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फिल्म में गीत लिखना एक अलग ही किस्म की चुनौती है जिसे बेहद सफलता पूर्वक निभाया बीते दौर के गीतकारों ने

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ३६

१९५५ में निर्माता निर्देशक ए. आर. कारदार ने किशोर कुमार और चांद उसमानी को लेकर बनायी फ़िल्म 'बाप रे बाप'। १९५२ तक नौशाद साहब ही कारदार साहब की फ़िल्मों में संगीत दे रहे थे। उसके बाद ग़ुलाम मोहम्मद, मदन मोहन और रोशन जैसे संगीतकार उनके साथ जुड़े। और 'बाप रे बाप' के लिए कारदार साहब ने चुना ओ.पी. नय्यर साहब को। और गीतकार चुना गया जाँनिसार अख़्तर को। जाँनिसार अख़्तर, जो जावेद अख़्तर साहब के पिता हैं, उन्होने नय्यर साहब के साथ कई फ़िल्मों में काम किया। जाँनिसार साहब ने भले ही बहुत सारी फ़िल्मों के लिए गानें लिखे, लेकिन उन्हे दूसरे गीतकारों की तुलना में कुछ कम ही याद किया जाता है। जाने क्यों! दोस्तों, अभी हाल में आइ.बी.एन-७ चैनल पर लता जी का एक इंटरव्यू लिया गया था और जावेद अख़्तर साहब उसमें लता जी से बातचीत कर रहे थे। तो जब जावेद साहब ने लता जी से पूछा कि कोई एक ऐसा गाना वो बताएँ जो सब से ज़्यादा उन्हे पसंद रहा है, तो पहले तो लता जी हिचकिचाई यह कहते हुए कि किसी एक गीत को चुनना नामुमकिन है। फिर भी जावेद साहब के ज़िद करने पर उन्होने युंही कह दिया कि फ़िल्म 'रज़िया सुल्तान' का गीत "ऐ दिल-ए-नादान" उन्हे बहुत पसंद है। लता जी उस वक़्त यह भूल गईं थीं कि इस गीत के गीतकार जाँनिसार अख़्तर हैं। लेकिन जब जावेद साहब ने कहा कि 'लता जी, मैंने आपको अपने पसंद का एक गीत चुनने को कहा, तो मैं बड़े फ़क्र के साथ यह कहता हूँ कि यह गीत मेरे वालिद साहब ने लिखा था'। यह सुनते ही लता जी चौंक उठीं और तालियों की गड़गड़ाहट से स्टुडियो गूंज उठा। दोस्तों, जाँनिसार साहब के स्तर का अहसास बस यही घटना करा देती है कि लता जी ने अपनी पसंद का केवल एक गीत चुना और वह उनका लिखा हुअ था। ख़ैर, अब हम आते हैं 'बाप रे बाप' पर। यह एक रोमांटिक कॊमेडी फ़िल्म थी। फ़िल्म में तमाम हास्य रस के गानें थे, लेकिन जो गीत सब से ज़्यादा लोकप्रिय हुआ, वह था "पिया पिया पिया मेरा जिया पुकारे, हम भी चलेंगे स‍इंया संग तुम्हारे"। इस गीत की लोकप्रियता इसकी गायकी, बोल, धुन और रीदम की वजह से तो है ही, लेकिन उससे भी ज़्यादा यह गीत इसलिए यादगार बन गया क्योंकि इस गीत में आशा जी से एक भूल हुई है। जी हाँ, एक ऐसी भूल जिसे सुधारा नहीं गया, बल्कि उस भूल को बड़ी ही चतुराई के साथ फ़िल्माया गया। लीजिए अपनी इस भूल के बारे में आशा जे से ही जानिए। "मैं किशोर दा के साथ एक गीत गा रही थी। ये वह गीत था "पिया पिया पिया"। रिहर्सल ख़त्म होने के बाद फ़ाइनल रोकोर्डिंग शुरू हुई। और मैंने ग़लती से किशोर दा के लाइन के उपर गा उठी। मैं बस 'हं' ऐसे गा उठी और तुरंत अपनी ग़लती का अहसास हो गया। किशोर मेरी तरफ़ देख कर अपने हाथ से मुझे इशारा किया कि मैं गाना जारी रखूँ। जैसे ही रिकार्डिंग् ख़त्म हुई, मैं नय्यर साहब से माफ़ी मांगी और गाना दोबारा रिकार्ड करने का अनुरोध भी किया क्योंकि वह एक बहुत बड़ी ग़लती मुझसे हो गई थी। मैं बीच में ही ग़लत जगह पर गाना शुरु कर दिया था। लेकिन किशोर दा ने मुझे आश्वस्त किया और कहा कि 'आप थोड़ा भी परेशान ना हों, मैं हूँ ना उस फ़िल्म में हीरो, मैं उस सीन में हीरोइन के मुंह पे हाथ रख दूँगा जब वो उस जगह पे गाने लगेगी।" और वाक़ई इसी तरह से इस गीत का फ़िल्मांकन हुआ। दोस्तों, आप में से बहुतों को यह मालूम होगा। जिन्हे पता नहीं था, वो अब बेक़रार हो रहे होंगे आशा जी की इस ग़लती को ढूंढ निकालने का। तो उन सब के लिए हम यह बता दें कि इसे आप गीत के दूसरे अंतरे में महसूस कर सकते हैं। और रही बात इस गीत के प्रस्तुत रिवाइव्ड वर्ज़न की, तो आप ख़ुद ही सुनिए कि क्या इसमें भी वही ग़लती, जो ग़लती हो कर भी फ़िल्मांकन की वजह से ग़लती नहीं रही, दोहराई गई है!

