Season 3 of new Music, Song # 06
हिन्द-युग्म के संगीत सत्र में ऐसा बहुत कम ही बार हुआ है जब गीत को लिखने वाला, संगीतबद्ध करने वाला और गाने वाला कोई एक ही हो। हिन्दी फिल्मी संगीत में भी कुल गानों की तुलना में इनका प्रतिशत निकाला जाय तो शायद नगण्य ही आये। पर जब भी इस तरह के गाने बनते हैं तो बहुत ही खूबसूरत बन पड़ते हैं। सुधी श्रोताओं को कई फिल्मी गाने याद आने लगे होंगे। असल में लिखने वाला अगर संगीतकार हो तो उसे इस बात की बेहतर समझ होती है कि गीत में कहाँ कैसा उतार-चढ़ाव है। हिन्द-युग्म के पहले संगीतबद्ध एल्बम 'पहला-सुर' में गायिका-संगीतकार और कवयित्री सुनीता यादव का गीत तू है दिल के पास एक ऐसा ही गीत था। दूसरे संगीतबद्ध सत्र में गायक-संगीतकार और कवि सुदीप यशराज के दो गीत 'बेइंतहा प्यार' और 'उड़ता परिंदा' रीलिज हुये। आज हम तीसरे संगीतबद्ध सत्र में मालविका निराजन द्वारा रचित एक गीत रीलिज कर रहे हैं जिस इन्होंने ही गाया भी है और संगीतबद्ध भी किया है। इनको आवाज़ मंच तक लाने का श्रेय रश्मि प्रभा को जाता है।
गीत के बोल -
एक नया दिन चला, ढूँढने कुछ नया
मिलेगा क्या, किसे खबर, नही फिकर, नही पता..
मैने तो चाहा आसमान ही मेरा हो, पर वो बन के सपना ही रहा
ओर जब मैं जागूँ, एक नया सवेरा हो, पर ना पाई वैसी एक सुबह
होओओ...फिर भी ना जानूँ, ये अरमान क्यूँ जागे हैं
पा लूँगा/लूँगी उनको, जिनको सपनो में जिया...
अनजानी राहें, चल पड़ी मुझे लेकर, एक सफ़र पे जानूँ ना कहाँ
मुड़ के जो देखा, जाने सब कहाँ छूटा, सपनों का मेरा वो जहाँ
अबके दिल चाहे, उनको कह दूँ अलविदा
अलबेले दिन की होगी अलबेली अदा...
चुन के जो, वो लाएगा, जानूँ मैं वो भायेगा
मिल जाएगी, मुझको कोई, जीने की फिर...मीठी वजह...
Voices, Music & Lyrics - Malvika Nirajan
Graphics - Samarth Garg
Song # 05, Season # 03, All rights reserved with the artists and Hind Yugm
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हिन्द-युग्म के संगीत सत्र में ऐसा बहुत कम ही बार हुआ है जब गीत को लिखने वाला, संगीतबद्ध करने वाला और गाने वाला कोई एक ही हो। हिन्दी फिल्मी संगीत में भी कुल गानों की तुलना में इनका प्रतिशत निकाला जाय तो शायद नगण्य ही आये। पर जब भी इस तरह के गाने बनते हैं तो बहुत ही खूबसूरत बन पड़ते हैं। सुधी श्रोताओं को कई फिल्मी गाने याद आने लगे होंगे। असल में लिखने वाला अगर संगीतकार हो तो उसे इस बात की बेहतर समझ होती है कि गीत में कहाँ कैसा उतार-चढ़ाव है। हिन्द-युग्म के पहले संगीतबद्ध एल्बम 'पहला-सुर' में गायिका-संगीतकार और कवयित्री सुनीता यादव का गीत तू है दिल के पास एक ऐसा ही गीत था। दूसरे संगीतबद्ध सत्र में गायक-संगीतकार और कवि सुदीप यशराज के दो गीत 'बेइंतहा प्यार' और 'उड़ता परिंदा' रीलिज हुये। आज हम तीसरे संगीतबद्ध सत्र में मालविका निराजन द्वारा रचित एक गीत रीलिज कर रहे हैं जिस इन्होंने ही गाया भी है और संगीतबद्ध भी किया है। इनको आवाज़ मंच तक लाने का श्रेय रश्मि प्रभा को जाता है।
गीत के बोल -
एक नया दिन चला, ढूँढने कुछ नया
मिलेगा क्या, किसे खबर, नही फिकर, नही पता..
