ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 304/2010/04
'हिंद युग्म' और 'आवाज़' की तरफ़ से, और हम अपनी तरफ़ से आज राहुल देव बर्मन यानी कि हमारे चहेते पंचम दा को उनकी पुण्यतिथि पर अर्पित कर रहे हैं अपनी श्रद्धांजली। जैसा कि इन दिनों आप 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर सुन रहे हैं उन्ही के स्वरब्द्ध किए अलग अलग रंग के, अलग अलग जौनर के गानें। पहली कड़ी में आप ने मन्ना डे और लता मंगेशकर का गाया हुआ एक बड़ा ही मीठा सा शास्त्रीय रंग वाला गाना सुना था फ़िल्म 'जुर्माना' का। आज बारी है लोक रंग की, लेकिन एक बार फिर से वही दो आवाज़ें, यानी कि लता जी और मन्ना दा के। लेकिन यह गाना बिल्कुल अलग है। जहाँ उस गाने में गायकी पर ज़ोर था क्योंकि एक संगीत शिक्षक और एक प्रतिभाशाली गायिका के चरित्रों को निभाना था, वहीं दूसरी तरफ़ आज के गाने में है भरपूर मस्ती, डांस, और छेड़-छाड़, जिसे सुनते हुए आप भी मचलने लग पड़ेंगे। संगीत, बोल और गायकी के द्वारा गाँव का पूरा का पूरा नज़ारा सामने आ जाता है इस गीत में। ग़ज़ब की मस्ती है इस गीत में। यह गीत है नासिर हुसैन की फ़िल्म 'बहारो के सपने' का "चुनरी संभाल गोरी उड़ी चली जाए रे", और जैसा कि कल ही हमने आपको बताया था कि नासिर साहब के इस फ़िल्म में मजरूह साहब ने गानें लिखे थे। दोस्तों, जब पंचम ने पहली पहली बार इस गीत को कॊम्पोज़ कर के नासिर साहब को सुनवाया था तो नासिर साहब को कुछ ख़ास अच्छा नहीं लगा। उन्होने कहा कि कुछ कमी है इस गीत में, गीत कुछ जमा नहीं। तब पंचम के दिमाग़ में यह ख़याल आया कि जब मुखड़ा रिपीट होता है, अगर उस वक़्त लता जी से "ह अअ" गवाया जाए तो गाने में जिस एक्स-फ़ैक्टर की कमी लग रही है, वह पूरी हो सकती है। उन्होने नासिर साहब से यह बात कहे तो नासिर साहब ख़ुशी से उछल पड़े। कहने लगे कि यही तो चाहिए था, और इस तरह से यह गीत बना। और क्या बना साहब, आज भी यह गीत रेडियो पर आते ही हमारे क़दम थिरकने लग उठते हैं। लोक धुनों पर आधारित गीतों की जब जब बात चलेगी, इस गीत का ज़िक्र अनिवार्य हो जाएगा।
'बहारों के सपने' फ़िल्म का निर्माण सन् 1967 में नासिर हुसैन ने किया था और उन्होने ही इस फ़िल्म की कहानी को लिखा व फ़िल्म को निर्देशित किया। नासिर हुसैन, मजरूह सुल्तानपुरी और राहुल देव बर्मन की तिकड़ी ने एक बार फिर गीत संगीत के पक्ष में कमाल कर दिखाया और इस फ़िल्म के सभी गानें बेहद मक़बूल हुए। फ़िल्म में संवाद लिखे राजेन्द्र सिंह बेदी ने और फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे राजेश खन्ना, आशा पारेख व प्रेम नाथ प्रमुख। फ़िल्म की कहानी एक औद्योगिक मिल के मज़दूरों और मालिक के बीच के अन बन की कहानी है। इस पार्श्व पर बहुत सारी फ़िल्में समय समय पर बन चुकी है और कहानी में बहुत ज़्यादा ख़ास बात नहीं है। लेकिन एक अच्छा फ़िल्मकार एक साधारण कहानी को भी एक कामयाब फ़िल्म में परिवर्तित करने की क्षमता रखता है और नासिर साहब ने भी इसी बात का प्रमाण दिया है इस फ़िल्म में। जहाँ तक इस थिरकते हुए गीत का सवाल है, इसमें बेला बोस और जयश्री गाडकर के नृत्य का सुंदर प्रदर्शन देखने को मिलता है। सुरेश भट्ट का नृत्य निर्देशन इस गीत में सराहनीय रहा। तो आइए हम सब मिल कर झूम जाते हैं बहारों के सपनों के साथ, इन लोक धुनों के साथ, लता जी और मन्ना दा के स्वरों के साथ, पंचम और मजरूह के इस गाने के साथ!