ओल्ड इस गोल्ड एक ऐसी शृंखला जिसने अंतरजाल पर ४०० शानदार एपिसोड पूरे कर एक नया रिकॉर्ड बनाया. हिंदी फिल्मों के ये सदाबहार ओल्ड गोल्ड नगमें जब भी रेडियो/ टेलीविज़न या फिर ओल्ड इस गोल्ड जैसे मंचों से आपके कानों तक पहुँचते हैं तो इनका जादू आपके दिलो जेहन पर चढ कर बोलने लगता है. आपका भी मन कर उठता है न कुछ गुनगुनाने को ?, कुछ लोग बाथरूम तक सीमित रह जाते हैं तो कुछ माईक उठा कर गाने की हिम्मत जुटा लेते हैं, गुजरे दिनों के उन महान फनकारों की कलात्मक ऊर्जा को स्वरांजली दे रहे हैं, आज के युग के कुछ अमेच्युर तो कुछ सधे हुए कलाकार. तो सुनिए आज का कवर संस्करण

गीत -पिया पिया...
कवर गायन -पारसमणी आचार्य और आज़म खान




ये कवर संस्करण आपको कैसा लगा ? अपनी राय टिप्पणियों के माध्यम से हम तक और इस युवा कलाकार तक अवश्य पहुंचाएं


पारसमणी आचार्य
मैं पारसमणी राजकोट गुजरात से हूँ, पापा पुलिस में थे और बहुत से वाध्य बजा लेते थे, उनमें से सितार मेरा पसंदीदा था. माँ भी HMV और AIR के लिए क्षेत्रीय भाषा में पार्श्वगायन करती थी, रेडियो पर मेरा गायन काफी छोटी उम्र से शुरू हो गया था. मैं खुशकिस्मत हूँ कि उस्ताद सुलतान खान साहब, बेगम अख्तर, रफ़ी साहब और पंडित रवि शंकर जी जैसे दिग्गजों को मैंने करीब से देखा और उनका आशीर्वाद पाया. गायन मेरा शौक तब भी था और अब भी है, रफ़ी साहब, लता मंगेशकर, सहगल साहब, बड़े गुलाम अली खान साहब और आशा भोसले मेरी सबसे पसंदीदा हैं
आज़म खान
रफ़ी साहब, किशोर कुमार, येसुदास, हरिहरन, सुरेश वाडेकर, सोनू निगम और उदित नारायण इनके पसंदीदा गायक हैं. आज़म फर्मवेयर इंजिनियर है अमेरिका में और गायन का विशेष शौक रखते हैं. इन्टरनेट पर बहुत से संगीत मंचों पर इनकी महफिलें सजती रहती हैं


विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड के ४०० शानदार एपिसोड आप सब के सहयोग और निरंतर मिलती प्रेरणा से संभव हुए. इस लंबे सफर में कुछ साथी व्यस्तता के चलते कभी साथ नहीं चल पाए तो कुछ हमसे जुड़े बहुत आगे चलकर. इन दिनों हम इन्हीं बीते ४०० एपिसोडों के कुछ चर्चित अंश आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं इस रीवायिवल सीरीस में, ताकि आप सब जो किन्हीं कारणों वश इस आयोजन के कुछ अंश मिस कर गए वो इस मिनी केप्सूल में उनका आनंद उठा सकें. नयी कड़ियों के साथ हम जल्द ही वापस लौटेंगें

Comments

Sujoy Chatterjee said…
Asha ji ki galati ko Parasmani ji ne kya Khoob dohraya hai! :-)
Neeraj Guru said…
lajabab-shandar,maza aa gaya.

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