ताज़ा सुर ताल १७/२०१०
सुजॊय - 'ताज़ा सुर ताल' की एक और कड़ी के साथ मैं और विश्व दीपक तन्हा जी हाज़िर हैं। विश्व दीपक जी, आज आप हमारे श्रोताओं को किस नए फ़िल्म के गानों से रु-ब-रु करवा रहे हैं।
विश्व दीपक - आज हमने एक ऐसी फ़िल्म चुनी है जो शायद फ़ॊरमुला फ़िल्मों की ज़रूरतें पूरी नहीं करती। आजकल बहुत सारे निर्माता-निर्देशक नए नए विषयों पर फ़िल्में बना रहे हैं। 'लारजर दैन लाइफ़ इमेज' कहानियों से बाहर निकल कर वास्तविक ज़िंदगी से जुड़ी विषयों पर कई फ़िल्में पिछले कुछ सालों से बन रही है, जिन्हे एक बहुत सराहनीय प्रयास कहा जा सकता है। आज हम ज़िक्र कर रहे हैं आने वाली फ़िल्म 'एडमिशन्स ओपन' की।
सुजॊय - मैंने इस फ़िल्म के बारे में कुछ कुछ सुना है और प्रोमोज़ भी देखे हैं। ऐसा लगता है कि इस फ़िल्म के माध्यम से यही संदेश दिया जा रहा है कि जिस विषय में दिलचस्पी हो, जिस क्षेत्र के लिए ईश्वर ने प्रतिभा प्रदान की हो, आदमी को चाहिए कि उसी तरफ़ प्रयास करें। आजकल के माता पिता जिस तरह से अपने बच्चों को ज़बरदस्ती ईंजिनीयरिंग और डाक्टरी की तरफ़ धकेल देते हैं, इससे आगे चलकर ज़िंदगी में पैसे तो कमा लेते हैं, लेकिन दिल में कहीं एक उदासी छाई रहती है, 'जॊब सैटिस्फ़ैक्शन' जिसे हम कहते हैं, वह नहीं मिल पाता।
विश्व दीपक - और कई बार तो हालात इतने गम्भीर हो जाते हैं कि माता पिता की उम्मीदों पर खरा ना उतरने पर बच्चे मानसिक संतुलन खो बठते हैं और ख़ुदकुशी जैसे भयानक क़दम भी उठा लेते हैं। तो 'एडमिशन्स ओपन' फ़िल्म का पहला गीत सुनवाने से पहले हम आज इस स्तंभ के माध्यम से हर माता-पिता से यही अनुरोध करते हैं कि आप अपने बच्चों को उनकी रुचि के अनुसार ज़िंदगी में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। उन पर ज़्यादा दबाव ना डालें जिससे कि वो कोई ग़लत क़दम उठा लें और आपको ज़िंदगी भर पछताना पड़े। ख़ैर, आइए सुनते हैं 'एडमिशन्स ओपन' फ़िल्म का पहला गीत।
गीत: मेरी रूह रूह में तू ही बसे
सुजॊय - यह गीत था नरेश अय्यर और अदिति सिंह शर्मा की आवाज़ों में। पिछले साल संगीतकार अमित त्रिवेदी ने 'देव-डी' के संगीत के माध्यम से अपने नाम का डंका बजाया था। 'इमोशनल अत्याचार' और दूसरे तमाम गीत ख़ूब पसंद किए गए थे। अब देखना है कि 'एडमिशन्स ओपन' में भी क्या वो वही कमाल दिखा पाते हैं! इस गीत में नरेश अय्यर ने अमित की मेलोडियस धुन पर अच्छी गायकी का नमूना पेश किया है, और पार्श्व में अदिति की आवाज़ सुनाई देती है। गिटार और स्ट्रिंग्स का काफ़ी इस्तेमाल है। एक बार सुन कर तो यह गीत दिल में कुछ खास जगह नहीं बना पाता, लेकिन इस गीत की जिस तरह क्वालिटी है, उससे यह उम्मीद की जा सकती है कि दो-चार बार सुन लेने पर यह गीत लोगों को ज़रूर पसंद आने लगेगा।
