ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 146
कवि गुरु रबीन्द्रनाथ ठाकुर की कहानियों और उपन्यासों पर बनी फ़िल्मों की जब बात आती है तब 'काबुलीवाला' का ज़िक्र करना बड़ा ही ज़रूरी हो जाता है। उनकी मर्मस्पर्शी कहानियों में से एक थी 'काबुलीवाला'। और फ़िल्म के परदे पर इस कहानी को बड़े ही ख़ूबसूरती के साथ पेश किये जाने की वजह से कहानी बिल्कुल जीवंत हो उठी है। यह कहानी थी एक अफ़ग़ान पठान अब्दुल रहमान ख़ान की और उनके साथ एक छोटी सी बच्ची मिनि के रिश्ते की। बंगाल के बाहर इस कहानी को जन जन तक पहुँचाने में इस फ़िल्म का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आज दशकों बाद यह फ़िल्म सिनेमाघरों के परदों पर या टीवी के परदे पर दिखाई तो नहीं देता लेकिन रेडियो पर इस फ़िल्म के सदाबहार गानें आप ज़रूर सुन सकते हैं। दूसरे शब्दों में आज यह फ़िल्म जीवित है अपने गीत संगीत की वजह से। इस फ़िल्म का एक गीत "ऐ मेरे प्यारे वतन... तुझपे दिल क़ुर्बान" बेहद प्रचलित देशभक्ती रचना है जिसे प्रेम धवन के बोलों पर मन्ना डे ने गाया था। इसी फ़िल्म का एक दूसरा गीत है हेमन्त कुमार की आवाज़ में जो आज हम आप के लिए लेकर आये हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में। गंगा नदी पर लिखे गये तमाम गीतों में यह गीत भीड़ से अलग सुनायी देता है। "ओ गंगा आये कहाँ से, गंगा जाये कहाँ रे, लहराये पानी मे जैसे धूप छाँव रे"। इस गीत को प्रेम धवन ने नहीं बल्कि गुलज़ार ने लिखा था।
'काबुलीवाला' १४ दिसम्बर १९६१ को प्रदर्शित हुई थी, इसका निर्माण किया था बिमल राय ने और निर्देशक थे हेमेन गुप्ता। बलराज साहनी, सोनू और उषा किरण अभिनीत इस फ़िल्म में सलिल चौधरी का संगीत था। बंगाल का लोकसंगीत इस फ़िल्म के गीतों में झलकता है। ख़ास कर के प्रस्तुत गीत में बाउल और भटियाली संगीत का बड़ा ही सुंदर प्रयोग हुआ है। इकतारा की ध्वनियाँ हमें सुदूर बंगाल के गांगीय इलाकों की सैर करा लाती है। गीत को सुनते हुए ऐसा लगता है कि वाकई हम किसी नाँव पर सवार हो कर गंगा मइया की लहरों में उथल पुथल कर रहें हों। गुलज़ार साहब ने इस गीत को लिखा था। भले ही गीत गंगा नदी को आधार बनाकर लिखा गया हो, लेकिन अगर ग़ौर करें तो पायेंगे कि इसके पीछे कई दार्शनिक बातें छुपी हुई हैं। इंसान की तुलना नदी से की गयी है; यह कोई नहीं जानता कि इंसान कहाँ से आता है और कहाँ उसकी तक़दीर उसे ले जायेगी। तमाम ख़ुशियों और दुख तक़लीफ़ों से गुज़रते हुए वह एक दिन अपने अंजाम तक पहुँच ही जाता है। ज़िंदगी की इस सच्चाई को गुलज़ार साहब ने इस सादगी और सरलता से प्रस्तुत किया है कि गीत को सुनते हुए हम उसकी धारा में जैसे बहते चले जाते हैं। और हेमन्त दा की आवाज़ के तो क्या कहने, उनकी गम्भीर और दार्शनिक, लेकिन कोमल आवाज़ में यह गीत बेहद सुंदर बन पड़ा है, सुनिये
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा पहला "गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
1. गीता दत्त की पुण्य तिथि पर कल उन्हें समर्पित होगा ये गीत.
2. बासु भट्टाचार्य ने निर्देशित किया था इस फिल्म को.
3. मुखड़े में शब्द है -"मस्त".
