लगभग ७ वर्ष पूर्व की बात है मैं ग्वालियर में ’उदभव’ संस्था द्वारा आयोजित ’राज्य स्तरीय गायन प्रतियोगिता- सुर ताल’ में निर्णायक के रूप में गया था उस दिन वहाँ राज्य भर से लगभग ३०० प्रतियोगी आए हुए थे, जिसमें ५ साल से लेकर ५० साल तक के गायक गायिकाएं शामिल थे। कुछ प्रतियोगियों के बाद मंच पर एक ७ वर्ष की बच्ची ने प्रवेश किया। मंच पर आने के पश्चात उसने जगजीत सिंह की एक ग़ज़ल गाना प्रारम्भ किया। उसकी उम्र को देखते हुए उसकी गायकी, स्वर, ताल तथा शब्दों का उच्चारण सुन कर हम निर्णायक तथा सभी दर्शक मंत्र मुग्ध हो रहे थे। प्रतियोगिता में स्वयं की पसंद के गीत गाने के पश्चात एक गीत निर्णायकों की पंसद का भी सुनाना था। मैंनें उसके कोन्फिडेन्स को देख कर उसे एक कठिन गीत फ़िल्म ’माचिस’ का लता जी का ’पानी पानी रे भरे पानी रे, नैनों में नीन्दे भर जा’ गाने को कहा। उस बच्ची ने जब यह गीत समाप्त किया तो इस गीत की जो बारीकियाँ थी उस को उस बच्ची ने जिस तरह से निभाया मैं समझ नहीं पा रहा था कि उसकी प्रशंसा में क्या कहूँ। फ़िर कुछ दो तीन साल बाद एक दिन जीटीवी के कार्यक्रम ’सारेगामापा’ देखते समय उस कार्यक्रम के प्रतियोगियों में वह बच्ची दिखाई दी। निर्णायक थे भप्पी लहरी, अभिजीत और अलका याग्निक। उस कार्यक्रम में तो वह अपनी जगह नही बना पाई किन्तु उसका हौसला देख कर महसूस हो रहा था कि एक न एक दिन वह जरूर नाम कमाएगी और वह मौका शीघ्र ही आगया। स्टार टीवी का ’अमूल वॉयस ऑफ इण्डिया मम्मी के सुपर स्टार’ कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ और वह बच्ची वहाँ भी अपनी गायकी की खुशबू बिखेरने को तैयार थी। एक लम्बी प्रतिस्पर्धा के पश्चात प्रतियोगिता के निर्णायक शुभा मुदगल, शंकर महादेवन और संगीतकार विशाल और शेखर ने उस प्रतियोगिता के दस लाख रुपए इनाम की विजेता का नाम घोषित किया तो वह कोई और नही वरन वही नन्ही गायिका यानि पी, भाविनी ही थी। आइए आज आपकी मुलाकात करवाते है उस उभरती हुई गायिका पी. भाविनी से जो आजकल भोपाल में रहती है।
शरद- हाय भाविनी! हिन्दयुग्म पर तुम्हारा स्वागत है।
भाविनी- नमस्ते अंकल! यह मेरा सौभाग्य है कि ’हिन्दयुग्म’ के पाठकों से मुझे मिलने का अवसर आपने दिया। हिन्दयुग्म के माध्यम से ही आजकल में Audacity पर अपने गीतों को रिकॊर्ड करना सीख रही हूँ। बहुत ही आसान तथा उपयोगी है यह।
भाविनी - मेरा जन्म १७ फरवरी १९९७ को जबलपुर में हुआ था ।मैं जब ४ साल की थी उस समय भी घर में जगजीत सिंह और चित्रा सिंह जी की ग़ज़लें गुनगुनाया करती थी उनको सुनकर मेरी मम्मी ने सोचा कि जब इसको अभी से गाने का शौक है तो इसको संगीत के क्षैत्र में ही कुछ करना चाहिए। जब मैं ६-७ साल की थी तब मैनें अपना पहला कार्यक्रम संगम कला ग्रुप की प्रतियोगिता में दिया जहाँ पर मैंने ’दिल ने कहा चुपके से, ये क्या हुआ चुपके से’ गाया जिसे गाकर मुझे बहुत आनन्द आया और सबने मेरी खूब प्रशंसा की। मेरी नानीजी ने मुझे संगीत के क्षैत्र में ही आगे बढ़्ने के लिए प्रेरित किया तथा उन्ही के आशीर्वाद के कारण मुझे बहुत से पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।
शरद- जब तुम्हारी मन्ज़िल संगीत ही है तो क्या तुम संगीत की शिक्षा भी ले रही हो?