विश्व दीपक - सुजॊय, आपने फ़िल्म के संगीतकार का ज़िक्र तो कर दिया, अब मैं यह बता दूँ कि फ़िल्म के गीतों को लिखा है शेल्ली ने। ये वही शेल्ली हैं, जिन्होंने "देव डी" में भी कुछ गीत लिखे थे, वैसे उस फिल्म में ज्यादातर गीत अमिताभ भट्टाचार्य के थे। वैसे अगर आप ध्यान दें तो यह पाएँगे कि भले हीं इस फिल्म में अमिताभ ने गीत न लिखे हों, लेकिन उन्होंने कुछ गानों में अपनी आवाज़ें ज़रूर दी हैं। वे गाने कौन से हैं, इस बात का पता जल्द हीं चल जाएगा। इस फ़िल्म में बहुत से कलाकार हैं, जिनमें कुछ प्रमुख नाम हैं अनुपम खेर, आशिष विद्यार्थी, अंकुर खन्ना, प्रमोद माउथो और रति अग्निहोत्री। निर्माता हैं मोहम्मद इसरार अंसारी और निर्देशक के. डी. सत्यम। अब दूसरे गीत की बारी। इसमें भी गिटार और स्ट्रिंग्स की ध्वनियाँ विशेष रूप से सुनाई देती हैं। यह है "म्युज़िक ही हाए... मन को महकाए"। गीत गाया है कविता सेठ और कविश सेठ ने।
सुजॊय - गीत की ख़ासियत यह है कि यह एक माँ और बेटे का वार्तालाप है। इसमें बेटा संगीत में अपना रुझान ज़ाहिर करता है जब कि माँ पढ़ाई और शिक्षा की ज़रूरत पर बल देती है। यानी कि बेटा म्युज़िक में जाना चाहता है जब कि माँ उसे पढ़ाई में ध्यान देने की सलाह देती है। गीतकार शेल्ली ने अच्छी तरह से इस वार्तालाप रूपी गीत को लिखा है और अमित त्रिवेदी ने भी अच्छी धुन बनाई है। बड़ी बात यह है कि कविता और कविश वास्तव में माँ-बेटे हैं।
विश्व दीपक - जी हाँ.. और यही कारण है कि इस गाने में इनकी भावनाएँ खुलकर नज़र आती हैं। जब कविता कहती हैं कि "पढ इतना कि माँ नाज़ से सर को उठाए" तो सच में लगता है कि कविता कविश को पढने के लिए कह रही हों। वैसे मेरे हिसाब से यह गाना कविता की प्रतिभा के सामने थोड़ा कम पड़ जाता है। हमें उनसे ढेर सारी उम्मीदें है। अहा! बातों-बातों में तो हम गाना सुनना भूल हीं गए।
गीत: म्युज़िक ही हाये मन को महकाए
विश्व दीपक - अमित की सब बड़ी खासियत यह है कि उनकी धुनों में दूसरे संगीतकारों की छाया दिखाई नहीं देती। उन्होने बहुत ही कम समय मे अपना एक अलग स्टाइल बना लिया है। इस फ़िल्म के गीतों में भी उनका वही ख़ास अंदाज़ सुनने को मिलता है जो 'देव-डी' में सुनाई दिया था। अगला जो गीत हम सुनाने जा रहे हैं उसे सुन कर आपको इस बात का अंदाज़ा हो जाएगा। यह गीत है श्रुति पाठक का गाया "रोशनी"।
सुजॊय - इस गीत का ओकेस्ट्रेशन में काफ़ी दमदार बीट्स का इस्तेमाल किया गया है और सैक्सोफ़ोन के पीस भी सुनाई देते हैं। अंतिम अंतरे से पहले की इंटरल्युड संगीत में सितार के सुर भी सुनने को मिलते हैं। इस गीत का पार्श्व संगीत को सुनते हुए आपको 'देव-डी' की श्रुति की ही आवाज़ में "पायलिया" गीत की याद आ सकती है। कुल मिलाकर एक अच्छा गीत है। इस गीत के साथ अमित-शेल्ली-श्रुति की टीम वापस लौटी है।
