४०० एपिसोडों के लंबे सफर में ओल्ड इस गोल्ड ने याद किये कुछ ऐसे फनकारों को भी जिन्हें समय ने भुला ही दिया था
ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # २३
४० के दशक की एक प्रमुख गायिका रहीं हैं ज़ोहराबाई अंबालेवाली। भले ही फ़िल्म संगीत का सुनेहरा दौर ५० के दशक से माना जाता है, लेकिन सुनहरे गीतों का यह सिलसिला ४० के दशक के मध्य भाग से ही शुरु हो चुका था, और इसी दौरान ज़ोहराबाई के गाए एक से एक हिट गीत आ रहे थे। नौशाद साहब के संगीत में ज़ोहराबाई ने फ़िल्म 'रतन' में एक गीत गाया था "अखियाँ मिलाके जिया भरमके चले नहीं जाना", जो शायद ज़ोहराबाई का सब से लोकप्रिय गीत साबित हुआ। आज इसी गीत का रिवाइव्ड वर्ज़न प्रस्तुत है। इस फ़िल्म के संगीत से जुड़ी कुछ बड़ी ही दिलचस्प और मज़ेदार बातें नौशाद साहब ने विविध भारती के 'नौशादनामा' शृंखला में कहे थे सन् २००० में, आइए आज उन्ही पर एक नज़र दौड़ाएँ। नौशाद साहब से बातचीत कर रहे हैं कमल शर्मा।
प्र: अच्छा वह क़िस्सा कि जब आप की शादी में बैण्ड वाले आप के ही गानें की धुन बजा रहे थे, उसके बारे में कुछ बताइए।
उ: १९४४ में 'रतन' के गानें बहुत हिट हो गए थे। उससे पहले मैं घर छोड़ कर बम्बई आया था। एक दिन मेरे वालिद ने मुझसे कहा था कि 'तुमने मेरा कहना कभी नहीं माना, आज फ़ैसला होके रहेगा, अगर संगीत चाहिए तो घर छोड़ दो और अगर घर चाहिए तो संगीत को छोड़ना होगा'। मैंने १९३५ में घर छोड़ दिया।
प्र: क्या उम्र रही होगी आपकी उस वक़्त?
उ: १३/१४ या १५। उसके बाद मैं घर नहीं गया, कहाँ कहाँ भटका। फ़ूटपाथ पर सोता था, फ़ूटपाथ के उस साइड ब्रॊडवे थिएटर थी जिसकी रोशनी फ़ूटपाथ पर पड़ती थी। और एक बार उसी थिएटर में मेरी फ़िल्म 'बैजु बावरा' की जुबिली हुई। मैं उस थिएटर की बैल्कोनी से उस फ़ूटपाथ को देख रहा था कि मेरी आंखों में पानी आ गए। विजय भट्ट ने पूछा कि क्या हुआ, आप रो क्यों रहे हैं? मैंने कहा कि उस फ़ूटपाथ को देख कर आंखें भर आई, १६ साल लगे इस फ़ूटपाथ को पार करने में। ख़ैर, माँ का पैगाम आया कि शादी के लिए लड़की तय हो गई है, मैं घर जा जाऊँ। उस वक़्त मैं नौशाद बन चुका था। माँ ने कहा कि लड़की वाले सूफ़ी लोग हैं, इसलिए उन लोगों से यह नहीं कहना कि तुम संगीत का काम करते हो, बल्कि तुम दर्ज़ी का काम करते हो। मैंने सोचा कि संगीतकार से दर्ज़ी की इज़्ज़त ज़्यादा हो गई है। तो शादी में शामियाना लगाया गया, और बैण्ड वाले मेरा ही गाना बजाए जा रहे हैं और मैं दर्ज़ी बना बैठा हूँ। किसी ने फिर कहीं से कहा कि कौन ये सब गानें बजा रहा है? सब को ख़राब कर रहा है। उस समय यही सब गानें चल रहे थे, "सावन के बादलों", "अखियाँ मिलाके", वगैरह।
ओल्ड इस गोल्ड एक ऐसी शृंखला जिसने अंतरजाल पर ४०० शानदार एपिसोड पूरे कर एक नया रिकॉर्ड बनाया. हिंदी फिल्मों के ये सदाबहार ओल्ड गोल्ड नगमें जब भी रेडियो/ टेलीविज़न या फिर ओल्ड इस गोल्ड जैसे मंचों से आपके कानों तक पहुँचते हैं तो इनका जादू आपके दिलो जेहन पर चढ कर बोलने लगता है. आपका भी मन कर उठता है न कुछ गुनगुनाने को ?, कुछ लोग बाथरूम तक सीमित रह जाते हैं तो कुछ माईक उठा कर गाने की हिम्मत जुटा लेते हैं, गुजरे दिनों के उन महान फनकारों की कलात्मक ऊर्जा को स्वरांजली दे रहे हैं, आज के युग के कुछ अमेच्युर तो कुछ सधे हुए कलाकार. तो सुनिए आज का कवर संस्करण
गीत - अखियाँ मिलाके...