भाविनी- हाँ! मैंने ८ साल की उम्र से ही ग्वालियर में श्री नवीन हाल्वे तथा श्री सुधीर शर्मा जी से संगीत की शिक्षा लेना प्रारम्भ कर दिया था और अब भोपाल में श्री जितेन्द्र शर्मा जी और कीर्ति सूद से सीख रही हूँ। मैं प्रतिदिन २ घन्टे शास्त्रीय संगीत तथा २ घन्टे सुगम संगीत का रियाज़ करती हूँ।
शरद- अपनी इस संगीत यात्रा के बारे में हमारे पाठकों को थोडा और बताओ।
भाविनी- जब मैं ७-८ साल की थी तब मैंनें ग्वालियर में ’उदभव’ संस्था की प्रतियोगिता ’सुर-ताल’ में हिस्सा लिया जहाँ मैं लगातार तीन वर्षों तक विजेता रही । इन तीन वर्षों में उस प्रतियोगिता के निर्णायक साधना सरगम जी, ग़ज़ल गायक चन्दन दास तथा डॊ, रोशन भारती तथा आपने मेरी भरपूर प्रशंषा की तथा मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान किया। ९ साल की उम्र में मुझे जीटीवी के सारेगामापा में गाने का मौका मिला जहाँ अभिजीत जी, शान, भप्पी लहरी जी तथा अलका याग्निक ने भी मेरी गायकी को अत्यधिक सराहा। मैं बहुत भाग्यशाली हूँ की उस कार्यक्रम में मुझे आशा भोषले जी से भी मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ तथा उन्होंने भी मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान किया। इसके बाद मैं स्टार टीवी के कार्यक्रम ’अमूल वॊयस ऒफ इण्डिया मम्मी के सुपर स्टार’ की कडे़ मुकाबले में विजेता बनी तथा उस प्रतियोगिता के निर्णायक शुभा मुदगल, शंकर महादेवन तथा संगीतकार विशाल और शेखर जी का भरपूर प्यार मिला। इसके साथ ही मैं’तानसेन संगीत अकादमी सम्मान’ तथा इन्दौर में’ ’एम,पी.स्मार्ट आइडल’ सम्मान से भी सम्मानित हो चुकी हूँ।
शरद- उस मुकाबले को जीतने के बाद इस क्षैत्र में तुम्हारी और क्या क्या उपलब्धियाँ रहीं हैं?
भाविनी- इस मुकाबले के पहले और बाद में मैनें कुछ और अच्छे कार्यक्रम किए हैं तथा मैं अपने गायन के साथ साथ अपनी पढ़ाई पर भी एकाग्रचित्त हो कर पूरा पूरा ध्यान देती हूँ। मैं संगीत एवं पढाई में संतुलन बनाए रखती हूँ। जब भी मेरे स्कूल चलते हैं मेरा पूरा ध्यान पढाई पर रहता है उसके बाद कुछ समय निकाल कर संगीत की तैयारी भी कर लेती हूँ। वर्तमान में मैं भोपाल के देहली पब्लिक स्कूल की छात्रा हूँ। मेरे द्वारा दिए गए कार्यक्रमों, मुझे मिले हुए सम्मान, फोटोज़ तथा मेरे द्वारा गाए गए गीतों के वीडियोज़ और कवर वर्ज़न आप मेरी वेब साइट www.pbhavini.com पर देख सकते हैं ।
शरद- आज जब संगीत का स्वरूप एकदम बदल गया तुम अपने कार्यक्रमों में अधिकांश पुराने गीत ही गाती हो इसका क्या कारण है?
भाविनी - मुझे पुराने फिल्मी गीत बहुत पसन्द हैं क्योंकि उनकी धुन बहुत मैलोडियस होती है, उनके शब्द भी इतने अच्छे होते है कि उनका असर एक लम्बे समय तक बरकरार रहता है तथा वे हमारे दिल को छू जाते हैं। मेरा ऐसा मानना है कि यदि पुराने गीतों को अच्छी तरह से गा लिया जाए तो नए गीत आसानी से गाए जा सकते हैं। मैं अपना आदर्श लताजी, आशाजी, जगजीत सिंह, चित्रा सिंह तथा मदन मोहन जी को मानती हूँ । मेरे परिवार के सदस्य मुझे बहुत प्यार करते है तथा संगीत के क्षैत्र में आगे बढ़्ने के लिए मेरी हर संभव सहायता करते हैं। इसके साथ ही मुझे देश विदेश के अनेक लोगों का भरपूर प्यार मिल रहा है। मेरा परिवार मुम्बई में बसने का भी विचार कर रहा है। मेरी अभिलाषा एक अच्छी गायिका बनने की है, देखिए कोशिश कहाँ तक सफल होती है।
शरद- जाते जाते कभी कोई ऐसा वाकया याद आ रहा हो जिसे पाठकों को बताना चाहती हो?