विश्व दीपक - वैसे सुजॊय, क्या आपको यह पता है कि श्रुति को २००८ में "फैशन" के लिए बेस्ट प्लेबैक सिंगर की केटेगरी में नामांकित भी किया गया था। अलग बात है कि यह पुरस्कार ४ बार रास्ट्रीय पुरस्कार जीत चुकीं श्रेया घोषाल की झोली में गया। अब श्रेया से हारना भी तो एक उपलब्धि हीं है।
गीत: अरमानों की रोशनी
सुजॊय - अब जिस गीत की बारी है वह एक पेप्पी, जोशीला, थिरकता हुआ आशावादी गीत है, जिसे आज के युवाओं का ऐंथम कह सकते हैं। "आसमाँ के पार चलो पार चलो यार" गीत है आज के युवाओं के जो ज़िंदगी में कुछ बड़ा कर दिखाने के सपने देखते हैं। पूरे गीत में उसी जोश-ए-जवानी की बातें कही गई है। इस तरह के गानें पहले भी कई बनें हैं, जैसे कि 'जो जीता वही सिकंदर' फ़िल्म में था "जवाँ हो यारों ये तुमको हुआ क्या"।
विश्व दीपक - मुझे एक गीत याद आ रहा है, पता नहीं लोगों ने ज़्यादा इसे सुना होगा या नहीं, हृतिक रोशन की एक फ़िल्म आई थी 'आप मुझे अच्छे लगने लगे', जिसमें सोनू निगम ने गाया था "कुछ हम में ऐसी बातें हैं जो सब में है कहाँ, छू लेंगे आसमाँ"।
सुजॊय - "आसमाँ के पार चलो" गीत में बहुत सारी आवाज़ें शामिल हैं, जैसे कि रमण महादेवन(जिन्होंने "तारे जमीन पर" में "खोलो खोलो दरवाजे" गाया था), शिल्पा राव, जॊय बरुआ, अमिताभ भट्टाचार्य और तोची रैना(जिन्होंने "देव डी" का "परदेशी" गाया था)। आइए सुनते हैं यह गीत जो आपको जोश से भर देगा और एक 'पॊज़िटिव फ़ीलिंग्' का संचार कर देगा आप के नस नस में।
गीत: आसमाँ के पार चलो
विश्व दीपक - और अब फ़िल्म का अंतिम गीत। इस गीत(दरिया उबालें) को शोन पिंटो ने गाया है। मुझे इस गीत के बोल खासे मज़ेदार लगे... और इसके लिए मैं शैल्ली को खास तौर पर बधाई देना चाहूँगा। और वैसे भी यह ऐसा गाना है जिसमें बोलों की विशेष आवश्यकता है क्योंकि अगर बोल न होंगे तो सुनने वालों में जोश कैसे पैदा किया जाएगा। शैल्ली ने "दरिया उबालें" शब्द-युग्म के रूप में कविता-प्रेमियों को एक नया बिंब दिया है, जो मन और कान.... दोनों को भा जाता है।
सुजॊय - विश्व दीपक जी, बोल के बारे में तो मैं कुछ नहीं कहूँगा, लेकिन हाँ संगीत में नयापन ज़रूर है। वैसे अगर आप ध्यान से सुनें तो आपको इसमें "देव-डी" के "इमोशनल अत्याचार... रोक वर्शन" का थोड़ा असर ज़रूर दिखेगा। शोन की आवाज़ कुछ हद तक बोनी चक्रवर्ती से मिलती जुलती भी है। चूँकि इस गाने से पहले मैंने शोन को सुना नहीं है, इसलिए इनके बारे में कुछ खास जानकारी हासिल नहीं कर पाया हूँ। इसलिए अच्छा होगा कि हम सीधे-सीधे गाने की ओर रुख कर लें। तो यह रहा शोन पिंटो की आवाज़ में "दरिया उबाले":
