दर्द और मुकेश के स्वरों में जैसे कोई गहरा रिश्ता था, जो हर बार सुनने वालों की आँखों से आंसू बन छलक उठता था
ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # १५
हिंदी फ़िल्मों में विदाई गीतों की बात करें तो सब से पहले "बाबुल की दुयाएँ लेती जा" ज़्यादातर लोगों को याद आता है। लेकिन इस विषय पर कुछ और भी बहुत ही ख़ूबसूरत गीत बने हैं और ऐसा ही एक विदाई गीत आज हम चुन कर ले आये हैं। मुकेश की आवाज़ में यह है फ़िल्म 'बम्बई का बाबू' का गाना "चल री सजनी अब क्या सोचे, कजरा ना बह जाये रोते रोते"। मेरे ख़याल से यह गाना फ़िल्म संगीत का पहला लोकप्रिय विदाई गीत होना चाहिए। 'बम्बई का बाबू' १९६० की फ़िल्म थी। इससे पहले ५० के दशक में कुछ चर्चित विदाई गीत आये तो थे ज़रूर, जैसे कि १९५० में फ़िल्म 'बाबुल' में शमशाद बेग़म ने एक विदाई गीत गाया था "छोड़ बाबुल का घर मोहे पी के नगर आज जाना पड़ा", १९५४ में फ़िल्म 'सुबह का तारा' में लता ने गाया था "चली बाँके दुल्हन उनसे लागी लगन मोरा माइके में जी घबरावत है", और १९५७ में मशहूर फ़िल्म 'मदर इंडिया' में शमशाद बेग़म ने एक बार फिर गाया "पी के घर आज प्यारी दुल्हनिया चली"। लेकिन मुकेश के गाये इस गीत में कुछ ऐसी बात थी कि गीत सीधे लोगों के दिलों को छू गई और आज भी इस गीत को सुनते ही जैसे दिल रो पड़ता है उस बेटी के लिये जो अपने बाबुल का घर छोड़ एक नये संसार में प्रवेश करने जा रही है। "बाबुल पछताए हाथों को मल के, काहे दिया परदेस टुकड़े को दिल के", "ममता का आँचल, गुड़ियों का कँगना, छोटी बड़ी सखियाँ घर गली अँगना, छूट गया रे" जैसे बोलों ने इस गीत को और भी ज़्यादा भावुक बना दिया है। मजरूह सुल्तानपुरी ने इस गीत को लिखा था और संगीतकार थे हमारे बर्मन दादा। 'बम्बई का बाबु' के मुख्य कलाकार थे देव आनंद और सुचित्रा सेन। युं तो इस फ़िल्म के दूसरे कई गाने भी मशहूर हुए लेकिन इस गीत को सब से ज़्यादा लोकप्रिय इसलिये कहा जा सकता है क्योंकि अमीन सायानी के बिनाका गीतमाला के वार्षिक कार्यक्रम में इस फ़िल्म के केवल इसी गीत को स्थान मिला था और वह भी पाँचवाँ। फ़िल्म की कहानी के मुताबिक यह गीत फ़िल्म में ख़ास जगह रखती है। सीन ऐसा है कि सुचित्रा सेन की शादी हो जाती है और वो अपने बाबुल का घर छोड़ विदा होती है। यह बात इस गीत को और भी ज़्यादा ग़मगीन बना देती है कि सुचित्रा सेन की शादी फ़िल्म के नायक देव अनंद से नहीं बल्कि किसी और से हो रही होती है। इस गीत में बर्मन दादा ने 'कोरस' का इतना बेहतरीन इस्तेमाल किया है कि 'इन्टरल्युड म्युज़िक' केवल शहनाई और कोरल सिंगिंग् से ही बनाया गया है।
ओल्ड इस गोल्ड एक ऐसी शृंखला जिसने अंतरजाल पर ४०० शानदार एपिसोड पूरे कर एक नया रिकॉर्ड बनाया. हिंदी फिल्मों के ये सदाबहार ओल्ड गोल्ड नगमें जब भी रेडियो/ टेलीविज़न या फिर ओल्ड इस गोल्ड जैसे मंचों से आपके कानों तक पहुँचते हैं तो इनका जादू आपके दिलो जेहन पर चढ कर बोलने लगता है. आपका भी मन कर उठता है न कुछ गुनगुनाने को ?, कुछ लोग बाथरूम तक सीमित रह जाते हैं तो कुछ माईक उठा कर गाने की हिम्मत जुटा लेते हैं, गुजरे दिनों के उन महान फनकारों की कलात्मक ऊर्जा को स्वरांजली दे रहे हैं, आज के युग के कुछ अमेच्युर तो कुछ सधे हुए कलाकार. तो सुनिए आज का कवर संस्करण
गीत - चल री सजनी...