मैने तो चाहा आसमान ही मेरा हो, पर वो बन के सपना ही रहा
ओर जब मैं जागूँ, एक नया सवेरा हो, पर ना पाई वैसी एक सुबह
होओओ...फिर भी ना जानूँ, ये अरमान क्यूँ जागे हैं
पा लूँगा/लूँगी उनको, जिनको सपनो में जिया...
अनजानी राहें, चल पड़ी मुझे लेकर, एक सफ़र पे जानूँ ना कहाँ
मुड़ के जो देखा, जाने सब कहाँ छूटा, सपनों का मेरा वो जहाँ
अबके दिल चाहे, उनको कह दूँ अलविदा
अलबेले दिन की होगी अलबेली अदा...
चुन के जो, वो लाएगा, जानूँ मैं वो भायेगा
मिल जाएगी, मुझको कोई, जीने की फिर...मीठी वजह...
मेकिंग ऑफ़ "एक नया दिन चला"
मालविका निराजन: आज जब मेरा बेटा चार महीने का हो गया है तो यही लगता है की शायद उसके आने की आहट ने ही मुझसे ये गीत लिखवाया. मेरे गुरु श्री मधुप मुदगल भी हमेशा यही कहते हैं की किसी भी कलाकार को ये नहीं कहना चाहिए की 'मैंने ये रचना की', बल्कि ये कहना चाहिए की 'मुझसे ये रचना बन गयी'. मेरा सच यही है और ये बात मेरे दिल के बहुत करीब है. मै यही मानती हूँ की हर रचना के पीछे कारण कहीं कुछ अनदेखा, अनसुना सा ही होता है. ऐसा कुछ दिल, दिमाग में चल रहा था ये भी पता तब चलता है जब हम कुछ अचानक ही लिख लेते हैं; गा लेते हैं; कह लेते हैं; किसी भी माध्यम से.
गीत की शुरुआत तो २००८ में ही हुयी होगी जब पुनीत ने पहली बार ये धुन सुनाई होगी. आदतन वो अपनी धुनों पर कुछ शब्द बना ही लेता है. उस समय जो उसने सुनाया उसके शब्द थे.."शाम तो जाएगी, तभी सुबह आयेगी, किसी को तो पता नहीं, किसी को तो पता नहीं". हम आखिरी पंक्ति पर खूब हँसते थे क्योंकि धुन पर गाने के लिए कुछ तो होना चाहिए था और यही रोल उस पंक्ति का था:)
ये तो थी शुरुआत. पर ये हलकी-फुल्की, खुशनुमा सी धुन हमेशा मेरे आस पास रहती थी. पुनीत ने भी कई बार कहा और मुझे भी ये लगता रहा की बिना किसी कोशिश के ही इस धुन पर मेरा मन कई सारी बातें कह सकता था जो की प्रेम या श्रृंगार से जुडी नहीं थी. बस बातें थीं मेरे मन की. पहली दो पंक्ति लिख कर मैंने सोमप्रभ (मेरे पति) को सुनाई. उसे पसंद आयीं. फिर उसी जोश में मैंने ऑफिस में बैठे बैठे ही पूरा गाना लिख लिया.