गीत: दरिया उबाले
"ऐडमिशन्स ओपन" के संगीत को आवाज़ रेटिंग ***
विश्व दीपक - जैसी अमित त्रिवेदी से उम्मीदें रहती है, मेरे हिसाब से अमित इस फिल्म में उतने कामयाब नहीं हो पाएँ हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता हैं कि 'एडमिशन्स ओपन' का गीत-संगीत पक्ष बहुत ज़्यादा मज़बूत नहीं है, लेकिन हाँ इनकी धुनों में ताज़गी है जो इन्हे आगे और भी फ़िल्में दिलवाएँगी। नई पीढी के संगीतकारों में मुझे बस अमित हीं एक ऐसे दिखते हैं(और कुछ हद तक स्नेहा खनवलकर, जिन्होंने "ओए लकी लकी ओए" और "एल एस डी" में संगीत दिया था), जो रहमान की तरह प्रयोगधर्मी हैं और अपने प्रयोगों में कुछ न कुछ हद तक सफल भी हो रहे हैं।
सुजॊय - मुझे भी ऐसा लगता है कि यह एल्बम ठीक ठाक है, फ़िल्म की कहानी और प्लाट ही कुछ ऐसी है कि इसके संगीत से बहुत ज़्यादा उम्मीद करना उचित नहीं। अमित त्रिवेदी के संगीत में कई जगहों पर उनके 'देव-डी' के संगीत का प्रभाव नज़र आया, लेकिन एकरसता नहीं आई है। अमित त्रिवेदी और 'ऐडमिशन्स ओपन' की पूरी टीम को हम अपनी शुभकामनाएँ देते हैं, और आज की यह संगीत समीक्षा यहीं समाप्त करते हैं।
और अब आज के ३ सवाल
TST ट्रिविया # ४९- अमित त्रिवेदी को इस साल फ़िल्मफ़ेयर के अंतरगत दो पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, बताइए ये दो पुरस्कार कौन कौन से हैं?
TST ट्रिविया # ५०- "म्युज़िक ही हाये मन को महकाए" गीत में माँ बेटे का वार्तालाप है। कुछ साल पहले माँ बेटे के सम्पर्क को लेकर एक गीत बना था जिसमें एक आवाज़ ए. आर. रहमान की थी। गीत बताएँ।
TST ट्रिविया # ५१- आजकल के युवाओं के मनोभाव को लेकर यह फ़िल्म है 'एडमिशन्स ओपन'। कुछ कुछ इसी तरह के भाव पर हाल ही में एक फ़िल्म आई थी, जिसमें उसी गायिका ने एक शानदार गीत गाया था जिन्होने 'एडमिशन्स ओपन' में भी एक गीत गाया है। और उन्हे उस गीत के लिए पुरस्कृत भी किया जा चुका है। बताइए हम किस गायिका और किस फ़िल्म की बात कर रहे हैं।
TST ट्रिविया में अब तक -
पिछले हफ़्ते के सवालों के जवाब:
१. फ़िल्म 'मीनाक्षी - ए टेल ऒफ़ थ्री सिटीज़' में "यह रिश्ता"।
२. फ़िल्म 'बीवी नंबर वन' में "चुनरी चुनरी"।
३. फ़िल्म 'ढाई अक्षर प्रेम के' का गीत "दो लफ़्ज़ों में लिख दी मैंने", बाबुल सुप्रियो, अनुराधा पौडवाल।
सीमा जी, आपका पहला जवाब पूरी तरह से सही है, लेकिन तीसरे जवाब में आपने फिल्म का नाम गलत लिखा है, इसलिए आधे हीं नंबर मिलेंगे। वैसे, आपको नंबर की क्या परवाह.. आप यूँ हीं शीर्ष पर विराजमान हैं :)