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम रोज आपको देंगें ४ पंक्तियाँ और हर पंक्ति में कोई एक शब्द होगा जो होगा आपका सूत्र. यानी कुल चार शब्द आपको मिलेंगें जो अगले गीत के किसी एक अंतरे में इस्तेमाल हुए होंगें, जो शब्द बोल्ड दिख रहे हैं वो आपके सूत्र हैं बाकी शब्द बची हुई पंक्तियों में से चुनकर आपने पहेली सुलझानी है, और बूझना है वो अगला गीत. तो लीजिए ये रही आज की पंक्तियाँ-
रहा नींद में ही उम्र भर,
वो इश्क नशे का मारा,
मुगालते में जीत की जो,
सब कुछ अपना हारा...
पिछली पहेली का परिणाम-
शरद जी, लगातार दूसरी बार आपने सही जवाब दिया, ३ अंक हुए आपके, आप पूछेंगें ३ क्यों ? तो थोडा सा बदलाव किया है पहली की मार्किंग में. कोई भी जो एक बार सही जवाब देगा वही यदि अगली कड़ी में भी सही जवाब देगा तो उसे २ की जगह १ अंक से ही संतुष्ट होना पड़ेगा, ऐसा तब तक होगा जब तक कोई दूसरा सही जवाब पहले देकर २ अंक न कमा लें. यानी कि यदि आज कोई आपसे पहले सही जवाब दे गया तो उसे तो २ अंक मिलेंगे ही आपके अगले जवाब में फिर से आपको २ अंक मिल जायेगें, ऐसा इसलिए करना पड़ा ताकि कोई तो हो जो आपकी टक्कर में खड़ा रह सके :), बधाई आज के लिए.
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
'हिंद युग्म' और 'आवाज़' की तरफ़ से, और हम अपनी तरफ़ से आज राहुल देव बर्मन यानी कि हमारे चहेते पंचम दा को उनकी पुण्यतिथि पर अर्पित कर रहे हैं अपनी श्रद्धांजली। जैसा कि इन दिनों आप 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर सुन रहे हैं उन्ही के स्वरब्द्ध किए अलग अलग रंग के, अलग अलग जौनर के गानें। पहली कड़ी में आप ने मन्ना डे और लता मंगेशकर का गाया हुआ एक बड़ा ही मीठा सा शास्त्रीय रंग वाला गाना सुना था फ़िल्म 'जुर्माना' का। आज बारी है लोक रंग की, लेकिन एक बार फिर से वही दो आवाज़ें, यानी कि लता जी और मन्ना दा के। लेकिन यह गाना बिल्कुल अलग है। जहाँ उस गाने में गायकी पर ज़ोर था क्योंकि एक संगीत शिक्षक और एक प्रतिभाशाली गायिका के चरित्रों को निभाना था, वहीं दूसरी तरफ़ आज के गाने में है भरपूर मस्ती, डांस, और छेड़-छाड़, जिसे सुनते हुए आप भी मचलने लग पड़ेंगे। संगीत, बोल और गायकी के द्वारा गाँव का पूरा का पूरा नज़ारा सामने आ जाता है इस गीत में। ग़ज़ब की मस्ती है इस गीत में। यह गीत है नासिर हुसैन की फ़िल्म 'बहारो के सपने' का "चुनरी संभाल गोरी उड़ी चली जाए रे", और जैसा कि कल ही हमने आपको बताया था कि नासिर साहब के इस फ़िल्म में मजरूह साहब ने गानें लिखे थे। दोस्तों, जब पंचम ने पहली पहली बार इस गीत को कॊम्पोज़ कर के नासिर साहब को सुनवाया था तो नासिर साहब को कुछ ख़ास अच्छा नहीं लगा। उन्होने कहा कि कुछ कमी है इस गीत में, गीत कुछ जमा नहीं। तब पंचम के दिमाग़ में यह ख़याल आया कि जब मुखड़ा रिपीट होता है, अगर उस वक़्त लता जी से "ह अअ" गवाया जाए तो गाने में जिस एक्स-फ़ैक्टर की कमी लग रही है, वह पूरी हो सकती है। उन्होने नासिर साहब से यह बात कहे तो नासिर साहब ख़ुशी से उछल पड़े। कहने लगे कि यही तो चाहिए था, और इस तरह से यह गीत बना। और क्या बना साहब, आज भी यह गीत रेडियो पर आते ही हमारे क़दम थिरकने लग उठते हैं। लोक धुनों पर आधारित गीतों की जब जब बात चलेगी, इस गीत का ज़िक्र अनिवार्य हो जाएगा।