फिर मन हुआ उसे रिकॉर्ड करने का. किसी ख़ास उद्देश्य से नहीं, बस ऐसे ही. मज़ा आ रहा था क्योंकि सारी चीज़ें अपनी थीं. धुन, शब्द, और अपने तरीके से गाने के लिए खुली छूट. ये बताना चाहूंगी की मैंने इस गाने को इक वोयस डेमो की तरह ही रखना चाहा इसीलिए इसके म्यूजिक tracks मिक्स्ड नहीं हैं. तो पुनीत के ही इक दोस्त (नारायणन) ने चेन्नई से इसका म्यूजिक अर्रंजेमेंट कर के भेजा और ५ अप्रैल, २००९ में हमने रिकॉर्ड किया - 'इक नया दिन चला, ढूँढने कुछ नया, मिलेगा क्या किसे खबर, नहीं फिकर, नहीं पता"
और इस गीत के जैसी ही मेरी मनःस्थिति थी क्योंकि इन सब के बीच चल रहा था इक इंतज़ार. लम्बा और संघर्षपूर्ण. आशावादी होना इक और बात है पर जब ये गीत लिख भी रही थी तो भी हमेशा ये लगता था की 'क्या कुछ ऐसी नयी-नयी सी बात होगी जो मेरे इस गीत जैसी होगी ?'..'क्या सच में कुछ ऐसा होगा जो मुझे बहुत खुश कर जायेगा?"
"चुन के वो , जो लायेगा, जानूँ मै वो भायेगा, मिल जाएगी, मुझको कोई, जीने की फिर, मीठी वजह..."
ऐसा होने वाला था. २१ अप्रैल, २००९ को ही मुझे वो वजह मिली - अपने बेटे श्रेहान के आने की पहली खबर:). उस ख़ुशी को शब्दों में व्यक्त करना तो शायद बहुत मुश्किल होगा. इक और गीत ही उस ख़ुशी के नाम करना होगा. और संयोग ऐसा है की गीत रिकॉर्ड होने के ठीक इक साल बाद, ५ अप्रैल, २०१० को ही रश्मि प्रभा ने, जो की मेरी मौसी हैं और हिन्दीयुग्म की सक्रिय सदस्य, मुझे इस गीत को प्रतियोगिता में भेजने को कहा.
शायद यह गीत अब मेरी पहचान है. मेरे जीवन, मेरे संगीत में होने वाले उतार चढ़ाव का इक सुरीला इशारा:-)
मालविका निराजन: आज जब मेरा बेटा चार महीने का हो गया है तो यही लगता है की शायद उसके आने की आहट ने ही मुझसे ये गीत लिखवाया. मेरे गुरु श्री मधुप मुदगल भी हमेशा यही कहते हैं की किसी भी कलाकार को ये नहीं कहना चाहिए की 'मैंने ये रचना की', बल्कि ये कहना चाहिए की 'मुझसे ये रचना बन गयी'. मेरा सच यही है और ये बात मेरे दिल के बहुत करीब है. मै यही मानती हूँ की हर रचना के पीछे कारण कहीं कुछ अनदेखा, अनसुना सा ही होता है. ऐसा कुछ दिल, दिमाग में चल रहा था ये भी पता तब चलता है जब हम कुछ अचानक ही लिख लेते हैं; गा लेते हैं; कह लेते हैं; किसी भी माध्यम से.
गीत की शुरुआत तो २००८ में ही हुयी होगी जब पुनीत ने पहली बार ये धुन सुनाई होगी. आदतन वो अपनी धुनों पर कुछ शब्द बना ही लेता है. उस समय जो उसने सुनाया उसके शब्द थे.."शाम तो जाएगी, तभी सुबह आयेगी, किसी को तो पता नहीं, किसी को तो पता नहीं". हम आखिरी पंक्ति पर खूब हँसते थे क्योंकि धुन पर गाने के लिए कुछ तो होना चाहिए था और यही रोल उस पंक्ति का था:)
ये तो थी शुरुआत. पर ये हलकी-फुल्की, खुशनुमा सी धुन हमेशा मेरे आस पास रहती थी. पुनीत ने भी कई बार कहा और मुझे भी ये लगता रहा की बिना किसी कोशिश के ही इस धुन पर मेरा मन कई सारी बातें कह सकता था जो की प्रेम या श्रृंगार से जुडी नहीं थी. बस बातें थीं मेरे मन की. पहली दो पंक्ति लिख कर मैंने सोमप्रभ (मेरे पति) को सुनाई. उसे पसंद आयीं. फिर उसी जोश में मैंने ऑफिस में बैठे बैठे ही पूरा गाना लिख लिया.