सुजॊय - 'ताज़ा सुर ताल' की एक और कड़ी के साथ मैं और विश्व दीपक तन्हा जी हाज़िर हैं। विश्व दीपक जी, आज आप हमारे श्रोताओं को किस नए फ़िल्म के गानों से रु-ब-रु करवा रहे हैं।
विश्व दीपक - आज हमने एक ऐसी फ़िल्म चुनी है जो शायद फ़ॊरमुला फ़िल्मों की ज़रूरतें पूरी नहीं करती। आजकल बहुत सारे निर्माता-निर्देशक नए नए विषयों पर फ़िल्में बना रहे हैं। 'लारजर दैन लाइफ़ इमेज' कहानियों से बाहर निकल कर वास्तविक ज़िंदगी से जुड़ी विषयों पर कई फ़िल्में पिछले कुछ सालों से बन रही है, जिन्हे एक बहुत सराहनीय प्रयास कहा जा सकता है। आज हम ज़िक्र कर रहे हैं आने वाली फ़िल्म 'एडमिशन्स ओपन' की।
सुजॊय - मैंने इस फ़िल्म के बारे में कुछ कुछ सुना है और प्रोमोज़ भी देखे हैं। ऐसा लगता है कि इस फ़िल्म के माध्यम से यही संदेश दिया जा रहा है कि जिस विषय में दिलचस्पी हो, जिस क्षेत्र के लिए ईश्वर ने प्रतिभा प्रदान की हो, आदमी को चाहिए कि उसी तरफ़ प्रयास करें। आजकल के माता पिता जिस तरह से अपने बच्चों को ज़बरदस्ती ईंजिनीयरिंग और डाक्टरी की तरफ़ धकेल देते हैं, इससे आगे चलकर ज़िंदगी में पैसे तो कमा लेते हैं, लेकिन दिल में कहीं एक उदासी छाई रहती है, 'जॊब सैटिस्फ़ैक्शन' जिसे हम कहते हैं, वह नहीं मिल पाता।
विश्व दीपक - और कई बार तो हालात इतने गम्भीर हो जाते हैं कि माता पिता की उम्मीदों पर खरा ना उतरने पर बच्चे मानसिक संतुलन खो बठते हैं और ख़ुदकुशी जैसे भयानक क़दम भी उठा लेते हैं। तो 'एडमिशन्स ओपन' फ़िल्म का पहला गीत सुनवाने से पहले हम आज इस स्तंभ के माध्यम से हर माता-पिता से यही अनुरोध करते हैं कि आप अपने बच्चों को उनकी रुचि के अनुसार ज़िंदगी में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। उन पर ज़्यादा दबाव ना डालें जिससे कि वो कोई ग़लत क़दम उठा लें और आपको ज़िंदगी भर पछताना पड़े। ख़ैर, आइए सुनते हैं 'एडमिशन्स ओपन' फ़िल्म का पहला गीत।
गीत: मेरी रूह रूह में तू ही बसे
सुजॊय - यह गीत था नरेश अय्यर और अदिति सिंह शर्मा की आवाज़ों में। पिछले साल संगीतकार अमित त्रिवेदी ने 'देव-डी' के संगीत के माध्यम से अपने नाम का डंका बजाया था। 'इमोशनल अत्याचार' और दूसरे तमाम गीत ख़ूब पसंद किए गए थे। अब देखना है कि 'एडमिशन्स ओपन' में भी क्या वो वही कमाल दिखा पाते हैं! इस गीत में नरेश अय्यर ने अमित की मेलोडियस धुन पर अच्छी गायकी का नमूना पेश किया है, और पार्श्व में अदिति की आवाज़ सुनाई देती है। गिटार और स्ट्रिंग्स का काफ़ी इस्तेमाल है। एक बार सुन कर तो यह गीत दिल में कुछ खास जगह नहीं बना पाता, लेकिन इस गीत की जिस तरह क्वालिटी है, उससे यह उम्मीद की जा सकती है कि दो-चार बार सुन लेने पर यह गीत लोगों को ज़रूर पसंद आने लगेगा।