'बहारों के सपने' फ़िल्म का निर्माण सन् 1967 में नासिर हुसैन ने किया था और उन्होने ही इस फ़िल्म की कहानी को लिखा व फ़िल्म को निर्देशित किया। नासिर हुसैन, मजरूह सुल्तानपुरी और राहुल देव बर्मन की तिकड़ी ने एक बार फिर गीत संगीत के पक्ष में कमाल कर दिखाया और इस फ़िल्म के सभी गानें बेहद मक़बूल हुए। फ़िल्म में संवाद लिखे राजेन्द्र सिंह बेदी ने और फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे राजेश खन्ना, आशा पारेख व प्रेम नाथ प्रमुख। फ़िल्म की कहानी एक औद्योगिक मिल के मज़दूरों और मालिक के बीच के अन बन की कहानी है। इस पार्श्व पर बहुत सारी फ़िल्में समय समय पर बन चुकी है और कहानी में बहुत ज़्यादा ख़ास बात नहीं है। लेकिन एक अच्छा फ़िल्मकार एक साधारण कहानी को भी एक कामयाब फ़िल्म में परिवर्तित करने की क्षमता रखता है और नासिर साहब ने भी इसी बात का प्रमाण दिया है इस फ़िल्म में। जहाँ तक इस थिरकते हुए गीत का सवाल है, इसमें बेला बोस और जयश्री गाडकर के नृत्य का सुंदर प्रदर्शन देखने को मिलता है। सुरेश भट्ट का नृत्य निर्देशन इस गीत में सराहनीय रहा। तो आइए हम सब मिल कर झूम जाते हैं बहारों के सपनों के साथ, इन लोक धुनों के साथ, लता जी और मन्ना दा के स्वरों के साथ, पंचम और मजरूह के इस गाने के साथ!
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम रोज आपको देंगें ४ पंक्तियाँ और हर पंक्ति में कोई एक शब्द होगा जो होगा आपका सूत्र. यानी कुल चार शब्द आपको मिलेंगें जो अगले गीत के किसी एक अंतरे में इस्तेमाल हुए होंगें, जो शब्द बोल्ड दिख रहे हैं वो आपके सूत्र हैं बाकी शब्द बची हुई पंक्तियों में से चुनकर आपने पहेली सुलझानी है, और बूझना है वो अगला गीत. तो लीजिए ये रही आज की पंक्तियाँ-
रहा नींद में ही उम्र भर,
वो इश्क नशे का मारा,
मुगालते में जीत की जो,
सब कुछ अपना हारा...
पिछली पहेली का परिणाम-
शरद जी, लगातार दूसरी बार आपने सही जवाब दिया, ३ अंक हुए आपके, आप पूछेंगें ३ क्यों ? तो थोडा सा बदलाव किया है पहली की मार्किंग में. कोई भी जो एक बार सही जवाब देगा वही यदि अगली कड़ी में भी सही जवाब देगा तो उसे २ की जगह १ अंक से ही संतुष्ट होना पड़ेगा, ऐसा तब तक होगा जब तक कोई दूसरा सही जवाब पहले देकर २ अंक न कमा लें. यानी कि यदि आज कोई आपसे पहले सही जवाब दे गया तो उसे तो २ अंक मिलेंगे ही आपके अगले जवाब में फिर से आपको २ अंक मिल जायेगें, ऐसा इसलिए करना पड़ा ताकि कोई तो हो जो आपकी टक्कर में खड़ा रह सके :), बधाई आज के लिए.
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
jeet lo man ko padhkar geeta, man hi haara to kya jeeta...
dekho o deewano (HRHK).
10 degree temp mein bhi paseena chhut gaya mera.
ROHIT RAJPUT
पहेली का नया कलेवर बढिया है. शुभकामनायें..