ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ३८
बी. आर चोपड़ा हिंदी सिनेमा के एक महत्वपूर्ण स्तंभ रहे हैं। उनकी हर फ़िल्म हमें कुछ ना कुछ ज़रूर संदेश देती है। आज उन्ही की फ़िल्म 'धूल का फूल' से एक युगल गीत, जिसे फ़िल्म के लिए लता मंगेशकर और महेन्द्र कपूर ने गाया था। साहिर लुधियानवी के बोल और एन. दत्ता का संगीत। जब बी. आर. चोपड़ा साहब का नाम आ ही गया है तो क्यों ना उन्ही के द्वारा प्रस्तुत विविध भारती के जयमाला कार्यक्रम से एक अंश यहाँ पर पेश कर दिया जाए। "मेरा नाम बी. आर. चोपड़ा, पूरा नाम बलदेव राज चोपड़ा, पूरी फ़िल्म लाइन में एक ही शख़्स है जो मुझे बलदेव के नाम से पुअकारता है, और वो हैं दादामुनि अशोक कुमार। एक दिन बलदेव ने एक बदमाशी की, और एक अंग्रेज़ी फ़िल्म देखी। आर्य समाज के जलसे में जाने का बहाना कर के गया था। वापस लौटे तो देर हो चुकी थी। पिताजी ने पूछा कि कहाँ से आ रहे हो भाई? आर्य समाज के उसूलों पर चलनेवाले बलदेव से झूठ ना बोला गया। पिताजी सच से ख़ुश हो गए, मगर आइंदा फ़िल्में देखने पर पाबंदी लगा दी। कॊलेज में लिखने का शौक पैदा हो गया। पढ़ाई के साथ साथ मैगज़िन्स में ख़ूब लिखे। कभी कहानी, कभी अफ़साना, कभी फ़िल्म रिव्यू, कभी आर्टिकल। अर बाद में ख़्वाबों को पूरा करने के लिए आइ.सी.एस के इम्तिहान में बैठा। बदक़िस्मती से कामयाब ना हो सका। बहुत दुख हुआ। दुनिया से किनाराकशी कर ली, और ज़िंदगी को ख़त्म करने का इरादा कर लिया। उस वक़्त पिताजी ने कहा कि बलदेव, यह सरासर बुज़दिली है, ज़िंदगी का मुक़ाबला ना मुंह छुपाकर होता है और ना सर झुकाकर।" और दोस्तों, शायद यही शब्द चोपड़ा साहब की फ़िल्म 'हमराज़' के एक गीत का मुखड़ा बन गया आगे चलकर। लेकिन फ़िल्हाल हम सुनने जा रहे हैं ;धूल का फूल' का गीत।
ओल्ड इस गोल्ड एक ऐसी शृंखला जिसने अंतरजाल पर ४०० शानदार एपिसोड पूरे कर एक नया रिकॉर्ड बनाया. हिंदी फिल्मों के ये सदाबहार ओल्ड गोल्ड नगमें जब भी रेडियो/ टेलीविज़न या फिर ओल्ड इस गोल्ड जैसे मंचों से आपके कानों तक पहुँचते हैं तो इनका जादू आपके दिलो जेहन पर चढ कर बोलने लगता है. आपका भी मन कर उठता है न कुछ गुनगुनाने को ?, कुछ लोग बाथरूम तक सीमित रह जाते हैं तो कुछ माईक उठा कर गाने की हिम्मत जुटा लेते हैं, गुजरे दिनों के उन महान फनकारों की कलात्मक ऊर्जा को स्वरांजली दे रहे हैं, आज के युग के कुछ अमेच्युर तो कुछ सधे हुए कलाकार. तो सुनिए आज का कवर संस्करण
गीत -तेरे प्यार का...
