ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 150
'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल दिन-ब-दिन, कड़ी दर कड़ी आगे बढ़ती चली जा रही है दोस्तों। यह आप सब का प्यार और पुराने फ़िल्म संगीत में आप की दिलचस्पी ही है कि इस शृंखला की रोचकता में ज़रा सी भी कमी नहीं आयी है। आज इस शृंखला ने पूरे किए पूरे १५० दिन! आप सब का प्यार युंही बना रहे, तो हम आगे भी आप के पसंदीदा गीतों के इस महफ़िल को युंही रोशन करते रहेंगे। दरअसल यह महफ़िल रोशन है गुज़रे ज़माने के उन लाजवाब कलाकारों की अपार मेहनत और लगन की वजह से जिन्होने फ़िल्म संगीत के धरोहर को समृद्ध किया, उसमें बेशुमार मोतियाँ जड़ें। आज यह धरोहर एक विशाल अनमोल ख़ज़ाने का रूप ले चुकी है, और इसी ख़ज़ाने से चुन चुन कर हम मोतियाँ निकाल कर ला रहे हैं हर रोज़ आप के लिए। आज इस शृंखला की १५० वीं कड़ी के लिए हमने जो गीत चुना है वो फ़िल्म संगीत का एक सदाबहार नग़मा है। इसके संगीतकार ने अपने पूरे जीवन में केवल १४ फ़िल्मों में संगीत दिया है, लेकिन इन १४ फ़िल्मों में उन्होने कुछ ऐसा काम कर दिखाया है कि आज ५० साल बाद भी वो ज़िंदा हैं अपने रचे उन तमाम कालजयी संगीत की वजह से। हम बात कर रहे हैं संगीतकार सज्जाद हुसैन की, और आज आप को सुनवा रहे हैं उन्ही के संगीत निर्देशन में तलत महमूद का गाया १९५२ की फ़िल्म 'संगदिल' का गाना "ये हवा ये रात ये चांदनी, तेरी इक अदा पे निसार है, मुझे क्यों न हो तेरी आरज़ू तेरी जुस्तजू में बहार है"। फ़िल्म 'संगदिल' के इस गीत को सज्जाद साहब के सब से ज़्यादा लोकप्रिय गीतों में से माना जाता है। आज कोई फ़िल्म 'संगदिल' की बात करे, या फिर सज्जाद साहब की बात करें, एक ही बात है।
दिलीप कुमार और मधुबाला अभिनीत फ़िल्म 'संगदिल' एक अद्भुत प्रेम कहानी थी, जिसका निर्माण और निर्देशन आर. सी. तलवार ने किया था। आज के इस प्रस्तुत गीत को याद करते हुए सज्जाद साहब के दोस्त और हास्य अभिनेता जगदीप ने अमीन सायानी को दिये एक साक्षात्कार में कहा था - "सज्जाद साहब का यह मानना था कि ये अंग्रेज़ी साज़ जो है ना, बहुत ज़्यादा ज़रूरी नहीं है, उनको अपने साज़ों पर बड़ा ऐतबार था, हिंदुस्तानी साज़ों पर, मैंडोलीन को उन्होने वीणा बना दिया था। तो उन्होने 'संगदिल' फ़िल्म में, कहा, "बेटा मैने क्या किया, दो सारंगियाँ ली और दो 'माइक्स' रखे, और दोनों को उनके सामने बजा दिया, ऐसी धमक पैदा हुई जो हज़ारों वायलीन में भी नहीं पैदा हो सकती"।" दोस्तों, यह गीत तलत साहब का भी पसंदीदा नग़मा है। इस गीत को गाये बग़ैर वो अपना कोई भी शो ख़तम नहीं कर सकते थे। सज्जाद साहब के बारे में यह बात मशहूर थी कि वो किसी गीत की रिकॉर्डिंग में तब तक री-टेक करते रहते थे जब तक कि हर एक साज़िंदा या गायक पूरे 'पर्फ़ेक्शन' से साथ बजा या गा न लें। 'संगदिल' फ़िल्म के प्रस्तुत गीत के लिए कुल १७ री-टेक हुए थे। इस गीत के साथ सज्जाद साहब की बातें कुछ इस क़दर जुड़ी हुई हैं कि हम अक्सर इसके गीतकार को याद करना भूल जाते हैं। गीतकार राजेन्द्र कृष्ण ने इस गीत को लिखा था और क्या ख़ूब लिखा था साहब! इसमें कोई दोराय नहीं होनी चाहिये कि सज्जाद और तलत साहब के साथ साथ राजेन्द्र जी का भी इस गीत की कामयाबी में पूरा पूरा हक़ बनता है। तो सुनिये यह गीत और एक बार फिर से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की १५०-वीं कड़ी के मौके पर इस शृंखला से जुड़े सभी श्रोताओं और पाठकों को हमारी तरफ़ से हार्दिक धन्यवाद!
