ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 301/2010/01
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी चाहनेवालों को हमारी तरफ़ से नववर्ष की एक बार फिर से हार्दिक शुभकामनाएँ! नया साल २०१० आप सब के लिए मंगलमय हो यही ईश्वर से कामना करते हैं। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला ३०० कड़ियाँ पूरी कर चुका हैं, ७ दिनों के अंतराल के बाद, आज से हम फिर एक बार हाज़िर हैं इस शूंखला के साथ और फिर उसी तरह से हर रोज़ लेकर आएँगे गुज़रे ज़माने का एक अनमोल नग़मा ख़ास आपके लिए। पहेली प्रतियोगिता का स्वरूप भी बदल रहा है आज से, तो जल्द जवाब देने से पहले शर्तों को ठीक तरह से समझ लीजिएगा! तो दोस्तों, नए साल में 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की शुरुआत एक धमाकेदार तरीके से होनी चाहिए, क्यों है न? तो फिर हो जाइए तैयार क्योंकि आज से हम शुरु कर रहे हैं क्रांतिकारी संगीतकार राहुल देव बर्मन के स्वरबद्ध किए दस अलग अलग रंगों के गीतों की एक ख़ास लघु शृंखला - पंचम के दस रंग। युं तो पंचम के दस नहीं बल्कि बेशुमार रंग हैं, लेकिन हम ने उनमें से चुन लिए लिए हैं दस रंगों को और इन दस रंगों से आपको अगले दस दिनों तक हम सराबोर करने जा रहे हैं। तो आइए आज इस नए साल की शुरुआत करते हैं एक बेहद सुरीले और मीठे गीत के साथ। जी हाँ, इसमें है पंचम के भारतीय शास्त्रीय संगीत का रंग। लता मंगेशकर और मन्ना डे की आवाज़ों में फ़िल्म 'जुर्माना' का एक बेहद कर्णप्रिय गीत "ए सखी राधिके बावरी हो गई, श्याम को ढ़ूंढते आप ही खो गई"। आनंद बक्शी साहब का लिखा हुआ गाना है, और जो फ़िल्माया गया है राखी और ए. के. हंगल पर, यानी कि मन्ना दा की आवाज़ सजी है हंगल साहब के होठों पर।
'जुर्माना' १९७८ की फ़िल्म थी जिसका निर्देशन किया था ऋषीकेश मुखर्जी ने, और इसमें मुख्य कलाकार थे राखी, अमिताभ बच्चन और विनोद मेहरा। इस फ़िल्म का सब से लोकप्रिय गीत रहा लता जी का गाया "सावन के झूले पड़े तुम चले आओ"। उन्ही की आवाज़ में "छोटी सी एक कली खिली थी बाग़ में" भी पसंद किया गया, और आज का प्रस्तुत गीत तो शास्त्रीय रचनाओं में एक अच्छा ख़ासा मुकाम रखता है। आइए इस गाने के सिचुयशन से आपको रु-ब-रु करवाया जाए। इस गीत के माध्यम से एक लड़की के गायिका बनने का सफ़र मुकाम दर मुकाम दर्शाया गया है। गाने की शुरुआत होती है कि जब राखी घर पर अपने संगीत शिक्षक ए. के. हंगल से गाना सीख रही होती हैं। पहले अंतरे के ख़त्म होते होते राखी बन जाती हैं स्टेज पर अपना गायन पेश करने वाली गायिका। एक नृत्य नाटिका के लिए पार्श्वगायन करते हुए भी दिखाया जाता है। और अंतिम अंतरे में वो बन जाती हैं एक नामचीन गायिका जिनके ग्रामोफ़ोन रिकार्ड्स जारी होते हैं और रेडियो पर भी उनके गानें बजते हैं। इस तरह से घर पर बैठे रियाज़ करने से लेकर रेडियो और ग्रामोफ़ोन तक के सफ़र को इस अकेले गीत में दर्शाया गया है। पंचम ने इस तरह के शास्त्रीय और उप-शास्त्रीय संगीत पर आधारित कई गानें लता जी से गवाए हैं जैसे कि फ़िल्म 'छोटे नवाब' में "घर आजा घिर आए", फ़िल्म 'अमर प्रेम' में "रैना बीती जाए" और "बड़ा नटखट है रे", फ़िल्म 'बेमिसाल' में "ए री पवन ढ़ूंढे किसे तेरा मन", फ़िल्म 'बावर्ची' में "मस्त पवन डोले रे", और भी न जाने कितने ऐसे गीत हैं। ये गानें इतने सुरीले हैं कि आज भी जब हम इन्हे सुनते हैं तो जैसे कानों में मिश्री से घुल जाती है। आइए दोस्तों, नए साल के इस पहले दिन में कुछ मीठा हो जाए, लता जी और मन्ना दा के सुरीली आवाज़ों के साथ, पेश है फ़िल्म 'जुर्माना' की यह सुमधुर रचना!