भाविनी- हाँ । मेरा कोटा शहर के राष्ट्रीय दशहरे मेले में कार्यक्रम था। मेले की एक भारी भीड़ के सामने जब मैनें गाना प्रारम्भ किया तो एक के बाद एक गीत गाती ही चली जा रही थी और लोग तालियाँ बजाए जा रहे थे। उस दिन मैनें अपनी पहली सिटिंग में ही लगातार १४ गीत एक साथ गाए उसके बाद ही दूसरे कलाकारों की बारी आई।
शरद- बहुत बहुत बधाई भाविनी! ईश्वर से कामना है कि तुम दिन दूनी रात चौगनी उन्नति करो और संगीत के क्षैत्र में तुम्हारा नाम बहुत रोशन हो।
भाविनी- धन्यवाद! मैं हिन्दयुग्म परिवार की बहुत आभारी हूँ जिसके माध्यम से मुझे अपनी बात कहने का मौका मिला ।
शरद- हाय भाविनी! हिन्दयुग्म पर तुम्हारा स्वागत है।
भाविनी- नमस्ते अंकल! यह मेरा सौभाग्य है कि ’हिन्दयुग्म’ के पाठकों से मुझे मिलने का अवसर आपने दिया। हिन्दयुग्म के माध्यम से ही आजकल में Audacity पर अपने गीतों को रिकॊर्ड करना सीख रही हूँ। बहुत ही आसान तथा उपयोगी है यह।
भाविनी के गाये कुछ गीत
एक वीडियो परफॉरमेंस
भाविनी की निजी वेबसाइट पर इनसी जुड़ी बहुत सी सामग्री है। एक बार ज़रूर जायें।
शरद- तुमने इतनी छोटी उम्र में ही स्टार टीवी का कार्यक्रम’ अमूल वॊयस ऒफ इण्डिया मम्मी के सुपर स्टार’ जीत कर अच्छा खासा नाम कमा लिया और बहुत छोटी उम्र से ही मंचों पर गा रही हो लेकिन तुमने अपने गायन की शुरुआत कब प्रारम्भ की तथा तुम्हे किसने प्रेरित किया।एक वीडियो परफॉरमेंस
भाविनी की निजी वेबसाइट पर इनसी जुड़ी बहुत सी सामग्री है। एक बार ज़रूर जायें।
भाविनी - मेरा जन्म १७ फरवरी १९९७ को जबलपुर में हुआ था ।मैं जब ४ साल की थी उस समय भी घर में जगजीत सिंह और चित्रा सिंह जी की ग़ज़लें गुनगुनाया करती थी उनको सुनकर मेरी मम्मी ने सोचा कि जब इसको अभी से गाने का शौक है तो इसको संगीत के क्षैत्र में ही कुछ करना चाहिए। जब मैं ६-७ साल की थी तब मैनें अपना पहला कार्यक्रम संगम कला ग्रुप की प्रतियोगिता में दिया जहाँ पर मैंने ’दिल ने कहा चुपके से, ये क्या हुआ चुपके से’ गाया जिसे गाकर मुझे बहुत आनन्द आया और सबने मेरी खूब प्रशंसा की। मेरी नानीजी ने मुझे संगीत के क्षैत्र में ही आगे बढ़्ने के लिए प्रेरित किया तथा उन्ही के आशीर्वाद के कारण मुझे बहुत से पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।
शरद- जब तुम्हारी मन्ज़िल संगीत ही है तो क्या तुम संगीत की शिक्षा भी ले रही हो?