फिर मन हुआ उसे रिकॉर्ड करने का. किसी ख़ास उद्देश्य से नहीं, बस ऐसे ही. मज़ा आ रहा था क्योंकि सारी चीज़ें अपनी थीं. धुन, शब्द, और अपने तरीके से गाने के लिए खुली छूट. ये बताना चाहूंगी की मैंने इस गाने को इक वोयस डेमो की तरह ही रखना चाहा इसीलिए इसके म्यूजिक tracks मिक्स्ड नहीं हैं. तो पुनीत के ही इक दोस्त (नारायणन) ने चेन्नई से इसका म्यूजिक अर्रंजेमेंट कर के भेजा और ५ अप्रैल, २००९ में हमने रिकॉर्ड किया - 'इक नया दिन चला, ढूँढने कुछ नया, मिलेगा क्या किसे खबर, नहीं फिकर, नहीं पता"
और इस गीत के जैसी ही मेरी मनःस्थिति थी क्योंकि इन सब के बीच चल रहा था इक इंतज़ार. लम्बा और संघर्षपूर्ण. आशावादी होना इक और बात है पर जब ये गीत लिख भी रही थी तो भी हमेशा ये लगता था की 'क्या कुछ ऐसी नयी-नयी सी बात होगी जो मेरे इस गीत जैसी होगी ?'..'क्या सच में कुछ ऐसा होगा जो मुझे बहुत खुश कर जायेगा?"
"चुन के वो , जो लायेगा, जानूँ मै वो भायेगा, मिल जाएगी, मुझको कोई, जीने की फिर, मीठी वजह..."
ऐसा होने वाला था. २१ अप्रैल, २००९ को ही मुझे वो वजह मिली - अपने बेटे श्रेहान के आने की पहली खबर:). उस ख़ुशी को शब्दों में व्यक्त करना तो शायद बहुत मुश्किल होगा. इक और गीत ही उस ख़ुशी के नाम करना होगा. और संयोग ऐसा है की गीत रिकॉर्ड होने के ठीक इक साल बाद, ५ अप्रैल, २०१० को ही रश्मि प्रभा ने, जो की मेरी मौसी हैं और हिन्दीयुग्म की सक्रिय सदस्य, मुझे इस गीत को प्रतियोगिता में भेजने को कहा.
शायद यह गीत अब मेरी पहचान है. मेरे जीवन, मेरे संगीत में होने वाले उतार चढ़ाव का इक सुरीला इशारा:-)
मालविका निराजन
मालविका निराजन ने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत गायन में प्रशिक्षण लिया है। और सोनू निगम के साथ सारेगामा के स्टेज पर भी रही हैं। इससे पहले इन्होंने गायक और कत्थक उस्ताद पं॰ बिरजू महाराज और उनके विद्यार्थियों के साथ ढेरों प्रोग्रेम किये हैं। इसके अलावा पंडित बिरजू महाराज द्वारा उनके विद्यार्थियों के लिए तैयार किये गये एल्बम 'छंद काव्य' में मालविका ने एकल और युगल गाया है।
Song - Ek Naya Din Chalaमालविका निराजन ने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत गायन में प्रशिक्षण लिया है। और सोनू निगम के साथ सारेगामा के स्टेज पर भी रही हैं। इससे पहले इन्होंने गायक और कत्थक उस्ताद पं॰ बिरजू महाराज और उनके विद्यार्थियों के साथ ढेरों प्रोग्रेम किये हैं। इसके अलावा पंडित बिरजू महाराज द्वारा उनके विद्यार्थियों के लिए तैयार किये गये एल्बम 'छंद काव्य' में मालविका ने एकल और युगल गाया है।
Voices, Music & Lyrics - Malvika Nirajan
Graphics - Samarth Garg
Song # 05, Season # 03, All rights reserved with the artists and Hind Yugm
इस गीत का प्लेयर फेसबुक/ऑरकुट/ब्लॉग/वेबसाइट पर लगाइए
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-kuhoo