ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 147
सुप्रसिद्ध पार्श्व गायिका गीता दत्त जी के आख़िर के दिनों की दुखभरी कहानी का ज़िक्र हमनें यहाँ कई बार किया है। दोस्तों, आज यानी कि २० जुलाई का ही वह दिन था, साल १९७२, जब काल के क्रूर हाथों ने गीता जी को हम से हमेशा हमेशा के लिए छीन लिया था। आज उनके गुज़रे ३७ साल हो गये हैं, लेकिन उनके बाद दूसरी किसी भी गायिका की आवाज़ के ज़रिये उनका वह अंदाज़ फिर वापस नहीं आया, जो कभी समा को नशीला बना जाती थी तो कभी मन में एक अजीब सी विकलता भर देती थी, और कभी वेदना के स्वरों से मन को उदास कर देती थी। अगर आप मेरे एक बात का कोई ग़लत अर्थ न निकालें तो मैं यह ज़रूर कहना चाहूँगा कि लता जी की आवाज़ के करीब करीब सुमन कल्याणपुर की आवाज़ ५० और ६० के दशकों में सुनाई दी थी, और दक्षिण की सुप्रसिद्ध गायिका एस. जानकी की आवाज़ भी कुछ कुछ आशा जी की आवाज़ से मिलती जुलती है। लेकिन ऐसी कोई भी दूसरी आवाज़ आज तक पैदा नहीं हुई है जो गीता जी की आवाज़ के करीब हो। कुल मिलाकर कहने का अर्थ यह है कि गीता दत्त, गीता दत्त हैं, उनकी जगह आज तक न कोई ले सका है और लगता नहीं कि आगे भी कोई ले पायेगा। आज गीता दत्त जी की पुण्य तिथि के अवसर पर हिंद युग्म की तरफ़ से हम उन्हे दे रहे हैं भावभीनी श्रद्धांजली, और सुनवा रहे हैं उनका गाया फ़िल्म 'उसकी कहानी' का एक बड़ा ही सुंदर गीत - "आज की काली घटा, मस्त मतवाली घटा".
'उसकी कहानी' फ़िल्म आयी थी सन् १९६६ में जिसका निर्माण बासु भट्टाचार्य ने किया था और मुख्य कलाकार थे तरुण घोष और अंजु महेन्द्रू। फ़िल्म का संगीत तैयार किया था एक बड़े ही कमचर्चित संगीतकार ने जिनका नाम था कानु राय। कानु राय ५० के दशक में हावड़ा से मुंबई गायक बनने आये थे। गायक बनने की उनकी तमन्ना तो पूरी नहीं हो सकी, लेकिन संगीतकार सलिल चौधरी के यहाँ उनकी अक्सर बैठकें होती थीं। यहीं उनका दो ऐसे व्यक्तियों से परिचय हुआ जो आगे चलकर सही मायने में उनके हितकर साबित हुए। और ये दो व्यक्ति थे गीतकार शैलेन्द्र और फ़िल्मकार बासु भट्टाचार्य। बासु साहब की पाँच फ़िल्मों में कानु राय का संगीत था (अनुभव, उसकी कहानी, आविष्कार, गृहप्रवेश, स्पर्श)। दोस्तों, आज हमने गीता जी की पुण्य तिथि पर कानु राय का स्वरबद्ध गीत इसलिए शामिल किया क्योंकि गीता जी को आख़िरी बार के लिए गवाने का श्रेय भी कानु राय को ही जाता है। उनकी संगीतबद्ध फ़िल्म 'अनुभव' में गीता जी की आवाज़ अंतिम बार सुनायी दी थी। 'उसकी कहानी' फ़िल्म के प्रस्तुत गीत में कैफ़ी आज़मी ने फ़िल्मी गीत की साधारण स्वरूप से बाहर निकलकर बिना तुकबंदी किए गाने को लिखा था। गीत में और्केस्ट्रेशन कम से कम रखा गया है। गीत जैसे एक ठंडी और हल्की बारिश के झोंके की तरह आता है और बड़े ही कोमलता से हमें भीगो जाता है। गीता जी के गले की कारिगरी के तो कहने ही क्या, कोमल लेकिन मादक। इसमें कोई शक़ नहीं कि यह गीत फ़िल्म संगीत के धरोहर का एक अनमोल नगीना है। दोस्तों, गीत सुनने से पहले एक बात और हम बताना चाहते हैं कि कई लोगों में यह ग़लत धारणा बनी हुई है कि मुकुल राय की तरह कानु राय भी गीता दत्त के भाई थे। लेकिन यह सच नहीं है, मुकुल राय ज़रूर गीता जी के भाई हैं, लेकिन कानु राय का गीता जी से कोई पारिवारिक संबंध नहीं है। लीजिए, गीता जी की याद में सुनते हैं "आज की काली घटा, मस्त मतवाली घटा, मुझसे कहती है के प्यासा है कोई, कौन प्यासा है मुझे क्या मालूम"। हम भी गीता जी की आवाज़ के प्यासे हैं, चाहे कितना भी उनके गानें सुन लें, दिल ही नहीं भरता, दिल तो बस यही करता है कि उनको सुनते ही चले जायें, सुनते ही चले जायें, सुनते ही चले जायें...