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम रोज आपको देंगें ४ पंक्तियाँ और हर पंक्ति में कोई एक शब्द होगा जो होगा आपका सूत्र. यानी कुल चार शब्द आपको मिलेंगें जो अगले गीत के किसी एक अंतरे में इस्तेमाल हुए होंगें,कुछ शब्द बोल्ड किये हुए होंगें, और कुछ शब्द आपने खुद खोजने हैं, बाकी पंक्तियों में से, और बूझना है वो अगला गीत. तो लीजिए ये रही आज की पंक्तियाँ-
कथ्थई है रंग, उन आँखों का जैसे,
रात में घुली, शफक की अंगडाई हो,
छुपी है हया, सादगी के पर्दों में,
झील में जैसे, चाँद की परछाई हो...
पिछली पहेली का परिणाम-
महा पहेली में ४ प्रशन अनुत्तरित रह गए. ६ सही जवाब आये जिसमें से ५ शरद जी के थे और एक पाबला जी का....आप दोनों को बहुत बधाई...पहेली का नया अंदाज़ आपको कैसा लगा अवश्य बताईयेगा
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी चाहनेवालों को हमारी तरफ़ से नववर्ष की एक बार फिर से हार्दिक शुभकामनाएँ! नया साल २०१० आप सब के लिए मंगलमय हो यही ईश्वर से कामना करते हैं। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला ३०० कड़ियाँ पूरी कर चुका हैं, ७ दिनों के अंतराल के बाद, आज से हम फिर एक बार हाज़िर हैं इस शूंखला के साथ और फिर उसी तरह से हर रोज़ लेकर आएँगे गुज़रे ज़माने का एक अनमोल नग़मा ख़ास आपके लिए। पहेली प्रतियोगिता का स्वरूप भी बदल रहा है आज से, तो जल्द जवाब देने से पहले शर्तों को ठीक तरह से समझ लीजिएगा! तो दोस्तों, नए साल में 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की शुरुआत एक धमाकेदार तरीके से होनी चाहिए, क्यों है न? तो फिर हो जाइए तैयार क्योंकि आज से हम शुरु कर रहे हैं क्रांतिकारी संगीतकार राहुल देव बर्मन के स्वरबद्ध किए दस अलग अलग रंगों के गीतों की एक ख़ास लघु शृंखला - पंचम के दस रंग। युं तो पंचम के दस नहीं बल्कि बेशुमार रंग हैं, लेकिन हम ने उनमें से चुन लिए लिए हैं दस रंगों को और इन दस रंगों से आपको अगले दस दिनों तक हम सराबोर करने जा रहे हैं। तो आइए आज इस नए साल की शुरुआत करते हैं एक बेहद सुरीले और मीठे गीत के साथ। जी हाँ, इसमें है पंचम के भारतीय शास्त्रीय संगीत का रंग। लता मंगेशकर और मन्ना डे की आवाज़ों में फ़िल्म 'जुर्माना' का एक बेहद कर्णप्रिय गीत "ए सखी राधिके बावरी हो गई, श्याम को ढ़ूंढते आप ही खो गई"। आनंद बक्शी साहब का लिखा हुआ गाना है, और जो फ़िल्माया गया है राखी और ए. के. हंगल पर, यानी कि मन्ना दा की आवाज़ सजी है हंगल साहब के होठों पर।