विश्व दीपक - सुजॊय, आपने फ़िल्म के संगीतकार का ज़िक्र तो कर दिया, अब मैं यह बता दूँ कि फ़िल्म के गीतों को लिखा है शेल्ली ने। ये वही शेल्ली हैं, जिन्होंने "देव डी" में भी कुछ गीत लिखे थे, वैसे उस फिल्म में ज्यादातर गीत अमिताभ भट्टाचार्य के थे। वैसे अगर आप ध्यान दें तो यह पाएँगे कि भले हीं इस फिल्म में अमिताभ ने गीत न लिखे हों, लेकिन उन्होंने कुछ गानों में अपनी आवाज़ें ज़रूर दी हैं। वे गाने कौन से हैं, इस बात का पता जल्द हीं चल जाएगा। इस फ़िल्म में बहुत से कलाकार हैं, जिनमें कुछ प्रमुख नाम हैं अनुपम खेर, आशिष विद्यार्थी, अंकुर खन्ना, प्रमोद माउथो और रति अग्निहोत्री। निर्माता हैं मोहम्मद इसरार अंसारी और निर्देशक के. डी. सत्यम। अब दूसरे गीत की बारी। इसमें भी गिटार और स्ट्रिंग्स की ध्वनियाँ विशेष रूप से सुनाई देती हैं। यह है "म्युज़िक ही हाए... मन को महकाए"। गीत गाया है कविता सेठ और कविश सेठ ने।
सुजॊय - गीत की ख़ासियत यह है कि यह एक माँ और बेटे का वार्तालाप है। इसमें बेटा संगीत में अपना रुझान ज़ाहिर करता है जब कि माँ पढ़ाई और शिक्षा की ज़रूरत पर बल देती है। यानी कि बेटा म्युज़िक में जाना चाहता है जब कि माँ उसे पढ़ाई में ध्यान देने की सलाह देती है। गीतकार शेल्ली ने अच्छी तरह से इस वार्तालाप रूपी गीत को लिखा है और अमित त्रिवेदी ने भी अच्छी धुन बनाई है। बड़ी बात यह है कि कविता और कविश वास्तव में माँ-बेटे हैं।
विश्व दीपक - जी हाँ.. और यही कारण है कि इस गाने में इनकी भावनाएँ खुलकर नज़र आती हैं। जब कविता कहती हैं कि "पढ इतना कि माँ नाज़ से सर को उठाए" तो सच में लगता है कि कविता कविश को पढने के लिए कह रही हों। वैसे मेरे हिसाब से यह गाना कविता की प्रतिभा के सामने थोड़ा कम पड़ जाता है। हमें उनसे ढेर सारी उम्मीदें है। अहा! बातों-बातों में तो हम गाना सुनना भूल हीं गए।
गीत: म्युज़िक ही हाये मन को महकाए
विश्व दीपक - अमित की सब बड़ी खासियत यह है कि उनकी धुनों में दूसरे संगीतकारों की छाया दिखाई नहीं देती। उन्होने बहुत ही कम समय मे अपना एक अलग स्टाइल बना लिया है। इस फ़िल्म के गीतों में भी उनका वही ख़ास अंदाज़ सुनने को मिलता है जो 'देव-डी' में सुनाई दिया था। अगला जो गीत हम सुनाने जा रहे हैं उसे सुन कर आपको इस बात का अंदाज़ा हो जाएगा। यह गीत है श्रुति पाठक का गाया "रोशनी"।
सुजॊय - इस गीत का ओकेस्ट्रेशन में काफ़ी दमदार बीट्स का इस्तेमाल किया गया है और सैक्सोफ़ोन के पीस भी सुनाई देते हैं। अंतिम अंतरे से पहले की इंटरल्युड संगीत में सितार के सुर भी सुनने को मिलते हैं। इस गीत का पार्श्व संगीत को सुनते हुए आपको 'देव-डी' की श्रुति की ही आवाज़ में "पायलिया" गीत की याद आ सकती है। कुल मिलाकर एक अच्छा गीत है। इस गीत के साथ अमित-शेल्ली-श्रुति की टीम वापस लौटी है।