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा दूसरा (पहले गेस्ट होस्ट हमें मिल चुके हैं शरद तैलंग जी के रूप में)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
1. मुकेश की आवाज़ गूंजेगी कल बहुत दिनों बाद इस महफिल में.
2. शैलेन्द्र ने लिखा है इस बेहद खूबसूरत गीत को.
3. मुखड़े में शब्द है -"सुरूर".
पिछली पहेली का परिणाम -
३४ अंकों के साथ स्वप्न जी अपनी मंजिल की तरफ तेजी से अग्रसर हैं. बधाई आपको. पराग जी साईट काफी अच्छी बन पड़ी है बधाई आपको भी, हम सब आपके आभारी है क्योंकि आप ही के कारण आज हम सब गीता जी को और अधिक समझ पाए हैं. राज जी, मनु जी, शमिख जी, और शरद जी आप सब का भी आभार महफिल में पधारने के लिए.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
सुप्रसिद्ध पार्श्व गायिका गीता दत्त जी के आख़िर के दिनों की दुखभरी कहानी का ज़िक्र हमनें यहाँ कई बार किया है। दोस्तों, आज यानी कि २० जुलाई का ही वह दिन था, साल १९७२, जब काल के क्रूर हाथों ने गीता जी को हम से हमेशा हमेशा के लिए छीन लिया था। आज उनके गुज़रे ३७ साल हो गये हैं, लेकिन उनके बाद दूसरी किसी भी गायिका की आवाज़ के ज़रिये उनका वह अंदाज़ फिर वापस नहीं आया, जो कभी समा को नशीला बना जाती थी तो कभी मन में एक अजीब सी विकलता भर देती थी, और कभी वेदना के स्वरों से मन को उदास कर देती थी। अगर आप मेरे एक बात का कोई ग़लत अर्थ न निकालें तो मैं यह ज़रूर कहना चाहूँगा कि लता जी की आवाज़ के करीब करीब सुमन कल्याणपुर की आवाज़ ५० और ६० के दशकों में सुनाई दी थी, और दक्षिण की सुप्रसिद्ध गायिका एस. जानकी की आवाज़ भी कुछ कुछ आशा जी की आवाज़ से मिलती जुलती है। लेकिन ऐसी कोई भी दूसरी आवाज़ आज तक पैदा नहीं हुई है जो गीता जी की आवाज़ के करीब हो। कुल मिलाकर कहने का अर्थ यह है कि गीता दत्त, गीता दत्त हैं, उनकी जगह आज तक न कोई ले सका है और लगता नहीं कि आगे भी कोई ले पायेगा। आज गीता दत्त जी की पुण्य तिथि के अवसर पर हिंद युग्म की तरफ़ से हम उन्हे दे रहे हैं भावभीनी श्रद्धांजली, और सुनवा रहे हैं उनका गाया फ़िल्म 'उसकी कहानी' का एक बड़ा ही सुंदर गीत - "आज की काली घटा, मस्त मतवाली घटा".
