ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # २८
'ओल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' में आज हमने जिस गीत का रिवाइव्ड वर्ज़न शामिल किया है, उसका ऒरिजिनल वर्ज़न तो अभी इस महफ़िल में बजना बाक़ी है। बड़ा ही प्यारा युगल गीत है फ़िल्म 'मॊडर्ण गर्ल' का, जिसे सुमन कल्याणपुर और मुकेश ने गाया था। आपको याद होगा यह गीत कि जिसमें नायक नायिका को थोड़ी देर और ठहरने का आग्रह कर रहा है - "ये मौसम रंगीन समा, ठहर ज़रा ओ जानेजाँ, तेरा मेरा मेरा तेरा प्यार है, तो फिर कैसा शर्माना"। नायिका पूरी शालीनता बनाए रखते हुए जवाब देती है कि "रुक तो मैं जाऊँ जानेजाँ, मुझको है इंकार कहाँ, तेरा मेरा मेरा तेरा प्यार सनम न बन जाए अफ़साना"। इस भाव और सिचुयशन पर और भी बहुत से गीत बने हैं, जिनके बारे में हम विस्तृत चर्चा उस दिन करेंगे जिस दिन हम इस गीत का ऒरिजिनल वर्ज़न सुनेंगे। आज बस इतना ही बता रहे हैं कि इस गीत को लिखा है गुलशन बावरा ने और इसके संगीतकार हैं रवि। गीत फ़िल्माया गया था प्रदीप कुमार और साईदा ख़ान पर। तो इस गीत को सुनने से पहले बस दो शब्द गुलशन बावरा से जुड़े हुए. गुलशन बावरा का जन्म शेखपुरा पंजाब में हुआ था। सघर्षों में बचपन बीता और उसके बाद वो रेल्वे में क्लर्क हो गए। लिखने की आदत बचपन से थी। फ़िल्मों में लिखने का मन था, संघर्ष किया, और 'चन्द्रसेना' और 'सट्टा बाज़ार' जैसी फ़िल्मों के ज़रिए फ़िल्मों में महत्वपूर्ण स्थान हासिल कर लिया। मजबूरी में और कई बार शौखिया तौर पर कुछ फ़िल्मों में उन्होने काम भी किया। जैसे कि फ़िल्म 'सट्टा बाज़ार' में वो मुख्य कॊमेडियन थे। उनका असली नाम गुलशन मेहता था। गुलशन मेहता गुलशन बावरा कैसे बने इसके पीछे भी एक कहानी है, और इस कहानी पर से परदा हम आगे चलकर ज़रूर उठाएँगे, लेकिन आज इस वक़्त हम अपने शब्दों को देते हैं विराम और आपको सुनवाते हैं यह हल्का फुल्का रूमानीयत से भरा युगल गीत फ़िल्म 'मॊडर्ण गर्ल' का, सुनिए...
ओल्ड इस गोल्ड एक ऐसी शृंखला जिसने अंतरजाल पर ४०० शानदार एपिसोड पूरे कर एक नया रिकॉर्ड बनाया. हिंदी फिल्मों के ये सदाबहार ओल्ड गोल्ड नगमें जब भी रेडियो/ टेलीविज़न या फिर ओल्ड इस गोल्ड जैसे मंचों से आपके कानों तक पहुँचते हैं तो इनका जादू आपके दिलो जेहन पर चढ कर बोलने लगता है. आपका भी मन कर उठता है न कुछ गुनगुनाने को ?, कुछ लोग बाथरूम तक सीमित रह जाते हैं तो कुछ माईक उठा कर गाने की हिम्मत जुटा लेते हैं, गुजरे दिनों के उन महान फनकारों की कलात्मक ऊर्जा को स्वरांजली दे रहे हैं, आज के युग के कुछ अमेच्युर तो कुछ सधे हुए कलाकार. तो सुनिए आज का कवर संस्करण
गीत -ये मौसम रंगीन समां...