विश्व दीपक - वैसे सुजॊय, क्या आपको यह पता है कि श्रुति को २००८ में "फैशन" के लिए बेस्ट प्लेबैक सिंगर की केटेगरी में नामांकित भी किया गया था। अलग बात है कि यह पुरस्कार ४ बार रास्ट्रीय पुरस्कार जीत चुकीं श्रेया घोषाल की झोली में गया। अब श्रेया से हारना भी तो एक उपलब्धि हीं है।
गीत: अरमानों की रोशनी
सुजॊय - अब जिस गीत की बारी है वह एक पेप्पी, जोशीला, थिरकता हुआ आशावादी गीत है, जिसे आज के युवाओं का ऐंथम कह सकते हैं। "आसमाँ के पार चलो पार चलो यार" गीत है आज के युवाओं के जो ज़िंदगी में कुछ बड़ा कर दिखाने के सपने देखते हैं। पूरे गीत में उसी जोश-ए-जवानी की बातें कही गई है। इस तरह के गानें पहले भी कई बनें हैं, जैसे कि 'जो जीता वही सिकंदर' फ़िल्म में था "जवाँ हो यारों ये तुमको हुआ क्या"।
विश्व दीपक - मुझे एक गीत याद आ रहा है, पता नहीं लोगों ने ज़्यादा इसे सुना होगा या नहीं, हृतिक रोशन की एक फ़िल्म आई थी 'आप मुझे अच्छे लगने लगे', जिसमें सोनू निगम ने गाया था "कुछ हम में ऐसी बातें हैं जो सब में है कहाँ, छू लेंगे आसमाँ"।
सुजॊय - "आसमाँ के पार चलो" गीत में बहुत सारी आवाज़ें शामिल हैं, जैसे कि रमण महादेवन(जिन्होंने "तारे जमीन पर" में "खोलो खोलो दरवाजे" गाया था), शिल्पा राव, जॊय बरुआ, अमिताभ भट्टाचार्य और तोची रैना(जिन्होंने "देव डी" का "परदेशी" गाया था)। आइए सुनते हैं यह गीत जो आपको जोश से भर देगा और एक 'पॊज़िटिव फ़ीलिंग्' का संचार कर देगा आप के नस नस में।
गीत: आसमाँ के पार चलो
विश्व दीपक - और अब फ़िल्म का अंतिम गीत। इस गीत(दरिया उबालें) को शोन पिंटो ने गाया है। मुझे इस गीत के बोल खासे मज़ेदार लगे... और इसके लिए मैं शैल्ली को खास तौर पर बधाई देना चाहूँगा। और वैसे भी यह ऐसा गाना है जिसमें बोलों की विशेष आवश्यकता है क्योंकि अगर बोल न होंगे तो सुनने वालों में जोश कैसे पैदा किया जाएगा। शैल्ली ने "दरिया उबालें" शब्द-युग्म के रूप में कविता-प्रेमियों को एक नया बिंब दिया है, जो मन और कान.... दोनों को भा जाता है।
सुजॊय - विश्व दीपक जी, बोल के बारे में तो मैं कुछ नहीं कहूँगा, लेकिन हाँ संगीत में नयापन ज़रूर है। वैसे अगर आप ध्यान से सुनें तो आपको इसमें "देव-डी" के "इमोशनल अत्याचार... रोक वर्शन" का थोड़ा असर ज़रूर दिखेगा। शोन की आवाज़ कुछ हद तक बोनी चक्रवर्ती से मिलती जुलती भी है। चूँकि इस गाने से पहले मैंने शोन को सुना नहीं है, इसलिए इनके बारे में कुछ खास जानकारी हासिल नहीं कर पाया हूँ। इसलिए अच्छा होगा कि हम सीधे-सीधे गाने की ओर रुख कर लें। तो यह रहा शोन पिंटो की आवाज़ में "दरिया उबाले":
