सुनिए ऑनलाइन कवि सम्मेलन का बारिश अंक
एक समय था जब हम महीने के नाम से मौसम का मिज़ाज बता सकते थे। उत्तर भारत में सावन का महीना झूलों का, छोटी-बड़ी नदियों में आई उफानों का, धान की रोपाई का महीना होता था- जैसे धरती हरे रंग का छाता लगा लेती थी। लेकिन मनुष्य के प्रकृति को जीतने की उत्कंठा और होड़ ने पूरी तस्वीर ही बदल दी। आलम यह कि जहाँ 20 मिलि॰ वर्षा होती थी वहाँ 500 मिलि॰ बारिश हो रही है और जहाँ बरसात न हो तो किसना खाना नहीं खाता, वहाँ सूखा पड़ा है। सूरत यह कि गुजरात के सौराष्ट्र में बाढ़ और जल-प्लावन का संकट है तो वहीं उत्तर प्रदेश के 20 जिलों को वहाँ की सरकार सूखा घोषित कर चुकी है। मौसम विज्ञानियों कि मानें तो मौसम के इस नये मिजाज़ को समझने की ज़रूरत है और यह मान लेने की ज़रूरत है कि जलवायु में 180 डिग्री का बदलाव आ चुका है। जितनी जल्दी समझेंगे, उतनी जल्दी शायद हम इस संकट से उबर पायेंगे।
इसीलिए हमने भी मौसम के जानकारों की मानने की सोची और इतनी विडम्बनाओं के बावज़ूद भी पॉडकास्ट कवि सम्मेलन का बारिश अंक लेकर हम आपके सामने उपस्थित हैं, जिसमें बारिश, सूखा और इससे जुड़ीं संवेदनाओं की 22 फुहारें हैं। इस बार के कवि सम्मेलन को हमारी इंजीनियर और इस कार्यक्रम की डेवलपर खुश्बू ने इसमें वीडियो का रंग भरा है। पूरे कार्यक्रम का स्लाइड शो बनाया है ताकि इसे केवल सुना ही नहीं, देखा भी जा सके। दृश्य-श्रव्य के इस युग में आवाज़ बिना चेहरे के अधूरी है। यह एक प्रयोग है जिसमें सजीव वीडियो का सुख तो नहीं है, फिर भी शुरूआत हो जाने का सुख है, संतोष है।
जब संचालिका रश्मि प्रभा ने हमें वीडियो बनाने का प्रस्ताव दिया तब हमें यह बहुत मुश्किल लगा। वो शायद इसलिए कि भारत में अधिकतर इंटरनेट प्रयोक्ताओं की नेट स्पीड इतनी कम होती है कि 10 मिनट का ऑडियो सुनना भी मुश्किल होता है, ऐसे में 60 मिनिट का वीडियो देखना खासा मुश्किल है। लेकिन उन्होंने कहा कि जमाना तकनीक का है और खुश्बू नये तकनीकी औज़ारों से फाइल साइज़ को इतना छोटा रखेंगी कि श्रोताओं को कोई परेशानी नहीं होगी। अब तो यह आप ही बतायेंगे कि हमारे इस प्रयोग से आप कितने खुश हैं। अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर दें कि हम इसमें किस तरह का बदलाव लायें।
वीडियो-
रश्मि प्रभा |
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खुश्बू |
इसीलिए हमने भी मौसम के जानकारों की मानने की सोची और इतनी विडम्बनाओं के बावज़ूद भी पॉडकास्ट कवि सम्मेलन का बारिश अंक लेकर हम आपके सामने उपस्थित हैं, जिसमें बारिश, सूखा और इससे जुड़ीं संवेदनाओं की 22 फुहारें हैं। इस बार के कवि सम्मेलन को हमारी इंजीनियर और इस कार्यक्रम की डेवलपर खुश्बू ने इसमें वीडियो का रंग भरा है। पूरे कार्यक्रम का स्लाइड शो बनाया है ताकि इसे केवल सुना ही नहीं, देखा भी जा सके। दृश्य-श्रव्य के इस युग में आवाज़ बिना चेहरे के अधूरी है। यह एक प्रयोग है जिसमें सजीव वीडियो का सुख तो नहीं है, फिर भी शुरूआत हो जाने का सुख है, संतोष है।
जब संचालिका रश्मि प्रभा ने हमें वीडियो बनाने का प्रस्ताव दिया तब हमें यह बहुत मुश्किल लगा। वो शायद इसलिए कि भारत में अधिकतर इंटरनेट प्रयोक्ताओं की नेट स्पीड इतनी कम होती है कि 10 मिनट का ऑडियो सुनना भी मुश्किल होता है, ऐसे में 60 मिनिट का वीडियो देखना खासा मुश्किल है। लेकिन उन्होंने कहा कि जमाना तकनीक का है और खुश्बू नये तकनीकी औज़ारों से फाइल साइज़ को इतना छोटा रखेंगी कि श्रोताओं को कोई परेशानी नहीं होगी। अब तो यह आप ही बतायेंगे कि हमारे इस प्रयोग से आप कितने खुश हैं। अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर दें कि हम इसमें किस तरह का बदलाव लायें।
वीडियो-
Comments
सभी को बहुत-बहुत बधाई
साथ में अम्मा का आर्शीवाद , रश्मि जी का संचालन और खुशबू की कलाकारी --- तो क्या कहने ... बधाई स्वीकारे ...!