कवर गायन - रफीक शेख
ये कवर संस्करण आपको कैसा लगा ? अपनी राय टिप्पणियों के माध्यम से हम तक और इस युवा कलाकार तक अवश्य पहुंचाएं
रफ़ीक़ शेख
रफ़ीक़ शेख आवाज़ टीम की ओर से पिछले वर्ष के सर्वश्रेष्ठ गायक-संगीतकार घोषित किये जा चुके हैं। रफ़ीक ने दूसरे सत्र के संगीत मुकाबले में अपने कुल 3 गीत (सच बोलता है, आखिरी बार, जो शजर सूख गया है) दिये और तीनों के तीनों गीतों ने शीर्ष 10 में स्थान बनाया। रफ़ीक ने पिछले वर्ष अहमद फ़राज़ के मृत्यु के बाद श्रद्धाँजलि स्वरूप उनकी दो ग़ज़लें (तेरी बातें, ज़िदंगी से यही गिला है मुझे) को संगीतबद्ध किया था। बम्पर हिट एल्बम 'काव्यनाद' में इनके 2 कम्पोजिशन संकलित हैं।
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
हिंदी फ़िल्मों में विदाई गीतों की बात करें तो सब से पहले "बाबुल की दुयाएँ लेती जा" ज़्यादातर लोगों को याद आता है। लेकिन इस विषय पर कुछ और भी बहुत ही ख़ूबसूरत गीत बने हैं और ऐसा ही एक विदाई गीत आज हम चुन कर ले आये हैं। मुकेश की आवाज़ में यह है फ़िल्म 'बम्बई का बाबू' का गाना "चल री सजनी अब क्या सोचे, कजरा ना बह जाये रोते रोते"। मेरे ख़याल से यह गाना फ़िल्म संगीत का पहला लोकप्रिय विदाई गीत होना चाहिए। 'बम्बई का बाबू' १९६० की फ़िल्म थी। इससे पहले ५० के दशक में कुछ चर्चित विदाई गीत आये तो थे ज़रूर, जैसे कि १९५० में फ़िल्म 'बाबुल' में शमशाद बेग़म ने एक विदाई गीत गाया था "छोड़ बाबुल का घर मोहे पी के नगर आज जाना पड़ा", १९५४ में फ़िल्म 'सुबह का तारा' में लता ने गाया था "चली बाँके दुल्हन उनसे लागी लगन मोरा माइके में जी घबरावत है", और १९५७ में मशहूर फ़िल्म 'मदर इंडिया' में शमशाद बेग़म ने एक बार फिर गाया "पी के घर आज प्यारी दुल्हनिया चली"। लेकिन मुकेश के गाये इस गीत में कुछ ऐसी बात थी कि गीत सीधे लोगों के दिलों को छू गई और आज भी इस गीत को सुनते ही जैसे दिल रो पड़ता है उस बेटी के लिये जो अपने बाबुल का घर छोड़ एक नये संसार में प्रवेश करने जा रही है। "बाबुल पछताए हाथों को मल के, काहे दिया परदेस टुकड़े को दिल के", "ममता का आँचल, गुड़ियों का कँगना, छोटी बड़ी सखियाँ घर गली अँगना, छूट गया रे" जैसे बोलों ने इस गीत को और भी ज़्यादा भावुक बना दिया है। मजरूह सुल्तानपुरी ने इस गीत को लिखा था और संगीतकार थे हमारे बर्मन दादा। 