कवर गायन -पारसमणी आचार्य और प्रदीप सोम सुन्दरन
ये कवर संस्करण आपको कैसा लगा ? अपनी राय टिप्पणियों के माध्यम से हम तक और इस युवा कलाकार तक अवश्य पहुंचाएं
डाक्टर पारसमणी आचार्य
मैं पारसमणी राजकोट गुजरात से हूँ, पापा पुलिस में थे और बहुत से वाध्य बजा लेते थे, उनमें से सितार मेरा पसंदीदा था. माँ भी HMV और AIR के लिए क्षेत्रीय भाषा में पार्श्वगायन करती थी, रेडियो पर मेरा गायन काफी छोटी उम्र से शुरू हो गया था. मैं खुशकिस्मत हूँ कि उस्ताद सुलतान खान साहब, बेगम अख्तर, रफ़ी साहब और पंडित रवि शंकर जी जैसे दिग्गजों को मैंने करीब से देखा और उनका आशीर्वाद पाया. गायन मेरा शौक तब भी था और अब भी है, रफ़ी साहब, लता मंगेशकर, सहगल साहब, बड़े गुलाम अली खान साहब और आशा भोसले मेरी सबसे पसंदीदा हैं
प्रदीप सोमसुन्दरन
जो लोग टीवी पर म्यूजिकल शो देखने के शौक़ीन हैं, उन्होंने भारतीय टेलीविजन पर पहले सांगैतिक आयोजन 'मेरी आवाज़ सुनो' को ज़रूर देखा होगा। प्रदीप सोमसुंदरन को इसी कार्यक्रम में सन 1996 में सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक चुना गया था और लता मंगेशकर सम्मान से सम्मानित किया गया था। 26 जनवरी 1967 को नेल्लूवया, नेल्लूर, केरल में जन्मे प्रदीप पेशे से इलेक्ट्रानिक के प्राध्यापक हैं। त्रिचुर की श्रीमती गीता रानी से 12 वर्ष की अवस्था में ही प्रदीप ने कर्नाटक-संगीत की शिक्षा लेना शुरू कर दी थी और 16 वर्ष की अवस्था में स्टेज-परफॉर्मेन्स देने लेगे थे। प्रदीप कनार्टक शास्त्रीय गायन के अतिरिक्त हिन्दी, मलयालम, तमिल, तेलगू, अंग्रेज़ी और जापानी आदि भाषाओं में ग़ज़लें और भजन गाते हैं। इन्होंने कई मलयालम फिल्मी गीतों में अपनी आवाज़ दी है। और गैर मलयालम फिल्मी तथा गैर हिन्दी फिल्मी गीतों में ये काफी चर्चित रहे हैं।
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
बी. आर चोपड़ा हिंदी सिनेमा के एक महत्वपूर्ण स्तंभ रहे हैं। उनकी हर फ़िल्म हमें कुछ ना कुछ ज़रूर संदेश देती है। आज उन्ही की फ़िल्म 'धूल का फूल' से एक युगल गीत, जिसे फ़िल्म के लिए लता मंगेशकर और महेन्द्र कपूर ने गाया था। साहिर लुधियानवी के बोल और एन. दत्ता का संगीत। जब बी. आर. चोपड़ा साहब का नाम आ ही गया है तो क्यों ना उन्ही के द्वारा प्रस्तुत विविध भारती के जयमाला कार्यक्रम से एक अंश यहाँ पर पेश कर दिया जाए। "मेरा नाम बी. आर. चोपड़ा, पूरा नाम बलदेव राज चोपड़ा, पूरी फ़िल्म लाइन में एक ही शख़्स है जो मुझे बलदेव के नाम से पुअकारता है, और वो हैं दादामुनि अशोक कुमार। एक दिन बलदेव ने एक बदमाशी की, और एक अंग्रेज़ी फ़िल्म देखी। आर्य समाज के जलसे में जाने का बहाना कर के गया था। वापस लौटे तो देर हो चुकी थी। पिताजी ने पूछा कि कहाँ से आ रहे हो भाई? आर्य समाज के उसूलों पर चलनेवाले बलदेव से झूठ ना बोला गया। पिताजी सच से ख़ुश हो गए, मगर आइंदा फ़िल्में देखने पर पाबंदी लगा दी। कॊलेज में लिखने का शौक पैदा हो गया। पढ़ाई के साथ साथ मैगज़िन्स में ख़ूब लिखे। कभी कहानी, कभी अफ़साना, कभी फ़िल्म रिव्यू, कभी आर्टिकल। अर बाद में ख़्वाबों को पूरा करने के लिए आइ.सी.एस के इम्तिहान में बैठा। बदक़िस्मती से कामयाब ना हो सका। बहुत दुख हुआ। दुनिया से किनाराकशी कर ली, और ज़िंदगी को ख़त्म करने का इरादा कर लिया। उस वक़्त पिताजी ने कहा कि बलदेव, यह सरासर बुज़दिली है, ज़िंदगी का मुक़ाबला ना मुंह छुपाकर होता है और ना सर झुकाकर।" और दोस्तों, शायद यही शब्द चोपड़ा साहब की फ़िल्म 'हमराज़' के एक गीत का मुखड़ा बन गया आगे चलकर। लेकिन फ़िल्हाल हम सुनने जा रहे हैं ;धूल का फूल' का गीत।
ओल्ड इस गोल्ड एक ऐसी शृंखला जिसने अंतरजाल पर ४०० शानदार एपिसोड पूरे कर एक नया रिकॉर्ड बनाया. हिंदी फिल्मों के ये सदाबहार ओल्ड गोल्ड नगमें जब भी रेडियो/ टेलीविज़न या फिर ओल्ड इस गोल्ड जैसे मंचों से आपके कानों तक पहुँचते हैं तो इनका जादू आपके दिलो जेहन पर चढ कर बोलने लगता है. आपका भी मन कर उठता है न कुछ गुनगुनाने को ?, कुछ लोग बाथरूम तक सीमित रह जाते हैं तो कुछ माईक उठा कर गाने की हिम्मत जुटा लेते हैं, गुजरे दिनों के उन महान फनकारों की कलात्मक ऊर्जा को स्वरांजली दे रहे हैं, आज के युग के कुछ अमेच्युर तो कुछ सधे हुए कलाकार. तो सुनिए आज का कवर संस्करण
गीत -तेरे प्यार का...