कवर गायन - डाक्टर पारसमणी आचार्य
ये कवर संस्करण आपको कैसा लगा ? अपनी राय टिप्पणियों के माध्यम से हम तक और इस युवा कलाकार तक अवश्य पहुंचाएं
डाक्टर पारसमणी आचार्य
मैं पारसमणी राजकोट गुजरात से हूँ, पापा पुलिस में थे और बहुत से वाध्य बजा लेते थे, उनमें से सितार मेरा पसंदीदा था. माँ भी HMV और AIR के लिए क्षेत्रीय भाषा में पार्श्वगायन करती थी, रेडियो पर मेरा गायन काफी छोटी उम्र से शुरू हो गया था. मैं खुशकिस्मत हूँ कि उस्ताद सुलतान खान साहब, बेगम अख्तर, रफ़ी साहब और पंडित रवि शंकर जी जैसे दिग्गजों को मैंने करीब से देखा और उनका आशीर्वाद पाया. गायन मेरा शौक तब भी था और अब भी है, रफ़ी साहब, लता मंगेशकर, सहगल साहब, बड़े गुलाम अली खान साहब और आशा भोसले मेरी सबसे पसंदीदा हैं
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
४० के दशक की एक प्रमुख गायिका रहीं हैं ज़ोहराबाई अंबालेवाली। भले ही फ़िल्म संगीत का सुनेहरा दौर ५० के दशक से माना जाता है, लेकिन सुनहरे गीतों का यह सिलसिला ४० के दशक के मध्य भाग से ही शुरु हो चुका था, और इसी दौरान ज़ोहराबाई के गाए एक से एक हिट गीत आ रहे थे। नौशाद साहब के संगीत में ज़ोहराबाई ने फ़िल्म 'रतन' में एक गीत गाया था "अखियाँ मिलाके जिया भरमके चले नहीं जाना", जो शायद ज़ोहराबाई का सब से लोकप्रिय गीत साबित हुआ। आज इसी गीत का रिवाइव्ड वर्ज़न प्रस्तुत है। इस फ़िल्म के संगीत से जुड़ी कुछ बड़ी ही दिलचस्प और मज़ेदार बातें नौशाद साहब ने विविध भारती के 'नौशादनामा' शृंखला में कहे थे सन् २००० में, आइए आज उन्ही पर एक नज़र दौड़ाएँ। नौशाद साहब से बातचीत कर रहे हैं कमल शर्मा।
प्र: अच्छा वह क़िस्सा कि जब आप की शादी में बैण्ड वाले आप के ही गानें की धुन बजा रहे थे, उसके बारे में कुछ बताइए।
उ: १९४४ में 'रतन' के गानें बहुत हिट हो गए थे। उससे पहले मैं घर छोड़ कर बम्बई आया था। एक दिन मेरे वालिद ने मुझसे कहा था कि 'तुमने मेरा कहना कभी नहीं माना, आज फ़ैसला होके रहेगा, अगर संगीत चाहिए तो घर छोड़ दो और अगर घर चाहिए तो संगीत को छोड़ना होगा'। मैंने १९३५ में घर छोड़ दिया।
प्र: क्या उम्र रही होगी आपकी उस वक़्त?