'बम्बई का बाबु' के मुख्य कलाकार थे देव आनंद और सुचित्रा सेन। युं तो इस फ़िल्म के दूसरे कई गाने भी मशहूर हुए लेकिन इस गीत को सब से ज़्यादा लोकप्रिय इसलिये कहा जा सकता है क्योंकि अमीन सायानी के बिनाका गीतमाला के वार्षिक कार्यक्रम में इस फ़िल्म के केवल इसी गीत को स्थान मिला था और वह भी पाँचवाँ। फ़िल्म की कहानी के मुताबिक यह गीत फ़िल्म में ख़ास जगह रखती है। सीन ऐसा है कि सुचित्रा सेन की शादी हो जाती है और वो अपने बाबुल का घर छोड़ विदा होती है। यह बात इस गीत को और भी ज़्यादा ग़मगीन बना देती है कि सुचित्रा सेन की शादी फ़िल्म के नायक देव अनंद से नहीं बल्कि किसी और से हो रही होती है। इस गीत में बर्मन दादा ने 'कोरस' का इतना बेहतरीन इस्तेमाल किया है कि 'इन्टरल्युड म्युज़िक' केवल शहनाई और कोरल सिंगिंग् से ही बनाया गया है।
ओल्ड इस गोल्ड एक ऐसी शृंखला जिसने अंतरजाल पर ४०० शानदार एपिसोड पूरे कर एक नया रिकॉर्ड बनाया. हिंदी फिल्मों के ये सदाबहार ओल्ड गोल्ड नगमें जब भी रेडियो/ टेलीविज़न या फिर ओल्ड इस गोल्ड जैसे मंचों से आपके कानों तक पहुँचते हैं तो इनका जादू आपके दिलो जेहन पर चढ कर बोलने लगता है. आपका भी मन कर उठता है न कुछ गुनगुनाने को ?, कुछ लोग बाथरूम तक सीमित रह जाते हैं तो कुछ माईक उठा कर गाने की हिम्मत जुटा लेते हैं, गुजरे दिनों के उन महान फनकारों की कलात्मक ऊर्जा को स्वरांजली दे रहे हैं, आज के युग के कुछ अमेच्युर तो कुछ सधे हुए कलाकार. तो सुनिए आज का कवर संस्करण
गीत - चल री सजनी...
कवर गायन - रफीक शेख
ये कवर संस्करण आपको कैसा लगा ? अपनी राय टिप्पणियों के माध्यम से हम तक और इस युवा कलाकार तक अवश्य पहुंचाएं
रफ़ीक़ शेख
रफ़ीक़ शेख आवाज़ टीम की ओर से पिछले वर्ष के सर्वश्रेष्ठ गायक-संगीतकार घोषित किये जा चुके हैं। रफ़ीक ने दूसरे सत्र के संगीत मुकाबले में अपने कुल 3 गीत (सच बोलता है, आखिरी बार, जो शजर सूख गया है) दिये और तीनों के तीनों गीतों ने शीर्ष 10 में स्थान बनाया। रफ़ीक ने पिछले वर्ष अहमद फ़राज़ के मृत्यु के बाद श्रद्धाँजलि स्वरूप उनकी दो ग़ज़लें (तेरी बातें, ज़िदंगी से यही गिला है मुझे) को संगीतबद्ध किया था। बम्पर हिट एल्बम 'काव्यनाद' में इनके 2 कम्पोजिशन संकलित हैं।
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड के ४०० शानदार एपिसोड आप सब के सहयोग और निरंतर मिलती प्रेरणा से संभव हुए. इस लंबे सफर में कुछ साथी व्यस्तता के चलते कभी साथ नहीं चल पाए तो कुछ हमसे जुड़े बहुत आगे चलकर. इन दिनों हम इन्हीं बीते ४०० एपिसोडों के कुछ चर्चित अंश आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं इस रीवायिवल सीरीस में, ताकि आप सब जो किन्हीं कारणों वश इस आयोजन के कुछ अंश मिस कर गए वो इस मिनी केप्सूल में उनका आनंद उठा सकें. नयी कड़ियों के साथ हम जल्द ही वापस लौटेंगें
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