कवर गायन -पारसमणी आचार्य और प्रदीप सोम सुन्दरन
ये कवर संस्करण आपको कैसा लगा ? अपनी राय टिप्पणियों के माध्यम से हम तक और इस युवा कलाकार तक अवश्य पहुंचाएं
डाक्टर पारसमणी आचार्य
मैं पारसमणी राजकोट गुजरात से हूँ, पापा पुलिस में थे और बहुत से वाध्य बजा लेते थे, उनमें से सितार मेरा पसंदीदा था. माँ भी HMV और AIR के लिए क्षेत्रीय भाषा में पार्श्वगायन करती थी, रेडियो पर मेरा गायन काफी छोटी उम्र से शुरू हो गया था. मैं खुशकिस्मत हूँ कि उस्ताद सुलतान खान साहब, बेगम अख्तर, रफ़ी साहब और पंडित रवि शंकर जी जैसे दिग्गजों को मैंने करीब से देखा और उनका आशीर्वाद पाया. गायन मेरा शौक तब भी था और अब भी है, रफ़ी साहब, लता मंगेशकर, सहगल साहब, बड़े गुलाम अली खान साहब और आशा भोसले मेरी सबसे पसंदीदा हैं
प्रदीप सोमसुन्दरन
जो लोग टीवी पर म्यूजिकल शो देखने के शौक़ीन हैं, उन्होंने भारतीय टेलीविजन पर पहले सांगैतिक आयोजन 'मेरी आवाज़ सुनो' को ज़रूर देखा होगा। प्रदीप सोमसुंदरन को इसी कार्यक्रम में सन 1996 में सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक चुना गया था और लता मंगेशकर सम्मान से सम्मानित किया गया था। 26 जनवरी 1967 को नेल्लूवया, नेल्लूर, केरल में जन्मे प्रदीप पेशे से इलेक्ट्रानिक के प्राध्यापक हैं। त्रिचुर की श्रीमती गीता रानी से 12 वर्ष की अवस्था में ही प्रदीप ने कर्नाटक-संगीत की शिक्षा लेना शुरू कर दी थी और 16 वर्ष की अवस्था में स्टेज-परफॉर्मेन्स देने लेगे थे। प्रदीप कनार्टक शास्त्रीय गायन के अतिरिक्त हिन्दी, मलयालम, तमिल, तेलगू, अंग्रेज़ी और जापानी आदि भाषाओं में ग़ज़लें और भजन गाते हैं। इन्होंने कई मलयालम फिल्मी गीतों में अपनी आवाज़ दी है। और गैर मलयालम फिल्मी तथा गैर हिन्दी फिल्मी गीतों में ये काफी चर्चित रहे हैं।
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड के ४०० शानदार एपिसोड आप सब के सहयोग और निरंतर मिलती प्रेरणा से संभव हुए. इस लंबे सफर में कुछ साथी व्यस्तता के चलते कभी साथ नहीं चल पाए तो कुछ हमसे जुड़े बहुत आगे चलकर. इन दिनों हम इन्हीं बीते ४०० एपिसोडों के कुछ चर्चित अंश आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं इस रीवायिवल सीरीस में, ताकि आप सब जो किन्हीं कारणों वश इस आयोजन के कुछ अंश मिस कर गए वो इस मिनी केप्सूल में उनका आनंद उठा सकें. नयी कड़ियों के साथ हम जल्द ही वापस लौटेंगें
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