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा दूसरा (पहले गेस्ट होस्ट हमें मिल चुके हैं शरद तैलंग जी के रूप में)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
1. ओल्ड इस गोल्ड के १५१ वें एपिसोड से शुरू हो रही है रफी साहब पर विशेष शृंखला जो आधारित होगी अलग अलग अदाकारों के लिए किये उनके पार्श्वगायन पर.
2. इस कड़ी में हमारे पहले अदाकार होंगे - "शम्मी कपूर".
3. इस गीत के पहले चार शब्दों से प्रेरित होकर एक नयी फिल्म का नाम रखा गया था, जिसमें आमिर और माधुरी दिक्षित ने काम किया था.
इससे पहले कि हम कल के परिणाम बताएं एक ज़रूरी सूचना देना चाहेंगे, इस पहेली के जवाब वाला गीत कल के स्थान पर परसों यानी २५ तारिख को पेश होगा. कल के लिए हमें कुछ विशेष योजना बनायीं है, सुजोय जी हमें १५० शामों से लगातार गीत सुनवा रहे हैं, तो खुश होकर हमारे कुछ श्रोताओं ने सोचा कि १५० एपिसोड पूरे होने की ख़ुशी में कल सुजोय जी को कुछ ख़ास सुनाया जाए. अब ये कौन से श्रोता हैं और वो क्या सुनाएगें ये तो हम कल ही बतायेंगें. सुजोय जी को दी जा रही इस "सरप्राईस" पार्टी में आप सब भी सादर आमंत्रित हैं.
पिछली पहेली का परिणाम -
स्वप्न जी ४० का आंकडा छू लिया है आपने, निर्विरोध एकदम, बधाई...दिलीप जी, शरद जी, मनु जी, पराग जी, राज जी, दिशा जी, सुमित जी और अन्य सभी श्रोताओं से अनुरोध है कि आप सब कल की ख़ास महफिल में जरूर आयें.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल दिन-ब-दिन, कड़ी दर कड़ी आगे बढ़ती चली जा रही है दोस्तों। यह आप सब का प्यार और पुराने फ़िल्म संगीत में आप की दिलचस्पी ही है कि इस शृंखला की रोचकता में ज़रा सी भी कमी नहीं आयी है। आज इस शृंखला ने पूरे किए पूरे १५० दिन! आप सब का प्यार युंही बना रहे, तो हम आगे भी आप के पसंदीदा गीतों के इस महफ़िल को युंही रोशन करते रहेंगे। दरअसल यह महफ़िल रोशन है गुज़रे ज़माने के उन लाजवाब कलाकारों की अपार मेहनत और लगन की वजह से जिन्होने फ़िल्म संगीत के धरोहर को समृद्ध किया, उसमें बेशुमार मोतियाँ जड़ें। आज यह धरोहर एक विशाल अनमोल ख़ज़ाने का रूप ले चुकी है, और इसी ख़ज़ाने से चुन चुन कर हम मोतियाँ निकाल कर ला रहे हैं हर रोज़ आप के लिए। आज इस शृंखला की १५० वीं कड़ी के लिए हमने जो गीत चुना है वो फ़िल्म संगीत का एक सदाबहार नग़मा है। इसके संगीतकार ने अपने पूरे जीवन में केवल १४ फ़िल्मों में संगीत दिया है, लेकिन इन १४ फ़िल्मों में उन्होने कुछ ऐसा काम कर दिखाया है कि आज ५० साल बाद भी वो ज़िंदा हैं अपने रचे उन तमाम कालजयी संगीत की वजह से। हम बात कर रहे हैं संगीतकार सज्जाद हुसैन की, और आज आप को सुनवा रहे हैं उन्ही के संगीत निर्देशन में तलत महमूद का गाया १९५२ की फ़िल्म 'संगदिल' का गाना "ये हवा ये रात ये चांदनी, तेरी इक अदा पे निसार है, मुझे क्यों न हो तेरी आरज़ू तेरी जुस्तजू में बहार है"। फ़िल्म 'संगदिल' के इस गीत को सज्जाद साहब के सब से ज़्यादा लोकप्रिय गीतों में से माना जाता है। आज कोई फ़िल्म 'संगदिल' की बात करे, या फिर सज्जाद साहब की बात करें, एक ही बात है।