पिछली पहेली का परिणाम -
पराग जी एक दम सही जवाब, अब आप भी डबल फिगर यानी १० अंकों पर आ गए हैं. स्वप्न जी, मनु जी आप सब ने भी बढ़िया कोशिश की. शरद जी सभी प्रतिभागियों की हौंसला अफजाई अब आपके जिम्मे है.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
कवि गुरु रबीन्द्रनाथ ठाकुर की कहानियों और उपन्यासों पर बनी फ़िल्मों की जब बात आती है तब 'काबुलीवाला' का ज़िक्र करना बड़ा ही ज़रूरी हो जाता है। उनकी मर्मस्पर्शी कहानियों में से एक थी 'काबुलीवाला'। और फ़िल्म के परदे पर इस कहानी को बड़े ही ख़ूबसूरती के साथ पेश किये जाने की वजह से कहानी बिल्कुल जीवंत हो उठी है। यह कहानी थी एक अफ़ग़ान पठान अब्दुल रहमान ख़ान की और उनके साथ एक छोटी सी बच्ची मिनि के रिश्ते की। बंगाल के बाहर इस कहानी को जन जन तक पहुँचाने में इस फ़िल्म का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आज दशकों बाद यह फ़िल्म सिनेमाघरों के परदों पर या टीवी के परदे पर दिखाई तो नहीं देता लेकिन रेडियो पर इस फ़िल्म के सदाबहार गानें आप ज़रूर सुन सकते हैं। दूसरे शब्दों में आज यह फ़िल्म जीवित है अपने गीत संगीत की वजह से। इस फ़िल्म का एक गीत "ऐ मेरे प्यारे वतन... तुझपे दिल क़ुर्बान" बेहद प्रचलित देशभक्ती रचना है जिसे प्रेम धवन के बोलों पर मन्ना डे ने गाया था। इसी फ़िल्म का एक दूसरा गीत है हेमन्त कुमार की आवाज़ में जो आज हम आप के लिए लेकर आये हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में। गंगा नदी पर लिखे गये तमाम गीतों में यह गीत भीड़ से अलग सुनायी देता है। "ओ गंगा आये कहाँ से, गंगा जाये कहाँ रे, लहराये पानी मे जैसे धूप छाँव रे"। इस गीत को प्रेम धवन ने नहीं बल्कि गुलज़ार ने लिखा था।
'काबुलीवाला' १४ दिसम्बर १९६१ को प्रदर्शित हुई थी, इसका निर्माण किया था बिमल राय ने और निर्देशक थे हेमेन गुप्ता। बलराज साहनी, सोनू और उषा किरण अभिनीत इस फ़िल्म में सलिल चौधरी का संगीत था। बंगाल का लोकसंगीत इस फ़िल्म के गीतों में झलकता है। ख़ास कर के प्रस्तुत गीत में बाउल और भटियाली संगीत का बड़ा ही सुंदर प्रयोग हुआ है। इकतारा की ध्वनियाँ हमें सुदूर बंगाल के गांगीय इलाकों की सैर करा लाती है। गीत को सुनते हुए ऐसा लगता है कि वाकई हम किसी नाँव पर सवार हो कर गंगा मइया की लहरों में उथल पुथल कर रहें हों। गुलज़ार साहब ने इस गीत को लिखा था। भले ही गीत गंगा नदी को आधार बनाकर लिखा गया हो, लेकिन अगर ग़ौर करें तो पायेंगे कि इसके पीछे कई दार्शनिक बातें छुपी हुई हैं। इंसान की तुलना नदी से की गयी है; यह कोई नहीं जानता कि इंसान कहाँ से आता है और कहाँ उसकी तक़दीर उसे ले जायेगी। तमाम ख़ुशियों और दुख तक़लीफ़ों से गुज़रते हुए वह एक दिन अपने अंजाम तक पहुँच ही जाता है। ज़िंदगी की इस सच्चाई को गुलज़ार साहब ने इस सादगी और सरलता से प्रस्तुत किया है कि गीत को सुनते हुए हम उसकी धारा में जैसे बहते चले जाते हैं। और हेमन्त दा की आवाज़ के तो क्या कहने, उनकी गम्भीर और दार्शनिक, लेकिन कोमल आवाज़ में यह गीत बेहद सुंदर बन पड़ा है, सुनिये
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा पहला "गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
1. गीता दत्त की पुण्य तिथि पर कल उन्हें समर्पित होगा ये गीत.
2. बासु भट्टाचार्य ने निर्देशित किया था इस फिल्म को.
3. मुखड़े में शब्द है -"मस्त".
पिछली पहेली का परिणाम -
पराग जी एक दम सही जवाब, अब आप भी डबल फिगर यानी १० अंकों पर आ गए हैं. स्वप्न जी, मनु जी आप सब ने भी बढ़िया कोशिश की. शरद जी सभी प्रतिभागियों की हौंसला अफजाई अब आपके जिम्मे है.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
film: uski kahani
aapki bhi entry aaj kam dhamakedaar nahi hui hai ..:):)
aapka tahe dil se shukriya..
आज की काली घटा
मस्त मतवाली घटा
मुझसे कहती हैं के
प्यासा है कोई
कौन प्यासा है
मुझे क्या मालूम
kyon nazar laga rahe hain aap..
ha ha ha ha ha
hamari upgraded website aaj prastut ho gayee hain, usme thoda vyast tha.
please visit www.geetadutt.com
yahi hogaa ji...
hame to ab bhi yaad nahi aa rahaa....
shaayad kal sun kar aaye...
बहुत बहुत बधाई । गीता दत्त जी पर आपने इतना बड़ा काम किया । अजमेर में एक संस्था है ’कला अंकुर’ वो हमेशा किसी एक कलाकार को लेकर उसके वारे में जानकारी इकट्ठा कर उसके गीतों का एक शानदार कार्यक्रम करते हैं । यह साइट उनके बहुत काम आएगी ।
इतने दिन इतनी मेहनत और इतना अनुसंधान, हर एक के बस में नहीं.
पराग जी की मेहनत भी देख कर आ रहा हूं... सलाम....
आज की काली घटा
मस्त .मतवाली घटा