कवर गायन -पारसमणी आचार्य और दिनेश पिथिया
ये कवर संस्करण आपको कैसा लगा ? अपनी राय टिप्पणियों के माध्यम से हम तक और इस युवा कलाकार तक अवश्य पहुंचाएं
डाक्टर पारसमणी आचार्य
मैं पारसमणी राजकोट गुजरात से हूँ, पापा पुलिस में थे और बहुत से वाध्य बजा लेते थे, उनमें से सितार मेरा पसंदीदा था. माँ भी HMV और AIR के लिए क्षेत्रीय भाषा में पार्श्वगायन करती थी, रेडियो पर मेरा गायन काफी छोटी उम्र से शुरू हो गया था. मैं खुशकिस्मत हूँ कि उस्ताद सुलतान खान साहब, बेगम अख्तर, रफ़ी साहब और पंडित रवि शंकर जी जैसे दिग्गजों को मैंने करीब से देखा और उनका आशीर्वाद पाया. गायन मेरा शौक तब भी था और अब भी है, रफ़ी साहब, लता मंगेशकर, सहगल साहब, बड़े गुलाम अली खान साहब और आशा भोसले मेरी सबसे पसंदीदा हैं
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'ओल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' में आज हमने जिस गीत का रिवाइव्ड वर्ज़न शामिल किया है, उसका ऒरिजिनल वर्ज़न तो अभी इस महफ़िल में बजना बाक़ी है। बड़ा ही प्यारा युगल गीत है फ़िल्म 'मॊडर्ण गर्ल' का, जिसे सुमन कल्याणपुर और मुकेश ने गाया था। आपको याद होगा यह गीत कि जिसमें नायक नायिका को थोड़ी देर और ठहरने का आग्रह कर रहा है - "ये मौसम रंगीन समा, ठहर ज़रा ओ जानेजाँ, तेरा मेरा मेरा तेरा प्यार है, तो फिर कैसा शर्माना"। नायिका पूरी शालीनता बनाए रखते हुए जवाब देती है कि "रुक तो मैं जाऊँ जानेजाँ, मुझको है इंकार कहाँ, तेरा मेरा मेरा तेरा प्यार सनम न बन जाए अफ़साना"। इस भाव और सिचुयशन पर और भी बहुत से गीत बने हैं, जिनके बारे में हम विस्तृत चर्चा उस दिन करेंगे जिस दिन हम इस गीत का ऒरिजिनल वर्ज़न सुनेंगे। आज बस इतना ही बता रहे हैं कि इस गीत को लिखा है गुलशन बावरा ने और इसके संगीतकार हैं रवि। गीत फ़िल्माया गया था प्रदीप कुमार और साईदा ख़ान पर। तो इस गीत को सुनने से पहले बस दो शब्द गुलशन बावरा से जुड़े हुए. गुलशन बावरा का जन्म शेखपुरा पंजाब में हुआ था। सघर्षों में बचपन बीता और उसके बाद वो रेल्वे में क्लर्क हो गए। लिखने की आदत बचपन से थी। फ़िल्मों में लिखने का मन था, संघर्ष किया, और 'चन्द्रसेना' और 'सट्टा बाज़ार' जैसी फ़िल्मों के ज़रिए फ़िल्मों में महत्वपूर्ण स्थान हासिल कर लिया। मजबूरी में और कई बार शौखिया तौर पर कुछ फ़िल्मों में उन्होने काम भी किया। जैसे कि फ़िल्म 'सट्टा बाज़ार' में वो मुख्य कॊमेडियन थे। उनका असली नाम गुलशन मेहता था। गुलशन मेहता गुलशन बावरा कैसे बने इसके पीछे भी एक कहानी है, और इस कहानी पर से परदा हम आगे चलकर ज़रूर उठाएँगे, लेकिन आज इस वक़्त हम अपने शब्दों को देते हैं विराम और आपको सुनवाते हैं यह हल्का फुल्का रूमानीयत से भरा युगल गीत फ़िल्म 'मॊडर्ण गर्ल' का, सुनिए...
ओल्ड इस गोल्ड एक ऐसी शृंखला जिसने अंतरजाल पर ४०० शानदार एपिसोड पूरे कर एक नया रिकॉर्ड बनाया. हिंदी फिल्मों के ये सदाबहार ओल्ड गोल्ड नगमें जब भी रेडियो/ टेलीविज़न या फिर ओल्ड इस गोल्ड जैसे मंचों से आपके कानों तक पहुँचते हैं तो इनका जादू आपके दिलो जेहन पर चढ कर बोलने लगता है. आपका भी मन कर उठता है न कुछ गुनगुनाने को ?, कुछ लोग बाथरूम तक सीमित रह जाते हैं तो कुछ माईक उठा कर गाने की हिम्मत जुटा लेते हैं, गुजरे दिनों के उन महान फनकारों की कलात्मक ऊर्जा को स्वरांजली दे रहे हैं, आज के युग के कुछ अमेच्युर तो कुछ सधे हुए कलाकार. तो सुनिए आज का कवर संस्करण
गीत -ये मौसम रंगीन समां...
कवर गायन -पारसमणी आचार्य और दिनेश पिथिया
ये कवर संस्करण आपको कैसा लगा ? अपनी राय टिप्पणियों के माध्यम से हम तक और इस युवा कलाकार तक अवश्य पहुंचाएं
डाक्टर पारसमणी आचार्य
मैं पारसमणी राजकोट गुजरात से हूँ, पापा पुलिस में थे और बहुत से वाध्य बजा लेते थे, उनमें से सितार मेरा पसंदीदा था. माँ भी HMV और AIR के लिए क्षेत्रीय भाषा में पार्श्वगायन करती थी, रेडियो पर मेरा गायन काफी छोटी उम्र से शुरू हो गया था. मैं खुशकिस्मत हूँ कि उस्ताद सुलतान खान साहब, बेगम अख्तर, रफ़ी साहब और पंडित रवि शंकर जी जैसे दिग्गजों को मैंने करीब से देखा और उनका आशीर्वाद पाया. गायन मेरा शौक तब भी था और अब भी है, रफ़ी साहब, लता मंगेशकर, सहगल साहब, बड़े गुलाम अली खान साहब और आशा भोसले मेरी सबसे पसंदीदा हैं
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड के ४०० शानदार एपिसोड आप सब के सहयोग और निरंतर मिलती प्रेरणा से संभव हुए. इस लंबे सफर में कुछ साथी व्यस्तता के चलते कभी साथ नहीं चल पाए तो कुछ हमसे जुड़े बहुत आगे चलकर. इन दिनों हम इन्हीं बीते ४०० एपिसोडों के कुछ चर्चित अंश आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं इस रीवायिवल सीरीस में, ताकि आप सब जो किन्हीं कारणों वश इस आयोजन के कुछ अंश मिस कर गए वो इस मिनी केप्सूल में उनका आनंद उठा सकें. नयी कड़ियों के साथ हम जल्द ही वापस लौटेंगें
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