दिलीप कुमार और मधुबाला अभिनीत फ़िल्म 'संगदिल' एक अद्भुत प्रेम कहानी थी, जिसका निर्माण और निर्देशन आर. सी. तलवार ने किया था। आज के इस प्रस्तुत गीत को याद करते हुए सज्जाद साहब के दोस्त और हास्य अभिनेता जगदीप ने अमीन सायानी को दिये एक साक्षात्कार में कहा था - "सज्जाद साहब का यह मानना था कि ये अंग्रेज़ी साज़ जो है ना, बहुत ज़्यादा ज़रूरी नहीं है, उनको अपने साज़ों पर बड़ा ऐतबार था, हिंदुस्तानी साज़ों पर, मैंडोलीन को उन्होने वीणा बना दिया था। तो उन्होने 'संगदिल' फ़िल्म में, कहा, "बेटा मैने क्या किया, दो सारंगियाँ ली और दो 'माइक्स' रखे, और दोनों को उनके सामने बजा दिया, ऐसी धमक पैदा हुई जो हज़ारों वायलीन में भी नहीं पैदा हो सकती"।" दोस्तों, यह गीत तलत साहब का भी पसंदीदा नग़मा है। इस गीत को गाये बग़ैर वो अपना कोई भी शो ख़तम नहीं कर सकते थे। सज्जाद साहब के बारे में यह बात मशहूर थी कि वो किसी गीत की रिकॉर्डिंग में तब तक री-टेक करते रहते थे जब तक कि हर एक साज़िंदा या गायक पूरे 'पर्फ़ेक्शन' से साथ बजा या गा न लें। 'संगदिल' फ़िल्म के प्रस्तुत गीत के लिए कुल १७ री-टेक हुए थे। इस गीत के साथ सज्जाद साहब की बातें कुछ इस क़दर जुड़ी हुई हैं कि हम अक्सर इसके गीतकार को याद करना भूल जाते हैं। गीतकार राजेन्द्र कृष्ण ने इस गीत को लिखा था और क्या ख़ूब लिखा था साहब! इसमें कोई दोराय नहीं होनी चाहिये कि सज्जाद और तलत साहब के साथ साथ राजेन्द्र जी का भी इस गीत की कामयाबी में पूरा पूरा हक़ बनता है। तो सुनिये यह गीत और एक बार फिर से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की १५०-वीं कड़ी के मौके पर इस शृंखला से जुड़े सभी श्रोताओं और पाठकों को हमारी तरफ़ से हार्दिक धन्यवाद!
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा दूसरा (पहले गेस्ट होस्ट हमें मिल चुके हैं शरद तैलंग जी के रूप में)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
1. ओल्ड इस गोल्ड के १५१ वें एपिसोड से शुरू हो रही है रफी साहब पर विशेष शृंखला जो आधारित होगी अलग अलग अदाकारों के लिए किये उनके पार्श्वगायन पर.
2. इस कड़ी में हमारे पहले अदाकार होंगे - "शम्मी कपूर".
3. इस गीत के पहले चार शब्दों से प्रेरित होकर एक नयी फिल्म का नाम रखा गया था, जिसमें आमिर और माधुरी दिक्षित ने काम किया था.
इससे पहले कि हम कल के परिणाम बताएं एक ज़रूरी सूचना देना चाहेंगे, इस पहेली के जवाब वाला गीत कल के स्थान पर परसों यानी २५ तारिख को पेश होगा. कल के लिए हमें कुछ विशेष योजना बनायीं है, सुजोय जी हमें १५० शामों से लगातार गीत सुनवा रहे हैं, तो खुश होकर हमारे कुछ श्रोताओं ने सोचा कि १५० एपिसोड पूरे होने की ख़ुशी में कल सुजोय जी को कुछ ख़ास सुनाया जाए. अब ये कौन से श्रोता हैं और वो क्या सुनाएगें ये तो हम कल ही बतायेंगें. सुजोय जी को दी जा रही इस "सरप्राईस" पार्टी में आप सब भी सादर आमंत्रित हैं.