रश्मि दी ने एक और राज बताया..!!
बहोत खुशकिस्मत हों विनीता तुम..
अब तुम.. तुम्हारी दुनिया..और तुम्हारे साथ दुनिया..झूमेगी जायेगी...!!
बहोत बहोत शुभकामनाएं..!!
वीडियो को मेटाकैफे से सर्वर पर डाल दिया गया है। अब इसके चलने में कोई दिक्कत नहीं आयेगी। दुबारा प्ले करेण और आनंद लें।
Ati prabhavi evam suruchipurn sanchalan hetu badhai.
Kavitayen samsamayik thin, par video nahi dikhai diya. Kaviyon ki awaz kabhi kabhi kam spasht thi, parantu aap ki awaz ne sab ki kshatipurti kar di.
Kya batayengi ki video dekhne hetu kya karun aur is sandesh ko hindi lipi me kaise parivartit karun.
Mahesh Chandra Dewedy, Lucknow
आप वीडियो फाइल को यहाँ से डाउनलोड करके किसी भी वक़्त देख-सुन सकते हैं।
हिन्दी में टाइपिंग सीखने के लिए यहाँ जायें।
बारिश पर काव्य गोष्टी हुयी थी .मैने यह पढ़ी थी -'मेघा आज न गरजो बरसों ,मिलन ऋतू आई .लगी मन में प्यास /आने की आस / छाई मन के पास'.
आभार!
Rashmi ji ek baar fir bahut umda raha sab kuch hriday se badhai...
बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गये
मौसम के हाथ भीग के सफ़्फ़ाक हो गये
बादल को क्या ख़बर कि बारिश की चाह में
कितने बुलन्द-ओ-बाला शजर ख़ाक हो गये (परवीन शाकिर)
एक तेज़ बौछार ने मुझे बीच नींद से जगाया
दरवाज़े खटखटाए ख़ाली बर्तनों को बजाया
उसके फुर्तील्रे क़दम पूरे घर में फैल गए
वह काँपते हुए घर की नींव में धँसना चाहती थी
पुरानी तस्वीरों टूटे हुए छातों और बक्सों के भीतर
पहुँचना चाहती थी तहाए हुए कपड़ों को
बिखराना चाहती थी वह मेरे बचपन में बरसना
चाहती थी मुझे तरबतर करना चाहती थी
स्कूल जानेवाले रास्ते पर
(मंगलेश डबराल)
दर्पण देख रहा
न्यूटन जैसे पृथ्वी का
आकर्षण देख रहा।
धान-पान सी आदमकद
हरियाली लिपटी है,
हाथों में हल्दी पैरों में
लाली लिपटी है
भीतर ही भीतर कितना
परिवर्तन देख रहा।
गीत-हँसी-संकोच-शील सब
मिले विरासत में
जो कुछ है इस घर में सब कुछ
प्रस्तुत स्वागत में
कितना मीठा है मौसम का
बंधन देख रहा।
नाच रही है दिन की छुवन
अभी भी आँखों में,
फूलझरी सी छूट रही है
वही पटाखों में
लगता जैसे मुड़-मुड़ कोई
हर क्षण देख रहा।
(कैलाश गौतम)
अब फुहारोंवाली बारिश होगी
बड़ी-बड़ी बूँदें तो यह
शायद कल बरसेंगे...
शायद परसों...
शायद हफ़्ता बाद... (नागार्जुन.)
जरा देर हो गयी है आने में और आपको वधाई देने में. हिन्दयुग्म के कवि-सम्मलेन की संचालिका यानी आपको मेरी तरफ से इतनी सुन्दर प्रस्तुति देने के लिये बहुत-बहुत बधाई व भविष्य के लिये तमाम शुभकामनाएँ. आपकी आवाज़ की तारीफ़ न केवल मैंने की वल्कि मेरे भाई-भावज, जो आजकल लन्दन आये हुए हैं, उन्होंने भी आपका यह प्रोग्राम सुनकर जी भर के प्रशंशा की. बारिश की तरह प्रशंशा की झड़ी लगा दी उन्होंने तो. सबकी रचनाओं से बारिश की फुहारें तो मिलीं ही साथ में पता नहीं क्या-क्या याद दिला दिया. झूला, हरियाली, मिट्टी की सोंधी खुशबू आदि-आदि. आपकी आवाज़ सुनने का फिर से इंतज़ार रहेगा. भारत वाले दोनों fan तब तक यहीं होंगे और आपके अगले प्रोग्राम का इंतज़ार कर रहे है फिर से. आपकी कोई ख़ास theme है इस बार कवितायों पर, रश्मि जी क्या?