा हो गया मैं...
manu said…
main aahistaa-aahista..
badhtaa hi aayaa....
yahaan tak ki usse zudaa ho gayaa main...
Manju Gupta said…
इन्टरनेट कम नहीं कर रहा था.
Shamikh Faraz said…
शरद जी बधाई.
शरद जी को बधाई |

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