पिछली पहेली का परिणाम -
स्वप्न जी ४० का आंकडा छू लिया है आपने, निर्विरोध एकदम, बधाई...दिलीप जी, शरद जी, मनु जी, पराग जी, राज जी, दिशा जी, सुमित जी और अन्य सभी श्रोताओं से अनुरोध है कि आप सब कल की ख़ास महफिल में जरूर आयें.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
फिल्म : कल कब आएगा
मुझे मिले २ अंक...
शरद जी आज तो आप मात खा ही गए ...
हा हा हा हा हा .....
sahi jawaab diya disha ji ne..
आगे है कातिल मेरा और मैं पीछे-पीछे
फिल्म- तीसरी मंजिल
गायक मोहम्मद रफी
शम्मी कपूर/ आशा पारेख
गीत-मजरुह सुल्तान पुरी
मेरा आशय है, सुजोय जी, सजीव जी और आवाज़ के अन्य स्थंभ,
और साथ में हम जैसे सभी ’सुनकार’, जिनकी ’सजीव’ उपस्थिती के कारण हम इतने एन’जॊय’ कर रहे हैं.
जिस तरह ’शरद’ ऋतु की थंडी बयार हमें सुकून दे जाती है, जैसे किसी भी फ़ूल के ’पराग’ की खुशबू चारों ’दिशा’ में फ़ैलती है, हम ’स्वप्न’ में भी इन कलाकारों के सुरों की ’अदा’यगी पर मर मिटते हैं.आपसे अब ’मनु’हार करते हैं कि ऐसे ही गीत सुनवाते रहें और हमारे ’(सु)मीत’ बने रहिये!!
सज्जाद जी हमारे मालवा के थे - सीतामऊ (रतलाम के पास).उनकी प्रतिभा के सभी कायल थे.उनकी रचनात्मकता के लिये सभी बडे गायक गायिका उनके लिये गाने के लिये लालायित रहते थे.इसके बावजूद कि वे बडे कठिन टास्कमास्टर थे.
दिलीप जी की दिल की बातों ने कमाल ही कर दिया
बहुत खूब, बेहतरीन, लाजवाब, बे-मिसाल, कमाल, धमाल, बवाल, भोपाल, नेपाल ....etc
समझ में नहीं आया कि आपने पहेली का उत्तर न दे कर सुजॊय जी की बात का उत्तर क्यों दे दिया और दिशा जी नम्बर ले गईं । मैं ये भी नहीं समझा कि मुझे मात कैसे हुई । दिलीप जी आपने बहुत शानदार तरीके से सबको समेटा । धन्यवाद !
jawab maine de diya tha lagta hai wo gaya hi nahi mera computer bahut hi badmaash hai aur fir main doosri baat par dhyan dene lagi aayi to pata chala ki jawab to reh gaya aur...
दिशा जी को सही जवाब के लिए बधाईया.
सुजॉय जी और सजीव जी की अथक परिश्रम के कारन आज हम यह १५० वा आलेख पढ़ रहे है. आप दोनोंको और आवाज़ की पूरी टीम को शत शत नमन.
धन्यवाद
पराग
मैं हर शाम इस आयोजन का आनंद लेता हूँ, बस जवाब नहीं मालूम होने के कारण टिप्पणी नहीं कर पाता।
शायद आप सब को यह मालूम हो कि हर मंगलवार और शुक्रवार को हम आवाज़ पर हीं "महफ़िल-ए-गज़ल" लेकर हाज़िर होते हैं। "अदा" जी, "दिशा" जी, "शरद" जी और "मनु" जी तो उसके नियमित पाठक हैं हीं, लेकिन मैं बाकियों से मुख्यत: "दिलीप" जी और "पराग" जी से यह आग्रह करता हूँ कि वे भी कम से कम एक बार महफ़िल में तशरीफ़ लाने का कष्ट करें। उम्मीद है कि आप हमें निराश नहीं करेंगे।
-विश्व दीपक
क्या आप के घर के आसपास कोई नदी तालाब या समन्दर नहीं है बेचारे कम्प्यूटर को उसमें डुबकी लगाने की मन में आ रही होगी ।