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दादा रविन्द्र जैन ने इंडस्ट्री को कुछ बेहद नयी और सुरीली आवाजों से मिलवाया, जिसमें एक हेमलता भी है

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # १७

'ओल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' की आज की कड़ी में आप सुनेंगे रवीन्द्र जैन के गीत संगीत में फ़िल्म 'अखियो के झरोखों से' का वही मशहूर शीर्षक गीत जिसे हेमलता ने गाया था और फ़िल्म में रंजीता पर फ़िल्माया गया था। गीत सुनने से पहले थोड़ी हेमलता की बातें हो जाए, जो उन्होने विविध भारती के एक मुलाक़ात में कहे थे। "कलकत्ता के रवीन्द्र सरोवर स्टेडियम में एक बहुत बड़ा प्रोग्राम हुआ था। डॊ. बिधान चन्द्र रॊय आए थे उसमें, दो लाख की ऒडियन्स थी। उस शो के चीफ़ कोर्डिनेटर गोपाल लाल मल्लिक ने मुझे एक गाना गाने का मौका दिया। उस शो में लता जी, रफ़ी साहब, उषा जी, हृदयनाथ जी, किशोर दा, सुबीर सेन, संध्या मुखर्जी, आरती मुखर्जी, हेमन्त दादा, सब गाने वाले थे। मुझे इंटर्वल में गाना था, ऐज़ बेबी लता (हेमलता का असली नाम लता ही था उन दिनों) ताकि लोग चाय वाय पी के आ सके। मेरे गुरु भाई चाहते थे कि इस प्रोग्राम के ज़रिए मेरे पिताजी को बताया जाए कि उनकी बेटी कितना अच्छा गाती है (हेमलता के पिता को यह मालूम नहीं था कि उनकी बेटी छुप छुप के गाती है)। तो वो जब जाकर मेरे पिताजी को इस फ़ंक्शन में आने के लिए कहा तो वो बोले कि मैं वहाँ फ़िल्मी गीतों के फ़ंक्शन में जाकर क्या करूँगा! बड़ी मुश्किल से मनाकर उन्हे लाया गया। तो ज़रा सोचिए, बिधान चन्द्र रॊय, सारे मिनिस्टेरिएल लेवेल के लोग, दो लाख ऒडियन्स, इन सब के बीच मेरे पिताजी बैठे हैं और उनकी बेटी गाने वाली है और यह उनको पता ही नहीं। उस समय मेरा आठवाँ साल लगा था। मैंने "जागो मोहन प्यारे", फ़िल्म 'जागते रहो', यह गाना गाया। जैसे ही मैंने वह आलाप लिया, पब्लिक ज़ोर से शोर करने लगी। मैंने सोचा कि क्या हो गया, फिर पता चला कि वो "आर्टिस्ट को ऊँचा करो" कह रहे हैं। फिर टेबल लाया गया और मैंने फिर से गाया, वन्स मोर भी हुआ। कलकत्ता की ऒडियन्स, दुनिया में ऐसी ऒडियन्स आपको कहीं नहीं मिलेगी, वाक़ई! फिर उस दिन मैंने एक एक करके १२ गीत गाए, सभी बंगला में, हिंदी में, जो आता था सब गा दिया। फिर शोर हुआ कि दीदी (लता जी) आ गईं हैं। बी. सी. रॊय ने बेबी लता के लिए गोल्ड मेडल अनाउन्स किया। पिता जी भी मान गए, उनको भी लगा कि उसकी प्रतिभा को रोकने का मुझे कोई अधिकार नहीं है, फिर राशी देख कर 'ह' से हेमलता नाम रखा गया और मैं लता से हेमलता बन गई।"

ओल्ड इस गोल्ड एक ऐसी शृंखला जिसने अंतरजाल पर ४०० शानदार एपिसोड पूरे कर एक नया रिकॉर्ड बनाया. हिंदी फिल्मों के ये सदाबहार ओल्ड गोल्ड नगमें जब भी रेडियो/ टेलीविज़न या फिर ओल्ड इस गोल्ड जैसे मंचों से आपके कानों तक पहुँचते हैं तो इनका जादू आपके दिलो जेहन पर चढ कर बोलने लगता है. आपका भी मन कर उठता है न कुछ गुनगुनाने को ?, कुछ लोग बाथरूम तक सीमित रह जाते हैं तो कुछ माईक उठा कर गाने की हिम्मत जुटा लेते हैं, गुजरे दिनों के उन महान फनकारों की कलात्मक ऊर्जा को स्वरांजली दे रहे हैं, आज के युग के कुछ अमेच्युर तो कुछ सधे हुए कलाकार. तो सुनिए आज का कवर संस्करण

गीत - अखियों के झरोखों से...
कवर गायन - रश्मि नायर




ये कवर संस्करण आपको कैसा लगा ? अपनी राय टिप्पणियों के माध्यम से हम तक और इस युवा कलाकार तक अवश्य पहुंचाएं


रश्मि नायर
इन्टरनेट पर बेहद सक्रिय और चर्चित रश्मि मूलत केरल से ताल्लुक रखती हैं पर मुंबई में जन्मी, चेन्नई में पढ़ी, पुणे से कॉलेज करने वाली रश्मि इन दिनों अमेरिका में निवास कर रही हैं और हर तरह के संगीत में रूचि रखती हैं, पर पुराने फ़िल्मी गीतों से विशेष लगाव है. संगीत के अलावा इन्हें छायाकारी, घूमने फिरने और फिल्मों का भी शौक है


विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड के ४०० शानदार एपिसोड आप सब के सहयोग और निरंतर मिलती प्रेरणा से संभव हुए. इस लंबे सफर में कुछ साथी व्यस्तता के चलते कभी साथ नहीं चल पाए तो कुछ हमसे जुड़े बहुत आगे चलकर. इन दिनों हम इन्हीं बीते ४०० एपिसोडों के कुछ चर्चित अंश आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं इस रीवायिवल सीरीस में, ताकि आप सब जो किन्हीं कारणों वश इस आयोजन के कुछ अंश मिस कर गए वो इस मिनी केप्सूल में उनका आनंद उठा सकें. नयी कड़ियों के साथ हम जल्द ही वापस लौटेंगें

Comments

आश्चर्य है, इतने गुणी गायिका के गीत पर अभी तक कोई टिप्पणी नही?

मेरा यह मानना है कि रश्मिजी नें तो हेमलता से भी बेहतर गाया है. मीठी और एकदम सधी हुई उनकी आवाज़ में हेमलता का नेज़ल टोन नही है, इसलिये वे लता के तरफ़ ज़्यादा झुकती है.

एक जाह खोने लगा है... पर थोडी हरकतें बेहतर होती तो ये गीत फ़िल्म में लगाने जैसा हो जाता.
अभी 'पोलिशिंग ' की ज़रुरत तो है पर ....बहुत ही अच्छा लगा ! काफी सधे हुए तरीके से सुरों को नियंत्रित करने की सफल कोशिश रही !
दिलीप भाई ने सही कहा क़ी कई कई जगह तो वाकई ऐसा लगा कि फिल्म में हेमलता से अधिक उपयुक्त रश्मि का स्वर रहता ..! और यह भी कि थोड़ी हरकतें साफ़ होती तो मज़ा और भी बढ़ जाता !

मेरी और से रश्मि को बधाई और भविष्य के लिए ढेरों शुभकामनायें !

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