'जुर्माना' १९७८ की फ़िल्म थी जिसका निर्देशन किया था ऋषीकेश मुखर्जी ने, और इसमें मुख्य कलाकार थे राखी, अमिताभ बच्चन और विनोद मेहरा। इस फ़िल्म का सब से लोकप्रिय गीत रहा लता जी का गाया "सावन के झूले पड़े तुम चले आओ"। उन्ही की आवाज़ में "छोटी सी एक कली खिली थी बाग़ में" भी पसंद किया गया, और आज का प्रस्तुत गीत तो शास्त्रीय रचनाओं में एक अच्छा ख़ासा मुकाम रखता है। आइए इस गाने के सिचुयशन से आपको रु-ब-रु करवाया जाए। इस गीत के माध्यम से एक लड़की के गायिका बनने का सफ़र मुकाम दर मुकाम दर्शाया गया है। गाने की शुरुआत होती है कि जब राखी घर पर अपने संगीत शिक्षक ए. के. हंगल से गाना सीख रही होती हैं। पहले अंतरे के ख़त्म होते होते राखी बन जाती हैं स्टेज पर अपना गायन पेश करने वाली गायिका। एक नृत्य नाटिका के लिए पार्श्वगायन करते हुए भी दिखाया जाता है। और अंतिम अंतरे में वो बन जाती हैं एक नामचीन गायिका जिनके ग्रामोफ़ोन रिकार्ड्स जारी होते हैं और रेडियो पर भी उनके गानें बजते हैं। इस तरह से घर पर बैठे रियाज़ करने से लेकर रेडियो और ग्रामोफ़ोन तक के सफ़र को इस अकेले गीत में दर्शाया गया है। पंचम ने इस तरह के शास्त्रीय और उप-शास्त्रीय संगीत पर आधारित कई गानें लता जी से गवाए हैं जैसे कि फ़िल्म 'छोटे नवाब' में "घर आजा घिर आए", फ़िल्म 'अमर प्रेम' में "रैना बीती जाए" और "बड़ा नटखट है रे", फ़िल्म 'बेमिसाल' में "ए री पवन ढ़ूंढे किसे तेरा मन", फ़िल्म 'बावर्ची' में "मस्त पवन डोले रे", और भी न जाने कितने ऐसे गीत हैं। ये गानें इतने सुरीले हैं कि आज भी जब हम इन्हे सुनते हैं तो जैसे कानों में मिश्री से घुल जाती है। आइए दोस्तों, नए साल के इस पहले दिन में कुछ मीठा हो जाए, लता जी और मन्ना दा के सुरीली आवाज़ों के साथ, पेश है फ़िल्म 'जुर्माना' की यह सुमधुर रचना!
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम रोज आपको देंगें ४ पंक्तियाँ और हर पंक्ति में कोई एक शब्द होगा जो होगा आपका सूत्र. यानी कुल चार शब्द आपको मिलेंगें जो अगले गीत के किसी एक अंतरे में इस्तेमाल हुए होंगें,कुछ शब्द बोल्ड किये हुए होंगें, और कुछ शब्द आपने खुद खोजने हैं, बाकी पंक्तियों में से, और बूझना है वो अगला गीत. तो लीजिए ये रही आज की पंक्तियाँ-
कथ्थई है रंग, उन आँखों का जैसे,
रात में घुली, शफक की अंगडाई हो,
छुपी है हया, सादगी के पर्दों में,
झील में जैसे, चाँद की परछाई हो...
पिछली पहेली का परिणाम-
महा पहेली में ४ प्रशन अनुत्तरित रह गए. ६ सही जवाब आये जिसमें से ५ शरद जी के थे और एक पाबला जी का....आप दोनों को बहुत बधाई...पहेली का नया अंदाज़ आपको कैसा लगा अवश्य बताईयेगा
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
इसलिए थोड़ा कानफ्युज़न हो जाता है.
अवध लाल
लम्बे समय के बाद इतना सुन्दर कोमल मधुर शास्त्रीय गीत सुना है
गीत की मधुरता का तो क्या कहें ....चित्त यही थम गया है ...
बहुत आभार ....