Skip to main content

प्यार पर बस तो नहीं है मेरा लेकिन फिर भी, तू बता दे कि तुझे प्यार करूँ या न करूँ...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 144

जरूह सुल्तानपुरी, क़मर जलालाबादी, प्रेम धवन आदि गीतकारों के साथ काम करने के बाद सन् १९५८ में संगीतकार ओ. पी. नय्यर को पहली बार मौका मिला शायर साहिर लुधियानवी के लिखे गीतों को स्वर्बद्ध करने का। फ़िल्म थी 'सोने की चिड़िया'। इस्मत चुगतई की लिखी कहानी पर आधारित फ़िल्म कार्पोरेशन ऒफ़ इंडिया के बैनर तले बनी इस फ़िल्म का निर्देशन किया था शाहीद लतीफ़ ने, और फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे बलराज साहनी, नूतन और तलत महमूद। जी हाँ दोस्तों, यह उन गिनी चुनी फ़िल्मों में से एक है जिनमें तलत महमूद ने अभिनय किया था। इस फ़िल्म में तलत साहब और आशा भोंसले के गाये कम से कम दो ऐसे युगल गीत हैं जिन्हे अपार सफलता हासिल हुई। इनमें से एक तो था "सच बता तू मुझपे फ़िदा कब हुआ और कैसे हुआ", और दूसरा गाना था "प्यार पर बस तो नहीं है मेरा लेकिन फिर भी, तू बता दे कि तुझे प्यार करूँ या न करूँ"। और यही दूसरा गीत आज के इस महफ़िल की शान बना है। साहिर साहब के क़लम से निकला हुआ, और प्रेमिका से प्यार करने की इजाज़त माँगता हुआ यह नग़मा प्रेम निवेदन की एक अनूठी मिसाल है। इस भाव पर बहुत सारे गानें बनें हैं, लेकिन इस गीत के बोल हर एक को पीछे छोड़ देते है शब्दों और भाषा की उत्कृष्टता में।

बरसों पहले फ़ौजी भा‍इयों से विविध भारती के जयमाला कार्यक्रम में मुख़ातिब तलत महमूद ने इस गीत के बारे में कहा था - "मैं और कुछ चुनिंदा कलाकार एक बार सिक्किम गये हुए थे आप फ़ौजी भा‍इयों का मनोरंजन करने। तब मुझे समझ में आया कि आप लोग मुझे और मेरे गाये गीतों को कितना पसंद करते हैं। जब भी मैं आप लोगों के लिए प्रोग्राम पेश करता हूँ तो एक गीत की फ़रमाइश अक्सर आती है, और वह गीत है फ़िल्म 'सोने की चिड़िया' का, जिसमें मैं 'हीरो' था और इस गीत में मैं और 'हीरोइन' एक कश्ती पे सवार हो कर गाते हैं।" दोस्तों, एक और अंश 'दस्तान-ए-नय्यर' से हो जाये! नय्यर साहब बता रहे हैं - "तलत साहब की एक तसवीर थी ('सोने की चिड़िया'), फ़िल्म 'बाज़' में वो गाना गाये, "एक हसरत की तसवीर हूँ मैं, जो बन बन के बिगड़े वह तक़दीर हूँ मैं", उसके बाद 'सोने की चिड़िया' में वो एक 'साइड हीरो' के रोल में आये। वो दो गानें मेरे पास गाये - "प्यार पर बस..." और "सच बता..."। वेल्वेट वायस और बहुत शरीफ़ आदमी, वो भी शरीफ़ आदमी कम बात करने वाले, काम से काम रखते थे!" जब नय्यर साहब से अहमद वसी साहब ने सवाल किया कि "क्या आप को कोई दुशवारी नहीं लगी क्यूंकि तलत साहब की गायकी बिल्कुल अलग थी, उनकी गायकी ग़ज़ल से बहुत क़रीब थी?", तो नय्यर साहब का सीधा और बेझिझक जवाब था - "नहीं, गायकी कोई चीज़ नहीं होती है, यह होगी क्लासिकल सिंगर्स की बनायी हुई, 'फ़िल्म लाइन' में कोई गायकी नहीं है, गायकी तो हम बनाते हैं लोगों की। अब रफ़ी साहब की आवाज़ को कितना तंग और दबाके इस्तेमाल किया गया है, यह तो काम्पोसर पे बहुत डिपेंड करता है कि किस गायक से कैसे काम लेना है"। तो दोस्तों, बातें बहुत सी हो गयी, अब बारी गीत सुनने की।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा पहला "गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

1. जब भी सबसे खूबसूरत दोगानों की बात होगी इस गीत का अवश्य जिक्र आएगा.
2. अनंत ठाकुर के निर्देशन में बनी इस फिल्म में सदाबहार हिट नायक और नायिका की जोड़ी थी.
3. मुखड़े में शब्द है -"मधुर".

पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी बहुत बहुत बधाई. ओल्ड इस गोल्ड पहेली के सबसे पहले विजेता हैं आप. जल्द ही आपकी पसंद गीत शामिल होने इस कारवाँ में. पूरा ओल्ड इस गोल्ड परिवार जोरदार तालियों से कर रहा है आज अपने इस पहले विजेता की ताजपोशी, अदा जी देखते हैं अब आपको कौन टक्कर देगा, अभी तक तो आप पराग जी से बहुत आगे हैं, पर फिर भी मुकाबला कड़ा होगा ऐसी उम्मीद है. दिशा जी अगर थोडा समय से (अमूमन ६.३० बजे शाम भारतीय समय अनुसार) यदि आ पायें तो सब पर भारी पड़ सकती हैं. मनु जी पीछे रह जाते हैं, वैसे रचना जी, दिलीप जी, और कभी कभी सुमित जी भी अपना जलवा दिखा ही देते हैं. खैर अगला विजेता कोई भी हो, पर फिलहाल तो रंग जमा रखा है शरद तैलंग जी ने. शरद जी ओल्ड इस गोल्ड से युहीं जुड़े रहिये, यदि बाकी सब जवाब देने में असमर्थ रहे तो आपको ही जवाब देना पड़ेगा.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

Disha said…
pholon ke rang se dil kee kalam se tujhako likhi roj paatee
सुजॊय जी
बहुत बहुत धन्यवाद जो मुझे ये सम्मान दिया । आज का गीत मेरे लिए बहुत आसान है अनेक द्फ़ा मैं मंच पर इसे पेश कर चुका हूँ किन्तु जवाब अभी नहीं दूंगा । इन्तज़ार करता हूँ ।
दिशा जी ये युगल गीत नहीं है
'अदा' said…
aaja sanam madhur
manu said…
hnm..........
:)

fir rah gayaa pichhe....

:(
manu said…
hnm..........
:)

fir rah gayaa pichhe....

:(
Parag said…
Aaja sanam madhur chandni mein hum..film chori chori ka geet hai.
'अदा' said…
manu ji,
aap sochte bahut hain
itna naa socha karein...
'अदा' said…
sharad ji,
main to bas baal-baal bachi hun, isliye aapka swagaat bhi nahi kiya hai..
to Sharad ji aapka hardik abhinandan is program to sanchalit karne keliye,
aur ye dekhiye mujhe 2 ank mil hi gaye hain :):)
अदा जी
आपसे और पराग जी से ही मुझे डर लगता था । आप तो बडी जल्दी जवाब दे दिया करतीं थी तभी तो हम दोनों ४-५ बार साथ साथ आए. आप सब का बहुत आभारी हूँ कि आपके होने से रोचकता बनी रही । शैल जी का स्वास्थ्य अब कैसा है ?
'अदा' said…
Sharad ji,
aap logonki prarthana kaam aayi kal raat unhein ghar le aayi hun, bas subah unki dekh bhaal mein hi der ho gayi mujhe,
aapne jis geet ka chayan kiya hai us geet ke baare mein ham kya kah sakte hain..
bas sunte hain kuch kahne ke kabil hi nahi rehte hain..
aapka bahut bahut dhyawaad..
शरद जी को धन्यवाद. बाकी सभी भी...

मैं समझता हूं कि पहेली की वजह से अच्छे गानों के लिये मन के उद्गार कभी कभी रह जाते हैं.वैसे दोनों का महत्व है.

प्यार पर बस तो नहीं ... ये गीत दो वजह से और पसंद है. एक तो साहिर और नैय्यर साहब की जुगलबंदी क्या बात है.., दूसरे , इस गाने की बंदिश खास नय्यर स्टाईल की ना हो कर अल्हैदा है, जिसमें स्वरों की उपस्थिती यूं है जैसे किसी झील में कश्ती जैसा कि फ़िल्म में है.

सुजोय जी , आप एक बहुत ही मेहनत भरा , प्यारा सा काम कर रहे हैं, और देखिये, हम सारे संगीत के दिवाने कितने प्यार से आप के पोस्ट का इंतेज़ार करते हैं.धन्यवाद!!

चोरी चोरी फ़िल्म का ये युगल गीत , ALL TIME BEST DUETS की लिस्ट में अव्वल नम्बर पर होगा. ऐसा कोई भी performing गायक या गायिका नही मिलेंगे ,जिन्होने इस गेत को नहीं गाया हो....
Shamikh Faraz said…
आजा सनम मधुर चांदनी में हम
Manju Gupta said…
शरद जी को बधाई जवाब है आजा सनम मधुर चांदनी में.........

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...