'उसकी कहानी' फ़िल्म आयी थी सन् १९६६ में जिसका निर्माण बासु भट्टाचार्य ने किया था और मुख्य कलाकार थे तरुण घोष और अंजु महेन्द्रू। फ़िल्म का संगीत तैयार किया था एक बड़े ही कमचर्चित संगीतकार ने जिनका नाम था कानु राय। कानु राय ५० के दशक में हावड़ा से मुंबई गायक बनने आये थे। गायक बनने की उनकी तमन्ना तो पूरी नहीं हो सकी, लेकिन संगीतकार सलिल चौधरी के यहाँ उनकी अक्सर बैठकें होती थीं। यहीं उनका दो ऐसे व्यक्तियों से परिचय हुआ जो आगे चलकर सही मायने में उनके हितकर साबित हुए। और ये दो व्यक्ति थे गीतकार शैलेन्द्र और फ़िल्मकार बासु भट्टाचार्य। बासु साहब की पाँच फ़िल्मों में कानु राय का संगीत था (अनुभव, उसकी कहानी, आविष्कार, गृहप्रवेश, स्पर्श)। दोस्तों, आज हमने गीता जी की पुण्य तिथि पर कानु राय का स्वरबद्ध गीत इसलिए शामिल किया क्योंकि गीता जी को आख़िरी बार के लिए गवाने का श्रेय भी कानु राय को ही जाता है। उनकी संगीतबद्ध फ़िल्म 'अनुभव' में गीता जी की आवाज़ अंतिम बार सुनायी दी थी। 'उसकी कहानी' फ़िल्म के प्रस्तुत गीत में कैफ़ी आज़मी ने फ़िल्मी गीत की साधारण स्वरूप से बाहर निकलकर बिना तुकबंदी किए गाने को लिखा था। गीत में और्केस्ट्रेशन कम से कम रखा गया है। गीत जैसे एक ठंडी और हल्की बारिश के झोंके की तरह आता है और बड़े ही कोमलता से हमें भीगो जाता है। गीता जी के गले की कारिगरी के तो कहने ही क्या, कोमल लेकिन मादक। इसमें कोई शक़ नहीं कि यह गीत फ़िल्म संगीत के धरोहर का एक अनमोल नगीना है। दोस्तों, गीत सुनने से पहले एक बात और हम बताना चाहते हैं कि कई लोगों में यह ग़लत धारणा बनी हुई है कि मुकुल राय की तरह कानु राय भी गीता दत्त के भाई थे। लेकिन यह सच नहीं है, मुकुल राय ज़रूर गीता जी के भाई हैं, लेकिन कानु राय का गीता जी से कोई पारिवारिक संबंध नहीं है। लीजिए, गीता जी की याद में सुनते हैं "आज की काली घटा, मस्त मतवाली घटा, मुझसे कहती है के प्यासा है कोई, कौन प्यासा है मुझे क्या मालूम"। हम भी गीता जी की आवाज़ के प्यासे हैं, चाहे कितना भी उनके गानें सुन लें, दिल ही नहीं भरता, दिल तो बस यही करता है कि उनको सुनते ही चले जायें, सुनते ही चले जायें, सुनते ही चले जायें...
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा दूसरा (पहले गेस्ट होस्ट हमें मिल चुके हैं शरद तैलंग जी के रूप में)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
1. मुकेश की आवाज़ गूंजेगी कल बहुत दिनों बाद इस महफिल में.
2. शैलेन्द्र ने लिखा है इस बेहद खूबसूरत गीत को.
3. मुखड़े में शब्द है -"सुरूर".
पिछली पहेली का परिणाम -
३४ अंकों के साथ स्वप्न जी अपनी मंजिल की तरफ तेजी से अग्रसर हैं. बधाई आपको. पराग जी साईट काफी अच्छी बन पड़ी है बधाई आपको भी, हम सब आपके आभारी है क्योंकि आप ही के कारण आज हम सब गीता जी को और अधिक समझ पाए हैं. राज जी, मनु जी, शमिख जी, और शरद जी आप सब का भी आभार महफिल में पधारने के लिए.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
music: shankar jaikishan
"आज की काली घटा, मस्त मतवाली घटा"
yah geet mere computer to nahi chal raha hai, koi problem to nahi ho gayi hai ise upload karne mein..
ya fir ye 'MERE COMPUTER KA DEEWANAPAN HAI'
ये मेरा दीवाना पन है या मोहब्बत का सुरुर
जो ना समझे तो ये है तेरी नजरों का कुसूर
फिल्म - यहूदी
दिलीप कुमार
आज तो आपने सबसे कम समय लगाया । मात्र 1 मिनट में ही बता दिया ।
’दिल से तुझको बेदिली है, मुझको है दिल का गुरूर,
तू ये माने के न माने ,लोग मानेंगे ज्रूरूर ।
yahi geet hai.....
chaahe tu aayr na aaye ...
ham kareinge..
intezaar............
कैफ़ी आज़मी नें यह गीत -आज की काली घटा में कमाल कर दिया. ज़्यादा मेहनत कनु रोय की की ऐसे शब्दों को मेलोडी में पिरो दिया.
मुकेश जी का कालातीत गीत!!!मेरा स्टेज पर का पहिला पहिला गीत.
http://www.youtube.com/watch?v=i-rugjj4Efw
Sujoy jee, hamari poori team ko khushi hai kee aap ko hamari website pasand aayee.
Parag
sajeev , sujoy , shailesh , aur is mahfil ke sabhee deewanon aur unke deewanepan ko salaam !
AUR SHARAD JEE BADHAYEE !
MEZBANEE AISEE HO KI MAZA AA JAYE .
जो ना समझे तो ये है तेरी नजरों का कुसूर