गीत: दरिया उबाले
"ऐडमिशन्स ओपन" के संगीत को आवाज़ रेटिंग ***
विश्व दीपक - जैसी अमित त्रिवेदी से उम्मीदें रहती है, मेरे हिसाब से अमित इस फिल्म में उतने कामयाब नहीं हो पाएँ हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता हैं कि 'एडमिशन्स ओपन' का गीत-संगीत पक्ष बहुत ज़्यादा मज़बूत नहीं है, लेकिन हाँ इनकी धुनों में ताज़गी है जो इन्हे आगे और भी फ़िल्में दिलवाएँगी। नई पीढी के संगीतकारों में मुझे बस अमित हीं एक ऐसे दिखते हैं(और कुछ हद तक स्नेहा खनवलकर, जिन्होंने "ओए लकी लकी ओए" और "एल एस डी" में संगीत दिया था), जो रहमान की तरह प्रयोगधर्मी हैं और अपने प्रयोगों में कुछ न कुछ हद तक सफल भी हो रहे हैं।
सुजॊय - मुझे भी ऐसा लगता है कि यह एल्बम ठीक ठाक है, फ़िल्म की कहानी और प्लाट ही कुछ ऐसी है कि इसके संगीत से बहुत ज़्यादा उम्मीद करना उचित नहीं। अमित त्रिवेदी के संगीत में कई जगहों पर उनके 'देव-डी' के संगीत का प्रभाव नज़र आया, लेकिन एकरसता नहीं आई है। अमित त्रिवेदी और 'ऐडमिशन्स ओपन' की पूरी टीम को हम अपनी शुभकामनाएँ देते हैं, और आज की यह संगीत समीक्षा यहीं समाप्त करते हैं।
और अब आज के ३ सवाल
TST ट्रिविया # ४९- अमित त्रिवेदी को इस साल फ़िल्मफ़ेयर के अंतरगत दो पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, बताइए ये दो पुरस्कार कौन कौन से हैं?
TST ट्रिविया # ५०- "म्युज़िक ही हाये मन को महकाए" गीत में माँ बेटे का वार्तालाप है। कुछ साल पहले माँ बेटे के सम्पर्क को लेकर एक गीत बना था जिसमें एक आवाज़ ए. आर. रहमान की थी। गीत बताएँ।
TST ट्रिविया # ५१- आजकल के युवाओं के मनोभाव को लेकर यह फ़िल्म है 'एडमिशन्स ओपन'। कुछ कुछ इसी तरह के भाव पर हाल ही में एक फ़िल्म आई थी, जिसमें उसी गायिका ने एक शानदार गीत गाया था जिन्होने 'एडमिशन्स ओपन' में भी एक गीत गाया है। और उन्हे उस गीत के लिए पुरस्कृत भी किया जा चुका है। बताइए हम किस गायिका और किस फ़िल्म की बात कर रहे हैं।
TST ट्रिविया में अब तक -
पिछले हफ़्ते के सवालों के जवाब:
१. फ़िल्म 'मीनाक्षी - ए टेल ऒफ़ थ्री सिटीज़' में "यह रिश्ता"।
२. फ़िल्म 'बीवी नंबर वन' में "चुनरी चुनरी"।
३. फ़िल्म 'ढाई अक्षर प्रेम के' का गीत "दो लफ़्ज़ों में लिख दी मैंने", बाबुल सुप्रियो, अनुराधा पौडवाल।
सीमा जी, आपका पहला जवाब पूरी तरह से सही है, लेकिन तीसरे जवाब में आपने फिल्म का नाम गलत लिखा है, इसलिए आधे हीं नंबर मिलेंगे। वैसे, आपको नंबर की क्या परवाह.. आप यूँ हीं शीर्ष पर विराजमान हैं :)
Comments
regards
Kahan kahan dhoondha tujhe
thak gayi hai ab teri maa
regards
regards