भाविनी- हाँ! मैंने ८ साल की उम्र से ही ग्वालियर में श्री नवीन हाल्वे तथा श्री सुधीर शर्मा जी से संगीत की शिक्षा लेना प्रारम्भ कर दिया था और अब भोपाल में श्री जितेन्द्र शर्मा जी और कीर्ति सूद से सीख रही हूँ। मैं प्रतिदिन २ घन्टे शास्त्रीय संगीत तथा २ घन्टे सुगम संगीत का रियाज़ करती हूँ।
शरद- अपनी इस संगीत यात्रा के बारे में हमारे पाठकों को थोडा और बताओ।
भाविनी- जब मैं ७-८ साल की थी तब मैंनें ग्वालियर में ’उदभव’ संस्था की प्रतियोगिता ’सुर-ताल’ में हिस्सा लिया जहाँ मैं लगातार तीन वर्षों तक विजेता रही । इन तीन वर्षों में उस प्रतियोगिता के निर्णायक साधना सरगम जी, ग़ज़ल गायक चन्दन दास तथा डॊ, रोशन भारती तथा आपने मेरी भरपूर प्रशंषा की तथा मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान किया। ९ साल की उम्र में मुझे जीटीवी के सारेगामापा में गाने का मौका मिला जहाँ अभिजीत जी, शान, भप्पी लहरी जी तथा अलका याग्निक ने भी मेरी गायकी को अत्यधिक सराहा। मैं बहुत भाग्यशाली हूँ की उस कार्यक्रम में मुझे आशा भोषले जी से भी मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ तथा उन्होंने भी मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान किया। इसके बाद मैं स्टार टीवी के कार्यक्रम ’अमूल वॊयस ऒफ इण्डिया मम्मी के सुपर स्टार’ की कडे़ मुकाबले में विजेता बनी तथा उस प्रतियोगिता के निर्णायक शुभा मुदगल, शंकर महादेवन तथा संगीतकार विशाल और शेखर जी का भरपूर प्यार मिला। इसके साथ ही मैं’तानसेन संगीत अकादमी सम्मान’ तथा इन्दौर में’ ’एम,पी.स्मार्ट आइडल’ सम्मान से भी सम्मानित हो चुकी हूँ।
शरद- उस मुकाबले को जीतने के बाद इस क्षैत्र में तुम्हारी और क्या क्या उपलब्धियाँ रहीं हैं?
भाविनी- इस मुकाबले के पहले और बाद में मैनें कुछ और अच्छे कार्यक्रम किए हैं तथा मैं अपने गायन के साथ साथ अपनी पढ़ाई पर भी एकाग्रचित्त हो कर पूरा पूरा ध्यान देती हूँ। मैं संगीत एवं पढाई में संतुलन बनाए रखती हूँ। जब भी मेरे स्कूल चलते हैं मेरा पूरा ध्यान पढाई पर रहता है उसके बाद कुछ समय निकाल कर संगीत की तैयारी भी कर लेती हूँ। वर्तमान में मैं भोपाल के देहली पब्लिक स्कूल की छात्रा हूँ। मेरे द्वारा दिए गए कार्यक्रमों, मुझे मिले हुए सम्मान, फोटोज़ तथा मेरे द्वारा गाए गए गीतों के वीडियोज़ और कवर वर्ज़न आप मेरी वेब साइट www.pbhavini.com पर देख सकते हैं ।
शरद- आज जब संगीत का स्वरूप एकदम बदल गया तुम अपने कार्यक्रमों में अधिकांश पुराने गीत ही गाती हो इसका क्या कारण है?
भाविनी - मुझे पुराने फिल्मी गीत बहुत पसन्द हैं क्योंकि उनकी धुन बहुत मैलोडियस होती है, उनके शब्द भी इतने अच्छे होते है कि उनका असर एक लम्बे समय तक बरकरार रहता है तथा वे हमारे दिल को छू जाते हैं। मेरा ऐसा मानना है कि यदि पुराने गीतों को अच्छी तरह से गा लिया जाए तो नए गीत आसानी से गाए जा सकते हैं। मैं अपना आदर्श लताजी, आशाजी, जगजीत सिंह, चित्रा सिंह तथा मदन मोहन जी को मानती हूँ । मेरे परिवार के सदस्य मुझे बहुत प्यार करते है तथा संगीत के क्षैत्र में आगे बढ़्ने के लिए मेरी हर संभव सहायता करते हैं। इसके साथ ही मुझे देश विदेश के अनेक लोगों का भरपूर प्यार मिल रहा है। मेरा परिवार मुम्बई में बसने का भी विचार कर रहा है। मेरी अभिलाषा एक अच्छी गायिका बनने की है, देखिए कोशिश कहाँ तक सफल होती है।
शरद- जाते जाते कभी कोई ऐसा वाकया याद आ रहा हो जिसे पाठकों को बताना चाहती हो?
भाविनी- हाँ । मेरा कोटा शहर के राष्ट्रीय दशहरे मेले में कार्यक्रम था। मेले की एक भारी भीड़ के सामने जब मैनें गाना प्रारम्भ किया तो एक के बाद एक गीत गाती ही चली जा रही थी और लोग तालियाँ बजाए जा रहे थे। उस दिन मैनें अपनी पहली सिटिंग में ही लगातार १४ गीत एक साथ गाए उसके बाद ही दूसरे कलाकारों की बारी आई।
शरद- बहुत बहुत बधाई भाविनी! ईश्वर से कामना है कि तुम दिन दूनी रात चौगनी उन्नति करो और संगीत के क्षैत्र में तुम्हारा नाम बहुत रोशन हो।
भाविनी- धन्यवाद! मैं हिन्दयुग्म परिवार की बहुत आभारी हूँ जिसके माध्यम से मुझे अपनी बात कहने का मौका मिला ।
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