उ: १३/१४ या १५। उसके बाद मैं घर नहीं गया, कहाँ कहाँ भटका। फ़ूटपाथ पर सोता था, फ़ूटपाथ के उस साइड ब्रॊडवे थिएटर थी जिसकी रोशनी फ़ूटपाथ पर पड़ती थी। और एक बार उसी थिएटर में मेरी फ़िल्म 'बैजु बावरा' की जुबिली हुई। मैं उस थिएटर की बैल्कोनी से उस फ़ूटपाथ को देख रहा था कि मेरी आंखों में पानी आ गए। विजय भट्ट ने पूछा कि क्या हुआ, आप रो क्यों रहे हैं? मैंने कहा कि उस फ़ूटपाथ को देख कर आंखें भर आई, १६ साल लगे इस फ़ूटपाथ को पार करने में। ख़ैर, माँ का पैगाम आया कि शादी के लिए लड़की तय हो गई है, मैं घर जा जाऊँ। उस वक़्त मैं नौशाद बन चुका था। माँ ने कहा कि लड़की वाले सूफ़ी लोग हैं, इसलिए उन लोगों से यह नहीं कहना कि तुम संगीत का काम करते हो, बल्कि तुम दर्ज़ी का काम करते हो। मैंने सोचा कि संगीतकार से दर्ज़ी की इज़्ज़त ज़्यादा हो गई है। तो शादी में शामियाना लगाया गया, और बैण्ड वाले मेरा ही गाना बजाए जा रहे हैं और मैं दर्ज़ी बना बैठा हूँ। किसी ने फिर कहीं से कहा कि कौन ये सब गानें बजा रहा है? सब को ख़राब कर रहा है। उस समय यही सब गानें चल रहे थे, "सावन के बादलों", "अखियाँ मिलाके", वगैरह।
ओल्ड इस गोल्ड एक ऐसी शृंखला जिसने अंतरजाल पर ४०० शानदार एपिसोड पूरे कर एक नया रिकॉर्ड बनाया. हिंदी फिल्मों के ये सदाबहार ओल्ड गोल्ड नगमें जब भी रेडियो/ टेलीविज़न या फिर ओल्ड इस गोल्ड जैसे मंचों से आपके कानों तक पहुँचते हैं तो इनका जादू आपके दिलो जेहन पर चढ कर बोलने लगता है. आपका भी मन कर उठता है न कुछ गुनगुनाने को ?, कुछ लोग बाथरूम तक सीमित रह जाते हैं तो कुछ माईक उठा कर गाने की हिम्मत जुटा लेते हैं, गुजरे दिनों के उन महान फनकारों की कलात्मक ऊर्जा को स्वरांजली दे रहे हैं, आज के युग के कुछ अमेच्युर तो कुछ सधे हुए कलाकार. तो सुनिए आज का कवर संस्करण
गीत - अखियाँ मिलाके...
कवर गायन - डाक्टर पारसमणी आचार्य
ये कवर संस्करण आपको कैसा लगा ? अपनी राय टिप्पणियों के माध्यम से हम तक और इस युवा कलाकार तक अवश्य पहुंचाएं
डाक्टर पारसमणी आचार्य
मैं पारसमणी राजकोट गुजरात से हूँ, पापा पुलिस में थे और बहुत से वाध्य बजा लेते थे, उनमें से सितार मेरा पसंदीदा था. माँ भी HMV और AIR के लिए क्षेत्रीय भाषा में पार्श्वगायन करती थी, रेडियो पर मेरा गायन काफी छोटी उम्र से शुरू हो गया था. मैं खुशकिस्मत हूँ कि उस्ताद सुलतान खान साहब, बेगम अख्तर, रफ़ी साहब और पंडित रवि शंकर जी जैसे दिग्गजों को मैंने करीब से देखा और उनका आशीर्वाद पाया. गायन मेरा शौक तब भी था और अब भी है, रफ़ी साहब, लता मंगेशकर, सहगल साहब, बड़े गुलाम अली खान साहब और आशा भोसले मेरी सबसे पसंदीदा हैं
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड के ४०० शानदार एपिसोड आप सब के सहयोग और निरंतर मिलती प्रेरणा से संभव हुए. इस लंबे सफर में कुछ साथी व्यस्तता के चलते कभी साथ नहीं चल पाए तो कुछ हमसे जुड़े बहुत आगे चलकर. इन दिनों हम इन्हीं बीते ४०० एपिसोडों के कुछ चर्चित अंश आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं इस रीवायिवल सीरीस में, ताकि आप सब जो किन्हीं कारणों वश इस आयोजन के कुछ अंश मिस कर गए वो इस मिनी केप्सूल में उनका आनंद उठा सकें. नयी कड़ियों के साथ हम जल्द ही वापस लौटेंगें
Comments
lagta hai aap 'Awaaz' par naye hain. 'Old is Gold' mein ham original gaane hi sunwaate hain. 410 episodes poore ho jaane ke baad hamne ek break liya, aur 45 cover versions sunwa rahe hain in dino. iske baad ham phir se original gaane sunwaayenge 7th June onwards.
aap se nivedan hai ki thoDaa sa dheeraj dharen.
aur jaisa ki pichhli baar hamne kaha tha ki hamne jaan boojh kar original aur cover versions ko mix nahin kiya hai.
inmein se kai cover versions ke original geet ham OIG par pehle hi sunwa chuke hain, aur kuchh bhavishya mein sunwaayenge.
Regards,
Sujoy Chatterjee
कवर वर्शन के गायकों को कैसे तुलना कर सकते हैं मूल गायकों से?
वैसे भी यहां अधिकतर शौकिया गाने वाले हैं.आपके लिये मेहनत कर ये गीत लायें हैं, उन्हे आपका प्यार मिल जाये तो बेहतर.