Skip to main content

सो जा राजकुमारी सो जा...हिंदी फिल्म संगीत के पहले सुपर सिंगर को नमन

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 318/2010/18

'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों हम अपको सुनवा रहे हैं लघु शृंखला 'स्वरांजली', जिसके अन्तर्गत हम याद कर रहे हैं फ़िल्म संगीत के उन लाजवाब कलाकारों को जो या तो हमसे बिछड़े थे जनवरी के महीने में, या फिर वो मना रहे हैं अपना जन्मदिन इस महीने। यशुदास और जावेद अख़तर को हम जनमदिन की शुभकामनाएँ दे चुके हैं, और श्रद्धांजली अर्पित की है सी. रामचन्द्र, जयदेव, चित्रगुप्त, कैफ़ी आज़मी, और ओ. पी. नय्यर को। आज १८ जनवरी जिस महान कलाकार का स्मृति दिवस है, उनके बारे में यही कह सकते हैं कि वो हिंदी सिनेमा के पहले सिंगिंग् सुपरस्टार हैं, जिन्होने फ़िल्म संगीत को एक दिशा दिखाई। जब फ़िल्म संगीत का जन्म हुआ था, उस समय प्रचलित नाट्य और शास्त्रीय संगीत ही सीधे सीधे फ़िल्मी गीतों के रूप में प्रस्तुत कर दिए जाते थे। लेकिन इस अज़ीम गायक अभिनेता फ़िल्मों में लेकर आए सुगम संगीत और जिनकी उंगली थाम फ़िल्म संगीत ने चलना सीखा, आगे बढ़ना सीखा, अपना एक अलग पहचान बनाया। आप हैं फ़िल्म जगत के पहले सिंगिंग् सुपरस्टार कुंदन लाल सहगल। सहगल साहब ने फ़िल्म संगीत में जो योगदान दिया है, उनका शुक्रिया अदा करने की किसी के पास ना तो शब्द हैं और ना ही कोई और तरीक़ा। फिर भी विविध भारती उन्हे श्रद्धा स्वरूप दशकों से अपने दैनिक 'भूले बिसरे गीत' कार्यक्रम में हर रोज़ याद करते हैं कार्यक्रम के अंतिम गीत के रूप में। और यह सिलसिला दशकों से बिना किसी रुकावट से चली आ रही है। सहगल साहब की आवाज़ में 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के ५०-वे एपिसोड में हमने आपको फ़िल्म 'शाहजहाँ' का गीत सुनवाया था "ग़म दिए मुस्तक़िल"। आज हम कुछ साल और पीछे की तरफ़ जा रहे हैं और आपके लिए चुन कर लाए हैं सन् १९४० की फ़िल्म 'ज़िंदगी' से सहगल साहब की गाई हुई लोरी "सो जा राजकुमारी सो जा"। इस फ़िल्म में संगीत पकज मल्लिक साहब का था, और सहगल साहब के अलावा फ़िल्म में अभिनय किया जमुना और पहाड़ी सान्याल ने। इस कालजयी लोरी को लिखा था किदार शर्मा ने। यह लोरी फ़िल्मी लोरियों में एक ख़ास मुक़ाम रखती है। सहगल साहब की कोमल आवाज़ जिस तरह से "सो जा" कहती है, बस सुन कर ही इसे अनुभव किया जा सकता है।

दोस्तों, सहगल साहब का १८ जनवरी १९४७ को निधन हो गया था। शराब की लत ऐसी लग गई थी कि कोई दवा काम न आ सकी। उनके दिमाग़ में यह बात बैठ गई थी कि जब तक वो शराब न पी लें, वो अच्छी तरह से गा नहीं सकते। एक बार नौशद साहब ने फ़िल्म 'शाहजहाँ' के गाने की रिकार्डिंग् के दौरान उनसे कहा कि आप बिना पीये मुझे एक टेक दे दीजिए, फिर उसके बाद आप जो कहेँगे हम सुनेँगे। सहगल साहब मान गए, बिना पीए टेक दे दिया और उसके बाद फिर पीना शुरु किया। घर जाने से पहले नशे की हालत में फिर एक टेक उन्होने दिया, जो उनके हिसाब से बिना पीये टेक से बेहतर था। अगले दिन नौशाद साहब ने दोनों टेक सहगल साहब को सुनवाए लेकिन यह नहीं बताया कि कौन सा टेक बिना पीये है और कौन सा नशे की हालत में। सहगल साहब ने बिना पीये टेक को बेहतर क़रार देते हुए कहा कि देखा, मैंने कहा था न कि बिना पीये मेरी आवाज़ नहीं खुलती! इस पर जब नौशाद साहब ने उनसे कहा कि दरअसल यह बिना पीये वाला रिकार्डिंग् था तो वो आश्चर्यचकित रह गए। नौशाद साहब ने उनसे कहा था कि "जिन लोगों ने आप से यह कहा है कि पीये बग़ैर आपकी आवाज़ नहीं खुलती, वो आपके दोस्त नहीं हैं।" ये सुनकर सहगल साहब का जवाब था "अगर यही बात मुझसे पहले किसी ने कहा होता तो शायद कुछ दिन और जी लेता!!!" दोस्तों, लता मंगेशकर ने ९० के दशक में 'श्रद्धांजली' शीर्षक से एक ट्रिब्युट ऐल्बम जारी किया था जिसमें उन्होने सुनहरे दौर के दिग्गज गायकों को श्रद्धांजली स्वरूप याद करते हुए उनके एक एक गाने गाए थे। पहला गाना सहगल साहब का था, और आपको पता है वह कौन सा गाना था? जी हाँ, आज का प्रस्तुत गीत। लता जी कहती हैं, "स्वर्गीय श्री के. एल. सहगल, वैसे तो उनसे सीखने का सौभाग्य मुझे प्राप्त नहीं हुआ, मगर उनके गाए गानें सुन सुन कर ही मुझमें सुगम संगीत गाने की इच्छा जागी। मेरे पिताजी, श्री दीनानाथ मंगेशकर, जो अपने ज़माने के माने हुए गायक थे, उनको सहगल साहब की गायकी बहुत पसंद थी। वो अक्सर मुझे सहगल साहब का कोई गीत सुनाने को कहते थे।" चलिए दोस्तों, सहगल साहब की स्वर्णिम आवाज़ में सुनते है फ़िल्म 'ज़िंदगी' का यह गीत। बेहद बेहद ख़ास है आज का 'ओल्ड इज़ गोल्ड', है न?



चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम रोज आपको देंगें ४ पंक्तियाँ और हर पंक्ति में कोई एक शब्द होगा जो होगा आपका सूत्र. यानी कुल चार शब्द आपको मिलेंगें जो अगले गीत के किसी एक अंतरे में इस्तेमाल हुए होंगें, जो शब्द बोल्ड दिख रहे हैं वो आपके सूत्र हैं बाकी शब्द बची हुई पंक्तियों में से चुनकर आपने पहेली सुलझानी है, और बूझना है वो अगला गीत. तो लीजिए ये रही आज की पंक्तियाँ-

तरसे अखियाँ,
बरसे बादल,
सूखी दुनिया,
दिल का अंचल

अतिरिक्त सूत्र - इस गीतकार ने ९ जनवरी २००३ का दिन चुना था दुनिया को अलविदा कहने के लिए

पिछली पहेली का परिणाम-


खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

Anonymous said…
teri raahon mein khade hain dil thaam ke

ROHIT RAJPUT
indu puri said…
9january 2003 ke din qamar jalalabadiji ki mrityu hui thi.
geetkaar wahi hai ,unka hi likha geet hai rohitji fir try kijiye

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की